अनचाहा रिश्ता - (नया माहौल) 33 Veena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अनचाहा रिश्ता - (नया माहौल) 33

"आपको यह अजीब नहीं लगता ?" स्वप्निल के गाड़ी में बैठी मीरा ने पूछा।

" मैं समझ नहीं पा रहा हूं तुम्हें अजीब क्या लग रहा है ? गाड़ी है । हम दोनों बैठे हैं । गाड़ी चल रही है । चलाने वाला तुम्हारा पति है। कुछ भी अजीब नहीं है।" स्वप्निल ने जवाब दिया।

" लेकिन मैं इन सब चीजों के बारे में बात नहीं कर रही हूं। मेरा मतलब है । 3 दिनों में कितना कुछ हो गया। हमने डैड को सब बता दिया। उसके बाद उन्हें हार्ट अटैक आ गया। उसके बाद वह ठीक भी हो गए । और तो और उन्होंने आपको माफ भी कर दिया। क्या यह भी आपको अजीब नहीं लगता ?" मीरा ने अपने चश्मे उतार कर सामने की और रख दिए।

" नहीं। हो सकता है, जब तुम्हारे पापा बीमार थे। तब उन्हें सपने में भगवान दिखाई दिए होंगे। उन्हीं भगवान ने उन्हें समझाया होगा की अगर वह इस मोह से भरे संसार में ज्यादा जीना चाहते है । तो उन्हें किसी और का संसार नहीं तोड़ना चाहिए। उसके बाद जैसे ही उन्होंने आंखें खोली, वह तुम्हारे खडूस पापा से संत पापा बन चुके थे।" स्वप्निल ने हंसते हुए कहा।

" हा हा हा । आपको पता है, आप बिल्कुल अच्छे जोक नहीं सुनाते।" मीरा ने स्वप्निल से रूठने का नाटक किया।

स्वप्निल ने अपनी गाड़ी रास्ते के कॉर्नर में पार्क की और मीरा को देखा। " क्या तुम खुश नहीं हो कि पापा ठीक हो गए ?"

" यह कैसी बातें करते हैं आप ? इससे अच्छी बात क्या होगी कि मेरे पापा जल्दी ठीक हो गए।" मीरा ने अपना सर स्वप्निल के कंधे पर रखते हुए कहा।

" अगर यही चीज सबसे ज्यादा जरूरी है। तो बाकी की बातों पर ध्यान क्यों देना ?" स्वप्निल ने उसके बाल सहलाते हुए कहा।

" आप समझते नहीं हैं। पापा ऐसे शख्स नहीं है। जो यूं ही अपनी जिद छोड़ दे।" मीरा ने स्वप्निल की तरफ देखा। " मुझे लगा था वह होश में आते ही कहेंगे कि मैं आप को तलाक दे दूं। लेकिन....."

" तुम अपने पापा को इतनी अच्छी तरीके से जानती हो। फिर भी जब वह होश में आए तब तुमने कहा कि वह जो चाहेंगे तुम करोगी। सोचो अगर वह सच में कहते तलाक दे दो तो......." मीरा ने तुरंत अपने हाथ स्वप्निल के होठों पर रख दिए।

" शादी जैसे शुभ प्रसंग में जाते हुए ऐसी अशुभ बातें क्यों करना ?" मीरा ने स्वप्निल के होंठों से हाथ हटाते हुए कहा।

" इसीलिए जो हुआ है उसे भूल जाओ और जो होने वाला है उस पर ध्यान दो।" इतना कहते हुए स्वप्निल ने फिर से गाड़ी चलाना शुरू किया।

" हां सही कहा। इतना सब कुछ ऊपर-नीचे होने के बाद, कुछ छुट्टियां तो हमारे हक़ की है।" मीरा ने फिर से अपने चश्मे पहने और दोनों ने मजे से आगे का सफर तय किया।

जगह स्वप्निल के दोस्त शेखर का घर......

