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अंत... एक नई शुरुआत - 11

समीर - सुमन!बहुत सुंदर नाम है आपका!वैसे आपके नाम का अर्थ मालूम है आपको?

सुमन - जी...जी सुमन का अर्थ है,पुष्प या फूल!

समीर - जी बिल्कुल मगर पता है आपको इसका कुछ और भी मतलब होता है!

सुमन - वो क्या?

समीर - सुमन मतलब कि अच्छा मन!जिसका ह्रदय अच्छा हो और जो हमेशा प्रशन्न रहता हो।तो सुमन जी मैं आपसे आज एक वादा करता हूँ कि मैं आपको हमेशा प्रशन्न रखने का पूरा प्रयास करूँगा।

समीर की इस बात को सुनकर मेरी आँखें डबडबा गईं जिन्हें मैं अपनी पलकों तले छिपाकर मुस्कुराने लगी।

"आपकी मुस्कुराहट बहुत खूबसूरत है",समीर की इस बात पर शर्माते हुए मैं समीर की ओर अपनी पीठ करके खड़ी हो गई और तभी कुछ गिरने की आवाज़ से मैंने चौंककर जैसे ही पीछे पलटकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था।फिर मुझे मेरे पैरों के पास कुछ भराव सा प्रतीत हुआ और जब मैंने नीचे देखा तो वो एक खून की नदी थी जिसमें मुझे समीर का एक बेबस अक्स नज़र आया और मैं चीख पड़ी....समीमीईईईईर!!

मेरी आँख खुल चुकी थी मगर मैं अभी भी बुरी तरह से काँप रही थी।मेरे गालों पर आँसू बेतरतीब ढुलक रहे थे।शायद मैंने सोते हुए एक डरावना सपना देखा था जो मुझे अब जागने के बाद भी रुला रहा था।मेरी हिचकियों की आवाज से मेरे बगल में सो रहा नन्हा सनी भी घबराकर उठ बैठा और मुझे रोता हुआ देखकर वो मासूम भी सहमकर रोने लगा जिसपर मैंने उसे भींचकर अपनी छाती से चिपका लिया।पाँच साल का मेरा सनी और मैं,बस हम दोनों ही मानो अब एक-दूसरे का सहारा थे।

सनी अब फर्स्ट क्लास में जाने वाला था।मैंने उसका एडमिशन अपने ही स्कूल में करवाने का सोचा था जिसकी सारी औपचारिकताएं मैं पूरी कर चुकी थी।मेरी गर्मी की छुट्टियां चल रही थीं।एक दिन मैं सनी को एक कहानी सुना रही थी जिसमें नानी का और ननिहाल का ज़िक्र आ गया जिसपर नन्हा सनी अपनी भोलीभाली, गोल-गोल, नीली आँखों से मुझे देखने लगा और बोला...माँ ननिहाल क्या होता है?नानी कौन होती है?उस मासूम की ये बात मेरे ह्रदय को बहुत भीतर तक भेद गयी।फिर जब मैंने उसे ननिहाल और नानी का मतलब समझाया तब वो मुझसे अपने ननिहाल जाने की ज़िद्द करने लगा।अब उसकी बालहठ के आगे मैं हथियार डाल चुकी थी और मैंने उसको उसके ननिहाल ले जाने का वादा भी कर दिया।उस रात मैं सो भी नहीं पायी।मैं बस सारी रात सनी से किए गए अपने वादे पर विचार करती रही।मैं सोचती रही कि जब मेरा ही अब कोई मायका नहीं बचा है तो अब मैं सनी को उसके ननिहाल कैसे लेकर जाऊँ।उसी उधेड़बुन में न जाने कब रात बीती और सुबह ने दस्तक दी मुझे पता न चला।एक बार को तो मुझे ये भी लगा कि शायद सनी इस बात को भूल जायेगा मगर उसनें सोकर उठते ही सबसे पहला प्रश्न मुझसे यही किया कि माँ हम ननिहाल कब जायेंगे??और मैंने बड़ी ही सहजता के साथ उत्तर दिया कि कल या परसों!मैंने उससे कह तो दिया मगर मुझे खुद भी नहीं पता कि मैं उसे कहाँ,कब और कैसे लेकर जाऊँगी???मगर ईश्वर बड़ा ही मददगार है वो हर बार मुझे हर समस्या का हल खुद ही सुझा देता है और इस बार भी ऐसा ही हुआ।शाम को ही स्मिता मैम का फोन आ गया और जब बातों ही बातों में मैंने उन्हें सनी की ज़िद्द के बारे में बताया तो वो बड़े ही प्यार से बोलीं...अरे सुमन तो ये कौन सी बड़ी बात है!मैं तो उसकी नानी के जैसी ही हूँ न तो फिर मेरा घर हुआ उसका ननिहाल!तो बस कल तुम उसे लेकर मेरे घर आ जाओ बेटा।

