रुपये, पद और बलि - 12 - अंतिम भाग S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

रुपये, पद और बलि - 12 - अंतिम भाग

अध्याय 12

सुधाकर के रिवाल्वर लेने से जोसेफ पसीने से तरबतर हो गया। उसकी जुबान और उसका गला सूख गया।

"सु.... सुधाकर यह क्या है ?"

"मालूम नहीं ? यह रिवाल्वर है। तुम्हारी आत्मा को शांति नहीं चाहिए क्या जोसेफ? तुम्हारे परमपिता के पास जाने में ही तुम्हारी भलाई है।"

"तुम... मुझे क्यों मारना चाहते हो ?"

"पुलिस को तुम पर शक है उसके बाद भी तुम जिंदा रहो तो फंस जाओगे और हमें भी फंसा दोगे। चुपचाप प्राणों को त्याग दो। सिर्फ मेरी इच्छा नहीं है। अप्पा की भी यही इच्छा है।"

"अरे पापी लोगों ! आखिर में तुमने अपनी औकात दिखा ही दी।" आवेश में आया जैसे जोसेफ चिल्लाया ।

"हमारी स्थिति में तुम होते तो भी यही करते।" कहते हुए सुधाकर ने रिवाल्वर को ऊंचा किया उसी समय -

जोसेफ एकदम से झुक गया।

उस छोटे तिपाई को उठाकर जोर से सुधाकर पर फैंका।

सुधाकर के हाथ से रिवाल्वर गिरने लगा तो जोसेफ झपट्टा मारकर उसे अपने कब्जे में कर लिया। फिर सुधाकर को देखकर हंसने लगा।

"मुझे परमपिता परमेश्वर के पास जाने में सुधाकर अभी बहुत समय है। तुम्हारे ही स्वर्ग में या नरक में जाने के दिन आ गए हैं ।

सुधाकर घबराकर पीछे हुआ।

"जोसेफ....."

"इसी को समय कहते हैं। समय हमेशा एक जैसा नहीं होता सुधाकर। इस इचमपाक्म गेस्ट हाउस में आकर तुम्हें मरना है यह विधि का विधान है। "

"जोसेफ मुझे मत मारो..."

"सॉरी सुधाकर ! तुमने जो शब्द मेरे लिए बोला था वही मैं तुम्हारे लिए  कह रहा हूं। पागल कुत्ते को और पैर में चोट लगे घोड़े को बंदूक की गोली से मार डालना ही न्याय संगत है । तुम जिंदा रहो तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा। अतः तुम्हें मरना होगा ।"

ऐसा कहते हुए जोसेफ ने बंदूक चला दी। उस साइलेंस पिस्टल से - गले को खंखारे जैसे आवाज आई और एक गोली - सुधाकर की तरफ गई।

वह गोली सीधे सुधाकर के दिल पर जाकर लगी। एकदम से सुधाकर नीचे गिर गया। कुछ क्षण तड़पकर शांत हो गया।

बहुत बड़े मंडप में बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठी थी। रात के 10:00 बज रहे थे।

बहुत ऊंचाई पर स्टेज बना था। बहुत सारी कुर्सियाँ सजी हुई थी जिसमें नेता लोग बैठे हुए थे। रामभद्रन का चेहरा फिक्र से झुका हुआ था। कौशल राम माइक पर बोल रहे थे।

"अपने खून में खून बनकर समाया हुआ माणिकराज और अमृत प्रियन को हमने आज गवां दिया। विपक्ष की पार्टी ने अपनी असफलता के कारण हमारे पार्टी के लोगों की बलि ले ली। राजनीति को राजनीति ही समझना चाहिए। हमारी सफलता को सहन न कर सकने वाले लोगों की यह कारस्तानी है । यही सच है। इसकी वजह से ही हमारे रत्न आज मिट्टी में सो गए। उनके शोक सभा करने के लिए हम सब यहां एकत्रित हुए हैं।

माणिकराज और अमृत प्रियन जनता की सेवा के लिए ही अपने को अर्पित कर दिया। भाषा के झगड़े में पड़कर उसका समाधान भी निकाला। इस समय जनता के प्रेम से जीतकर कर आए मंत्री पद के कर्तव्य को निभाते पर क्या करें उनकी हत्या हो गई। उनके चले जाने से हमारे प्रधान बहुत ज्यादा टूट गए। किसी बात से भी ना टूटने वाले प्रधान जी की आंखों में आंसू देख मेरा हृदय ही टूट गया। जिन्होंने इनके मन को ठेस पहुंचाई है उनका दंडित होना जरूरी है । वह समय जल्दी आ जाएगा।

उनके बोलते समय ही -

उसी समय -

स्टेज के पीछे की तरफ से कुछ आवाज आ रही थी। बात कर रहे कौशल राम पीछे मुड़कर देखें।

जोसेफ स्टेज के ऊपर चढ़ गया। एक कुर्सी को लुढ़काते हुए कौशल राम के नजदीक जाकर उनके कुर्ते को पकड़ा और उनके माथे पर पिस्तौल को लगाया।

