ख़ाम रात - 6 Prabodh Kumar Govil द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

ख़ाम रात - 6

मैडम बोलीं- मैंने बताया न आपको, एक बात थी। लड़का अच्छे डांस स्कूल में था, सभी सुविधाएं थीं। सीख भी बहुत कुछ गया था, मगर मैंने गौर किया कि बीच- बीच में वो बुझ सा जाता था। उसकी आँखें फड़कने लगती थीं, वह बोलते समय हकलाने लग जाता था और एक एक बात को कई कई बार दोहराता, मानो सब भूल गया हो।
मैं बुरी तरह घबरा गई। मैंने जब ऐसा दो तीन बार गौर से देखा तो एक दिन अपने पति से कहा।
उन्होंने पहले तो इसे हल्के में लिया और इसे मेरा ही वहम बताया, पर जल्दी ही वो भी चिंतित हो गए।
दिन में मुझे ये कहने वाले, कि तू उसकी ज़्यादा चिंता करती है इसीलिए फालतू घबरा जाती है, रात को ख़ुद नींद से उठ कर बार बार उसे देखने जाते कि वो क्या कर रहा है।
उनको शक होने लगा कि या तो रात को देर- देर तक जाग के काम करने से उसका दिमाग़ी संतुलन थकान से बिगड़ गया है या फिर वो कहीं किसी नशे- पत्ते का गुलाम तो नहीं बन गया?
वो चुपचाप देखने जाते और उसे शांति से सोता हुआ पाते। तब एक दिन वो उसे डॉक्टर को दिखाने की बात करने लगे।
तभी लड़के को एक चिट्ठी मिली और वो सब कुछ भूल कर ख़ुशी से उछल पड़ा। उसने एक नामचीन एक्टिंग एकेडमी में दाखिले के लिए कोशिश की थी, वहां से उसे बुलावा आ गया।
दो चार दिन वो इतना खुश और मस्त दिखा कि हम भी यही समझे, उसे कुछ नहीं है। ये सब सचमुच हमारा वहम ही है। अब न तो वो कुछ बोलने में अटकता है और न ही उसकी आंख फड़कती है। कहते हुए मैडम की आँखें चमकने लगीं।
मैंने कहा- कभी- कभी ऐसा भी होता है कि ज्यादा ख़ुशी, ज़्यादा दुःख या ज़्यादा उत्तेजना से भी ऐसा हो जाता है। हो सकता है कि वो अपने एडमिशन को लेकर ज़्यादा तनाव में रहता रहा हो और इसीलिए उसे ऐसे लक्षण दिखाई दिए हों जिनसे आप लोग विचलित हो गए।
- जो भी हो, मैंने तो देवी मां के मंदिर में सवा सौ किलो लड्डू चढ़वाए और आदिवासी बस्ती में बंटवा दिए।
लड़का फ़िर से चला गया।
इस बीच मेरा बड़ा बेटा भी वापस आ गया।
- वो कहां था, क्या कर रहा था, आपने बताया नहीं? मैंने सहज ही कहा।
बाद में मुझे मेरे प्रश्न और जिज्ञासा पर ख़ुद ही ग्लानि होने लगी। उनके बारे में सब कुछ जानना मेरा हक था क्या? क्यों मैं इस तरह जुड़ता जा रहा था उनके परिवार से? यही सोच कर मैं चुप हो गया।
पर वही बोलीं- बड़ा बेटा बाहर पढ़ने गया था। उसने विदेश से बड़ी डिग्री ली। वो अपनी पढ़ाई पूरी करके लौट आया।
ये बेटा छोटे जितना सुंदर नहीं था।
मैं हंसा। मैंने कहा- मैडम लड़कों की सुंदरता कौन देखता है, अगर स्वस्थ हो, बुद्धिमान हो, टाइम पर कमाने लगे तो उसे अच्छा ही माना जाता है। लड़के के नाक- नक्ष कौन देखता है?
मैडम कुछ निराश होकर मेरी ओर देखने लगीं।
दो पल रुकीं, फ़िर बोलीं- मैंने कहा न, हम लोग रॉयल फ़ैमिली से आते हैं, कमाना- धमाना कुछ नहीं होता, बहुत होता है बाप- दादा का जोड़ा हुआ। जवान होते ही बहू लाना होता है। सोसायटी में आना- जाना, उठना- बैठना। लड़का सुन्दर होगा तो बहू ठसक से रहेगी, उसके इर्द- गिर्द ही घूमेगी। हर जगह उसके साथ ही दिखेगी। दिखने में थोड़ा गिरा हुआ हुआ तो बहू को संभालना मुश्किल हो जाएगा। वो सोसायटी के दूसरे लड़कों से मेलजोल बढ़ाएगी। उसको कैसे बांधेगा?
मैं इस दर्शन पर चुप हो कर रह गया।
- जी, फ़िर क्या किया लड़के ने...?