मित्रता और पारिवारिक मामले धृतराष्ट्र सुमन द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मित्रता और पारिवारिक मामले

कृतिदेव यहां अगर आप आस्तिक हैं तो यह सत्य घटना आधारित लेख आपको आवश्यक रूप से छू सकता है, मगर यदि आप नास्तिक हैं और ईश्वर में आस्था कम रखते हैं तो भी यह लेख आपके जीवन में आगे आने वाली समान पारिस्थितियों में कुछ न कुछ सीख और फैसले लेने में आवश्यक होगा, तो शुरू करते हैं,
मैं, अनमोल सिंह एक निजी कम्पनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हूं सब कुछ बहुत ही बढ़िया चल रहा है और जल्द ही मेरी तनख्वाह भी बढ़ाने हेतु मेरे उच्च अधिकारी द्वारा मुझे आश्वासन दिया गया।
कुछ मैं अब अपने बारे में बताता हूं, मैं एक हंसमुख और खुशमिजाज और ईश्वर में पूर्ण आस्था रखने वाला दिलेर किस्म का व्यक्ति हूं, जो कि दोस्तों के लिए कुछ भी कर गुजरने और दूसरों के बुरे वक्त में काम आने में विश्वास रखता हूं, मुझे स्वयं को अच्छा लगता है कि मैं किसी के काम आऊं, इसलिए कई बार मैं कुछ गलत जगह फंस जाता हूं, एक ऐसी ही कहानी आप सबके लिए लेकर आया हू
उस दिन शनिवार था, मैं सुबह-सुबह तैयार हुआ और मैंने कहीं बाहर घूमने जाने के बारे में सोचा, तभी अचानक मेरा मोबाईल बजा, उस पर मुझे एक अज्ञात नंबर दिखा, मैंने उठा लिया, वहां से आवाज आई हैलो, मैं पंकज का मित्र आयुष बोल रहा हूं, कैसे हो
मैं- भाई मैं ठीक हूं भाई, बताओ कैसे याद किया?
आयुष- भाई जी, पंकज ने कई बार बताया था कि आपको कानून वगैरह की काफी जानकारी है, और आप काफी अच्छे और मदद करने वाले स्वभाव के हो।
मैं- (हंसते हुए) हां तो बताओ क्या हुआ?
आयुष- भाई जी, असल में कल रात को मेरा मेरी मौसी के साथ मेरे मकान को लेकर बडा झगडा हो गया, मेरी मौसी ने मुझे बाजार में दो थप्पड मारे और फिर मैंने भी मेरी मौसी को धक्का मार दिया, जब मैं घर आया तो मेरी पत्नी ने मुझे कहा कि आप अपनी मौसी पर पुलिस में मारपीट करने हेतु तहरीर दे दो, तो कल रात को मैंने अपनी मौसी के खिलाफ एक तहरीर पुलिस में दी, तो आज पुलिस ने मुझे बुलाया है थाने में, क्योंकि मेरे कोई रिश्तेदार नहीं हैं जो मेरे साथ आयें या मेरा कोई अन्य मित्र नहीं है, जो हैं वह बाहर हैं, अब आपका ही सहारा है,
मैं - (कुछ सोचने पर) अच्छा तो आप क्या चाहते हो?
आयुष- आप हमारे साथ चलते तो थोडा हिम्मत मिलती, मैं और मेरी पत्नी जा रहे हैं, पत्नी भी डरी हुई है, हम कभी थाने गये नहीं तो आपसे अनुरोध है कि आप थोडा समय निकालते और चलते तो ठीक रहता
मैं - ठीक है आप लोग आ जाओ,
कुछ देर बाद आयुष और उसकी पत्नी कार में आये और मुझे मेरे घर से कार में बिठाकर थाने की ओर चल दिये, रास्ते में मैनें उनसे पूछा कि क्या मामला है तो आयुष की पत्नी ने आयुष की बात को काटते हुए कहा कि आयुष के पिता जी घरजमाईं थे, जिनका कि जब आयुष दस वर्ष का था तो निधन हो गया था, आयुष की माता जी मानसिक रूप से बीमार रहती हैं तथा बोलने सुनने में सक्षम नहीं हैं, माता जी को कोई भी आसानी से बरगला फुसला लेता है और आयुष की बहन की स्थिति भी आयुष की माता जी की ही तरह बताते हुए उनके द्वारा कहा गया कि कई समय से आयुष की मौसी द्वारा आयुष की मां को अपने साथ रखा जा रहा हैं। आयुष की मौसी उनके मकान के आधे हिस्से पर कब्जा करना चाहती है तथा आयुष की माता जी की पैंशन का पैसा कब्जाना चाहती है, जिस पर लेकर उनकी लडाई है। इस बीच मैंने जिज्ञासा वश पूछ लिया कि क्या आयुष की माता जी और बहन आयुष के पक्ष में हैं तो आयुष ने कहा हां, हां, मेरी मां और बहन तो मेरे पक्ष में हैं, मेरा मूल विवाद मेरी मौसी के साथ है, वह हमारे परिवार के बीच में पड़कर हमको परेशान करती है।
