संपोले Ranjana Jaiswal द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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संपोले

माँ कहती थी संपोले साँप से कम खतरनाक नहीं होते |हालांकि उनमें विष साँप से थोड़ा कम होता है पर उनके काटने से भी लहर आती है |संपोले इस मायने में साँप से ज्यादा खतरनाक होते हैं कि छोटे होने के कारण वे कहीं भी छिप कर बैठ जाते हैं और आसानी से नजर नहीं आते |दिखने पर भी लोग उन्हें छोटा समझकर मारना नहीं चाहते |इस तरह उन्हें अपनी उम्र का उसी तरह लाभ मिल जाता है ,जैसे हमारे देश में किशोर अपराधियों को मिल जाता है |भले ही उनका अपराध कितना भी संगीन क्यों न हो !अपने विद्यार्थी जीवन में मैंने अज्ञेय की यह कविता पढ़ी थी –

साँप तुम सभ्य तो नहीं हुए

नगर में रहना नहीं सीखा

विष कहाँ पाया डँसना कहाँ सीखा ?

कविता पढ़कर मैंने भी आदमी को साँप के समानान्तर देखना शुरू किया|

वैसे तो आजकल आदमी को साँप से ज्यादा खतरनाक माना जाने लगा है |’आस्तीन का साँप’ , ’दोमुंहा साँप’ जैसे अनेक मुहावरे आदमी के लिए ही गढ़े गए हैं |कृतघ्न पुत्र के लिए माँ कहती है-मैंने तो साँप को दूध पिलाया था |यानि जैसे साँप को कितना भी दूध पिलाओ वह डँसना नहीं छोड़ता ,उसी तरह कृतध्न पुत्र भी |हमारी संस्कृति में सर्प का स्वप्न धन-संपत्ति व पुत्र का सूचक माना जाता है |वर्ष में एक बार नाग-पूजा भी की जाती है |हमारे त्रिदेवों में सबसे लोकप्रिय देव शिव के गले का आभूषण है सर्प |शिव शुभ और मंगलकारी हैं तो विनाशकारी भी |उन्हीं की तरह उनका प्रिय सर्प भी |लोग उससे डरते भी हैं और उसकी पूजा भी करते हैं |शायद डरते हैं ,इसलिए पूजा करते हैं |अब जो कहानी मैं लिखने जा रही हूँ ,उसे पढ़कर साँप -पूजा करने वालों के सीने पर साँप लोटने लगे तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं |

