PAANCH VIVAHIT KANYAYEN books and stories free download online pdf in Hindi

पांच विवाहित कन्याएं

घर के बड़े-बूढ़े सुबह उठते ही पांच कन्याओं के नाम लेते हैं। ये पांचों कन्याएं अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी हैं। ये सब विवाहित हैं, लेकिन फिर भी इनको कन्या कहा गया है।

ध्यान से देखने पर हम पाते हैं कि इन पाँचों के साथ छल हुआ है। ये पाँचों अनूठी माताएं थीं। तकलीफों को झेलते हुए इन पाँचों ने अपनी संतानों को बनाया। आरोपों को झेलते हुए आगे बढ़ना कोई आसान कार्य नहीं है। इनके कर्म वास्तव में अद्भुत हैं।

द्रौपदी ने तो महाभारत जैसे यज्ञ करा दिए। सोच कर ही मन में एक कौतूहल का भाव जगता है कि एक स्त्री एक साथ पांच पतियों के साथ संतुलन कैसे बनाती होगी? निश्चित ही यह एक दुरूह कार्य रहा होगा। सभी के साथ समत्व का भाव रखते हुए द्रौपदी ने एक आदर्श स्थापित धर्म की स्थापना के लिए प्रस्तुत किया। द्रौपदी नाम ही मंगलकारी व्यक्तित्व का सूचक है। इनका दूसरा नाम याज्ञसेनी था। चरित्र अनूठा, विरोधाभासी, रहस्यमयी और अनुत्तरित है। सबसे बड़ी बात सास कुंती बहुत पसंद करती थीं। श्रीकृष्ण भी चाहते थे। उनके अनुसार द्रौपदी का अर्थ ही मंगल है। जहां द्रौपदी है, वहां कल्याण, कुशल और आनंद है। दस भाइयों में इकलौती बहन थीं और कहती थीं मेरे ग्यारहवे भाई कृष्ण हैं। द्रौपदी के साथ मंगल जुड़ा ही इसीलिए था कि उन्होंने कृष्ण को भाई और सखा दोनों माना था। जिसके जीवन में परमात्मा हो, मंगल उसके भाग्य में उतर जाता है।

अहिल्या के साथ इंद्र ने छल किया। दंड अहिल्या को भोगना पड़ा। इंद्र का तो कुछ नहीं हुआ। अहिल्या का उद्धार भगवान श्रीराम ने किया। तब तक अहिल्या शिलावत रही। कितना कुछ झेला अहिल्या ने? अत्यंत रूपवती होने की सजा भोगी। श्रीराम के आने की प्रतीक्षा उन्हें बहुत भारी पड़ी। पुरुष प्रधान समाज में हमेशा नारी को ही सहना पड़ा है। लेकिन श्रीराम ने समाज में व्याप्त स्त्री-पुरुष के भेद को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। संघर्ष की मज़बूरी के कारण वे महान बनी।

तारा अत्यधिक अहंकारी एवं शक्तिशाली बालि की पत्नी थी। बालि सुग्रीव का बड़ा भाई, जिसे राम ने मारा था। बालि के बाद तारा ने सुग्रीव के साथ भी संतुलन अच्छे से बनाया तथा पाने बच्चे अंगद को सुयोग्य एवं विश्वासपात्र श्रीराम का बनाया। तारा मंत्रणा करने में बड़ी माहिर थीं। एक मां सही समय पर मंत्रणा दे तो संतान के लिए सुखद भविष्य की तैयारी हो जाती है। मां की मंत्रणा के लिए व्यवस्थित कक्षा नहीं होती है। मां तो चलते-फिरते एक छोटी-सी चपत या प्यारी-सी थपकी में गहरी मंत्रणा दे जाती है। तारा, जिसे रामजी ने बालि के मरने के बाद समझाया था। हनुमानजी ने भी उनसे मंत्रणा की थी।

मंदोदरी मय दानव की कन्या थी, पति विश्वविजेता रावण था। कौन-सा ऐसा दुर्गुण था,जो रावण में नहीं रहा हो। इसी कारण अपने पुत्रों को संभालने में मंदोदरी को बड़ी ताक़त लगी थी। लेकिन, चूंकि मर्मज्ञ थीं, इसलिए हर बार रावण जैसे व्यक्ति को भी समझाती रहीं। मंदोदरी ने एक बात सिखाई थी कि परिवार की परंपराओं के लिए मां को मर्मज्ञ होना पड़ेगा। ऐसा भी कहा जाता है कि पति के मनोरंजन के लिए इन्होंने एक खेल निर्मित किया था, जिसे शतरंज कहा जाता है। चौंसठ खाने और बत्तीस मोहरों का यह खेल सिर्फ गेम नहीं है। ज़िंदगी भर अलग-अलग ढंग से चलता है और इसमें एक मां प्यादे से लेकर बादशाह तक अलग-अलग भूमिका में रहती है। फिर इस मां का बच्चों के पिता से शह और मात का खेल जिंदगीभर चलता रहता।

कुंती ममता से भरी हुई थीं। उनके तीन पुत्र थे- युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन। नकुल तथा सहदेव उनकी सौत माद्री के पुत्र थे। लेकिन, कुंती की ममता इतनी विस्तारित थी कि दुनिया जान ही नहीं पाई कि कुंती के पांच नहीं, तीन बेटे थे। दुर्वासा ऋषि ने इन्हें देव आह्वान मंत्र दिया था और उसी से इनको संतानें हुई थीं। विवाह पूर्व भी एक बार इन्होंने देव आह्वान मंत्र का प्रयोग किया था, जिससे कर्ण का जन्म हुआ था। इनकी ममता का जादू तो कृष्ण के सिर चढ़कर बोला था। कृष्ण जब भी बुआ कुंती को देखते तो सोचते थे भरे जंगल में तमाम अभावों के बीच इस मां ने पांच ऐसे बच्चे तैयार किए, जो धर्म का प्रतीक बन गए। बिना किसी को ध्वस्त किए ये वनसत्ता की सम्राज्ञी थीं।

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