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यह कैसी विडम्बना है - भाग २

आर्थिक संपन्नता के नाम पर उसे संपन्नता कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी। हर चीज में काट-कसर की जा रही थी। उसने कई बार वैभव और निराली को धीरे-धीरे कुछ बात करते भी सुना था। आर्थिक तंगी का सामना करते अपने परिवार के हालात समझने में संध्या को ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। उसे हर समय कुछ कमी-सी लगती ही रहती थी। एक ही छत के नीचे रहते हुए, आख़िर संध्या से क्या-क्या और कब तक छुप सकता था। वह सोचती रही कि वैभव से बात करुँगी पर कर ना पाई। संध्या के विनम्र स्वभाव और उसके संस्कार उसे रोक रहे थे।

संध्या की मम्मी अक्सर उसे फ़ोन करके हालचाल पूछती रहती थीं, "कैसी हो बेटा, सब ठीक तो है ना?"

"हाँ-हाँ मम्मी मैं बिल्कुल ठीक हूँ। यहाँ सब बहुत अच्छे हैं। आप लोग बिल्कुल चिंता मत करना।"

अपने मम्मी-पापा को वह बिल्कुल दुःखी नहीं करना चाहती थी। वह अपने घर की इकलौती लाडली बिटिया थी। वह जानती थी कि अगर उसे कांटा भी चुभ जाए तो चीख मम्मी के मुँह से निकलती है। एक दिन घर की साफ़-सफ़ाई करते समय संध्या को वैभव की पास-बुक मिली। जिसमें उसे वैभव की इतनी कम सैलरी देख कर बहुत ही आश्चर्य हो रहा था। उन्हें बताया तो यह कहा गया था कि वह कॉलेज में लेक्चरर है, परमानेंट भी है और अच्छी खासी तनख्वाह पाता है, पर यह पास-बुक तो कुछ और ही कहानी कह रही थी।

संध्या ने अपना पक्का मन बना लिया कि आज रात को वह वैभव से बात ज़रूर करेगी। आख़िर उसे भी तो पता होना चाहिए कि चल क्या रहा है? संध्या का मन विचलित हो रहा था। कई तरह के प्रश्न उसके मन में उठ रहे थे। क्या वैभव और उसके परिवार ने झूठ कह कर यह रिश्ता किया है? क्या वैभव ने उसके साथ विश्वासघात किया है? संध्या बहुत परेशान हो रही थी, वह सोच रही थी कितने अच्छे हैं यह लोग? आख़िर वह ऐसा क्यों करेंगे? क्या कोई मजबूरी? उसे इन सभी प्रश्नों के जवाब चाहिए थे। संध्या रात का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी।

रात के भोजन के उपरांत जब वे अपने कमरे में गए, तब संध्या ने वैभव से पूछा, "वैभव तुम किस कॉलेज में पढ़ाते हो? नाम क्या है कॉलेज का? मैं सोच रही हूँ मैं भी वहीं एप्लाय कर दूँ। दोनों साथ आएंगे-जाएंगे कितना अच्छा रहेगा?"

"नहीं संध्या," वैभव के मुँह से अचानक ही निकल गया।

"क्यों मना कर रहे हो वैभव? तुमने तो आज तक मुझे अपने कॉलेज का नाम तक नहीं बताया।"

"क्या बात है संध्या? आज तो तुम बिल्कुल वकील की तरह पूछताछ कर रही हो।"

तब संध्या ने वह पास बुक निकाल कर वैभव के सामने रख दी और पूछा, "वैभव किस कॉलेज में इतनी कम सैलरी मिलती है? तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया है। झूठ की बुनियाद पर यह रिश्ता कर लिया है। वैभव मैं इतना तो समझ ही गई हूँ कि यहाँ सब कुछ वैसा बिल्कुल नहीं है जैसा हमें बताया गया था। जितनी जल्दी तुम मुझे सच्चाई बता दो उतना ही हमारे और हमारे परिवार के लिए अच्छा होगा।"

संध्या के मन में तूफ़ान उठा हुआ था। झूठ और विश्वासघात यही दो शब्द उसके दिमाग़ में घूम रहे थे। उसे लग रहा था कि झूठ बोल कर उसे फँसाया गया है। उसके मन में बार-बार विचार आ रहा था कि क्या उसे अपने परिवार में वापस लौट जाना चाहिए?

क्रमशः

रत्ना पांडे वडोदरा, (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक

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