वैसे सच बताऊँ तो मैं बचपन से ही इस जीव से डरती हूँ ,भले ही इन पर कविता-कहानी जितना भी लिख लूँ |इनके मुक़ाबले आदमी मुझे कम खतरनाक लगते हैं |शायद इसलिए कि इनके जैसे गुणों से युक्त आदमियों से निपटना मुझे आता है |मानव- संपोलों से भी मेरा सामना कई बार हो चुका है और मैं बड़ी आसानी से उनसे बचती रही हूँ पर जब सच्चे संपोलों से मेरा सामना सचमुच हुआ तो मेरे होश उड़ गए |उनके खौफ के मारे इस गरमी की छुट्टी में मैं कहीं भी बाहर नहीं जा पाई |मेरे घर से कई संपोले निकले थे |जाने कैसे वे घर में घुसे थे ?एक किचन में ,दो बेडरूम में और आठ-दस एक-दूसरे से लिपटे आँगन के हैंड पाइप के बगल में खड़े किए गए टाइल्स के बीच में मिले |इतने दिनों से वे घर में पल रहे थे और मुझे इसका पता ही नहीं था |अनुमान लगाया गया कि नाली के रास्ते से आकर साँपिन ने घर के किसी सूने ,सुरक्षित कोने में अंडा दिया होगा |अंडों से निकले बच्चे अब इतने बड़े हो गए थे कि घर में स्वतंत्र रूप से घूम सकें |वह तो संयोग से सफाई के क्रम में एक दिखा और फिर तो एक-एक कर सब दिखे|मैं बदहवास घर से बाहर भागी और उन्हें निकालने के लिए पड़ोसियों की मदद मांगी पर किसी ने कोई मदद नहीं की |सबके अनुसार उनके घर साँप की पूजा होती है |पर मैं उस घर में कैसे रहती जिसमें इतने संपोले हों ?मदद के लिए कई परिचितों को फोन किया ,पर कोई नहीं आया |सबके अनुसार उनके घर में पलने की जिम्मेदार मैं ही थी |कोई मेरी सफाई पर प्रश्न उठा रहा था ,किसी को मेरे नास्तिक होने से शिकायत थी |यह महीना मलमास का था जो शिव का महीना माना जाता है और दिन भी पवित्र बृहस्पतिवार था ,इसलिए कुछ लोगों को यह कोई दैवी कोप लग रहा था |पर मुझे बस यही चिंता थी कि इन संपोलों को घर से कैसे निकालूँ ?अंतत:संपोलों पर मिट्टी का तेल,ब्लीचिंग पाउडर ,फ़िनायल एक साथ डाला ,वे अधमरे से हो गए तो उन्हें एक-एककर चिमटे से पकड़कर बाहर पार्क में फेंक दिया |अब पड़ोसी कनफूसियाँ करने लगे कि अधमरे संपोलों को पार्क में फेंका है अब ये घर-घर घुसेंगे |मैं बिगड़ी कि कोई सहयोग नहीं कर रहा तो क्या करूं?कोई बोरा पकड़ लेता तो उन्हें उसी में डालती जाती और कहीं दूर उन्हें फेंक दिया जाता ,पर सब तमाशबीन बने हैं |जैसे यह मेरी अपनी व्यक्तिगत समस्या है |यह घटना तो किसी के भी साथ घट सकती है |मेरे घर में संपोलों की फैक्टरी तो लगी नहीं है |घर में आए तो वे बाहर से ही होंगे |मेरे रौद्र रूप को देखकर सारे पड़ोसी अपने-अपने घरों में जा दुबके |संपोलों को निकालकर मैंने पूरे घर को फ़िनायल से धोया और बाहर से उनके पुन:घुसने के सारे संदिग्ध रास्ते बंद कर दिए |मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि घर में छिपे संपोले बाहर कैसे निकलेंगे ?नहा-धोकर मैंने यह घटना फेसबुक पर डाल दी ताकि मित्रों की राय मिल सके क्योंकि पड़ोसियों के अनुसार संपोलों की माँ उन्हें ढूंढेगी और उन्हें न पाकर मुझसे बदला लेगी |फेसबुक पर पंडित टाइप कुछ लोगों ने मुझे डराया कि माँ अपने बच्चों के दुश्मन को नहीं छोड़ती |मैं रात भर जगी रही ,फिर उस पूरे महीने रात को नहीं सो पाई |मेरा घर दोमंजिला है |गर्मियों में मैं नीचे ही रहती हूँ |ऊपर का कमरा बहुत गरम हो जाता है |घटना के बाद दो-तीन रात तो तड़प-तड़पकर ऊपर कमरे में ही काटी |गर्मी भी अपने भीषण रूप में थी |फिर हिम्मत करके नीचे कमरे में बैठने-सोने लगी |दिन में तो थोड़ा-बहुत सो भी लेती पर रात को बैठकर काटती |अपनी अधूरी कहानियों को पूरा करती |मुझे पता नहीं था कि मेरी पढ़ने वाली मेज-कुर्सी के पास वाली आलमारी के निचले हिस्से में दो संपोले अभी शेष हैं |हालांकि मैं उनके जैसे जीवों को भगाने वाली दवा पूरे घर में डाल चुकी थी |आलमारी के उस हिस्से में कुछ ज्यादा ही दवा डाली थी |पर बाहर निकलने का रास्ता बंद होने से वे नहीं निकल पाए होंगे |घटना के ठीक सातवे दिन फिर बृहस्पतिवार था |मैंने सोचा आलमारी के उस हिस्से में रखा डिब्बा हटा दूँ डिब्बा हटाते ही एक संपोला दिखा, जो एक हफ्ते में काफी बड़ा हो गया था |मैंने बाहर का दरवाजा खोल दिया और डंडे से उसे फटकारते हुए बाहर की तरफ ले चली |बाहर सूरज की तेज रोशनी थी ,इसलिए वह बाहर की तरह नहीं जा रहा था |बड़ी मुश्किल से एक पतली छड़ी से उसे सड़क पर उछाल दिया |एक और सँपोला डिब्बे में छिपा बैठा था |डिब्बा मैंने सड़क पर ले जाकर खोला था ,वह वहीं से भाग गया |इस तरह मैंने उन संपोलों से छुटकारा पाया ,फिर भी उनका खौफ बना रहा|रात को सोती तो बार-बार नींद उचट जाती |कभी अजीब- सी आवाज सुनाई पड़ती तो कभी सरसराहट|आज उस घटना को दो महीने बीत चुके हैं पर उनका डर पूरी तरह गया नहीं है |