स्मिता मैम की इस बात को सुनकर वर्षों से मेरे मन में दबी हुई मेरी स्मिता मैम के प्रति जो भावनाएं थीं वो यकायक बाहर आ गई...."मैम!मैंने हमेशा आपको अपनी माँ के रूप मे ही देखा है मगर मैं जो बात आपसे कभी नहीं कह पायी वो आज सनी की वजह से मुझे आपसे कहने का मौका मिल रहा है मैम!आज तक आपनें मेरे लिए जो कुछ भी किया है वो एक माँ ही अपनी बेटी के लिए करती है।",मेरी इस बात पर स्मिता मैम ने मुझसे कहा कि उन्होंने भी मुझे हमेशा अपनी बेटी के रूप में ही देखा है न कि एक स्टूडेंट के रूप में और उन्होंने मुझसे उस वक्त एक और बात कही जो मुझे फिर से जज़्बातों के समंदर में खींचकर ले गई।उन्होंने मुझसे कहा कि अब से मैं उन्हें मैम नहीं बल्कि माँ कहूँ ।

आज मैं अपनी माँ के घर जा रही हूँ और सनी अपनी ननिहाल। स्मिता मैम नहीं,सॉरी अब वो मेरी माँ हैं।अपनी माँ के घर पहुँचने पर उन्होंने मेरा और सनी का बहुत ही शानदार स्वागत किया।खाने में सबकुछ उन्होंने मेरी और सनी की पसंद का ही बनाया था।सनी की फेवरिट आइसक्रीम और केक भी उन्होंने अपने हाथों से बनाया हुआ था।माँ ने सनी के लिए एक अलग से कमरा भी तैयार कर रखा था जिसमें उसके लिए कई तरह के खिलौने सजाकर रखे हुए थे।सनी को इतना खुश मैंने पहली बार ही देखा था।

वो बार-बार मेरी माँ यानि कि स्मिता मैम से लव यू नानी कहकर लिपट जाता था और आज स्मिता मैम का रूप भी मुझे बहुत अलग लग रहा था।उन्हें देखकर ये समझ में आ रहा था कि जितना खुश उन्हें पाकर सनी था उतनी ही खुशी वो भी उसके साथ महसूस कर रही थीं।हम पूरा दिन वहाँ रुके।शाम को चाय पीकर निकलने का इरादा था मेरा और जब चाय पीने के बाद मैं और सनी वहाँ से निकलने को हुए तो माँ ने सनी से कहा कि क्या वो अपने नाना जी से नहीं मिलेगा जिसपर सनी ने बड़ी ही उत्सुकता के साथ कहा...नाना जी!!मैं कुछ भी सोच-समझ या कह पाती उससे पहले ही हम लोग मैम के साथ एक कमरे के अंदर प्रवेश कर चुके थे जो कि किसी अस्पताल के कमरे से कम नहीं लग रहा था।वहाँ एक बिल्कुल अस्पताल के जैसा ही बेड था जिसे हम रोलिंग करके ऊँचा या नीचा कर सकते थे जिसपर एक वृद्ध व्यक्ति अपनी आँखें मूंदकर लेटे हुए थे।उनके बेड के दोनों तरफ़ एक-एक साइड-टेबल लगी हुई थी जिसपर कई तरह की दवाइयाँ और शुगर तथा रक्तचाप मापने की मशीन भी रखी हुई थी।हम कुछ देर तक वहाँ रुके।सनी को मैम नें शोर न मचाने का इशारा किया और बस उसे उन लेटे हुए व्यक्ति के पास लेजाकर कुछ देर के लिए बिठाया और फिर हम वापिस बाहर आकर बॉलकनी में बैठ गए।सनी को मैम ने अब वहाँ रखी हुई फुटबॉल से खेलने के लिए कहा और वो बड़ी ही खुशी से खेलने लगा क्योंकि शायद वो अभी घर नहीं जाना चाहता था तो बस उसे घर न जाने का बहाना मिल गया।मैम मेरे सामने पड़ी हुई कुर्सी पर आँखें बंद करके बैठ गयीं और मैं भी अब उनके सामने की कुर्सी पर ही बैठ चुकी थी।जब उन्होंने कुछ पलों के बाद अपनी आँखें खोलीं तो उनकी आँखों का दर्द और बेचैनी साफ-साफ महसूस की जा सकती थी।हालांकि आज तक उन्होंने मुझसे कभी भी अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई भी बात साझा नहीं की थी और न ही कभी मैंने ही उनकी व्यक्तिगत ज़िंदगी मे झाँकने की कोशिश की थी मगर आज उन्हें देखकर मुझे ऐसा लगा कि जैसे आज वो मुझसे बहुत कुछ कहना या बताना चाहती हैं।फिर जब मैंने उनकी कहानी सुनी तब मुझे ये एहसास हुआ कि अगर हम देखने चलें तो इस दुनिया में कितना दुख-दर्द भरा पड़ा है मगर हम तो बस अपने ही गमों के दायरों की गिरफ्त में रहकर बाकी सबको सुखी और खुद को सबसे बड़ा दुखिया करार दे देते हैं।रात बहुत हो चुकी थी और स्मिता मैम हम दोनों को खुद अपनी गाड़ी से घर तक छोड़कर गई थीं।मैंने सनी को जो कि गाड़ी में ही सो गया था,धीरे से गोद में लेजाकर बेड पर लिटा दिया और खुद ऊषा देवी के पैरों के पास बैठकर उनके पैर दबाने लगी।उन्होंने आँखें ज़रूर बंद कर ली थीं मगर मैं जानती थी कि वो अभी भी जाग रही हैं।कुछ देर पैर दबाने के बाद मैं जैसे ही वहाँ से उठने को हुई तो वो बोल पड़ीं कि "सुमन तुमनें बहुत अच्छा किया कि बच्चे को घुमाने ले गई।बच्चे के लिए रिश्तों को समझना बहुत ज़रूरी है फिर चाहे वो माँ का रिश्ता हो,नानी का या दादी का!!",इतना कहते-कहते उनकी आवाज भर्रा गई जिसे मैंने महसूस कर लिया,मैं कुछ कह पाती उससे पहले ही उन्होंने दूसरी तरफ़ करवट बदल ली।न जाने क्यों आज मुझे उनके अंदर वर्षों से सोया हुआ रिश्तों का एहसास जागता हुआ सा नज़र आया।फिर मैं चुपचाप अपने कमरे में आकर सनी के बगल में लेट गई मगर मेरी आँखों से नींद आज भी कोसों दूर ही थी।