अंत... एक नई शुरुआत - 6 निशा शर्मा द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अंत... एक नई शुरुआत - 6

जब भी हमें अपनी ज़िंदगी में कुछ कीमती मिलता है तो उसके बदले में कुछ कीमती हमसे छिन भी जाता है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण मैंने अपनी प्रिय सहेली पूजा के निजी जीवन में घटते हुए देखा।

इधर मेरी इतनी शानदार नौकरी लगी और उधर पूजा को एक शानदार जीवनसाथी मिला,आलोक के रूप में।आलोक के बारे में मैं क्या बोलूं क्योंकि जितना भी बोलूंगी कम ही होगा।आलोक जैसा नाम बिल्कुल वैसी ही उसकी शख्सियत और उसका व्यक्तित्व।वो बस कहने के लिए डॉक्टर था बाकी तो अगर उसे शायर,कवि या लेखक कहें तो बेहतर होगा।पूजा आलोक की सादगी से जितनी प्रभावित थी, आलोक पूजा की खूबसूरती का उतना ही दीवाना।यूं तो थी ये अरेंज-मैरिज लेकिन जब ये दोनों आमने-सामने होते और आलोक जब पूजा को देखते हुए शेरों-शायरी करता तो कोई अंधा भी इसे लव मैरिज ही करार देता।जब मैं पूजा के पापा के कहने पर पहली बार पूजा की मुलाकात आलोक से करवाने के लिए रेस्टोरेंट गई थी और जब आलोक नें पूजा को देखकर अपने दिल पर हाथ रखते हुए जब कहा था कि....बरसों से जो बनके तस्वीर दिल में बैठी थी,आज वो मेरी तकदीर बनके मेरे सामने खड़ी है!उस वक्त पूजा के साथ-साथ मैं भी आलोक के इस शायराना अंदाज़ पर फिदा हुए बिना न रह पायी और जिसका परिणाम ये हुआ कि रेस्टोरेंट से निकलते ही हमनें अंकल जी यानि कि पूजा के पापा को फोन करके अपनी रजामंदी दर्ज करा दी और चूंकि आलोक को ऑस्ट्रेलिया जाना था तो बस आननफानन में चट् मंगनी और पट् ब्याह!!मगर उसके बाद जो हुआ वो पूजा समेत मैं भी आज तक नहीं भूल पायी।पूजा की बिदाई के आठवें दिन ही अंकल इस दुनिया से अलविदा कह गए और पूजा बेचारी तो चाहकर भी नहीं आ पायी।पूजा की जगह मैं और समीर ही अंकल के हर एक काम में शरीक हुए।हालांकि आलोक तो ऑस्ट्रेलिया से तुरंत आने को भी तैयार था मगर वहां की कुछ परिस्थितियां,नियम-कानून और उसके ससुराल वालों के दबाव के चलते वो नहीं आ पायी।अंकल के जाने के बाद उसका तो मायका ही खत्म हो गया।तब समीर नें खुद आगे बढ़कर पूजा से कहा था कि अब से वो उसकी बहन है और वो खुद को कभी भी अकेला न समझे,उसे जब ज़रूरत हो वो समीर को पुकार सकती है और हाँ जब दिल चाहे वो अपने मायके,अपने भाई के घर आ सकती है।उफ्फ़...कितना तड़पकर रोई थी उस दिन पूजा।उस दिन के बाद से समीर के लिए मेरे दिल में इज्ज़त और प्रेम कई गुना अधिक बढ़ गया था।

और अब पूजा के बाद खोने और पाने के इस खेल में दूसरी बारी मेरी थी..................

आज से ठीक तीन दिनों के बाद समीर का जन्मदिन था और जिसको यादगार बनाने की कवायद मे मैं इन बीतने वाले तीनों दिनों को एक करने वाली थी।बाकी सब तो ठीक था मगर समीर का जन्मदिन उसी दिन था जिस दिन मेरी ज्वाइनिंग थी मगर शुक्र है स्मिता मैम का जो कि उस इंटरनेशनल-स्कूल की प्रिंसिपल की बैस्ट फ्रेंड निकलीं और उन्होंने मेरी ज्वाइनिंग डेट उनसे बात करके एक दिन आगे बढ़वा दी।

