1980 और इससे पहले के दशक में जब हमारे यहाँ मनोरंजन के साधनों के नाम पर लुगदी साहित्य की तूती बोला करती थी। एक तरफ़ सामाजिक उपन्यासों पर जहाँ लगातार फिल्में बन रही थी तो वहीं दूसरी तरफ़ थ्रिलर और जासूसी उपन्यासों के दीवानों की भी कमी नहीं थी। एक तरफ़ सामाजिक उपन्यासों के क्षेत्र में गुलशन नंदा को सेलिब्रिटी का सा दर्ज़ा प्राप्त था। तो दूसरी तरफ़ ओम प्रकाश शर्मा, ओमप्रकाश कंबोज, वेद प्रकाश शर्मा और सुरेन्द्र मोहन पाठक के दीवानों की गिनती भी कम नहीं थी।
निजी तौर पर उस वक्त मैं वेद प्रकाश शर्मा के लेखन का दीवाना था कि तब किसी और का लिखा मैंने या तो पढ़ा ही नहीं या फिर बहुत कम पढ़ा। खैर..पिछली कसर को पूरा करने के इरादे से लगभग दो साल पहले मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की लेखनी से सुसज्जित उनकी आत्मकथा के पहले भाग को पढ़ा तो यकीन मानिए..उनकी प्रभावी एवं कसी हुई लेखन शैली ने पहली ही नज़र में मुझे उनका मुरीद बना लिया।
दोस्तों..आज मैं उन्हीं के 1973 याने के आज से लगभग 48 साल पहले लिखे गए एक थ्रिलर उपन्यास 'नीली तस्वीरें' की बात करने जा रहा हूँ। जिसे मैंने हाल फिलहाल ही किंडल अनलिमिटेड के माध्यम से पढ़ा। सुनील सीरीज़ के हिसाब से इसका 47वां नम्बर है। सुनील सीरीज़ से अनजान पाठकों के लिए मैं बताना चाहूँगा कि राज नगर से दोपहर को छपने वाले 'ब्लास्ट' अखबार का रिपोर्टर है जो हर अपने तेज़ दिमाग और ज़हीनियत के बल पर हर बार एक नए केस को सुलझाता है।
इस मर्डर मिस्ट्री उपन्यास में कहानी शुरू होती है राजनगर की 'मनोहर मेंशन' में एक जवान..खूबसूरत मॉडल युवती 'निशा' की लाश के मिलने से। जिसकी गोली मार कर हत्या कर गयी है और हत्या से कुछ समय पहले प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा प्रसिद्ध उद्योगपति लाला मंगत राम को उस घर से बाहर निकलते देखा गया है।
उम्मीद के मुताबिक पुलिसिया तफ़्तीश मे हत्या का शक लाला मंगत राम पर शक जाता है। जिसकी निशा पर लीक से हट कर कई अतिरिक्त मेहरबानियां मसलन.. रुपए पैसे ..बड़े घर..गाड़ी इत्यादि से मदद भी ग़ौरतलब है। बकौल लाल मंगत राम, वे अपने गुज़र चुके दोस्त के एहसानों का बदला उसकी बेटी की मदद कर के कर रहे थे। खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए मंगत राम पहले एक प्राईवेट जासूस और बाद में 'ब्लास्ट' के क्राइम रिपोर्टर सुनील की मदद लेता है।
तफ़्तीश के दौरान अय्याश प्रवृति का लाला मंगत राम सुनील के सामने स्वीकार करता है कि तीन खूबसूरत लड़कियों के साथ, कुछ उन्मादी क्षणों के दौरान, चोरी से खींची गयी उसकी नंगी तस्वीरों को लेकर निशा उसे ब्लैकमेल कर रही थी। लेकिन साथ ही साथ वो ये दावा भी करता है कि उसका कत्ल उसने नहीं किया।
इस बेहद तेज़ रफ़्तार चौंकाने वाले उपन्यास में अब सुनील को, मंगत राम द्वारा नियुक्त किए गए, गर्म दिमाग़ प्राइवेट जासूस की मदद से उन तीन लड़कियों के साथ साथ निशा के उस आशिक़ को भी खोज निकालना है जिसका पता चलने पर मंगतराम से उसे गुण्डों से बुरी तरह पिटवा दिया था।
क्या सुनील इस पर पल उलझती गुत्थी को सुलझा पाएगा या फिर वह इस लगातार होते कत्लों से लैस इस रोमांचक कहानी में और अधिक उलझ कर रह जाएगा?
43 साल पुराना उपन्यास होने की वजह से हालांकि पढ़ते वक्त उस समय के और आज के माहौल में आए फ़र्क की वजह से थोड़ा टाइम गैप लगता है लेकिन फिर भी यह उपन्यास अपने धाराप्रवाह लेखन..तेज़ रफ़्तार..रहस्य और ट्रीटमेंट की वजह से अब भी प्रभावित करता है।
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