ममता की आँखों में बार-बार आँसू आ जाते थे |कैसे वह अपने पाप का प्रायश्चित करे ?कैसे अपने चेहरे को उज्ज्वल करे ?गत–वर्षों की कालिमा क्या यूं ही छूट जाएगी ?क्या उसका पाप उसकी बेटी के सिर पर चढ़कर बोलेगा ?उफ,ईश्वर ने उसे कैसा रूप दिया है ...बिंबाफल से अधर ...श्वेत वर्ण ...शुक जैसी नासिका ....सब –कुछ फुरसत में गढ़ा-हुआ-सा |अपनी कमल –सी खिली सुंदर ,मासूम आँखों से जब वह उसकी ओर देखती है तो ममता का दिल कसक उठता है |क्या उसकी गीता-कुरान –सी पाक बेटी भी वासना के पुजारियों द्वारा नोची जाएगी ?क्या उसका सुंदर शरीर भी ऊंचे-नीचे भाव से बेचा जाएगा?नहीं , वह ऐसा नहीं होने देगी ....कभी नहीं ...उसे वह अपने संस्कार कभी नहीं देगी...वह उसे स्त्री-जीवन का आदर्श बनाएगी |
अभी उसी दिन तो जब वह बाहर खेलने गयी तो किसी ने कह दिया –‘रंडी की बेटी रंडी होगी|’
उसने घर आते ही उससे पूछा-माँ ये रंडी क्या होती है ?तुम उनको क्यों नहीं कुछ कहती .?..बच्चे मुझे अपने साथ क्यों नहीं खिलाते ......?’उसकी बात सुनकर फूट-फूटकर रोने लगी थी ममता |क्या जवाब दे बेटी को ?उसे यह बताए की ‘रंडी वह होती है जो समाज के शरीफ लोगों की गंदगी पचा लेती है ...जो एक कूड़ेदान होती है,जिसमें लोग अपनी अतिरिक्त ऊर्जा,विकृत हवस उड़ेलने आते हैं ...जो न हो तो तो समाज में माँ-बहन –बेटी के रिश्ते भी खतरे में पड़ जाएँ ....|]
पर वह चुप रही |वह अपनी बेटी चेतना को स्कूल भेजने लगी |चेतना को समझ में नहीं आता था कि दूसरे बच्चे उससे बात क्यों नहीं करते .?..बड़े भी उसे छूने की कोशिश करते हैं |सभी उसे अजीब निगाहों से देखते हैं |एक दिन तो बूढ़े माली ने अपने बूढ़े दोस्त से कहा –कुछ वर्षों बाद यह नयी घोड़ी सवारी के काम आएगी |
चेतना को उनकी बात का मतलब तो समझ में नहीं आया पर उनके चेहरे के भाव से उसे लग गया कि वे लोग उसे गाली दे रहे हैं |उसने घर आकर ममता को यह बात बताई तो ममता सोच में पड़ गयी |
क्या करे वह ?कैसे अपने माथे पर लगे ‘रंडी’नाम के ठप्पे को हटाए ?कैसे अपनी बेटी को स्वस्थ वातावरण दे ...उफ ,अपना धंधा तो उसने बेटी के जन्म के बाद से ही छोड़ रखा है। कोठा छोड़कर एक खोली में रह रही है, लेकिन वह ठप्पा नहीं छूट पा रहा है |वे ही शरीफ लोग ,जो उसके पैरों पर नाक रगड़ते थे ...उसकी हंसी उड़ा रहे हैं कि –नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली’|
हर पाप का प्रायश्चित है तो क्या उसके पाप का कोई प्रायश्चित नहीं ?उसकी बेटी क्या इस विषाक्त वातावरण में स्वस्थ रूप से पनप पाएगी ?