इस बार समीर की बर्थडे पार्टी मैं बहुत ही शानदार तरीक़े से करने वाली थी और जिसमें मैंने अनाथाश्रम के बच्चों से लेकर वृद्धाश्रम की बुजुर्गों को भी शामिल करने के बारे में सोचा था।मैं हर एक दिन लिस्ट बनाकर काम पर लग गई।सबसे पहले मैं अनाथाश्रम गई और वहाँ उन बच्चों के गार्डियन से बात करके मैंने उनकी ज़रूरत का सामान पूछा और इसके बाद मैंने रुख किया वृद्धाश्रम का।फिर मन्दिर जाकर पंडित जी से बात करके सत्यनारायण जी की कथा के बारे में बात की।अब बारी थी शाम को आयोजित होने वाली पार्टी की जिसके डेकोरेशन,केटरिंग और गैस्ट-लिस्ट से लेकर समीर के बर्थडे- गिफ्ट तक का इंतज़ाम करते-करते मुझे पूरे दो दिन लग गए।

इस सबमें मेरी मदद के लिए जहाँ ऑस्ट्रेलिया में बैठी मेरी सहेली पूजा ने मुझे आइडियाज देकर मेरी बहुत मदद की तो वहीं दूसरी ओर मेरी स्मिता मैम मेरे साथ हर जगह चलने को तैयार रहती थीं।इन सबमें मैं चाहकर भी समीर की कोई मदद नहीं ले सकती थी क्योंकि उनके लिए ये पार्टी मेरी तरफ़ से सरप्राइज़ जो थी!इन सबके बीच एक ख्याल जो मुझे बार-बार आता था और वो यह कि मुझे अपनी सास ऊषा देवी से भी बात करनी थी,अपनी नौकरी के बारे में जिसके लिए वो मन से बिल्कुल भी तैयार नहीं हुई थीं।हालांकि समीर के कहने पर वो मान तो ज़रूर गई थीं पर मुझे पता है कि वो दिल से तो बिल्कुल भी नहीं था।मेरी मम्मी हमेशा कहती थीं कि जिस काम में हमारे अपनों का आशीर्वाद शामिल न हो वो काम व्यर्थ होता है और शायद इसीलिए मैं अपने बड़ों की अनिच्छा से कोई काम नहीं करना चाहती थी तो बस मैंने फैसला किया कि समीर के जन्मदिन वाली रात मैं ऊषा देवी से ज़रूर बात करूंगी और उन्हें अपनी और समीर की परिस्थिति से अवगत कराऊँगी कि समीर की जॉब में आजकल क्या परेशानियां चल रही हैं और पढ़ाई करना,योग्य बनना मेरा सपना ज़रूर था पर ये नौकरी हमारे परिवार की ज़रूरत है।

अब आप लोग ये तो ज़रूर ही सोच रहे होंगे कि जब मैं इतनी संस्कारी हूँ और अभी तक तो आप ये भी जान गए होंगे कि मैं इतनी बुरी इंसान भी नहीं तो फिर मैं समीर की माँ को सासू माँ,माता जी तो कहना दूर उल्टा ऊषा देवी यानि कि उनके नाम से संबंधित करके क्यों बोल रही हूँ तो इसके जवाब में मैं बस इतना ही बता सकती हूँ कि परिस्थितियां हमेशा से ऐसी नहीं थीं।एक समय था जब मैं उन्हें माता जी ही बोला करती थी और किसी और से उनकी बात करते समय कभी माँ तो कभी सासू माँ मगर फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद मैं उन्हें चाहकर भी माँ शब्द के साथ संबोधित नहीं कर पायी।