एक दिन मैंने अपनी दोस्त इति को फोन करके दिल हल्का करना चाहा ,तो पता चला कि इसी बीच एक मानव- संपोले ने उसे बुरी तरह डंस लिया है | मेरे घर में निकले संपोलों से यह सँपोला ज्यादा खतरनाक था |उसने एक ही झटके में इति का घर-परिवार,नात -रिश्तेदारी,मान-सम्मान,धन-दौलत सब कुछ डंस लिया था | मेरे घर में निकले संपोलों से यह सँपोला ज्यादा खतरनाक निकला था |

अभी दो वर्ष पहले मैंने उस सँपोले को इति के घर देखा था |इति ने उसे अपना बेटा बनाया हुआ था पर मैंने पहली ही नजर में उन्हें देखकर समझ लिया था कि माँ-बेटे का यह रिश्ता दुनिया को धोखा देने के लिए है |पर मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि इति के मायके व ससुराल के लोग और उसके जवान बच्चे तक उनके माँ-बेटे के रिश्ते को स्वीकार चुके थे |पर इति मुझसे आँखें चुराकर बातें कर रही थी |वह अच्छी तरह मेरी गहरी नजरों को पहचनती थी जो सीधे दिल तक उतर जाती हैं |इन दो सालों में वह मुझसे कटी-कटी रही थी |वह तो इस बार मैं अचानक उसके घर आ धमकी थी |मुझे विचित्र लग रहा था कि वह लड़का इति पर राज कर रहा था |उसे अपने इशारे पर नचा रहा था |इति कोई किशोरी नही, तीन जवान बच्चों की माँ थी |उसके सबसे छोटे बेटे की उम्र का था वो लड़का |उनमें रिश्ता कब,क्यों और किन परिस्थितियों में बना ,मैं नहीं जानती थी |पर मैं इतना जानती हूँ कि कुछ स्त्रियों के लिए चालीस पार की उम्र बेहद खतरनाक होती है |शारीरिक आकर्षण चुक रहा होता है |बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में रम हो चुके होते हैं |पति उसमें पहले -सी रूचि नहीं लेता |घर-गृहस्थी ,नात -रिश्तेदारी की जिम्मेदारियों को निभाते वह खुद को भूल चुकी होती है |वह मानसिक रूप से पूरी तरह अकेली होती है |ऐसे में कोई उसे उसके पुराने रूप में ले जाता है तो वह सब कुछ भूल जाती है |नए प्रेम का आमद उसे गुमराह कर देता है |उसे दीन -दुनिया ,पाप-पुण्य,सही-गलत कुछ भी नहीं दिखता |वह बची हुई ज़िंदगी को भरपूर जी लेना चाहती है |शायद इति के साथ भी ऐसा कुछ ही हुआ हो |

