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धरती की राखी



बच्चो! जैसा कि आप जानते ही हैं कि धरती का अस्तित्व सूर्यदेव से ही है...यदि सूर्य ना होता तो धरती पर शायद हमारा भी अस्तित्व नहीं होता. इसीलिए सूर्यदेव और धरती हमारे माता-पिता के समान हैं.
एक बार की बात है, सूर्यदेव बहुत कुपित होकर गर्म हो गए जिसका प्रभाव धरती माता पर पड़ने लगा. धरती की सारी वनस्पति झुलसने लगी, लोग सभी त्राहि त्राहि (बचाओ, बचाओ) करने लगे...धरती ने सूर्यदेव से प्रार्थना की कि आप शांत हो जाएं कृपया इतना क्रोध ना करें, पर सूर्यदेव पर तो क्रोध का जैसे दौरा पड़ा था. वे नहीं माने. परेशान धरती हिमालय-पर्वत के पास गई और शीतलता की गुहार लगाईं...पर

हिमालय ने भी कहा कि वह तो स्वयं सूर्यदेव से त्रसित हो, पिघल रहा है. धरती के पेड़-पौधे, सभी जीव-जंतु, मनुष्य सभी गर्मी से त्रस्त होने लगे, धरती भी पीली पड़ गई और उसकी चमड़ी में दरारें पड़ गईं.

धरती ने पवन से गुहार लगाई, पवन ने भी बहुत जोर लगाया पर वह भी ठंडक नहीं दे सका और सूर्यदेव ने उन्हें लू के रूप में बदल दिया, जिससे लोग और परेशान हो गए.

अब धरती ने बादल को बुलाया और अपनी व्यथा सुनाई, बादलों ने सूर्यदेव को ढकने की बहुत कोशिश की पर वे भी उनके क्रोध से रुई के फायों की तरह बिखर गए.

आखिरकार धरती सागर से सलाह लेने पहुंची और अपने सब प्रयास बताए. सुनकर सागर ने अपनी गंभीरता का परिचय देते हुए कहा, ‘सूर्यदेव बहुत शक्तिशाली है, उन्हें कोई एक नहीं हरा सकता, इसलिए सबको मिलकर एक साथ प्रयास करना होगा.’

परेशान धरती ने पूछा, ‘कैसे?’ सागर ने सोचते हुए कहा, ‘मैं खुद भी सूर्यदेव के कोप से बहुत परेशान हो रहा हूँ, उनकी वज़ह से मेरा पानी भाप बनकर ऊपर उठ रहा है, जो बेकार जा रहा है, तुम पवन से कहो कि बादलों को मेरे ऊपर ले आए, वे मुझसे उठती भाप को अपने में इकट्ठी कर लेंगे, फिर पवन उन्हें पर्वत के पास ले जाएगा और वह उन्हें यदि फोड़ देगा तो वह भाप पानी बनकर तुम पर बरस जाएगी और शीतलता ले आएगी.’

धरती को सागर का सुझाव बहुत अच्छा लगा, उसने पवन और बादल को यह बात बताई और उनसे मदद करने के लिए प्रार्थना की. पवन और बादल को धरती के दर्द का अहसास था, वे राज़ी होगए. फिर क्या था, सबने वैसे ही किया जैसे सागर ने बताया था. आखिर सबका मिलकर किया गया प्रयास कामयाब हुआ और धरती पर बादल बारिश लाने में सफल हो गए..तपती धरती पर पानी की बूंदों ने अमृत का कार्य किया...और धीरे-धीरे वह फिर से हरी होने लगी, मुरझाए पेड़-पौधों में भी जान आगई, सब ओर सुन्दर-सुन्दर फूल खिलने लगे, सभी पशु-पक्षी अपनी बोली में ख़ुशी ज़ाहिर करने लगे, धरती वासियों ने भी राहत की साँस ली.

धरती बहुत खुश होगई, उसने बादल से कहा, ‘तुमने मेरी एक भाई की तरह रक्षा और सहायता की है, मैं हमेशा तुम्हारी शुक्रगुज़ार रहूँगी.’

बादल ने भी कहा, ‘जब भी ऐसा होगा मैं तुम्हारी रक्षा करने आजाऊंगा और तुम्हे सूर्यदेव के कोप से जब तक बचाता रहूँगा, जब तक वे शांत नहीं हो जाएंगे.’ वे सूर्यदेव के साथ भी आँख-मिचौली खेलने लगे.

एक दिन सूर्यदेव की उपस्थिति में बादल बरसने लगे, उस दिन अच्छा अवसर जान धरती ने बादल को इन्द्रधनुष की राखी पहना दी और सूर्यदेव से कहा, ‘आपके कोप से बादल ने ही मेरी रक्षा की है, इसलिए आज से यह मेरा प्यारा भाई है.’ प्यारे बच्चो! शायद यह पहली राखी होगी, जो धरती ने बादल को बांधी थी.


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