रुपये, पद और बलि - 7 S Bhagyam Sharma द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रुपये, पद और बलि - 7

अध्याय 7

कौशल राम की पत्नी नीलावती अधीर होकर रिसीवर को देखा। तो उसका चेहरा पसीने से भीग गया।

"कौन...... बोल रहे हो ?"

नीलावती की आवाज जलतरंग जैसे बजने लगी।

दूसरी तरफ से हंसी की आवाज आई “मैं कोई भी हूं तो उससे आपको क्या है अम्मा ? ठीक.... तुम्हारे पति के ना चाहने वाला हूँ सोच लो।"

नीलावती आघात से ठिठक सी गई। तो फिर आवाज आई "तुम्हें तुम्हारे गर्दन में यदि मंगलसूत्र रखना चाहती हो तो सुनो!"

"तुम ... तुम... क्या बोलना चाह रहे हो !"

"तुम्हारे पति को तुम्हें समझाना है..."

"क्या समझाना ?"

"हां ! तुम्हारे पति ने पैसों के बल पर..... यह एम.एल.ए. के चुनाव को जीत लिया..... तेरा पति एम.एल.ए. की पदवी के लिए वह लायक नहीं है पर, अब मंत्री बनने की इच्छा कर रहा है। परंतु वह मंत्री ना बने मैं ऐसी इच्छा कर रहा हूं।"

"इसके लिए मुझे क्या करना होगा ?"

"तुम्हारे पति को मंत्री नहीं बनना चाहिए ऐसा उसको समझाओ ...."

शर्ट को उतारकर लुंगी पहनकर कमरे से बाहर आए कौशल राम, नीलावती के पसीने से लथपथ चेहरे से टेलीफोन पर बात करते देख उसके पास आए। "किसका फोन है नीला?"

"पता... पता नहीं... कौन है।"

"तुम इस तरह से पसीने से लथपथ क्यों हो ? रिसीवर को मुझे दो..... यहां" वे बोले और लापरवाही से रिसीवर को उठाकर कान में लगाया।

"हेलो...."

"कौन.... कौशल राम ?"

"तू कौन है बे ?"

"थोड़ा आदर से बात कीजिए प्रधान जी !"

"मेरे नाम को बड़े साहस से बुलाने वाले... तुम हो कौन ?"

"आपको नापसंद करने वाला आदमी... तुम्हारे लिए एक छोटी चेतावनी दे दूँ सोच कर फोन किया।"

"चेतावनी ?"

"चेतावनी देने वाला तू कौन है !"

"इस देश का नागरिक। उसमें भी तमिलनाडु का। पद जो है योग्यता वाले को ही मिलना चाहिए। तुम्हारे जैसे बेकार आदमी को वह नहीं मिलना चाहिए।"

कौशल राम बहुत गुस्से में आए। "जनता ने मुझे देखकर पदवी दी है। बीच में तुम कौन? हिम्मत हो तो मेरे सामने आकर बोलो देखता हूं...."

वह हंसा।

"शेर का शिकार करना है तो छुपकर ही शिकार करते हैं। तुम्हारे सामने आकर खड़े होने के लिए क्या मैं पागल हूं ? यह देखो कौशल राम ! तुम्हें मैं 24 घंटे का समय और देता हूं। तुम पत्रकारों को बुलाकर - मुझे मंत्री पद नहीं चाहिए ऐसा....बोलना...."

"ऐसा ना बोलो तो ?"

"माणिकराज की जो गति हुई वही तुम्हारी होगी। तुम्हारी पत्नी का फूल और बिंदी का लाइसेंस खत्म हो जाएगा। सब पार्टी के प्रधान तुम्हारे शरीर पर फूल रखेंगे। तुम्हारा बड़ा बेटा तुम्हें मुखाग्नि देगा।"

"मुझे धमकी दे रहा है ?"

"यह सिर्फ धमकी नहीं है..... कौशल राम ! होने वाला सच हैं । मैंने जो बोला है उसे करके दिखाऊंगा। जो होने वाला है उसे ही बोलता हूं। कल शाम को तुम ‘मुझे मंत्री पद नहीं चाहिए’ ऐसा न्यूज़ पेपर में आना चाहिए.... नहीं तो तुम्हारी मृत्यु।"

रिसीवर को रख दिया गया।

कौशल राम बड़े आघात के साथ रिसीवर को देख कर रख दिया। नीलावती का खून सूख गया हो ऐसे सफेद चेहरे के साथ खड़ी थी। उसने उनके कंधे को पकड़ा। "क्या है जी.... उसने फोन पर ऐसे बोला?"