सब लोग बुरी तरह डर गए -

माइक में जोसेफ जोर से गर्जना करा।

"पुलिस वाले हो या कार्यकर्ता हो, कोई भी हो मेरे पास आने का प्रयत्न ना करें.... नहीं तो कौशल राम को मार दूंगा। मैं भी अपने आप को गोली मारकर आत्महत्या कर लूंगा। कोई भी अपनी जगह से नहीं हिलेगा।"

स्टेज पर जो लोग थे और जो बाहर खड़े थे सभी स्तंभित होकर जोसफ को देख रहे थे। जोसेफ ने बोलना शुरू किया।

"माणिकराज और अमृत प्रियन के हत्या के बारे में जो बात कौशल राम कह रहे हैं वह वैसा नही है बल्कि उनका कहना ऐसा है जैसे शराब की दुकान पर गांधीजी के बारे में बोलना ‌। इस हत्या के कर्ता-धर्ता और कोई नहीं वे स्वयं ही हैं।"

भीड़ में और स्टेज पर सब लोग इशारा करने लगे। जोसेफ बोलता ही गया।

"जिसे वह पसंद नहीं करते थे वे मंत्री न बन जाए इसलिए - मुझे कौशल राम ने रुपए देकर माणिकराज और अमृत प्रियन की हत्या करने के लिए कहा। इसके लिए उनके साथ रहकर इस हत्या की योजना बनाकर देने वाला और कोई नहीं इनका बेटा सुधाकर ही था। इनके दिए रुपयों की लालच से मैंने दोनों लोगों की हत्या की यह सच है। स्टेज के चारों तरफ खड़े पुलिस वाले इसे मेरा बयान समझ सकते हैं।"

कुर्सी पर बैठे रामभद्रन ने उठने की कोशिश की। जोसेफ ने उन्हें बैठने का इशारा किया। "होने वाले मुख्यमंत्री! बैठिए! अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई। कौशल राम के लिए मैंने जो दो-दो हत्याएं की – और थोड़ी देर पहले अपनी जान को बचाने के लिए – मैंने एक जीवन की बलि चढ़ा दी। पुलिस मुझे पहचान गई है कहकर इचमपाकम आउट हाउस में कौशल राम का लड़का सुधाकर मुझे लेकर गया। यह सब योजना किसकी है सोच रहे हो? यह सब इस कौशल राम की योजना थी।"

कुछ क्षण चुप रह कर दोबारा जोसेफ शुरू हुआ। "मेरी हत्या करने की कोशिश करने वाले को ही मैंने खत्म कर दिया। अब इसमें बाकी 5 गोलियों के साथ आपके सामने खड़ा हूं । अन्याय करने वाले समाज में भले ही कितने बड़े आदमी हो उनको उसका दंड मिलना ही चाहिए ‌। कौशल राम बहुत बड़े आदमी हैं। अभी जो सरकार है उसके पार्टी के प्रधान आदमी हैं। राजनीति में बहुत बड़ी हस्ती हैं। निश्चित तौर पर उन्होंने जो हत्याएं की है, कानून उन्हें फांसी पर नहीं चढ़ा पाएगा । परंतु कानून के हिसाब से जो फांसी की सजा उन्हें मिलनी ही चाहिए, उसे अब बड़े हिम्मत के साथ स्टेज पर वह दंड उन्हें मैं देने वाला हूं।"

कहते हुए-

पिस्तौल में से गोलियां चलने लगी। कौशल राम के माथे पर एक गोली लगी _

तड़पकर नीचे गिरे।

भीड़ स्टेज के पास आने लगी -

जोसेफ रिवाल्वर को-आकाश की तरफ चलाया। "कोई पास नहीं आएगा!"

भीड़ खड़ी रही।

जोसेफ माइक में गरजने लगा। "स्टेज पर जो दूसरे नेता लोग बैठे हैं उनसे मैं हाथ जोड़कर चेतावनी देता हूं। न्याय हो या अन्याय मतदान में जीतकर मंत्रिमंडल बनाने तक आप लोग आ गए। आपको कमाने के लिए जनता ने पद पर नहीं भेजा है। जनता की भलाई करने के लिए जनता ने आपको यह पदवी दी है। अपने पद का दुरुपयोग करने से - मेरे जैसे जोसेफ कई पैदा हो जाते हैं - कई कौशल राम इस तरह के स्टेज पर मारे जाएंगे।"

कौशल राम धीरे-धीरे खत्म हो रहे थे।

जोसेफ माइक से बोलने लगे। "मैं पुलिस में अपने को आत्म समर्पण कर सकता हूं। परंतु वह बेकार है। मुझसे सब कुछ जानने के बाद, राजकीय वकील को रखकर मजिस्ट्रेट में विचारणीय कैदी बनकर कई महीने केस चलेगा फिर मुझे मृत्युदंड मिलेगा उसके लिए मैं क्यों ठहरूं? उस दंड को आपके सामने अभी मैं स्वीकार कर रहा हूं।"

कहते हुए अपने माथे पर जोसेफ ने पिस्टल रखा। पुलिस वालों के आने के पहले गोली चल गई।

जोसेफ तड़पकर पीछे को गिरा।

और नेता लोग भागने लगे।

पुलिस वाले स्टेज पर चढ़ गए।

कौशल राम खून में लथपथ होते हुए खत्म हो रहे थे, जोसेफ के होठों पर एक मुस्कान -जो धीरे-धीरे खत्म हो रही थी।

समाप्त

******