मन में बस स्मिता मैम का ही ख्याल बार-बार आ रहा था कि वो कितनी सरल और सौम्य हैं,वो कितने अच्छे ह्रदय और विचारों की महिला हैं।उन्होंने हमेशा दूसरों के साथ भलाई के सिवा और कुछ नहीं किया मगर उनके स्वयं के जीवन में इतना असीम दुख और संघर्ष!!इतने पर भी वो हमेशा मुस्कुराती ही रहती हैं और दूसरों की मदद करने को सहर्ष ही तैयार भी!उनके साथ बिताए हुए इतने लम्बे समय में मुझे कभी भी नहीं याद कि मैंने उनके माथे पर कोई शिकन या उनके होठों पर कोई शिकवा या शिकायत देखा हो।वो सचमुच एक महान प्रेरणास्रोत हैं हमारे लिए।तेरह वर्ष की छोटी सी उम्र में शादी,फिर रूढ़िवादिता के जाल में फंसकर कितना कुछ सहनकर अपने पैरों पर खड़े होना और इस कठिन राह में ससुराल वालों के साथ ही साथ अपने जीवनसाथी के विरोध को भी सहते हुए उन्होंने कितने परिश्रम के बाद ये मुकाम हासिल किया मगर इतने पर भी उनका संघर्ष-पथ समाप्त नहीं हुआ।बल्कि विवाह के कुछ वर्ष बीतते ही बच्चा न होने के कारण बाँझपन का सर्टिफिकेट जो कि हमारे समाज द्वारा हर एक महिला को बिना उसके पति की किसी भी तरह की कोई भी चिकित्सा कराये बिना ही दे दिया जाता है,वो बस इसी सामाजिक और पारिवारिक तोहमत के साथ जैसे-तैसे अपने जीवन में आगे बढ़ रही थीं मगर फिर उनके साथ मानसिक प्रताड़ना के अलावा जब अपनों नें सारी मर्यादाओं की सीमा लाँघकर घरेलू हिंसा भी करना शुरू कर दिया तब उनके पति नें सामने से अपने घरवालों का विरोध किया और स्मिता मैम को लेकर मेरठ से सीधे नईदिल्ली का रुख किया जहाँ पर इन दोनों पति-पत्नी ने बहुत ही कड़े संघर्ष के बाद अपनी एक दुनिया बसाई।अब उन्हें लगा कि सबकुछ ठीक हो गया है।उनके पति भी अब उन्हें पहले की अपेक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से समझ पाये जिससे उनके दिल में मैम के लिए उनका प्यार,परवाह और सम्मान की भावना बहुत ज्यादा बढ़ गई।उनके पति अब ये जानने के बाद कि कमी स्मिता मैम में नहीं बल्कि उन्हीं में है वो अब अपना इलाज करवाने के लिए भी तैयार हो गए थे मगर किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर था।वो दोनों अपने भावी जीवन की योजनाएं बनाकर उसके लिए कोई कदम उठाते उससे पहले ही उनके पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गई।स्मिता मैम के देवर ने जो कि उनपर हमेशा से बुरी नज़र रखता था और उनके पति के मैम की तरफ़ बदले हुए अच्छे बर्ताव से बौखलाया हुआ था,उसनें उन दोनों का एक्सीडेंट करवा दिया।जिसमें उस ऊपर वाले की कृपा से मैम को तो ज्यादा चोट नहीं आयी मगर उनके पति उस दुर्घटना के शिकार होने के बाद से आज तक अपने बिस्तर से नहीं उठ पाये हैं और मैम चौबीस घंटे परछाईं की तरह उनकी सेवा में ही लगी रहती हैं बस वो जितनी देर के लिए इंस्टीट्यूट जाती हैं उतनी देर के लिए ही वो बस उन्हें अकेला छोड़ती हैं या मजबूरीवश उन्हें अकेला छोड़ना पड़ता है तब उनकी गैरमौजूदगी में एक ट्रेंड-नर्स सर का ख्याल रखती है क्योंकि जीवकोपार्जन के लिए मैम का इंस्टीट्यूट जाना भी उनका शौक नहीं बल्कि उनकी आवश्यकता है।पूरा जीवन संघर्षपूर्ण गुजारती हुई और ताउम्र दूसरों के लिए जीती हुई मेरी स्मिता मैम को मेरा दिल से सलाम!!

क्रमशः ...

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐


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