रुपये, पद और बलि - 8 S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रुपये, पद और बलि - 8

अध्याय 8

रिवाल्वर के आवाज सुनते ही बंगले के सब लोग उठ गए। ट्यूबलाइट की रोशनी पूरे बंगले के कांच की खिड़कियों से दिखाई दे रही थी। वॉचमैन दौड़ा। पोर्टिको के सीढ़ियों पर चढ़ - कॉल बेल को बजाया।

नीलावती ने दरवाजा खोल दिया। धड़- धड़ाते हुए सब अंदर घुसे ।

"क्या हुआ क्या हुआ अम्मा ?"

"कुछ समझ में नहीं आ रहा है। कोई बंदूक चलाने की आवाज आई।"

कौशल राम के कमरे की तरफ दौड़े। वहां पर सुधाकर खड़ा होकर दरवाजा खटखटा रहा था।

"अप्पा, अप्पा।"

अंदर -

निशब्द।

"जोर-जोर से दरवाजे को खटखटाने लगे।

अंदर

मौन।

नीलावती अपना पूरा जोर लगा कर चिल्लाई।

"क्यों जी, आपसे ही बोल रहे हैं। दरवाजे को खोलो।"

कई मिनट बीत गए - कांस्टेबल ने पूछा।

"दरवाजे को तोड़ दें क्या ?"

"हां तोड़ दो।"

दोनों कांस्टेबल अपने भुजाओं के बल को दरवाजे पर दिखाना शुरू कर दिया।

सिर्फ 5 मिनट!

दरवाजा दूसरी तरफ गिरा।

सब लोग अंदर की तरफ भागे।

कमरे में हल्के अंधेरे में पलंग के नीचे L जैसे कौशल राम पडें थे। सुधाकर ने कमरे में ट्यूबलाइट को जलाया। नीलावती दौड़कर पति के पास जाकर झुकी। कांस्टेबल भी पास आए। जल्दी-जल्दी उनको  हिलाया।

कौशल राम के शरीर में किसी तरह का कोई घाव नहीं था। नाक से सांस आ रही थी। उनका दिल अच्छी तरह धड़क रहा था।

"कॉन्स्टेबल!"

"सर।"

"वहां देखा ?" एक कांस्टेबल देखकर -

"बंदूक की गोली पलंग पर लगी है सर।" आश्चर्य से बोला।

"यहां कैसे आई किसने चलाई होगी ?"

"पहले अप्पा को उनकी बेहोशी से तो निकालें सर" -सुधाकर मेज के ऊपर पानी के जग को उठाकर कौशल राम के पास में झुक कर उनके चेहरे पर पानी के छींटे मारे।

दो मिनट !

कौशल राम के शरीर में हरकत आई। धीरे-धीरे आंखें खोली। सब लोगों को देखकर आंखें फाड़-फाड़ कर देखते हुए बैठे। सुधाकर ने उनके कंधे को छुआ।

"अप्पा, आपके ऊपर बंदूक की गोली नहीं लगी। हिम्मत से रहो। आप पर गोली किसने चलाई ?"

कौशल राम की निगाहें खुलते ही खिड़की की तरफ गई। खिड़की को ही आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगे।

"अप्पा, आपको गोली नहीं लगी। हिम्मत से रहो। आप पर गोली चलाने वाला कौन था।"

"पता नहीं नींद ना आने के कारण मैं करवटे बदल रहा था। अचानक खिड़की के पास से एक आवाज आई। मुड़कर देखा। खिड़की के सरियों के बीच में एक चेहरा दिखाई दिया। कौन है पूछ कर उठने से पहले - एक रिवाल्वर मेरी तरफ हुआ। मुझे मारने वाले हैं तो तुरंत मैं बिस्तर से नीचे आ गया। जैसे-जैसे मैं लुढ़कने लगा वैसे ही रिवाल्वर चलाने की आवाज आई। डर के मारे मैं बेहोश हो गया।"

कौशल राम के बोलते ही -

कांस्टेबल - वॉचमैन बंगले के पीछे की तरफ दौड़े। हाथ में जो टॉर्च था उसकी रोशनी डालते हुए वे भागने लगे।

बंगले के पिछवाड़े आए। खिड़की के नीचे टॉर्च की रोशनी डाले तो-

जूतों के निशान गीली मिट्टी में नजर आ रहे थे। - आधा सिगरेट का टुकड़ा सुलगा हुआ था।

एक कांस्टेबल बोला "तुम जाकर इंस्पेक्टर को फोन करके समाचार बता कर आओ। फॉरेंसिक के आदमी आने तक हमें इस जगह की सुरक्षा करनी है। जो निशान तुमको मिले वैसे ही हाथ के निशान भी मिल सकते हैं।"

कांस्टेबल दौड़ा।

दूसरे दिन सुबह 10:00 बजे।

कमिश्नर का ऑफिस।

उनका अपना निजी कमरा।

उनके सामने इंस्पेक्टर गुणशेखर और सब इंस्पेक्टर देवराज खड़े थे। कमिश्नर बुरी तरह से चिल्ला रहे थे।

"सैनिटरी के पिछवाड़े से कोई एक अंदर आकर कौशल राम पर गोली चलाना चाहा। जो आदमी कल मंत्री बनने वाला है। उसकी ठीक से रक्षा नहीं करनी चाहिए क्या ?"

"सॉरी सर..."

"क्या सॉरी ?"

"खिड़कियों को बंद करने के लिए एम.एल.ए .से बोला था सर.... वे नहीं माने...."

"इट्स ओके वहां क्या क्या सबूत मिले ?"

"जूतों का निशान !"

"फिर ?"

"आधा सिगरेट पिया  हुआ।"

"वह सुलगा हुआ था क्या ?"

"हां सर...."

"फिर"

"और कुछ नहीं मिला सर। फिंगरप्रिंट्स के लिए ट्राई किया।"

"नहीं मिला ?"

"हां सर..."

"यह देखो गुणशेखर। इस केस को जल्दी से एक नतीजे पर लेकर आओ। माणिकराज की हत्या का केस जनता के बीच में आग जैसे हैं। पत्रकार पेपर में डालकर पुलिस के कपडों को फाड रहे हैं। इस तरह के माहौल में एक और हत्या हो जाएं तो...... इससे बढ़कर अपमान के सिवाय और कुछ नहीं होगा।"

"हत्यारे को पकड़ने के लिए सभी तरफ से प्रयत्न कर रहे हैं सर।"

"तुम प्रयत्न कर रहे हो कि नहीं, इसकी मुझे कोई परवाह नहीं । मुझे तो रिजल्ट चाहिए।"

कमिश्नर के बोलते समय ही टेलीफोन बजने लगा। कमिश्नर ने उसे उठाकर

"हेलो!"

"...."

"....."

"बोलो क्या बात है?"

दूसरी तरफ से जो समाचार आया उसे सुन कमिश्नर का चेहरा तारकोल जैसे काला हो गया।

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