" हेलो मीरा। थैंक यू वेरी वेरी वेरी मच कि तुम यहां आई।" शेखर ने मीरा से हाथ मिलाते हुए कहा।

" हेलो और हमारा क्या ?" समीर ने उससे पूछा।

" खुद अकेला आया है और चाहता है कि मैं थैंक यू बोलूं ? भाभी कहां है ?" शेखर ने समीर की तरफ तकिया फेंका।

" शेखर । शादी होने वाली है तुम्हारी। तमिज से रहो भला अपने दोस्तों से भी कोई ऐसी बातें करता है।" शेखर की मां ने उसे डांटते हुए कहा। फिर वह मीरा की तरफ आगे बढ़ी और उसे खड़े होने के लिए कहा। मीरा समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है ? उसने स्वप्निल की तरफ देखा। स्वप्निल से हां पा कर वह शेखर की मां के साथ गई।

शेखर की मां ने उसे उन लोगों से अलग एक कुर्सी पर बिठाया। उसे हल्दी कुमकुम लगाया, और तोहफे में एक साड़ी उसकी गोद में रखी। " आंटी मैं ए नहीं ले सकती। सॉरी।" मीरा ने कहा।

" आंटी।" शेखर स्वप्निल और समीर हंसने लगे।

शेखर की मां ने तीनों को आंखों से डराया, " धत्। बच्ची का मजाक मत उड़ाओ। और बेटा आंटी नहीं मां कह कर पुकारो। शेखर के सारे दोस्त और उनकी बीवियां मुझे यही बुलाते हैं। और यह साड़ी शगुन है। हमारे घर में शादी हो रही है और तुम पहली बार हमारे घर आई हो। इसे शगुन की तरह अपने पास रख लो। यह हमारा रिवाज है।"

मीरा फिर भी हिचकिचा रही थी उसने वापस एक नजर स्वप्निल को देखा। स्वप्निल से हां पाकर उसने उस साड़ी को वापस अपने पास रख लिया‌ । शेखर की मां से उन दोनों की आंखों आंखों वाली बातें छुपी नहीं। उनकी आंखों में सवाल देख स्वप्निल अपनी जगह पर से उठा और मीरा के पास जाकर खड़ा रहा। उसने मीरा का हाथ पकड़ा और दोनों ने साथ मिलकर शेखर की मां के आशीर्वाद लिया।

" आपकी बहू है आशीर्वाद दीजिए और जितने भी तोहफे देने हैं बेफिक्र हो कर दीजिए। मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।" स्वप्निल के मुंह से यह बात सुन उन्होंने तुरंत दोनों की बलाएं ली और आशीर्वाद दिया।

" तो हम कहां रह रहे हैं ? " समीर ने पूछा।

" तुम लोगों के लिए मैंने पूरा एक बंगला लिया है। मैं भी वही रहूंगा तुम्हारे साथ। सारी विधि भी वहीं से होंगी बस यह लोग और लड़की वाले आते जाते रहेंगे।" शेखर ने समीर से कहा फिर वह स्वप्निल की तरफ मुड़ा। " मीरा चाहे तो यहां रह सकती है। यहां भी काफी कमरे खाली है।"

" मैं जहां रहूंगा, मीरा वही रहेगी मेरे साथ मेरे कमरे में।" स्वप्निल ने मीरा का हाथ पकड़ते हुए कहा।

शेखर की मां की मौजूदगी देख मीरा ने तुरंत अपना हाथ स्वप्निल के हाथों से छुड़वा लिया। उसका गोरा चेहरा शर्म के मारे लाल हुआ जा रहा था।

" ओह... तू जहां रहें....... तू कहीं भी रहे।" शेखर ने शुरुआत की।

" मेरा साया.........साथ होगा।" समीर भी स्वप्निल का मजाक उड़ाने से पीछे नहीं हटा।

" देखा समीर तुझे कुछ सीखना चाहिए। कहां श्रेया को अकेला घर छोड़ चला आया।" शेखर ने चिढ़ाते हुए कहा।

" नई नई शादी है ना इसलिए। रुक अभी 1 साल होने दे बाद में देखना हमें ही ढूंढता हुआ आएगा।" समीर ने कहा।

" चुप रहो तुम लोग नई बहू को ज्यादा छेड़ो मत।" इतना कह‌ कर शेखर की मां ने मीरा के सर पर से हाथ घुमाया और वह अंदर चली गई।

" ओ......तो तुम्हें शर्म भी आती है मीरा। या फिर कोई चमकने वाला मेकअप किया है।" शेखर की इस बात का मीरा के पास कोई जवाब नहीं था उस ने फिर स्वप्निल को देखा।

स्वप्निल ने उसे अपने पास खींचा।

यह देख समीर और शेखर ने फिर से मुंह बनाया। " ओह......."

" तुम दोनों को कमरा चाहिए क्या ?" शेखर ने पूछा जिसे सुन समीर ने हंसी के ठहाके लगाए।

इन लड़कों की बेशर्मी भरी बातें सुन। शर्म के मारे मीरा पूरी लाल हो चुकी थी। उसने अपना मुंह स्वप्निल के सीने में छिपा लिया। स्वप्निल ने एक तकिया फेंक शेखर का चुप कराया।