वह अजीब सी लड़की Ranjana Jaiswal द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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वह अजीब सी लड़की


कुछ महीने वह मेरे घर रही थी |उसके अम्मी-अब्बू के रिक्वेस्ट करने पर मैंने उसे अपने घर रख लिया था |सोचा था अकेली लड़की शहर में पढ़ने आई है .....साथ रह लेगी तो मुझे भी अच्छा ही लगेगा |उससे कोई किराया नहीं लिया |खाने-पीना भी साथ कराने लगी |उसका बिस्तर अलग था पर बाद में वह किसी न किसी बहाने मेरे पास ही सोने की जिद करती |पर मैं उसे मना कर देती |जाने क्यों मुझे उसके जिस्म से कुछ ऐसी गंध आती कि मुझे उबकाई आती |शायद रोज न नहाने की वजह से या फिर किसी बीमारी की वजह से |रोज रात को वह न जाने कौन- सी दवाइयाँ खाती ?पूछने पर नहीं बताती थी उसके होंठ हमेशा सूखे रहते |धीरे-धीरे उसका असल रंग दिखने लगा |पढ़ने के बहाने वह शाम के कुछ घंटे गायब रहती |समय भी अलग-अलग रहता |कहती ,कोचिंग करती हूँ |मैं भी उसके मामले में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करती थी |वैसे भी आठ बजे तक वह घर आ जाती थी |पर घर में कभी उसे पढ़ते नहीं देखती थी |रात को वह नहाती फिर सजती और मुझसे प्रेमिका की तरह व्यवहार करती |मैं हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाती |सोचती बीस साल की यह लड़की या तो इन्नोसेंट है या फिर पागल |पर वह दोनों में से कुछ न होकर कुछ और हीं थी |वह मुझे स्पर्श करने के बहाने ढूंढती |कभी पैर दबाती कभी सिर ....|एक दिन उसका उद्देश्य सामने आ गया |वह समलैंगिक थी और मुझ पर अपना जादू चलाने की कोशिश कर रही थी |उसका सच जानते ही मुझे जोरों की उबकाई आने लगी |मैंने उसे डाँटा...समझाया पर वह समझने को तैयार नहीं हुई तो एक दिन घर से जाने को कह दिया |वह नाराज होकर चली गयी |मैंने राहत की सांस ली |
कई महीने बाद एक दिन शाम को उसका फोन आया कि आपके मोहल्ले में ही आई हूँ मिलने आ सकती हूँ |मैं उसे मना नहीं कर सकी |उन दिनों माँ घर आई हुई थी इसलिए निश्चिंत भी थी |उसके बारे में जानने की उत्सुकता भी थी |कहीं न कहीं यह अपराध बोध भी था कि मैं पढ़ाई में उसकी मदद नहीं कर सकी थी |उसके माता-पिता को भी निराश किया था |हो सकता है मैंने उसे कुछ ज्यादा गलत समझा हो |हो सकता है अब वह बदल गयी हो |
वह आई तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाई |उसकी देह सूख गयी थी |चेहरा काला पड़ गया था |ये क्या हुआ इसे ?मेरे घर से तो वह अपने किसी रिलेटिव के घर ही गयी थी |वह भी बड़ी ठसक से कि आपके घर से ज्यादा अच्छे से रहूँगी |मैंने ज्यों ही उससे हाल-चाल पूछा ,वह अपने पुराने रंग-ढंग में आ गयी |शोख़ी से बोली-आप तो जालिम हैं कभी मेरा हाल नहीं पूछा और मैं आपके इश्क में यहाँ फिर चली आई |मैंने पूछा –अकेली ही आई हो कि कोई साथ है ?वह तुनक कर बोली –आपको तो हमेशा गलत ही लगता है |मैं ही बेवकूफ हूँ जो मिलने चली आई ...|
....अच्छा -अच्छा,ये बताओ क्या कर रही हो आजकल ?
