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सोशल मीडिया से लाभ-हानि

बहुत पहले ही हमारे ऋषि-मुनियों ने कह दिया था कि– अति सर्वदा वर्जयेत! बात सोलह आने सही है। कोई भी कार्य यदि ‘अति’ को ध्यान में रखकर किया जाता है तो उसका दुष्परिणाम निकलना स्वाभाविक ही होता है। अभी यह बहस चल पड़ी है कि सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव हमारे युवाओं पर पड़ रहा है। युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य की चिंता इन सोशल मीडिया कंपनियों को नहीं है। वैसे केवल हानि ही है ऐसी बात भी नहीं है। इसके सकारात्मक तथा नकारात्मक पक्ष दोनों है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल किस प्रकार करते हैं? सोशल मीडिया का इस्तेमाल संपर्क और सम्बन्ध को बनाए रखने के लिए किया जाता है। किशोरों और युवाओं को अपनेपन तथा स्वीकृति की एक भावना मिलती है। घर के लोग तो मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल पर नजर रखते हैं। लेकिन युवा वर्ग अपने दोस्तों से जुड़े रहने के लिए, अपने मन की बात करने के लिए अधिक इस्तेमाल करते हैं। कोरोना के कारण जहाँ विद्यालय की कक्षाओं का संचालन ऑनलाइन होने लगा तब तो माता-पिता, अभिभावकों का चिंतित होना स्वाभाविक ही था। बच्चे दिन के 14-16 घंटे ऑनलाइन ही रहने लगे। कोरोना महामारी के समय एकांतवास में सोशल मीडिया ने लोगों को बहुत सहारा दिया। इससे बहुतों को सकारात्मक प्रेरणा भी प्राप्त हुई। युवाओं को नई एवं स्वस्थ आदतें विकसित करने के लिये प्रेरित किया गया। युवा अपनी पहचान को संपुष्ट करने और समाज में अपना स्थान पाने का प्रयास करने लगे। सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करते वक्त युवा अपने को ‘बेहतर’ महसूस करते हैं। विशेषज्ञ और शोधकर्त्ता सोशल मीडिया का उपयोग प्रायः डेटा एकत्र करने के लिये करते हैं, जो उनके अनुसंधान में योगदान करता है। ज्ञान और पहुँच का विस्तार होता है। युवाओं को अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है। छात्रों को अपनी रचनात्मकता और विचारों को तटस्थ दर्शकों के साथ साझा करने और एक ईमानदार प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिये एक मंच मिलता है। युवाओं को उनके आत्मविश्वास और रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद करता है। अब यदि इसके नकारात्मक प्रभाव की बात करें तो देखते हैं कि सोशल मीडिया के ‘अति’ उपयोग के कारण अवसाद बढ़ते जा रहे हैं। इसका निरंतर इस्तेमाल तुलनात्मकता की ओर ले जाता है। इससे अवसाद तथा चिंता में वृद्धि स्वाभाविक है। युवा वर्ग आभासी दुनिया में जीता है इससे शारीरिक गतिविधियों में कमी आ जाती है। नींद की समस्या उत्पन्न होती है। नींद नहीं आने या कम आने से अन्य प्रकार की शारीरिक व्याधियों में युवा वर्ग फंसते चला जाता है। एक बार यदि व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसे उबरने में काफी समय लगता है। साथ ही वास्तविक दुनिया से कटे रहने के कारण युवाओं में हुनर या कौशल का विकास अवरुद्ध हो जाता है। युवा वर्ग मादक पदार्थों आदि के सेवन जैसे अनैतिक कार्यों में संलग्न हो जाता है। अतः अब आगे क्या किया जाए? यह प्रश्न आता है। सोशल मीडिया का नियंत्रण आवश्यक है। युवाओं में उत्तरदायित्व की भावना का विकास कर उन्हें प्रेरित करना एक उपाय हो सकता है। युवा वर्ग उनके लिए अनुपयुक्त सामग्री से दूर रहे। नैतिकता का पाठ आज के समय की मांग है। सोशल मीडिया से दूर रखने के लिए हतोत्साहित करना भी आवश्यक है। हालाँकि आज के समय में यह कार्य कठिन ही लगता है क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है। अतः सरकार सभी हितधारकों को ध्यान में रखते हुए सशक्त डेटा संरक्षण कानून बनाए तथा युवाओं को इसके लाभ-हानि से अवगत कराए। सामाजिक संगठ भी इसके उपयोग को नियंत्रित करने, सदुपयोगी बनाने और सीमित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाए। अंत में इतना ही कह सकते हैं कि पीछे लौटना तो समाधान नहीं है बल्कि ‘अति’ से बचना ही समस्या का हल है।

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