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मे और महाराज - ( जाल_३) 42

अगले दिन सुबह जो उठी थी। वह राजकुमारी शायरा थी। उनके जागते ही मौली ने उन्हें इतने दिनों की सारी घटनाएं बता दी।

" सच बताओ मौली। उस लड़की ने ऐसा क्या किया जो वैद्य जी उसकी हरकत को सच मान बैठे ? " राजकुमारी शायरा ने चकित होते हुए पूछा । क्योंकि वह जानती थी कि राज वैद्य को धोखा देना इतना भी आसान काम नहीं है।

" समायरा ने मुझे सिखाया है राजकुमारी। मैं आपको करके दिखाती हूं।" मौली राजकुमारी के बिस्तर पर गिरी और उस ने दौरा आने का नाटक किया।

" छी।" राजकुमारी शायरा ने तुरंत अपना मुंह घुमा लिया। " खबरदार अगर आज के बाद ऐसी कोई भी हरकत की।" डर के मारे मौली अपने घुटनों पर बैठ गई। " तुमने उस लड़की को यह कैसे करने दिया ? तुम्हें पता है ना हम कौन हैं ? क्या कोई राजकुमारी कभी ऐसी हरकत करती है भला ? अब तुम्हारे लिए हमारा हुकुमत जरूरी नहीं रहा। क्यों ?" शायरा ने मौली के पीछे एक के बाद एक सवाल की कतार लगा दी।

" इस कनिज को माफ कर दीजिए राजकुमारी। आप मेरे लिए पहले भी सबसे ज्यादा जरूरी थी। आज भी है और आगे भी आप ही रहेंगी। मुझे मेरी गलती की जो चाहिए वह सजा दे दीजिए। मैं आवाज निकाले बिना वह सह लूंगी। लेकिन आपका अपमान करने जितना बड़ा अपराध में कभी नहीं कर सकती।" मौली ने घुटनों के बल बैठे हुए सर झुकाते हुए कहा।

राजकुमारी ने एक नजर अपनी बचपन की सहेली पर डाली। जब से समायरा दोनों की जिंदगी में आई थी । दोनों का रिश्ता भी बदल गया था। जिस मौली पर आज तक राजकुमारी ने कभी आवाज ऊंची नहीं की थी। उसी पर समायरा की वजह से हाथ उठाने तक की नौबत आ गई थी। पर इसमें मौली की भी कोई गलती नहीं है। ‌ जब राजकुमारी खुद समायरा को काबू में नहीं रख सकती तो मौली की क्या औकात! " अपना सर उठाओ और खड़ी रहो। याद रखना मौली उस लड़की को कोई ऐसी हरकत करने मत देना जिसकी वजह से हमारा सर झुके।"

" समझ गई मेरी राजकुमारी।" मौली ने सर झुकाए हुए खड़े रहकर जवाब दिया।

" तो समायरा बीमार होने का नाटक राजकुमार सिराज के कहने पर कर रही है। लेकिन क्यों ?" राजकुमारी शायरा ने इन दिनों हुई घटनाओं पर नजर डाली।

" राजकुमार सिराज और समायरा दोनों को लगता है कि यह राजकुमार अमन की रचाई हुई साजिश है। इन दिनों जब आप यहां पर नहीं थी। समायरा पर एक के बाद एक कई बार हमले हुए हैं। कुछ कातिलों के हाथों तो कुछ तीर कमान के साथ। एक हमले में तो हमलावरों ने उन्हें पहाड़ी के नीचे ही फेंक दिया था। वह तो राजकुमार सिराज की चतुराई की वजह से आप दोनों बच गए। राजकुमार सिराज को पूरा शक है..." मौली बोलते बोलते रुक गई।

" क्या शक है राजकुमार सिराज को ? बताओ हमें।" राजकुमारी शायरा ने हुक्म फरमाया।

" यही के राजकुमार अमन अपनी सियासती जंग में आपका इस्तेमाल कर रहे हैं। जिस वजह से आप पर इतने हमले हो रहे हैं। " मौली ने सर झुकाते हुए कहा।

