यह एक बाल कथा है जिसके माध्यम से शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के बारे में रोचक वर्णन है, साथ ही भाषा की दृष्टि से अनुस्वार और चंद्र बिंदु का अंतर भी बताया गया है.
चंदा जाए कहाँ रे, चंदा आए कहाँ रे...
लेखिका-मंजु महिमा
आकाश में पूरा चाँद हँस-हँस कर अपनी चाँदनी बिखेर रहा था। तभी बादल
के 2-3 सफ़ेद टुकड़े, जो हंस के आकार में थे, आए। एक बादल-हंस चाँद से कहने लगा, ‘मामा! मैं परीलोक से आया हूँ। हमारी
परीरानी की आँख में फाँस (तिनका) लग गई थी, जिससे उनकी आँखों का अंजन (काजल) बहे
जा रहा है।’
दूसरे बादल-हंस ने बात को आगे बढाते हुए कहा, ‘ चंदा मामा! उस अंजन की कालिख
चाँदनी पर गिर रही है, जिसके कारण
वह काली पड़ती जा रही है और परीलोक में अंधकार बढ़ता जा रहा है।’
चाँद ने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘अच्छा!’
तीसरे बादल-हंस ने कहा, ‘प्यारे मामा! और अँधेरा हो जाने के कारण हम सब मुसीबत
में फँस गए हैं। हमारी आपसे विनती है कि कृपया आप हमारे साथ चलें।’
‘परन्तु इसमें मैं तुम्हारी कैसे मदद कर सकता हूँ?’ चाँद ने पूछा
बादल हंस ने कहा, ‘आप हमारी परीरानी को हँसा दीजिए, वह हँसने लगेंगी तो उनकी आँख से
काजल बहना बंद हो जाएगा और वहाँ का अन्धकार दूर हो जाएगा।’
तीनों बादल -हंस मचलने लगे, ‘चलिए ना मामा, कृपया चलिए ना!’।
बादल-हंसों की मीठी मनुहार चंदा मामा को अच्छी लगी और
वे बादल-हंसों पर सवार होकर परीरानी को हँसाने चल पड़े। उन्हें परीलोक पहुँचने में
चौदह दिन लग गए, पंद्रहवे दिन जैसे ही वे वहाँ
पहुँचे, परीलोक से अँधेरा दूर हो गया, सभी जगह ख़ुशियाँ छा गईं । परीरानी
को पता लगा तो वह दौड़ती हुई आई, बर्फ़ की बड़ी गेंद जैसे चंदामामा को लुढ़कते देखकर, वह रोना भूल गई और खिलखिलाकर हँस पडी। उसकी खिलखिलाहट
से कई फूल झड़े जो तारे बन गए।
चंदामामा, बादलों,परियों और सितारों के साथ
ख़ुशी-ख़ुशी आँख-मिचौनी खेलने लगे, लेकिन चंदामामा वहाँ हमेशा कैसे रह सकते थे? उनके न रहने से पृथ्वीलोक में अंधकार हो गया था।
दूसरे दिन उन्होंने परीरानी से कहा, ‘अब मुझे जाना ही होगा। मैं तो बस तुम्हें हँसाने ही आया था।’ यह सुनकर सभी परियाँ, बादल-हँस उदास होगए और राह रोककर
खड़े हो गए। चाँद ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘ वैसे मुझे भी तुम्हारे साथ बहुत आनंद मिला है, पर पृथ्वी निवासी सब मेरा इंतज़ार
कर रहे हैं, वे लोग मुझे बहुत चाहते हैं। मेरी
पूजा करते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग तो मुझे देखकर ही भोजन करते हैं अत: मेरा वहाँ
भी जाना आवश्यक है।’
परीरानी और सबने उनसे फिर आने का वादा लिया। बादल-हंस
पर सवार हो चंदामामा फिर भूलोक की ओर चल दिए…वहाँ पहुँचने में उन्हें वही चौदह दिन लगे। उधर
चंदामामा की याद में परीरानी ने फिर रोना शुरू कर दिया और आँखों से अंजन बहने के
कारण परीलोक में फिर से अंधकार होना शुरू होगया था …
पंद्रह दिन बाद चंदामामा को फिर परीलोक की ओर लौटना
पड़ा। इसीलिए बच्चों ! हमको पूरा चाँद देखने के लिए एक महीने का इंतज़ार करना होता
है। चौदह दिन हम जाता हुआ चंद्रमा देखते हैं और चौदह दिन हम आता हुआ चन्द्रमा
देखते हैं …है न! मज़ेदार बात...
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