यहां पर यह बता दूं कि आयुष एक बहुत ही पढ़ा लिखा और सरकारी कम्पनी में उच्च पद पर कार्यरत है, जिसका वेतन लगभग दो लाख रूपये महीना है, उसने हाल ही में एक जगह सत्तर लाख का फ्लेट भी लिया है, जिस पर अभी काम चल रहा है।
कुछ ही देर में हम थाने पहुंचे, तो थानेदार से मैं मिला मैंने उनको कहा कि इनका कुछ मामला हो गया है, जरा उस पर कुछ करिये तो, थानेदार साहब द्वारा एक कान्स्टेबल साहब को बुलाकर कहा कि इनका मामला देखो क्या है, तो कान्स्टेबल साहब द्वारा आयुष से पूछा कि क्या मसला है तो आयुष ने पूरी बात बतायी तो कान्स्टेबल साहब द्वारा कहा गया कि आप गलत थाने में आ गये हो, कानूनन आप दोनों पक्ष जहां रहते हो वहां के अंतर्गत थाने में तहरीर दीजिये, किन्तु आयुष ने कहा कि हमारा झगडा इस क्षेत्र में ही हुआ है तो मैंने आयुष को कहा कि कान्स्टेबल साहब बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, तुम्हारा झगडा तो सडक का झगडा नहीं है बल्कि पारिवारिक झगडा है इसके लिए हमको अपने संबंधित थाने में जाना चाहिए, इस पर मैंने, आयुष ने कान्स्टेबल साहब को सहमति दी कि हां हम अपने क्षेत्र के थाने में जाते हैं, इस पर कान्स्टेबल, थानेदार साहब से मिलकर आया और कहने लगा कि आप रूको थानेदार साहब कह रहे हैं कि द्वितीय पक्ष को बुलाओ और यहीं निपटाओ इस केस को।
ततपश्चात एक कान्स्टेबल द्वितीय पक्ष अर्थात आयुष की मौसी के घर उनको बुलाने हेतु गया।
कुछ समय बाद आयुष की मौसी के साथ लगभग 4 बच्चे, उन बच्चों के 4-5 मित्रगण, और उसकी मौसी जो कि लगभग अस्सी वर्ष की बूढी महिला थी के साथ आयुष की माता जी और बहन भी आये वह लगभग दस से अधिक लोग आये और कहने लगे कि आयुष को तो अब धूल चटा देंगे, ऐसी की तैसी कर देंगे, उनके चेहने पर न तो खौफ था न ही पुलिस का डर, रहा भी हो तो उन्होंने वह अपनी मुस्कुराहट के पीछे छिपा दिया था।

थानेदार ने सबको बाहर बैठने के लिए कहा तथा मात्र आयुष, उसकी पत्नी और द्वितीय पक्ष आयुष की मौसी को अंदर बुलाया, मैं कमरे के बाहर खडा रहा और सुनता रहा कि अंदर क्या हो रहा है अंदर की आवाज साफ बाहर आ रही थी। थानेदार साहब से जैसे ही कुछ कहना शुरू किया, उनकी बात को काटते हुए आयुष की मौसी ने कहा कि यह अपनी मां का ख्याल नहीं रखते हैं, मैं अपनी बहन को पाल रही हू, यह दोनों पति पत्नी मेरी बहन को मारते हैं, उसे खाना नहीं देते हैं, इतने में थानेदार ने आयुष की मां और बहन को बुलाया तो आयुष की मां और बहन एक साथ अंदर जाकर एक साथ ही बोल उठे कि हां हां यह हमको मारते हैं, खाना नहीं देते हैं, हम इसके साथ नहीं रहना चाहते हैं,
यह सब सुनकर तो मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गयी, इतना पढ़ा लिखा लडका, और अपनी विधवा मां और बहन के साथ ऐसा करता है, मैं, वहां से चुपचाप पैदल-पैदल घर की ओर निकल पडा, मैं एक किलोमिटर से अधिक निकल ही गया था यह सोचते-सोचते कि आज गलत जगह आ गया हूं कि अचानक आयुष का कॉल आया कि प्लीज थाने में अंदर आ जाओ मेरे ऊपर कार्यवाही हो रही है, तो मैंने कहा कि भाई सही तो है तू गलत है तो तेरे ऊपर कार्यवाही होनी चाहिए। उसने कहा कि प्लीज एक बार आ जाओ तुम, फिर मैंने सोचा कि अब जाना ठीक नहीं है किन्तु मेरे दिमाग ने कहा कि आ रखा है तो साथ में रह ही ले, तो मेरे कदम वापस थाने की तरफ चल दिये