" नहीं । ऐसा नहीं हो सकता। हमारे बड़े राजकुमार हमारे साथ कभी ऐसा नहीं कर सकते। उन्होंने नहीं किया ना मौली ? " राजकुमारी शायरा ने अपनी आंखों में से आंसू पौछते हुए मौली से पूछा।

" यकीनन राजकुमार अमन कभी मेरी राजकुमारी को धोखा नहीं देंगे । वह दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं। राजकुमार सिराज और समायरा शक कर रहे हैं राजकुमारी। वह भी आपकी निगरानी के लिए जरूरी है। उदास मत होइए राजकुमारी।" मौली ने उसकी राजकुमारी को समझाने की पूरी कोशिश की।

" हम समझते हैं मौली। पर तुम इस सियासत की जंग को नहीं जानती। इसका निर्णय जितना पास आएगा यह उतनी ज्यादा खतरनाक होती जाएगी। अगर हमारे बड़े राजकुमार के हाथों यह हुआ भी होगा । तो यकीनन उनकी कोई ना कोई मजबूरी रही होगी। जानती हो मौली राजकुमारियों का इस सियासी जंग में क्या हिस्सा होता है ?" राजकुमारी शायरा ने आंखें उठाकर मौली को देखा। उनके सवाल के जवाब में मौली ने सिर्फ सर हिलाकर ना में जवाब दिया।

" वह सिर्फ एक कुर्बान करने वाला जानवर बन कर रह जाती है। ऐसा जानवर जिससे ना ही अपने जज़्बात जाया करने का कोई हक होता है। ना ही अपने हक के प्रति आवाज उठाने का जज्बा। सिर्फ एक प्यादा। उसके ना दुख से किसी को फर्क पड़ता है। ना किसी को उसकी खुशी की चिंता होती है। गौर से देखो हमें मौली हम वही हैं।" शायरा ने अपनी आंखें पौछी। " महल के दरवाजे बंद कर दो। हमें कुछ देर अकेला छोड़ दो। हम खुद ब खुद ठीक हो जाएंगे।"

उस दिन राजकुमारी के महल के दरवाजे किसी के लिए खोले नहीं गए। खाना पानी सब अंदर मौली के हाथों गया लेकिन कोई मतलब नहीं। राजकुमारी ने अन्न के निवाले को तक नहीं छुआ। मौली को अब राजकुमारी की चिंता होने लगी थी।

उसी शाम महाराज खुद राजमाता से मिलने उनके कक्ष पहुंचे।

" प्रणाम मां।" महाराज ने कहा।

" मेरे ख्याल से जब हम आखिरी बार मिले थे । हमने आपको एक सवाल का जवाब देने के लिए कहा था। क्या महाराज आज उस सवाल का जवाब साथ लेकर आए हैं ?" राजमाता ने पूछा।

" हां मां। जिन लोगों ने राजकुमार सिराज और राजकुमारी शायरा पर हमला किया था। वह हमारी रियासत के बागी थे। उनका राजकुमार अमन से कोई लेना-देना नहीं था।" महाराज ने अपनी मां को जवाब दिया।

" झूठ । सफेद झूठ। हमें यकीन नहीं आ रहा कि, आप अपने बेटे के प्यार में इस कदर अंधे हो रहे हैं कि खुद अपनी दूसरी औलाद का दर्द तक देख नहीं पा रहे।" राजमाता ने चिढ़ते हुए जवाब दिया।

" हम एक पिता के साथ-साथ महाराज भी है मां। हमारी अदालत में न्याय सबके लिए एक है।" महाराज ने अपनी दलील पेश की।

" अगर सबके लिए न्याय एक है। तो उन कातिलों को हमारे सामने हाजिर किया जाए।" राजमाता ने हुक्म दिया।

" हमें माफ कर दीजिए लेकिन उन कातिलों को राजद्रोह के अंतर्गत सजा हो चुकी है। हम अभी-अभी उनका सर कलम करवा कर आ रहे हैं। अगर आप चाहें तो आपके लिए उनके कटे हुए सिर भेज सकते हैं।" महाराज ने कहा।

" इतनी जल्दी क्या थी ? राजकुमार अमन के दोष काफी अच्छी तरह से मिटा दिए आपने।" राजमाता अपने बेटे को जानती थी।