-एक कालेज में पढ़ा रही हूँ |[वह सफ़ेद झूठ बोल रही थी]
.....शादी की ?
-शादी क्यों करूं?मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि मुझे लड़के अच्छे नहीं लगते |
.....पर घूमती तो उनके साथ ही हो |
-वह तो टाइम-पास करती हूँ खाने-पीने और तोहफों के लिए| -वह शरारत से हंसी |
....अच्छा रूको, तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाती हूँ |तुम्हें लौटना भी तो है .....मेरी माँ भी आई हुई है |रूकने को नहीं कह सकती |
वह नाराज हो गयी –रहने दीजिए अपना नाश्ता ....और मैं कौन यहाँ रहने के लिए आई हूँ ...मैं तो आपकी मुहब्बत ...|फिर वह मेरे पास आकर मेरा हाथ छूने लगी |मुझे फिर वही लिजलिजा –सा आभास हुआ |मैंने अपना हाथ खींच लिया |-अब तुम जाओ ...|पर वह वहीं जमी रही और अपनी तिरछी नजरों से मुझे घायल करने की असफल कोशिश करती रही |उसे लग रहा था कि मैंने माँ का बहाना बनाया है |तभी माँ छत से उतर कर नीचे आई |माँ को देखते ही उसका चेहरा उतर गया |मैंने माँ से उसका परिचय कराया-यही वो लड़की है जो पिछले साल मेरे साथ रही थी |
माँ उससे बातें करने लगी |माँ उसकी सच्चाई नहीं जानती थी |वह शेख़ी में माँ से मेरी बुराई करने लगी तो मैं मुसकुराते हुए चाय बनाने किचन की तरफ चल दी |
माँ हमेशा मुझसे इस बात से खफा रही है कि मैं किसी को अपने साथ नहीं रख पाती |उन्हें लगता है मैं किसी को पटा ही नहीं सकती |मेरे पास कई रिश्तेदार लड़के-लड़कियां रहने को आए पर ज्यादा दिन टिक नहीं पाए |न टिका पाने का आरोप औरों के साथ माँ ने भी मेरे ही सिर मढ़ दिया |इस बात का दुख मुझे हमेशा रहता है कि मेरी जन्मदात्री माँ भी मुझे नहीं समझती |मैं अकेली रहती हूँ प्राइवेट नौकरी करती हूँ ...घर-बाहर दोनों की ज़िम्मेदारी मुझपर है |मैं कैसे किसी रिश्तेदार को घर बैठकर बनाती-खिलाती और उसकी महंगी फर्माइशें पूरी करती रहूँ|इतना ही क्यों अपनी नाजायज अनैतिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए भी रिश्तेदार मेरा घर इस्तेमाल करना चाहते हैं|?माँ सब कुछ नहीं जानती और ना सब कुछ मैं बता ही सकती हूँ |किसी के घर रहने पर मुझे कोई सहयोग...कोई आराम नहीं मिलता |सब यही सोचते हैं कि मेरे साथ रहकर वे ही मुझ पर अहसान कर रहे हैं और बदले में मैं उनकी हर जायज़-नाजायज जरूरतें पूरी करती रहूँ|शायद अकेलेपन का अभिशाप मुझे मिला हुआ है |जिसे दूर करने की हर संभव कोशिश विफल हो जाती है |
माँ सब पर भरोसा करती है पर मुझ पर नहीं ...आखिर क्यों ?क्या कमी है मुझमें ?बचपन से ही यह महसूस किया है कि वे मुझे पसंद नहीं करती |मैंने उनकी इच्छा के विरूद्ध पढ़ाई की....शहर में आकर नौकरी की और किसी बनिया –वक्काल से विवाह करने को राजी नहीं हुई |एक पारंपरिक ढांचे में बंधकर न जीना ही मेरा अपराध है |और उसकी सजा खत्म ही नहीं होती |माँ औरत होकर भी नहीं समझ नहीं पाती कि अकेले जीना किसी भी स्त्री का सपना नहीं होता पर मैं क्या करूँ कि किसी अनचाहे के साथ मैं नहीं जी सकती ?रिश्तों को बोझ की तरह नहीं ढो सकती |अब मैं क्या करती कि कोई मन के साथ चलने वाला नहीं मिला ?माँ खुद भी तो बेमन से ही साथ रहती है वह भी कभी-कभार ही |मेरी व्यस्त दिनचर्या से वह ऊब जाती है |
अब लड़की ने माँ को प्रभावित कर लिया |माँ ने कहा –यह रात को कहाँ जाएगी ?सुबह चली जाएगी |इसे रहने दो |लड़की मेरी ओर देखकर मुस्कुराई |अब मैं माँ को क्या बताती कि क्यों इसे रात को नहीं रूकने देना चाहती ?
