पानी रे पानी तेरा रंग कैसा - 3 SUNIL ANJARIA द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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पानी रे पानी तेरा रंग कैसा - 3

3

25.8.2021

ऐसा हुआ कि जिंदगी भर भूल नहीं सकेंगे। यह रिकॉर्ड करना शुरू किया तब कौनसा दिन या रात होगी, पता नहीं चला। मेँ नई तारीख लिखता हूँ।

अब हमने वापस जाने का निर्णय लिया। थोड़ा चले तो हमने कल्पना भी नहीं की थी, आते वक्त तो सीधे आ गए, अब चार पांच पगडंडी से रास्ते निकलते थे। हम कौनसे रास्ते से आए थे? मैंने शायद मोबाइल पर दिखे तो मेप ऑन किया। इतने अंदर सिग्नल्स बंद थे। हम काफ़ी गहराई में जा चुके थे।

ऊपर कहीं से थोड़ी रोशनी आ रही थी। आसपास ऊंची पर्वतमाला गुफ़ा के अंदर थी। वह चौड़ा 'ऐईट लेन' रॉड था जरूर लेकिन हम रास्तों की भुलभुलैया में फंसे थे।

तनु को एक बड़ा साँप लटकता दिखाई दिया। उसने चेतावनी दी। हम उसी रास्ते से निकले, शायद फिर दूसरे रास्ते से भटक जाएँ। साँप ने फूफकरा और रूपा चीखती मनन से लिपट गई। उसे बहाना ही चाहिए था!

ऊपर बारों मेघ गर्जना करने लगे थे। सब किशोर किशोरिओं ने अपनी जोड़ी बना ली थी। बनने दो। संगीत में भी दो वाद्यों के मिलन से ही सुरावलि बनती है ना!

तोरल मेरे खूब नजदीक चल रही थी। शायद जान बूझ कर मुझे स्पर्शती थी। यौवन की सरवानी कहीं तो ढलाव ढूंढेगी! मैं रोमांचित हो उठा। पर क्षणिक। मेरा फर्ज इन बच्चों को सलामत बाहर निकालना था। अब तो सब प्रेम में भीगोए थे।

लो, ये तो सचमुच भीगने लगे। देखते ही देखते कहीं से हमारे ऊपर पानी की जोर की बौछारें और बड़ी बड़ी धाराएं गीरने लगी। मात्र आवाज़ से मालूम होता था कि गुफ़ा के बाहर ज़ोर की बारिश हो रही है। किसीके मोबाइल में सिग्नल नहीं मिलते थे।

जब शुरू किया था तब बच्चे पत्थरों में से कहीं टिपकता पानी पी रहे थे। अब तो पानी की धाराएं बहने लगी थी। देखते ही देखते हमारे आधे पैर पानी में डूब गए।

अब तो साहसी मनन भी घबराया। उसने भी ऐसा होगा यह सोचा नहीं था। मैंने आदेश दिया - " सब किसी सलामत जगह पर पहुंच जाओ। जल्दी।

**

अब तो ऊपर जो कुछ खुली जगह दिखती थी वहाँ से तेजीसे धोध गिरने लगे थे। पानी वेगपूर्वक बह रहा था।

देखते ही सबसे छोटे छोटू के कंधे तक पानी आ गया। लगा कि अभी यह जलराशि हमें निगल जाएगा। बहाव हमें कहाँले जाएगा? क्या पता?

हम सबने एक दूसरे का हाथ थामकर सांकल बनाई। मैंने पेंसिल टोर्च से पानी पर लाइट फेंकी। हाश! कुछ तो आशा की किरन दिखाई दी। एक जगह से समुद्र की मौज की तरह पानी बहता था और कुछ खड़क जैसा वहाँ था।

"सर, यहाँ कुछ घास भी है। पकड़ कर जल्दी से सामने खड़क पर जा सकें तो बच जाएँ।" गामिनी ने जाना शुरू भी कर दीया। वह फिसली। मनीष ने ही उसका पैर थामा।

नजदीक में पैर रख सकें ऐसा छोटा लेकिन नुकीला पत्थर देखा। मैंने छोटू को पीछे से उठाकर उस पर रखा। नीचे कादव था। पत्थर खिसका। छोटू गिरा। मैं और तनु उसका कैच करने खड़े रहे। उसने खड़क में उगे किसी पेड़ का तना पकड़कर बंदर की तरह छलांग लगाई। आखिर एक साथी तो सुरक्षित जगह पहुंच गया। दूसरों का क्या?

