रुपये, पद और बलि - 4 S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रुपये, पद और बलि - 4

अध्याय 4

ऑटो ड्राइवर इंस्पेक्टर को देखते ही भव्यता से खड़े हुए।

इंस्पेक्टर ने पूछा "कितनी देर से.... यहां खड़े हो?"

"आधे घंटे से खड़े हैं सर ?"

"15 मिनट पहले इस तरफ से कोई भागकर आया क्या ?"

"आदमी कैसा था बता सकते हैं क्या सर ?"

"कॉलेज के लड़कों जैसे दिख रहा था, आंखों में धूप का चश्मा लगाया हुआ था।"

एक ऑटो ड्राइवर ने आश्चर्य से चिल्लाया।

"अरे.... वह अपने गोविंद के गाड़ी में बैठ कर गया था ना। चौखाने वाला शर्ट पहना था वही है ना ?"

पोर्टर मारीमुथु ने सिर हिलाया "हां.. हां... वही वहीं था।

"इंस्पेक्टर ने उत्साह से पूछा "ऑटो किस तरफ गया ?"

"नहीं मालूम सर..."

उस ऑटो ड्राइवर के बोलते समय ही - एक दूसरा ड्राइवर चिल्लाया।

"वह गोविंद आ गया। ग्राहक को उतार कर आ गया लगता है।"

इंस्पेक्टर, गोविंद की तरफ गए। गोविंद ऑटो को रोककर इंस्पेक्टर को विश करते हुए नीचे उतरा।

"चौखाने वाली शर्ट पहने, आंखों में धूप का चश्मा लगाए हुए एक युवा तुम्हारे ऑटो में ही चढ़ा ?"

"हां सर..."

"उसे कहा उतारा ?"

"पेरिस के कार्नर में।"

"पैरिस के कार्नर मतलब कौन सी जगह ?"

"अरनमनई कारंत गली सर।"

"अरनमनई कारंत गली के किस जगह ?"

"गली के नुक्कड़ में ही उतर गए सर। आदमी बहुत घबराया हुआ था सर। नोट को देकर - बाकी पैसा देने से पहले ही बड़ी फूर्ती से चला गया। क्यों सर... उस आदमी ने कोई गलत काम किया है क्या ?"

"एक हत्या कर दी। उसे किस जगह उतारा जरा उस जगह को बताओ तो देखें।"

इंस्पेक्टर ऑटो में चढ़ गए ।

पोस्टमार्टम के बाद आए माणिकराज के शव पर फूलों के चकरी को रखकर - आंखों में आए आंसू के साथ दल के प्रमुख रामभद्रन बोल रहे थे।

"हमारी जीत होने के समय - उस जीत की खुशी को अनुभव ना कर सके ऐसा दुर्भाग्य हो गया। माणिकराज की सफलता को देखने से पहले ही किसी ने उन्हें मार डाला।

जिस पार्टी की हार हुई अराजकता फैलाने का काम उसी का लगता है।

माणिकराज पार्टी के शुरूआत के दिनों से ही कार्यकर्ता थे वे साफ-सुथरी राजनीति करते थे। भ्रष्टाचार आदि में ना फंस कर उनकी छवि साफ-सुथरी थी।

माणिकराज की मौत ने – हमें पार्टी की जीत को भी भुलाकर हमारी पार्टी एक जबरदस्त शोक में फंस गई है।

हम शपथ ग्रहण करें उससे पहले ही विरोधी पार्टियों ने जलन के मारे माणिकराज को बलि का बकरा बना दिया । इस दुख को खत्म होने में बहुत दिन लगेंगे"

बात करने के बाद अपने कंधे पर डाले हुए तौलिए से अपनी खाली आंखों को पोंछ कर प्रधान राम भद्रन बाहर आए। पत्रकार लोग पेन और पेपर लेकर उनके पीछे दौड़े ।

"इस हत्या पर पुलिस क्या कार्यवाही कर रही है ?"

"पुलिस का एक अलग सिक्योरिटी बना दिया, माणिकराज का विरोधियों के द्वारा हत्या की गई ऐसे विरोधी पार्टी के लोग कह रहे हैं ?"

"वे जले पर नमक छिड़क रहे हैं।"

"आपकी पार्टी ने बहुमत प्राप्त की है, मंत्रिमंडल कब बनाओगे ?"