आज सोलह मार्च है,समीर का जन्मदिन!आज सुबह से ही मैंने जानबूझकर उन्हें नज़रअंदाज़ किया हुआ है,हालांकि वैसे तो किसी भी वर्ष उन्हें अपना जन्मदिन याद नहीं रहता मगर आज न जाने क्यों सुबह से ही उन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे इस बार उन्हें अपना जन्मदिन अच्छे से याद है और उनकी आँखों में एक इंतज़ार है,शायद किसी की विश का!! मगर मैं भी आज कहाँ मानने वाली थी!अब तो मैं इन जनाब को आज रात की सरप्राइज़ पार्टी में ही विश करूँगी और फिर मैंने उनकी आँखों में देखते हुए अपने दिल ही दिल में कहा कि समीर साहब,अब तो आपका ये इंतज़ार आज शाम को होने वाली आपकी सरप्राइज़ पार्टी में ही खत्म होगा।मेरे चेहरे पर आयी इस मुस्कान को समीर बड़े ही गौर से देख रहे थे मगर ख्यालों में खोयी हुई मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब उन्होंने मेरे चेहरे पर आयी हुईं लटों को एक मीठी सी या कहूँ कि मेरे लिए तो जादुई सी फूंक मारकर हटाया और जब मैंने उनसे ऊषा देवी के वहीं आसपास होने के बारे में कहा तो उन्होंने अनायास ही मेरे गालों को चूम लिया और झटके से अपना टिफ़िन लेकर बाहर निकल गए।

फिर मैं भी अपने शर्म से लाल हुए गालों के साथ ऊषा देवी से छुपती हुई सी उनके पीछे-पीछे हो ली और जब उन्होंने मुझे अपने पीछे आता हुआ देखा तो उनकी उम्मीद एक बार फिर से जाग उठी और इससे पहले कि वो कुछ समझ या सोच पाते मैंने भी उनका हाथ अपने हाथ में लिया और आय लव यू समर,कहते हुए उल्टे पाँव दौड़कर घर के अंदर आ गई।

घर का सारा काम मैंने जल्दी-जल्दी निपटाया और अब मैं तैयार थी सारे सामान के साथ,(वो सामान जो मैंने पिछले तीन दिनों से स्टोर में समीर से छुपाकर रखा हुआ था)अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम जाने के लिए।मुझे पता था कि समीर चाहकर भी ऑफिस से निकल नहीं पायेंगे तो बस उनके जन्मदिन के नाम का दान करने मैं अकेले ही चल दी।

इसके बाद मुझे जल्दी से घर वापिस आकर कथा की तैयारियां भी करनी थीं और फिर उसके बाद केटरिंग वाले भईया को भी फोन करना था।इससे भी बड़ी बात ये कि आज मुझे गलती से भी समीर की कोई कॉल पिक नहीं करनी थी और ऐसा सिर्फ इसलिए कि कहीं मैं गलती से भी उन्हें कुछ बताकर उनका सरप्राइज़ न खराब कर दूँ।

मेरी उत्सुकता,उत्साह और अपार खुशी आज मेरे चेहरे से झलक ही नहीं रही थी बल्कि टपक रही थी जो कि वीडियो कॉल पर मुझे देखकर मुझसे पूजा ने कहा था।

पंडित जी आ चुके थे और मैं सुर्ख लाल रंग की साड़ी पहनकर तैयार हो चुकी थी जो कि समीर का फेवरेट कलर है।पूजा की तैयारियां करते हुए भी मेरी नज़रें दरवाज़े पर ही लगी हुई थीं।मैंने समीर के लिए लायी हुई हल्के बादामी रंग की शर्ट और ब्लैक पैंट बेड पर निकालकर पहले से रख दी थी।अब बस समीर का ही इंतज़ार था और तभी.......

दो पुलिस वाले और हमारे पड़ोस के सक्सेना अंकल का बड़ा बेटा अभय दरवाज़े से अंदर आते हुए दिखाई दिये जिन्हें देखकर मेरा दिल बैठ गया और अनहोनी की आशंका से मेरे हाथ में पकड़ी हुई पूजा की थाली मेरे हाथ के कंपन से कंपकपाने लगी।इसके बाद उन लोगों नें अंदर आकर जो कहा उसे सुनने के बाद ऊषा देवी तो वहीं गश खाती हुई सी गिर पड़ीं और मैं पत्थर सी हो गई।अब मैंने बिलखती हुई ऊषा देवी को अपनी छाती से चिपका लिया!!

हे भगवान!देखो तो ज़रा अब जन्मदिन की पूजा करने को आया पंडित अंंतिम क्रिया के पूजापाठ करायेगा।बहुत बुरा हुआ भाई,बहुत बुरा हुआ।

इन बातों के मेरे कानों में पड़ते ही मैं जैसे बादल की तरह फट पड़ी और फिर चारों तरफ़ बस सैलाब था,आँसुओं का सैलाब,........

क्रमशः...

लेखिका...
💐निशा शर्मा💐