अब गामिनी इसी तरह ड़रते ड़रते गई। जग्गा ने उसकी मदद की। मनन कूदते ही थोड़ा कम अंतर कूदा और..  नीचे गिरते ही पानी में बहने लगा।

'मैं तैरना जानती हूं'' कहती रूपा कूद पड़ी और उसने मनन को थामा लेकिन दोनो बहने लगे।

जग्गा ने गंदी गाली बोलते एक छोटा पेड़ उखाड़कर फेंका जो मनन ने पकड़ लिया और दोनों बचे, सामने के उस पत्थर पर पैर रखते चढ़ गए।

थोड़े आगे कुछ पगदंडी दिखाई दी लेकिन फिसलें ऐसी थी।वह पेड़ की डाली और हमारे ड्रम की स्टिक की मदद से एक एक कर सब बच्चे उस खड़क तक पहुँच गए।

अंत में मैं और तोरल बचे। हम लकड़ी के सहारे से पैर रखने ही वाले थे कि एक बड़ा पत्थर बहता आया। हम इससे बचने थोड़ा खिसके तो दो चट्टानों के बीचमें से कोब्रा जैसा साँप हमारे ऊपर कूदा। तोरल चीख कर मुझे चिपक रही। हम ऐसे ही पत्थर से सटे आलिंगन बद्ध रहें। साँप धीरे धीरे हमारे पैर का स्पर्श करते फिर दो चट्टानों के बीच चला गया।

एक गहरी सांस लेकर मैंने टारजन की तरहपने पैर की अंगुलियों पर खड़े होते दोनों हाथ ऊंचे करते उस नुकीला पत्थर पकड़ लीया। तोरल भीगी हुई मेरे शरीर को पकड़ रही थी। उसके बदन का हर अंग मैं महसूस कर रहा था। वह कांपती थी। मैंने उसे मेरी बांहों में उठाकर अब हमारे सामने वाले खड़क पर रख दी। उसने मुझे हाथ दीया और मै भी उसके साथ वह ऊंची जगह पर बैठ गया।

बहते पत्थरने उस रास्ता बंद कर दिया था जहाँ से वह बच्चे चढ़े थे। वे एक चौड़े खड़क पर और नीचे बहता पानी, बगल में संकरे, एक ही आदमी मुश्किल से टिक सके, इतनी जगह में हम दो जैसे तैसे बैठ गए।

हमारे दो खडकों के बीचमें से वेगपूर्वक धसता पानी बह रहा था। बारिश थम गई थी लेकिन पानी का स्तर बढ़े ही जा रहा था।

बंदिश नाम का लड़का बोला "मुझे तो जर्नी टू ध सेंटर ऑफ अर्थ" फ़िल्म याद आई। इसमें .."

जग्गा चिल्लाया। "बे टोपा, तेरी फ़िल्म बाद में ला। अब यह ड्रम बजा, कोई सुने तो बचाए।"

उसने मनीष की ओर देखा और बोला " ओ साहसवीर, अब निकाल तेरे यह ऐईट लेन रॉड से, वरना तुझे फेंक दूंगा इसमें अभी"

जगह मिली नहीं कि सब अपने नीजी मुद में आ गए। मैंने जग्गू को डांटा।

बंदिश ने ड्रम बजाया। अब जग्गू भी ब्युगल ले कर फूंकने लगा। शायद गुफामें हवा कम थी इस लिए आवाज़ ज्यादा आगे नहीं जा रही थी। क्या करें?