मैं देख रही थी कि इति इन दो वर्षों में पूरी तरह बदल गयी है |उसके कपड़े किशोरी की तरह हो गए हैं लंबे घने बाल छोटे हो चुके हैं |उसने अपने आप को इतना स्लिम कर लिया है कि पीछे से वह किशोरी ही नजर आती है |मैं उसे देखकर चौक गयी थी ....इतना बदलाव ...पर लड़के को देखते ही मैं बदलाव का कारण समझ गयी |मुझे वह उलझी हुई लगी |मुझे आश्चर्य था कि उसके पति और बच्चे तक उसके इस परिवर्तन को नहीं समझ पा रहे हैं |जो मुझे साफ-साफ नजर आ रहा है,उन्हें इसका शक तक नहीं है |सारे नात –रिश्तेदारी में वह उसके साथ जाती है और सभी जगह उन दोनों को माँ बेटे की तरह डील किया जाता है |

हाँ ,वह मेरे घर इस बीच एक बार भी नहीं आई थी |वह जानती थी की मुझसे नहीं छिप पाएगी |मैं उसको व्हाट्सप और फेसबुक पर देखती |एक से एक तस्वीरें ...बिलकुल एक किशोरी –सा पोज |दोनों की एक साथ फोटो भी होती और पूरे परिवार के साथ भी |इति और लड़के की मोबाइल एक- सी होती |उनके कपड़ों तक में जबर्दस्त मैंचिंग |बिलकुल नवदंपति सी रौनक,हाव-भाव |दोनों साथ बुरे भी नहीं लगते थे पर बुरा लगता था वह टाइटिल ,जिसमें माँ-बेटा की उद्घोषणा होती थी |

इति ने हाल ही में बेटी का ब्याह किया था बेटा बाहर पढ़ता है |पति अपनी नौकरी की जिम्मेदारियों में परेशान रहता हैं |ऐसे में सभी सोच रहे थे कि लड़का उसका अकेलापन बांटता है ....उसकी मदद करता है तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं है |कोई यह नहीं समझ पा रहा था शेर का बच्चा भी हाथी के सिर को फोड़ सकता है |मर्द की उम्र चाहे कितनी भी कम क्यों न हो ,होता वह शिकारी ही है |लड़का इति का तन-मन ,धन सबका दोहन कर रहा था |वह उसकी पड़ोस में ही रहता था और उसे योगा सिखाने आता था |उसके बहुत ज्यादा आने-जाने से उसके घर वालों को भी एतराज नहीं था क्योंकि उसके नाश्ते-खाने से लेकर जेब खर्च तक इति देती थी |किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अपनी उम्र से दुगुनी स्त्री से प्रेम भी कर सकता है |इति की बेटी की शादी में जब वह ‘ये दिल संभल जा जरा कि मुहब्बत करने चला है तू –पर इति से मुखातिब होकर डांस करने लगा तभी मुझे शक हुआ |उसके बारे में पूछने पर पता चला कि पड़ोस का ही लड़का है...इति को डांस और योगा सीखाता है |मैं हर एक से उसके बारे में पूछती रही ,उससे भी पूछा| उसकी पढ़ाई,नौकरी व भविष्य के बारे में सवाल किए |वह –हँस-हँसकर गोल-गोल जवाब देता रहा |मेरे पास उसे देखते ही इति सशंकित हो उठी और उसे बहाने से बुला लिया |इति हमेशा से रूपगर्विता रही है |उसका रहन-सहन ,पहनाव-ओढ़ाव भी अल्ट्रा मार्डन रहा है |पैसे की कोई कमी है नहीं |अब तो लगभग सभी जिम्मेदारियों से वह मुक्त भी हो चुकी है ,इसलिए उसने सोचा था कि बची हुई इच्छाओं को भी जी ले |वह कम पढ़ी-लिखी होकर भी इतनी आगे सोच सकती है,जितनी मेरी कवि-कल्पना भी नहीं जा सकती |उसे अपनी गलती का एहसास तक नहीं होता क्योंकि लोग उसका साथ देते हैं |पर वह नहीं जानती कि लोग उसका साथ इसलिए भी देते हैं कि उसका हाथ खुला है और वह सबके लिए कुछ न कुछ करती रहती है |रिश्तेदारों का मुंह तोहफों से बंद रखती है इसलिए भी शायद बहुत कुछ गलत देखकर भी सब चुप रहते हैं |