जैसे ही मैं थाने के गेट पर पहुंचा मैंने देखा कि उसकी मौसी को अंदर हार्ट अटैक पड गया और वह बेहोश हो गयी, थानेदार ने बाहर रिक्शा किया और वह सब अस्पताल चले गये, बाहर ही थानेदार ने मेरी तरफ देखा और कहा कि तुम बहुत गलत लोग हो यार, शर्म से मैं उनसे नजर नहीं मिला पाया, दबे शब्दों में मैंने कहा मुझे माफ कर दो मुझे नहीं पता था कि मामला इतना गम्भीर है, इतने में थानेदार मुझे नजरअंदाज करते हुए थाने में अंदर चला गया।
आयुष और उसकी पत्नी बाहर आये, दोनों मुस्कुराते हुए बोले कि बुढिया नाटक कर रही है, उसको दो अटैक पहले भी आ चुके हैं, यह ऐसे ही नाटक करती रहती है, मर गयी तो यह समस्या जड से ही खत्म हो जायेगी। इतने में आयुष की पत्नी ने कहा कि तुम देख कर आओ क्या हुआ तब तक मैं थानेदार से बात करती हूं। आयुष और मैं थाने से बाहर निकले तो हमने सामने आयुष की मां और बहन को सडक पर देखा, आयुष ने गाडी रोककर कहा कि बैठ जाओ, दोनों बैठ गये और कहने लगे कि वह मर गई। हम अस्पताल गये, जहां आयुष को यह स्पष्ट हुआ कि मौसी मर गयी, आयुष और मैं दोनों घबरा गये, वह रोने लगा और मुझे कहने लगा कि यार जब मेरे पापा गुजर गये थे तो बचपन में मेरी मौसी ने ही हमको पालापोसा था। अगले ही पल वह यह भी कहने लगा कि अब सब ठीक हो गया है बुढिया ने बहुत परेशान करके रखा हुआ था।
मैं भी बहुत डर गया और मैंने उसको कहा कि भाई तू कहीं पर भी मेरा नाम मत लेना प्लीज, और मैं घर जा रहा हूं, तू अपनी पत्नी को लेकर आजा थाने से, वह मुझे साथ रूकने के लिए जिद करने लगा किन्तु मामला इतना अधिक गम्भीर हो गया था कि मेरा दिल और दिमाग रूकने की हिम्मत नहीं दे रहा था, मैंने तुरन्त ओला की और मैं घर की ओर आ गया । डरते डरते मेरी हालत खराब हो गयी।

लगभग रात के आठ बजे थे कि आयुष का मुझे फोन आया कहने लगा कि मौसी गुजर गयी है, उनकी बॉडी घर के बाहर रखी हुई है, कल जलायेंगे तो मैं भी जाऊंगा, मौसी के परिवारवालों ने कोई पुलिस तहरीर नहीं दी है और न ही किसी प्रकार का कोई केस वगैरह दर्ज कराया है। यह सुन मैंने थोडी राहत की सांस ली।
बात को एक हफ्ता गुजर गया, आयुष भी अपनी नौकरी पर लौट गया, इस बीच मेरी उससे फोन पर बात हुई तो मैंने उसे कहा कि यार तेरी तो अच्छी खासी नौकरी है घर भी दो दो हो गये हैं तो तू एक घर दे दे अपनी मां को और एक काम वाली लगा दे, इस उम्र में तू अपनी माता को परेशान कर रहा हैं वह अच्छी बात नहीं है, आगे तेरी भी औलाद होगी, जो बोयेगा वही भविष्य में काटना पडेगा तो अपने कर्म अच्छे रख,अपनी मां के लिए जो कर सकता है वह कर और उन्हें कोई परेशानी मत होने दे। यह बात हो जाने के बाद मैंने आयुष का नंबर ब्लॉक कर दिया।

अब इस घटना से जुडने के तुरंत बाद मेरे दिल बदल गये, मेरे साथ बुरा ही बुरा होने लगा, हर जगह से बुरी खबर, अगल दिन मैं ऑफिस गया तो मेरी बॉस से एक फाईल पर से बडी बहस हो गयी उन्होंने मुझे मैनेजर से असिस्टेंट मैनेजर कर दिया, जो मेरी तनख्वाह बढ़नी थी, वह भी घट गयी। कुछ दिन बाद मैं अपनी स्कूटी से घर आ रहा था तो एक कार वाले ने मुझे इतनी जोर से टक्कर मारी कि गाडी चूर चूर हो गयी, मुझे हल्की-फुल्की चोटें आयीं । इसी बीच एक दिन मैं बैक से दस हजार रूपये लेक आ रहा था, वह पता नहीं रास्ते में कहां गिर गये। साथ ही कई रातों तक मुझे इस वजह से नींद नहीं आयी कि मैं किसी की मृत्यु के दोष में सम्मिलित हुआ हूं, आज भी जब मैं उनके घर के आस पास से गुजरता हूं तो माफी में अपना सर झुका लेता हूं और ईश्वर से गुजारिश करता हूं कि उस दिन उस प्रकरण से जुडने के लिए मुझे माफ करना।
आप सब से यह अनुरोध है कि कभी भी अनजान, मित्र के मित्र और किसी के भी पारिवारिक मामलों में न जायें और न ही पडें। ईश्वर सबको सुबुद्धि दे और आयुष की मौसी को स्वर्ग नसीब करें और उनका दिल इतना बडा करें कि वह हम सकबो माफ करें।
समाप्त