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मे और महाराज - ( जाल_1) 40

" मेरे महाराज आपने हमें बुलाया।" सिराज ने सर झुका कर अपने पिता को नमस्कार किया।

" खड़े रहो बेटे। आज महाराज ने राजकुमार को नहीं। एक पिता ने अपने पुत्र को बुलाया है।" उसके पिता ने अपने हाथों से उसको खड़े रहने का इशारा किया।

" जैसा आप कहें पिताश्री।" सिराज अभी भी अपनी गर्दन झुकाए खड़ा था।

" आप इतने बड़े हो गए राजकुमार की अब अपने आंसुओं को अपने ही पिता से छुपा रहे हैं।" उसके पिता ने पूछा।

" नहीं पिता श्री। आप हमारे ही नहीं इस समस्त दुनिया के पिता है। आप पर पहले से ही जिम्मेदारियों का बोझ है यह नादान राजकुमार अपनी जिम्मेदारियां आप पर डालकर मुक्त नहीं होना चाहता।" सिराज अभी भी गर्दन झुकाए अपने पिता के सामने खड़ा था।

" आप वाकई बड़े हो गए हैं। जिसे आप हमारी जिम्मेदारियों का बोझ समझ रहे हैं। वह पिता का कर्तव्य है और हम अपने कर्तव्य से कभी पीछे नहीं हटेंगे। राजकुमारी शायरा के गुनहगारों को सजा मिलेगी।" उसके पिता ने उसे आश्वासन दिया।

सिराज तुरंत अपने घुटनों के बल बैठ गया। " पिताश्री हमारी राजकुमारी। 2 दिनों में 3 बार उन पर हमला हुआ। जिसमें से एक में हमलावर कामयाब हुए। राज वैद्य जी ने आपको बताया ही होगा।" सिराज ने अपने पिता से पूछा।

" हां हां। हमें पता चला। हम भले ही आपसे दूर रहते हैं। लेकिन हमारी अपने हर बच्चे पर नजर है। आपको किसी पर शक है ?" सिराज के पिता ने पूछा।

" नहीं पिताजी । फिलहाल हम शायरा के स्वास्थ्य को लेकर इतने चिंतित हैं कि, हमें कुछ सूझ नहीं रहा। अगर उन्हें कुछ हो गया तो हम भी जिंदा नहीं रह पाएंगे पिताजी।" सिराज ने आंखों में आंसू लाते हुए कहा।

" फिकर मत कीजिए। शायरा राज परिवार की सदस्य है और राज परिवार से उलझने का दंड हर किसी को मिलेगा।" अपने पिता से आश्वासन पाकर सिराज वापस अपने महल लौट गया।

दूसरे दिन सुबह उसने सारी बातें समायरा को बताई।

" मैं अभी भी समझ नहीं पा रही हूं। तुम खुद इसकी जांच पड़ताल क्यों नहीं करते ?" समायरा ने पूछा। " मतलब जाकर सबूत इकट्ठा करो और महाराज के सामने रख दो। तब तो वह गुनहगार को सजा देंगे ना ?"

" आप राजनीति नहीं समझती ।" सिराज बिस्तर से उठा। उसने अपना कोट पहना। " अगर हम जाकर पिताश्री से कहेंगे कि बड़े राजकुमार यह सब कर रहे हैं। या फिर आप के पिता दीवान यह सब कर रहे हैं। तो उन्हें लगेगा कि हम अपनी गद्दी के लिए उन दोनों को फंसा रहे हैं। जब पिताजी को खुद से उन दोनों के रचाए कट कारस्थानों के बारे में पता चलेगा। तो समझ जाएंगे कि कौन सही है और कौन गलत ? और भूलिएगा मत वह महाराज है इस रियासत के। वह जरूर उन हत्यारों को ढूंढ निकालेंगे।" सिराज ने पूरे कपड़े पहने। अपने आपको आईने में निहारा। उसके गले के नीचे उसकी प्रेमिका का दिया हुआ रात का तोहफा हल्के लाल रंग के निशान के रूप में चमक रहा था। उसने अपने हाथ से उस निशान को छुआ। " आप जल्दी कपड़े पहन लीजिए। उससे पहले कि हमारा मन फिर बदल जाए।"

उसकी बेशर्मी भरी बातें सुन समायरा शर्मा गई। समायरा ने अपने कपड़े समेटे। उसने अपनी चोली पहनी और आंखों से सिराज को चोली को बंद करने का इशारा किया। सिराज उसकी तरफ आगे बढ़ा ही था कि दरवाजे पर खटखट हुई।
" महाराज बड़े राजकुमार और राजकुमारी शायरा की बड़ी बहन मिलने आए हैं।" रिहान ने बाहर से ही संदेशा सुनाया।

इससे पहले समायरा कोई जवाब दे पाए सिराज ने उसका मुंह अपने हाथ से ढक लिया। " उन्हें हमारी अतिथी गृह में बिठांइए। हम अभी आते हैं।"

जैसे ही उसने समायरा के मुंह से हाथ हटाया समायरा उस पर गुस्सा हो गई। " मुझे नहीं मिलना किसी से। तुमने हां क्यों कहा ?"

" आपको उनसे नहीं मिलना। तो वह नहीं मिलेंगे। लेकिन मुझे उनसे मिलना पड़ेगा। मुझे जानना है कि आखिर बड़े भाई किस फिराक में है।" सिराज ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की।

" पक्का वो लोग यहां नहीं आएंगे।" समायरा ने फिर से सिराज से पूछा।

" जैसा मेरी राजकुमारी चाहेगी। इस महल में वही होगा सिराज ने समायारा के सर पर हाथ रखते हुए कहा। " अब हमें यहां से जाने की इजाजत है ?"

" जाओ और जल्दी आना।" समायरा की बचकानी हरकतें देखकर सिराज को हंसी आ रही थी और प्यार भी। लेकिन फिर भी उसे फिलहाल इसे अकेला छोड़ जाना पड़ेगा।
अतिथि गृह में राजकुमार अमन अपनी पत्नी के साथ बेचैन बैठे थे।

" आपको अपना वादा याद है ना राजकुमार?" उनकी बीवी ने उनसे पूछा।

" कितनी बार याद दिलाएंगी आप ?" राजकुमार अमन को अपनी बीवी से किसी भी तरह की कोई भी बात नहीं करनी थी। फिलहाल उनका सारा ध्यान अपनी प्रेमिका की तबीयत की तरफ था।

" आपकी बेचैनी कुछ अलग बता रही है।" शायरा की बहनने राजकुमार अमन की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए कहा।

" आप से किसी ने पूछा ?" राजकुमार अमन का यही रूखापन था जिसकी वजह से शायरा की बड़ी बहन उन से और ज्यादा नफरत करने लगी थी।

उन दोनों की तकरार के बीच सिराज ने अपने अतिथि गृह में कदम रखा।

" अहो भाग्य हमारे। जो आज भाई और भाभी ने साथ में हमारे महल में कदम रखा।" सिराज ने बैठते हुए कहा

" हम बस यहां से गुजर रहे थे। तो सोचा क्यों ना शायरा से आखरी बार मिलते चले।" शायरा की बड़ी बहन ने झूठी मुस्कान दिखाते हुए कहा।

" मुझे माफ कर दीजिएगा भाभी लेकिन शायरा फिलहाल किसी से नहीं मिल सकती।" सिराज ने अपनी बात साफ कर दी।

" हमें पिताश्री का संदेशा मिला सिराज। अब कैसी है राजकुमारी शायरा की तबीयत ?" राजकुमार अमन ने आखिरकार वह सवाल पूछा। जिसके लिए वह तड़प रहे थे।

" फिलहाल जिंदा है। आपके लिए इतना ही जानना काफी होगा भाई।" सिराज के मुंह से यह बात सुन शायरा की बड़ी बहन को काफी तकलीफ हुई।

लेकिन सिराज का चेहरा देख उसे पता चल गया था कि, शायरा के बचने की उम्मीद काफी कम है। राज वैद्य से भी उसने खुद बात की थी। उन्होंने भी उसे यही बताया था कि शायरा की बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ऐसे में सिराज के मुंह से वह बात सुन उसके चेहरे पर मुस्कान उसके छा गई। जो कि उसने पल भर में हटा दी और उदास होने का नाटक किया। लेकिन सिराज की तेज आंखों ने उस मुस्कान को पहले ही पकड़ लिया था।

बड़ी राजकुमारी ने अपने आंखों में झूठे आंसू भर लिए। " मेरी बहन की बीमारी की बात सुनकर तो मुझसे रहा ही नहीं गया राजकुमार।और आप यहां आज मुझे बता रहे हैं की एक बड़ी बहन खुद अपनी छोटी बहन से भी मिल नहीं सकती।"

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