"बोलें तो बोलने दो।"

"आप कैसे.... इतनी लापरवाही से कह सकते हो ?"

"फिर उसके लिए डरुं ?"

"डरना नहीं चाहिए ! माणिकराज को उसने मार दिया ना?"

"माणिकराज धोखा खा गया, मैं धोखा नहीं खाऊंगा ? मुझे खत्म करने कौन आ रहा है देखते हैं।"

नीलावती दूसरे शब्द के लिए मुंह खोलने वाली थी उसी समय ऊपर से एक आवाज आई।

"अप्पा..."

कौशल राम ने ऊपर देखा।

उनका लड़का सुधाकर हाथ में एक टेप रिकॉर्डर लेकर खड़ा था। नायक मोहन को याद दिलाने वाला उसका चेहरा था ।

"देखा सुधाकर.... कोई एक जना फोन पर तुम्हारी मां को धमकी दिया तो वह डर गई..."

"सुधाकर नीचे उतरकर आया। "आप और वह जो बात कर रहे थे उसे फोन से मैं भी सुन रहा था। सिर्फ सुना ही नहीं..... उसकी बातों को वैसे ही टेप करके रख दिया। इस कैसेट को पुलिस में दे तो वह उस आवाज को शायद पहचान लेंगे।"

कौशल राम खिल गए। "बहुत बढ़िया काम किया..... सुधाकर! उस कैसेट को यहां ला..... पुलिस को बुलाकर उन्हें डालकर सुनाएंगे।"

टेप रिकॉर्डर का कैसेट धीरे से घूमने लगा | उस धमकी देने वाले की आवाज और कौशल राम के बीच हुई बातचीत हवा में मिलकर इंस्पेक्टर गुणशेकरण और सब इंस्पेक्टर देवराज को सुनाई ।

बातचीत पूरी खत्म हुई -

कैसेट खत्म हुई गुणशेकरण सब इंस्पेक्टर देवराज एक-दूसरे को देखने लगे।

"क्यों देवराज आवाज को आईडेंटिफाई कर रहे हो ?"

"नहीं कर... पाया सर...."

"जान बूझकर आवाज को बदलकर बात कर रहे हैं ऐसा नहीं लगा ?"

"ऐसा ही लग रहा था सर।"

"इनकी बातों को सुन रहे कौशल राम गुस्से से बोले "कल सुबह 10:00 बजे इस आवाज के आदमी को मेरे सामने खड़ा करो।"

"फिक्र मत करो सर.... पकड़ लेंगे...."

"वह कोई पुराना कैदी होगा क्या इंस्पेक्टर ?"

"आवाज कोई नई लगती है.... बातों से पढ़े-लिखे जैसा महसूस होता है। आप किसी बात से मत डरिए... सर.... दो कॉप्स ड्यूटी निश्चित रूप से सेंट्रल में होंगे..... हम उस धमकी को दबा लें तब तक आप बाहर मत आइए।"

पास में खड़ी नीलावती ने कौशल राम के कंधे को दबाया।

"इंस्पेक्टर ! जब तक आप इस हत्यारे को नहीं पकड़ लेते हो मैं इन्हें बाहर नहीं जाने दूंगी।"

"हम सीवियर स्टेप्स लेकर रात के अंदर ही उसे दबोच लें ऐसी कोशिश करेंगे।" गुणशेकर और देवराज खड़े हो गए।

रात के 1:00 बजे थे।

कौशल राम के बंगले के कंपाउंड गेट के पास दो कॉन्स्टेबल कंधे पर राइफल के साथ, नींद की खुमारी में खड़े थे तो वॉचमैन पोर्टिको के आसपास घूम रहा था।

चारों तरफ भंवरे की आवाज आ रही थी । एक कांस्टेबल ने "वॉचमैन" आवाज दी। वह भाग कर आया।

"क्या है साहब ?"

"बंगले के रसोईये को जगाकर चाय बनाने को बोलो। आंखें बंद हो रही हैं।"

"थरमस में चाय रखा है सर।"

"अच्छा हुआ। दो।"

कांस्टेबल के बोलते ही एक रिवाल्वर चलने की आवाज आई।

*****