ख़ाम रात - 2 Prabodh Kumar Govil द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ख़ाम रात - 2

मैं लॉन में चलता हुआ महिला की ओर कुछ दूर बढ़ा ही था कि शायद कुछ आहट पाकर महिला ने पीछे मुड़कर देखा।
मैं चौंक गया। अरे, ये तो शायद हमारे स्टेट की चीफ मिनिस्टर साहिबा हैं? देखो, कितने इत्मीनान से यहां एकांत में अकेली बैठी हैं। अपने देश में होतीं तो कमांडो और कारों के काफिले के बीच मंच की किसी तनावग्रस्त कठपुतली की तरह दिखाई देतीं।
इसीलिए तो ये नेता लोग दौड़ - दौड़ कर जाते हैं विदेश! ये सोचता हुआ मैं कुछ थम सा गया।
उधर जाऊं या नहीं, ये सोचता हुआ।
लेकिन तभी उनके हाथ की पत्रिका उनकी गोद से फिसल कर नीचे घास पर गिरी और वो उसे उठाने के लिए झुकीं।
नहीं नहीं... मुझे भ्रम हुआ, ये तो वो नहीं हैं, मुझे भ्रम हुआ था। हां, अलबत्ता उनसे मिलती- जुलती शक्ल ज़रूर है।
अब मैं कुछ विश्वास भरा, तरोताजा होकर उनकी ओर बढ़ गया।
- नमस्ते! मैंने कहा।
एक लगभग हमउम्र महिला किसी पुरुष के इस संबोधन से भीतरी ख़ुशी महसूस नहीं करती। फ़िर भी "नमस्ते" जैसे गरिमापूर्ण शब्द की अवज्ञा भी नहीं कर पाती।
महिला ने मेरे अभिवादन का जवाब देते हुए शिष्टाचार से कहा- बैठिए।
मैं उनके सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया।
हल्की मुस्कुराहटों के बीच मैंने कहा- जी, मैं यहां बाग़ में टहल रहा था कि आपको देखा, सच कहूं, दूर से आपको देख कर मैंने अपने राज्य की मुख्यमंत्री समझा। मैं इसीलिए इधर चला आया। आपका चेहरा उनसे मिलता है न।
महिला पर मेरी बात का कोई विशेष असर नहीं पड़ा। वो सहज रूप से बोली- वो मेरी बहन है। मौसेरी।
इसके साथ ही कई संभावित प्रश्नों का पटाक्षेप अपने आप हो गया। मसलन, हम दोनों एक ही देश से आए हैं, परिचय का एक धूमिल सा तंतु भी दोनों के बीच पनप ही गया है।
ऐसे में बिना किसी अतिरिक्त औपचारिकता के बातचीत शुरू हो गई।
महिला बोली- आप भी यहां घूमने आए हैं या किसी काम से?
"भी" कहने से कुछ अनुमान हो गया कि वो यहां केवल सैर के इरादे से ही आई है। वैसे तो इसे सैर भी क्या, आराम ही कहना उचित होगा, क्योंकि जब यहां ठहरे सारे सैलानी घूमने निकले हुए हैं तब वो अकेली यहां बगीचे में बैठी हुई थीं।
- मैं लेखक हूं।
- क्या लिखते हैं?
- नॉवेल...
- इंगलिश में?
- जी नहीं, हिंदी में ही लिखता हूं। हां, कुछ किताबों के अनुवाद इंगलिश में ज़रूर हो जाते हैं। आपको दूंगा..
- नहीं, मैं हिंदी भी पढ़ लेती हूं।
- बहुत अच्छा, तब तो ... मैं बोल ही रहा था कि वो बोल पड़ीं-
- आपको मायूसी हुई होगी न?
- अरे क्यों? मैं उनके इस सवाल पर चौंक गया। मायूसी क्यों?
कुछ मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा- आप चीफ मिनिस्टर समझ कर यहां आए थे न, पर मैं वो नहीं निकली!
- तो क्या, मैं तो एक युवा महिला को अकेली बैठी देख गपशप के इरादे से आया था।
अब वो खुल कर हंसीं। बोलीं - युवा महिलाएं भारी साड़ी में होती हैं क्या? और युवा महिलाओं को अकेला भला कौन छोड़ता है।
अच्छा व्यंग्य किया था उन्होंने।
- जी, जाने दीजिए, युवा या प्रौढ़ कोई भी हो, गपशप तो हो ही सकती है। मैंने कहा।
- मेरी बहन होती तो आप उसका इंटरव्यू कर सकते थे पर अब तो केवल टाइमपास बातचीत ही हो सकती है।
- बिल्कुल, मैं कोई पत्रकार नहीं हूं। राइटर हूं, मेरे लिए टाइमपास बातचीत ज़्यादा काम की होती है। मैंने कहा।
- कैसी है वो? महिला ने सीधे पूछा।
- कौन? मैंने चौंक कर इधर- उधर देखा।
- वही आपकी चीफ मिनिस्टर!
- अरे, आपकी तो बहन है, आपको ज़्यादा पता होगा।
- नहीं, हम आपस में बात नहीं करते।
- क्यों?
- हम अलग- अलग पार्टी में हैं।
- ओह, तो आप भी पॉलिटिक्स में हैं?
- मैं उसकी जैसी पॉवर पॉलिटिक्स में नहीं हूं। हां, अपने इलाके के लोगों के लिए काम ज़रूर करती हूं। वो बहुत गरीब लोगों का एरिया है। पिछड़ा।... मुझे टिकिट भी नहीं मिला।
- जाने दीजिए। हम कुछ और बात करें?