पर सच कब तक छिपता है ?लड़के ने इति के साथ अपने आपत्तिजनक फोटो,वीडियों,आडियो सब बना लिए थे और अपनी मोबाइल में छिपाकर रखे थे |शायद भविष्य में इति को ब्लैकमेल करने का इरादा हो| |इति ने बड़े अधिकार के साथ उसे अपने घर में ही एक कमरा दे रखा था |कहीं जाती तो घर की चाबियाँ उसे दे जाती |उसकी पर्सनल आलमारी तक वह खोलता |वह ईश्वर इतना विश्वास उस पर करती थी |इधर पूजा-पाठ ,तंत्र-मंत्र भी करने लगी थी |सुबह-शाम घंटों पूजा करती रूद्राक्ष पहनती थी |काला जादू भी शायद लड़का उसे सिखाता था |धर्म की आड़ में अपनी काली करतूत छुपाने की इस देश में पुरानी परंपरा भी है |मैंने कई पुजारी लोगों को चरित्र से गिरा पाया है |वे भगवान की आड़ लेकर संसार को धोखा देते हैं |इति थोड़ा-बहुत नशा भी करती रही है |हो सकता है इधर लड़का उसे ड्रग्स की देता रहा हो ,जिसके नशे में वह सारी मर्यादाएँ भूल गयी और लड़के ने उसकी आवाज और तस्वीरें सुरक्षित कर ली हो |लड़के की बड़ी बहन ने एक दिन लड़के से उसकी मोबाइल छीन ली और वे सारी चीजें देखकर हंगामा कर दिया |इति के भाइयों ,पति ,बेटी सभी को वे आडियो वीडियो भेज दिए ,जिसमें दोनों की अश्लील बात-चीत,भागने की प्लानिंग थी |उनका रिश्ता अब जगजाहिर था |इति भेद खुलते देख घर से भागकर एक दोस्त के यहाँ छिप गयी |कई दिन बाद उसका पता चला |ससुराल से मायके तक हड़कंप मच गया |उसका पति-रो-रोकर हलकान था |इति का फेसबुक अकाउंट बंद करा दिया गया |

वह मुझसे इधर मिली ही नहीं थी |उसको ढूँढने के लिए जब उसके भाइयों ने मुझे फोन किया तब मुझे सारी स्थिति पता चली |

मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वे ही लोग इति को बुरा कह रहे थे , जो अब तक आँखें बंद किए हुए थे | |इस समय इति बेहद मुरझाई हुई है|सिर्फ रोती रहती है |उसने अपनी गलती मान ली है और बार-बार पति से माफी मांग रही है पर कोई भी खुद्दार पति इस गलती के लिए कैसे माफ कर सकता है ?

इधर बहुत प्रयास करके उसके बेटे-बेटियों ने माता-पिता के बीच सब कुछ नार्मल किया है पर मुझे पता है कि अब कुछ भी और कोई भी सामान्य नहीं हो पाएगा |इति को जीवन –भर पति के तानों के बीच जीना होगा |भाइयों के घर वह शर्म से नहीं जा पाएगी |अपने बच्चों को कोई नसीहत नहीं दे पाएगी |उसकी बेटियों को अपने पतियों के सामने हमेशा खुद को सच्चरित्र प्रमाणित करना पड़ेगा |एक की वजह से इति की सारी दुनिया ही प्रभावित हो गयी है |

इति को सँपोले ने डंस लिया है,इसका उसे अब तक विश्वास नहीं है |वह अभी तक मन ही मन उस लड़के को नहीं उसकी बहन और इस समाज को दोषी मान रही है,जिन्होंने उसके प्रेम को बदनाम कर दिया |लड़का भी इतना कुछ होने के बावजूद ताक-झाँक नहीं छोड़ रहा है |कभी-कभी डर लगने लगता है कि सब कुछ सामान्य होने के बाद इति फिर से न बहक जाए |हालांकि ऊपर से ऐसा नहीं लग रहा है पर मेरी कवि कल्पना कह रही है कि इति के लिए कोई भी इति नहीं है |वैसे भी किशोर उम्र और बुढ़ापे दोनों का प्रेम बहुत खतरनाक होता है |