"मौत हुए घर पर शादी की बात मत करिए!" चिड़चिड़ाते हुए रामभद्रन बोलते हुए बाहर जाकर कार में बैठे। कार में पहले से ही उनकी पत्नी गोमती बैठी हुई थी। कार थोड़ी दूर पर जाने के बाद उसने पूछा "फूल के चकरी को रखने में इतनी देर?"

"दो शब्द बोला.."

"आप तो भीड़ देख लो बस...."

"माणिकराज बहुत अच्छा आदमी था। पता नहीं कैसे किस ने धोखा दे दिया... किसी ने समय देखकर बदला ले लिया।"

"आप उन्हें मंत्री पद दे रहे थे ना ?"

"हां..."

"माणिकराज का विरोधी आपके पार्टी में ही हैं। उनको मंत्री नहीं बनना चाहिए... ऐसा सोच-विचार कर किसी ने उन्हें खत्म कर दिया।"

"मैं ऐसा विश्वास नहीं करता.... यह विरोधी पार्टी का ही काम है। मंत्रिमंडल के बनने के बाद उन सब के लिए मैं एक रास्ता निकलता हूं।..."

दस मिनट कार में यात्रा करने के बाद रामभद्रन का बंगला आ गया। बाहर जो अनुयाई खड़े हुए थे उन्हें हाथ हिला कर रामभद्रन घर के अंदर गए। अंदर जा रहे अपनी पत्नी को उन्होंने आवाज दी।

"गोमती..."

"हां !"

"सर बहुत बुरी तरह फट रहा है.... टेबलेट और गर्म कॉफी लेकर आओ। उसे पीकर ही मैं नहाने जाऊंगा !"

"ठीक है, आने वाले लोगों से बात ना करके थोड़ा आराम कीजिए। कामवाली के साथ टेबलेट और कॉफी भेज रही हूं।"

रामभद्रन अपने पर्सनल कमरे में जाकर – सोफे पर आराम से बैठकर आंखों को बंद किया।

उसी समय?

अचानक - पास के तिपाई पर रखें इंटरकॉम बजने लगा।

आंखें खोल कर - शरीर को बिना मोड़े - सिर्फ हाथ को आगे कर रिसीवर को उठाकर "हेलो..." बोला।

उनके हाल के टेलीफोन से उनका कर्मचारी बोला  "सर ! गवर्नर के बंगले से आपका बुलावा आया है।"

"लाइन दो यार।"

"हेलो ! गवर्नर बेल्स?"

"सॉरी, रामबभद्रन ! यह गवर्नर का बंगला नहीं है। यह एक पब्लिक टेलीफोन बूथ है। मैं गवर्नर का कर्मचारी या रक्षक नहीं हूं। एक साधारण भारतीय नागरिक हूं वह भी तमिलनाडु का;

"अबे... कौन है रे तू ?"

"माणिकराज को अमरत्व देने वाला !"

रामभद्रन हड़बड़ा कर सीधे हुए।

"तू... तू... तू ?"

"मैंने कुछ प्रार्थनाएं लिखकर - तुम्हारे लेटर बॉक्स में डाला है। निकाल कर लाकर पढ़। मैं कौन हूं तुम्हें पता चल जाएगा।"

"ठौक" टेलीफोन के रखने की आवाज |

उसने रिसीवर को रख दिया तो रामभद्रन इंटरकॉम के दूसरे बटन को दबाकर कर्मचारी को बुलाकर बोले "एक मिनट कमरे में आकर जाओ।"

वह हड़बड़ाते हुए अंदर आए।

"लेटर बॉक्स को क्लियर कर दिया ?"

"अभी नहीं किया सर ।"

"जाकर लेर्टस को लेकर आओ !"

कर्मचारी को गए हुए दो मिनट ही हुए होंगे वह लेर्टस के साथ वापस आया। एक तिपाई के ऊपर पत्रों को रखकर वह एक तरफ खड़े हुआ।

"तुम... जाओ.. मैं देख लूंगा।"

वह चले गए।

राम भद्रन पत्रों को देखने लगे। बिना स्टैंप चिपकाया हुआ पत्र आंखों के सामने आया तो उसे उठा लिया।

कवर के कोने में - तमिल में टाइप किया हुआ था।

'आज के इस देश का एक नागरिक अपने न्याय संगत बातें एक मंत्री जी को समर्पित कर रहा हूं ‌।"

रामभद्रन का दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा।

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