रात को वह माँ के साथ जमीन पर लगे बिस्तर पर लेटी|माँ के सो जाने पर वह मेरे तख्त पर आकर मेरे पैरों के पास बैठ गयी और मेरे पैर दबाने लगी |मैंने कई बार मना किया पर वह नहीं मानी और फिर मेरे पैरों के पास ही लेट गयी |मैं रात भर सो नहीं पाई |एक अजीब सी बदबू से मेरा जी मिचलाता रहा |मैं मन ही मन प्रण करती रही कि अब कभी इस लड़की को घर में घुसने नहीं दूँगी |यह कभी नहीं बदल सकती |शायद यह मुझसे संपर्क बनाकर मुझे ब्लैकमेल करना चाहती हो |शायद मुझे या मेरे घर को इस्तेमाल करना चाहती हो |शायद यह किसी भी भेजी हुई एजेंट हो |कुछ तो है जो ठीक नहीं है मेरा सिक्स सेंस कह रहा है कि यह लड़की खतरनाक साबित हो सकती है | माँ की नींद खराब होने के डर से मैं चुप रही पर आखिर माँ जग ही गयी |उसने घूरकर लड़की को देखा और उसे नीचे सोने को कहा |वह जानती थी मुझे अकेले सोने की आदत है |थोड़ी ही देर में सुबह हो गयी |मैं नौकरी पर जाने के लिए तैयार होने लगी |उसने जाने की इजाजत मांगी और चली गयी |
इसके बाद भी कभी-कभी किसी न किसी बहाने वह आ टपकती |अक्सर वह ऐसे समय मेरे घर आती कि मानवता के कारण या फिर लड़की होने के नाते मैं उसे रात भर के लिए अपने घर रहने दूँ |वह मेरी अच्छाई का इस्तेमाल कई बार कर चुकी थी |दिन भर वह इधर-उधर किसी के साथ घूमती और ढली शाम को मेरे दरवाजे पर आ खड़ी होती |बाद में मैं जान गयी कि चौराहे पर वह किसी को खड़ा करके आती थी कि उसे फोन द्वारा बता सके कि रात में उसके रहने का इंतजाम हो गया है |पूरे दिन वह ऐंठ में रहती पर रात को केचुआ बन जाती |मैं उसे समझ नहीं पा रही थी |यह तो तय था कि वह पढ़ाई की जगह किसी दूसरे काम में लगी हुई थी |क्या था वह काम ?कहीं किसी सेक्स रैकेट से तो नहीं जुड़ी है कहीं ब्लू फिल्म बनाने वाले गैंग की सदस्य तो नहीं |इधर शहर में बाहर से कम उम्र की लड़कियां आकर कई गलत कार्य कर रही हैं |कहीं यह भी तो..... |उफ ,कितना मुश्किल है आजकल किसी लड़की की मदद करना |कितने खतरे हैं इस काम में ....|ये कैसी लड़कियां हैं जिनके कारण मेरा लड़कियों पर से भी विश्वास उठता जा रहा है |जिनके कारण जरूरतमन्द मजबूर लड़कियों की पहचान मुश्किल हो गयी है |