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दही और छांछ

श्री मोहन चैधरी जी अपने गांव के बडे पंण्डित थे और इसी पंण्डित तबके के कारण लोगों में उनकी एक अलग और ऊंची छवी थी, गांव के सब जाति के लोग उनकी बहुत ही इज्जत करते थे, किसी भी मामले में उनकी राय ली जाने की प्रथा गांव में लम्बे समय से थी। चैधरी जी के गांव में हरिदास का लडका रामदास, शहर से पढाई कर वापस लौटा था, सुबह -सुबह की बात थी, रामदास ने अपने पिता हरिदास जी को तैयार होते देखा तो उसने उत्सुक्तावश पूछ लिया कि बापू सुबह तैयार होकर कहां? तो पिता हरिदास ने उत्तर दिया कि आज गांव में चैपाल है श्री मोहन चैधरी साहब जी आयेंगे, तो रामदास ने कहा कि बापू मैं भी चलता हूं, दोनों चैपाल में पहंुच गये। चैपाल में ऊंची जाति और नीची जाति के संबंध में एक निर्णय पर विचार किया जा रहा था, बात इतनी सी थी कि नीची जाति वालों के यहां छांछ और दही नही हो जाती थी और ऊंची जाति वाले, उनको काम के बदले कभी भी छांछ और दही नहीं देते थे तो इस संबंध में श्री मोहन चैधरी जी से विनती की गयी कि कभी कबार नीची जाति वालों को भी छांछ और दही काम के बदले में दे दी जाये। इस पर सबकी बातों को सुनते हुए श्री हरिदास जी ने कहा कि देखो हरिजन जो हैं उनको पुराने समय में अधिक काम कराते आये हैं, चैसे चाहा उनका शोषण किया गया और उनको जाति सूचक शब्दों से भी कई बार पुकारा गया जैसे डूम, डुमका, चमार आदि ऐसे में अब जब सरकार द्वारा सब कुछ समान कर दिया है तो क्यों न हम भी अपना दिल बड़ा करके इनको छांछ और दही कभी कबार दे दें, तो इस पर शहर से आया रामदास को क्रोध आ गया और बोला कि आपने इतनी बडी चैपाल में हमको डूम, डुमका, चमार कैसे बोला और क्यों बोला? क्या आपको पता नहीं है कि हम आपके खिलाफ इस बात के लिए मुकदमा दर्ज करा सकते हैं, इस पर श्री चैधरी जी को भी क्रोध आ गया और बोले ओ मूर्ख ! यहां पर कुछ अच्छा करने के लिए चैपाल बुलाई गयी है न कि फालतू की बहस करने के लिए, किन्तु पढ़ा लिखा रामदास कहां मानने वाला था, उसने नजदीक के थाने मंे जाकर के श्री चैधरी जी के खिलाफ जाति सूचक शब्द कहने के लिए रपट लिखवा दी।
दिन सोमवार था, पहला मुकदमा रामदास बनाम, मोहन चैधरी था, मुकदमें में जज साहब भी रामदास की ही जाति के थे, तो उन्होंने ऊंची आवाज में रामदास से कहा कि क्या हुआ था, तो रामदास ने कहा कि इन्होंने भरी सभी में हमको एक बार डूम, डुमका, चमार कहा तो इस पर जज साहब से श्री माहन चैधरी जी से पूछा कि श्रीमान मोहन चैधरी जी क्या आपके द्वारा श्री रामदास जी को डूम, डुमका, चमार कहा गया ? तो इस पर चैधरी जी खामोश रहे, पुनः जज साहब द्वारा श्री चैधरी जी से पूछा कि क्या आपके द्वारा श्री रामदास जी को डूम, डुमका, चमार कहा गया ? पुनः चैधरी जी ने जवाब नहीं दिया, इस पर जज साहब ने क्रोध में आकर कहा कि मैं तीसरी और अंतिम बार पूछता हूं कि क्या आपके द्वारा श्री रामदास जी को डूम, डुमका, चमार कहा गया ? तोे श्री मोहन चैधरी जी द्वारा बडे ही विनम्र भाव से हाथ जोडकर कहा कि मा0 न्यायाधीश महोदय जी मेरे द्वारा तो सभा में मात्र एक बार ही डूम, डुमका, चमार कहा गया किन्तु आपके द्वारा भरी अदालत में कुल तीन बार डूम, डुमका, चमार कहा गया, तो जो सजा मुझको मिलनी चाहिए, उसकी तीन गुना सजा आपको भी मिलनी चाहिए................................................................................यह सब सुन जज साहब और पूरा परिसर सन्नाटे में विलीन हो गया, जज साहब द्वारा चैधरी जी से एक माफीनामा लिखने हेतु कहा और भविष्य के लिए सचेत किया। साथ ही रामदास के पिता श्री हरिदास द्वारा भी व्यक्तिगत रूप से चैधरी जी के घर जाकर उनसे माफी मांगी तथा आते समय चैधरी जी के यहां से छंाछ और दही लेता आया। अगली सुबह दोनों हरिदास और रामदास ने दही के साथ रोटी खाई....... रामदास बोला बापू दही बहुत ही स्वादिष्ट है।

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