मैं गांधारी नहीं Ratna Pandey द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं गांधारी नहीं

सूरज ढल रहा था अंधेरा पसरने की तैयारी में था। गांव की वह लड़कियां इसी अंधेरे का ही इंतज़ार करती हैं, जिनके घरों में शौचालय नहीं होते। गांव की एक ऐसी ही लड़की हाथ में लोटा लेकर, सूनी जगह की तरफ जा रही थी, जहां कोई आता-जाता ना हो ।


ठाकुर रणवीर प्रताप अपनी ऊंची हवेली के झरोखे में खड़े होकर बाहर की तरफ देख रहे थे। ठाकुर जी अपने गांव के सबसे अधिक शक्तिशाली धनाढ्य और बहुत बड़ी हस्ती थे। उनका बेटा रणजीत अपनी मोटर साइकिल पर सवार उसी राह से निकल रहा था। सूने रास्ते पर लड़की को देख कर उसने मौके का फायदा उठाना चाहा और लड़की के चारों तरफ बाइक गोल गोल घुमाने लगा। लड़की निकल कर भागना चाह रही थी, लेकिन रणजीत ने बाइक रोक कर उसका हाथ पकड़ लिया और उसके साथ ज़बरदस्ती करने लगा।


ठाकुर रणवीर प्रताप ऊपर से देख रहे थे। अपने पुत्र की ऐसी हरकत देख कर वह बुत की तरह खड़े रहे, उनकी पत्नी ठकुराइन कब उनके पीछे आकर खड़ी हो गई, उन्हें पता ही नहीं चला।
रणजीत अपनी हद को पार करे उससे पहले साइकिल पर एक नौजवान लड़का वहां से गुज़रा। एक लड़की को इस तरह मुसीबत में देखकर अपनी साइकिल ज़मीन पर पटक कर वह रणजीत से भिड़ गया। दोनों में हाथापाई होने लगी, लड़की मौका मिलते ही वहां से भाग निकली और रोते हुए अपने घर पहुंची। उसे इस हालत में देखकर उसका भाई आग बबूला हो गया। उसने सीधे पंचायत में जाकर शिकायत दर्ज़ करवाई और तुरंत कार्यवाही करने की मांग रखी।


इधर दोनों लड़कों का झगड़ा काफी बढ़ गया। शोर की आवाज़ से कुछ लोग वहां इकट्ठे हो गए। तभी रणजीत ने बाजी पलट दी और सब को बताया कि यह लड़का, गांव की एक लड़की के साथ बदसलूकी कर रहा था। इसीलिए मैंने उस लड़की को बचाने की कोशिश की। वह लड़का सभी से कहने लगा रणजीत झूठ बोल रहा है, लड़की के साथ छेड़छाड़ यह कर रहा था। गांव के लोग रणवीर प्रताप के बेटे को देखकर डर गए थे और शक उस नौजवान लड़के पर ही कर रहे थे। तभी एक बुजुर्ग ने कहा चलो रणजीत साहब पंचायत चलकर इसे सज़ा दिलवाते हैं। रणजीत को अपनी हैसियत का बहुत गुमान था, वह जानता था उसे कुछ नहीं होने वाला।


तुरंत पंचायत की आपातकालीन बैठक बुलाई गई, सभी पंचायत के लिए पहुंच गए। उस लड़की के भाई ने अपनी बहन को वहां लाना ठीक नहीं समझा। तभी एक दूसरे पर आरोप लगाने का सिलसिला शुरु हो गया। रणजीत बहुत सफाई से झूठ बोल रहा था और सभी रणवीर प्रताप के बेटे को बेगुनाह समझ कर दूसरे लड़के पर ही शक कर रहे थे। तभी अचानक ठाकुर जी का नौकर उन्हें बुलाने हवेली पहुंच गया। "ठाकुर जी", यह आवाज़ जैसे ही रणवीर प्रताप के कानों में आई, वह चौंक गए और जल्दी से नीचे आए।


ठाकुर जी का नौकर रामा ने उन्हें देखते ही बोल उठा , "जल्दी चलिए रणजीत भैया को पंचायत में ले गए हैं।"


ठाकुर और ठकुराइन तुरंत ही पंचायत में पहुंच गए। वहां जाते से ठाकुर रणवीर प्रताप ने गुस्से में कहा, "यह सब क्या हो रहा है ? इतनी रात को मेरे बेटे को यहां क्यों लाए हो ? क्या बात है ?"


ठाकुर को सारी घटना से अवगत कराया गया। ठाकुर ने अपनी आँखों से सब कुछ देखा था, लेकिन पुत्र मोह में वह ऐसा प्रदर्शित कर रहे थे, मानो उन्हें कुछ नहीं पता।


"नहीं, नहीं मेरा बेटा ऐसा कर ही नहीं सकता, इस नालायक लड़के को दंड दिया जाए," ठाकुर रणवीर प्रताप नें चिल्लाते हुए कहा।


इससे पहले कि मुखिया कुछ बोले ठकुराइन बीच में ही बोल पड़ी, "रुक जाओ आज का फैसला मैं करूंगी, ठाकुर जी आप धृतराष्ट्र हो सकते हैं किंतु मैं गांधारी नहीं, जो नारी की इज़्ज़त पर हाथ डालने वाले बेटे को वज्र का बना दे और उसे बचाने का हर मुमकिन प्रयत्न करे। मैं आज की नारी हूं, उस युग में द्रौपदी का चीरहरण, एक नारी मां होने के कारण भूल गई थी। लेकिन मैं पहले नारी हूं, उसके बाद एक मां। नारी का अपमान करने वाले को मैं कभी माफ़ नहीं करूंगी चाहे वह मेरा बेटा ही क्यों ना हो। मुखिया यहां दोषी रणजीत है और यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा है, आप उसे सज़ा सुना दें ।"


-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक