Paani re Paani tera rang kaisa - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

पानी रे पानी तेरा रंग कैसा - 2

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24.8.2021

सुबह होते ही हम सब किराए की साइकिलें ले कर निकल पड़े सासण की ओर। साथ में थोड़े बिस्किट, सेब, दो तीन पेंसिल टोर्च - यह सब रखे। मैंने वह विस्तार का नक्शा भी रखा। आगे तो वन विभाग का जंगल आया। गुफ़ा का रास्ता किसी चरवाहे ने बताया।

उसने कहा कि आगे घने जंगल से गुजरना होगा। गुफ़ा बड़ी है ऐसा कहते है लेकिन कितनी सलामत है यह उसे भी पता नही था।

"सर, भरोसा रखो।वह गुफ़ा शुरू में संकरी है लेकिन आगे बहुत चौड़ी है, साठ किलोमीटर तक। जूनागढ़ शहर तक। मैने यू ट्यूब वीडीयो देखा है।" साहसिक मनीष ने जो जानता था सो बताया।

"हौंसला न हारेंगे हम ये बाज़ी मारेंगे" - फिर मनन ने ललकारा। वह लड़का बोलने की जगह गाता ही है शायद!

हमने अपनी साइकिलें उस गुफ़ा के मुख के नजदीक एक सिंहों को पानी पीने का हवाड़ा (हौज़) बनाया था वहाँ ताले मार कर रख दी। हम बड़े वाजिन्त्र तो गेस्टहाउस में छोड़ आए थे लेकिन एक बांसुरी, ब्युगल और छोटा ड्रम साथ में रखा था। तोरल ने एक थैले में डिश, पेपर कप, जग्गा ने एक छुरी और मनीष ने बड़ी रस्सी भी रखी थी। हम तो पिकनिक मनाने के मूड़ में चलने लगे गुफ़ा के अंदर।

सब किल्लोल करते जा रहे थे। अभी तो साइड से पूरा उजाला आ रहा था। हमने तालियां बजाई। उसकी आवाज़ दूर तक गूंज रही।

हम सब वाद्यों के समूह जैसे थे। सबका अपना अपना आलाप है पर साथमें मिलकर अद्भुत सुरावलि बनाते हैं।

गामिनी ने आलापा - 'मिले सुर मेरा तुम्हारा..'

ग्रूपके सब से छोटे बालक दीपक, जिसे सब छोटू कहने लगे थे, उसने तार स्वर में पूरा किया 'तो सुर बने हमारा'।

सब आनंद में थे वहाँ हमारी आवाज़ से डरकर किसी बड़े पक्षी ने पंख फैलाते उड़ते आ कर हमला किया। उसके पंख की चोट लगते ही रूपा चीखती हुई मनन से लिपट गई।

आगे जाते रोशनी कम होती गई। मैने वापस लौटने का सुझाव दिया लेकिन अब सब साहस करने के मूड़ में थे।

"भाईओं, बहनों सब साथ ही रहें हाँ" गामिनी डरती हुई बोल उठी।

"अली ओ, फटती है क्या? अब तो तूं ही आगे जा।" तनु ने उसे आहिस्ता धक्का दिया।

"प्लीज़ बच्चों, सब अनुशासन में रहें। गामिनी सही है। हमें अब लौटना चाहिए।" मैने कहा। मेरे ऊपर यह बारह बच्चों की जिम्मेदारी है।

"क्या सर, आप भी! दो दिन फ्री पड़े है। घूम लें एक बार" मनीष बोला।

"हाँ। बराबर। सब चलें जितने जंग,

ब्युगलें बजाएं

या होम करके पड़े, फतह है आगे" - मनन के मुख से फिर कविता निकली।

हम एक साथ संभालते शोर मचाते अब थोड़े अंधेरे में चलते रहे

अब आया बिल्कुल संकरा और नीचा रास्ता। यहाँ से तो ज़ुक कर ही जाना था।

"अरे ओ कोलंबस, क्या ऐसे ही रेंगते आगे जाना है? मेरी तो पीठ में दर्द हो रहा है" तनु ने मनीष को आवाज़ दी।

" अबे मोटे, तु ही फंस जाएगा इस गुफामें और रास्ता ब्लॉक कर देगा। चल, भाग।" मनीष ने ज़ूके हुए तनु को पीछे धक्का लगाया।

"मैंने देखा है वीडियो। ऐसा रास्ता तीन किलोमीटर है। बाद में वह ऐईट लेन जितना चौड़ा रास्ता आएगा। भरोसा रखें।" मनीष ने कहा।

हम चलते ही रहे। ट्रेकिंग किसे कहते हैं! सब की पीठ अकड़ ले गई। आखिर खड़े हो कर चल सकें ऐसा रास्ता तो आया, पर अब गहरा अंधेरा ही अंधेरा, मानों ब्लेक होल। बीच बीच में जुगनुओं का प्रकाश, कहीं पे चमगादड़ फड़फड़ाते। लड़कियाँ ड़र गई। रूपा ने मनन का हाथ थामा, दिशा ने दिगीश का। सब से बड़ी तोरल मेरे साथ चलती थी। ऐसी स्थितिमें भी सब विजातीय स्पर्श से रोमांचित थे।

अब वह चौड़ा रास्ता दिखाई दिया पर कहीं से बाहर की रोशनी आ रही थी। बाहर मेघ गर्जना न जाने कहाँसे शुरू हो गई। हम थकान दूर करने बैठे और मैंने यह डायरी वॉइस टाइप से पूरी की।

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