सामुदायिक रसोई योजना Anand M Mishra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सामुदायिक रसोई योजना

अपने देश में प्राचीन काल से ही देश में मंदिरों के माध्यम से सामुदायिक रसोई की भावना रही है। कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रह जाए, इसके लिए समाज में ‘भंडारे’ की योजना काम करती थी। दुनिया के अन्य हिस्सों में यह व्यवस्था शायद नहीं है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ हमारी संस्कृति का मूल तत्त्व रहा है। वह तो कुछ फिल्मों में समाज के धनाढ्य लोगों द्वारा शोषण को दिखाया गया है। वास्तव में हमारे समाज में भूखे को भोजन कराना – संस्कार में ही है। कोई भी अतिथि द्वार से भूखा न जाए। कबीरदासजी भी ईश्वर से इतना ही मांगते हैं जिससे परिवार का भरण-पोषण संभव हो सके। उनके परिवार में ‘साधु’ की संकल्पना भी है। लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव हुआ तथा सामुदायिक रसोई की भावना कहीं गुम हो गयी। व्यक्ति आत्मकेंद्रित होते चला गया। साथ चलने की भावना पीछे छूटती चली गयी। आखिर जब हमारा समाज ही ‘सभी के लिए भोजन’ होना चाहिए – इस भावना पर केन्द्रित था तो फिर भुखमरी की बात कहाँ से आ गयी? आखिर में इस बात पर शासन-तंत्र के विचार करने की जगह सर्वोच्च न्यायालय ने विचार किया। सर्वोच्च न्यायालय ने शासन-तंत्र की ठीक से खबर ली। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार 'कल्याणकारी राज्य को यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भूख से न मरे'। अब केंद्र को सामुदायिक रसोई पर नीति बनाने को कहा गया है। देश भुखमरी के दलदल में न फंस जाए – इसी के लिए सर्वोच्च न्यायलय ने अपना आदेश दिया है। वैसे शासन ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और एक देश – एक राशन कार्ड जैसी योजनायें चलाई हैं। लेकिन ये योजनायें इच्छित लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रही हैं। वैसे कोरोना महामारी जब प्रचंड स्तर पर थी तब तो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना से कुछ उद्देश्यों की पूर्ति हुई थी। जब देश में काम-धंधा ठप पडा था। लोग बेहाल थे। तब इस योजना से कुछ-कुछ लाभ जनता को प्राप्त हुआ था। वैसे अभी हाल ही में वैश्विक स्तर पर जारी खाद्य सूचकांक में देश पिछड़ते हुए दिखाया गया था। ऐसा लगा था कि भुखमरी, बच्चों को कुपोषण आदि की समस्या बढ़ते जा रही है। इसी से चिंतित होकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने धरातल पर काम करने का आदेश जारी कर दिया। अब इससे देश में भुखमरी से कोई मौत नहीं होगी – ऐसा लगता है। अब अखिल भारतीय स्तर पर देश में ‘सामुदायिक रसोई’ की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। लेकिन इस महत्वपूर्ण योजना के कार्यान्वयन के लिए केंद्र-राज्य दोनों को कदमताल मिलाकर कार्य करना होगा। राज्य सरकारों को ही ठीक से पता होगा कि किस हिस्से में खाद्य पदार्थों की कमी है। जहाँ पर आपूर्ति की समस्या होगी वहां पर सरकार ‘सामुदायिक रसोई’ स्थापित कर सकती है। पहले किसको चाहिए – यह तय करना आवश्यक है। कौन इस योजना के लाभार्थी होंगे? इतना निश्चित है कि कुपोषण और भुखमरी से निजात पाने का यही एकमात्र उपाय अभी वर्तमान में है। ऐसा देखा गया है कि कुछ राज्यों ने सामुदायिक रसोई की उत्तम व्यवस्था निराश्रित, निशक्त, निःसहाय के लिए महामारी के समय में की थी. भोजन की यह व्यवस्था जनहित में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, इसके लिए इसका प्रचार-प्रसार भी आवश्यक होगा। लेकिन शासन में व्याप्त लेट-लतीफी के कारण इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए दृढ इच्छाशक्ति की कमी दिखाई देती है। साथ ही देश में चल रही अन्य योजनाओं की तरह इसमें भी भ्रष्टाचार के अंकुर निकल सकते हैं। अतः योजना को काफी ठोक-बजा कर बनाना होगा। साथ ही सामुदायिक रसोई प्रभावी तरीके से काम कर सके – इसकी नीति बनानी होगी। अंत में इतना ही कह सकते हैं कि माता अन्नपूर्णा के रहते भूख से कोई मौत देश में न हो।