" आपको हमारे किसी भी फैसले से इनकार हैं ? तो आप हमसे जब चाहे तब नाराजगी जाहिर कर सकती है । लेकिन आज के बाद राजकुमार अमन के प्रति कोई भी आरोप करने से पहले आपको पुख्ता सबूत ले आए तो ही अच्छा होगा। जल्दी होने वाले महाराज का निर्णय होगा। और हम नहीं चाहेंगे कि किसी गलतफहमी की वजह से किसी काबिल उम्मीदवार को पीछे छोड़ दिया जाए।" इतना कह महाराज राजमाता के कक्ष से बाहर चले गए।

देखते ही देखते महाराज का लिया हुआ यह निर्णय हर जगह फैल गया। इस रियासत के पिता अपने बड़े बेटे को बचाने के लिए सियासत लड़ रहे हैं। यह बात समझने में सिराज को जरा भी देर नहीं लगी। दूसरे दिन सुबह सुबह वह राजकुमारी के कमरे में गए।

आज वहां पर जो बैठी हुई थी वह समायरा थी। राजकुमार सिराज को आता देख उसने मौली को इशारा किया और खुद एक दरवाजे के पीछे छुप गई। जैसे ही दरवाजा खुला और सिराज अंदर आया । समायरा जोर से उसके सामने कूदी। उसे लगा था कि उसकी इस हरकत से सिराज डर जाएगा। लेकिन वह भूल गई थी उसके सामने जो खड़ा है वह एक राजकुमार था। भविष्य के होने वाले महाराज। उसकी इस बचकानी हरकत का नतीजा यह हुआ। उसकी मुस्कान देखते ही सिराज ने उसे गले लगा लिया।


समायरा ने उसे पीछे धकेलने की कोशिश की, लेकिन कोई मतलब नहीं। " कुछ देर हमें आपके गले लगने दीजिए।" यह बात सिराज ने उसके कानों में कहीं। सिराज की आवाज सुन समायरा समझ गई की बात थोड़ी गंभीर है। उन दोनों की नजदीकया देख मौली ने कमरा छोड़कर जाने का निर्णय लिया।

" क्या तुम रो रहे हो ? अच्छा अब बताओ मुझे हुआ क्या है ? " समायरा ने पूछा।

" महाराज ने राजकुमार अमन की निर्दोष मुक्तता कर दी है। हमें माफ कर दीजिए। हम आपकी रक्षा नहीं कर पाए। हम नाकामयाब हो गए।" सिराज ने समायरा को कसकर गले लगा लिया।

" बस इतनी सी बात।" समायरा ने उसके पीठ पर से हाथ सहलाते हुए कहा। " देखो पारिवारिक झगडे में ऐसी बातें होती रहती है। इतना दिल पर मत लो।"

सिराज ने एक नजर समायरा को देखा, " आपको नहीं लगता कि हम एक नाकामयाब पति है ?"

" क्यों मजाक कर रहे हो ? तुम ने हम दोनों को मरने से बचाया हैं। अगर तुम नाकामयाब होते तो आज मैं जन्नत में होती और तुम शायद नर्क में।" समायरा की बातें सुन सिराज के चेहरे पर हंसी खील गई।

सिराज जिसे अपनी आंखों के सामने मुस्कुराते हुए देख रहा था। आज वह उसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी थी। सियासत हो या नहीं सिराज किसी हालत में समायरा को अपने से दूर होने नहीं देगा। उसने ठान लिया था।

दूसरी तरफ,
राजकुमार अमन फिर से उस गुफा में उन अंधेरे के पुजारियों से मिलने गए।

" इस बार तो पिताजी ने हमें बचा लिया लेकिन तुम लोगों की गलतियों की वजह से वह हमसे काफी नाराज हैं। अब चुपचाप से जितना मैं कहूं उतना करो और पूरा ध्यान हमें तख्त वापस दिलाने में लगाओ।" राजकुमार अमन ने कहा।

उन अंधेरों के पुजारियों ने एक दूसरे की तरफ देखा। " आपका तख्त आप खुद अपने नाम कर सकते हैं। आपको बस वजीर को अपनी तरफ करना है।"

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