पंद्रह वर्षों बाद चेतना एक खूबसूरत नवयुवती बन गयी |वह सब –कुछ समझने लगी |उसके रूप-गुण के चर्चे चारों तरफ होने लगे पर सम्मान-भाव से नहीं ...|हर पुरुष उसके सामीप्य के लिए लालायित दिखाता ...|कोई प्रेम-पत्र लिखता, कोई आहें भरता ,कोई अपने सीने पर हाथ रखता ...कुछ तो उसे कालेज से घर और घर से कालेज पहुँचने का ठेका लिए दिखते |चेतना मन ही मन उनके प्रति घृणा समेटे चुपचाप अपना काम किए जाती |किसी की तरफ देखती तक नहीं |ममता ने उसे ऐसी ही नसीहत दी थी |उसकी बेरूखी पर लोग ताने देते –'रंडी की बेटी सतवंती बनने चली है |’
चेतना को बस पुस्तकें अच्छी लगतीं |कभी-कभी वह महान लेखकों पर झुंझलाती कि क्यों वे अच्छे विचारों को लोगों के मनोमस्तिष्क में नहीं उतार पाते |शिक्षित –वर्ग तो उसे और भी भृष्ट लगता |उसके शिक्षक तक उसका लाभ लेना चाहते ...|वह दुखी हो जाती |
कहानियों में दिखाई पड़ता आदर्श नायक ही अब उसके मन को बहलाता था ।यथार्थ की कुरूपता से घबरा कर वह कल्पना की दुनिया में रहने लगी थी |उसके दिवा -स्वप्नों में एक आदर्श पुरूष था ,जो वासना के पुजरियों से बिलकुल अलग स्त्री जाति का सम्मान करने वाला था |वह रंडी की बेटी से प्रेम का स्वांग नहीं करता था |बल्कि उसे सम्मानित ढंग से अपना बनाना चाहता था |
चेतना की कोई सहेली नहीं थी ...कोई दोस्त नहीं था |वही लड़कियां ,जो दिन-रात गंदी बातों में डूबी रहतीं ,उसे हिकारत की नजरों से देखतीं ...उन्हें इस बात का गर्व था कि वे इज्जतदार माता-पिता की औलाद हैं |चेतना से उन्हें जलन इस बात से ज्यादा थी कि एक तो वह हमेशा अव्वल आती थी और दूसरे उनके प्रेमी ...मंगेतर ,पति और दोस्त सभी लुक-छिपकर चेतना को हसरत-भरी निगाहों से देखते थे |पर इसमें चेतना का क्या दोष था ?वह तो खुद दुखी और परेशान थी ...क्या करे वह ?किसे दोष दे ?क्या माँ को ...!नहीं यह तो नीचता होगी ...|बेचारी ने दिन-रात सिलाई करके उसे पाला-पोसा था ,उसे पढ़ा-लिखा रही थी |
एक दिन वह खुद कहने लगी-बेटी तुम्हें तो मुझसे घृणा होती होगी ....|
कैसी बात करती हो माँ ...तुम तो मेरे लिए किसी देवी से कम नहीं हो ...तुमने मुझे पाप के दलदल में नहीं उतारा और खुद को भी गलत राह से हटा लिया ...यह क्या कम है?कितनों में होता है यह साहस ?
उसके इतना कहने पर ममता फूट-फूटकर रोने लगी थी |
कुछ वर्ष और गुजर गए |ममता बहुत परेशान थी कि चेतना विवाह के नाम से इतना चिढ़ती क्यों है ?एक दिन उसने पूछ ही लिया –बेटी,क्या तुम्हें विवाह करने की इच्छा नहीं होती ...क्या पुरूष का प्रेम तुम नहीं चाहती ?
चेतना के कपोल रक्तिम हो उठे |बड़ी देर बाद वह बोली –कौन –सी ऐसी स्त्री होगी जो पुरुष का प्रेम न चाहती हो ...पर माँ ,क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि कोई पुरूष मुझे सम्मान-भाव से प्रेम कर सकता है ?रही विवाह की बात ...तो कोई क्षणिक सुधार-भाव से भले मुझसे विवाह कर ले ...पर क्या वह संबंध स्थायी होगा ?समाज की जीभ बहुत जहरीली होती है माँ,उस जहर से हमारे मधुर संबंध विषैले हो जाएंगे |
फिर मेरे आत्म-सम्मान को यह भी स्वीकार नहीं कि कोई दया-भाव से मुझसे विवाह करे |हाँ,यदि कोई पुरुष ऐसा मिलता है जो मुझसे विवाह करने में अपनी मान-हानि न समझे ...मुझसे सच्चा प्रेम करे तो मुझे इंकार नहीं |लेकिन ऐसा नायक सिर्फ कहानियों में ही मिलता है |माँ तुम मेरी चिंता बिलकुल मत करो |मैं इसी तरह बहुत खुश हूँ |कुछ दिनों में मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी, फिर मैं कोई अच्छी –सी नौकरी कर लूँगी |कोशिश करूंगी कि कहीं बाहर नौकरी करूं ताकि यह शहर और हमारा अतीत पीछे छूट जाए |फिर हम नए सिरे से जीवन बिताएँगे माँ|
ममता का दिल चेतना की बात सुनकर रो पड़ा |उफ ,उसकी भूल की सजा उसकी फूल-सी बेटी को मिल रही है |ऐसी बेटी ...ऐसी पवित्रता ...विश्व की गिनी-चुनी कन्याओं में ही होती है ...हाय मेरी पुत्री ,इतनी कम-उम्र में तुमने उन वास्तविकताओं को जान लिया ,जिसे मैं उम्र-भर नहीं समझ सकी |काश,समझ गयी होती तो आज ....|
चेतना परेशान थी |क्यों वह शेखर के प्रति यूं आकर्षित होती जा रही है |वह कुछ बोलता नहीं सिर्फ उसको देखता रहता है |उसकी आँखों में न जाने क्या-क्या होता है कि चेतना का मन अवश हो उठता है |बार-बार उसी के बारे में सोचती है |उसके सपने भी उसी के इर्द-गिर्द सिमट आए हैं |क्या हो गया है उसे ?क्या परिणाम होगा इसका ?वह बार-बार अपने मन को समझाती है कि शेखर भी उन्हीं पुरूषों –जैसा होगा ,जो स्त्री से सिर्फ खेलते हैं |वह भी उसे एक खिलौना ही समझता होगा ,पर जाने क्यों मन नहीं मानता |बार-बार उसकी तरफ भागता है |जीवन में कभी इतने रंग नहीं भरे थे ...आईना कभी इतना नहीं भाया था |सौंदर्य के प्रति इतनी जागरूकता कभी नहीं आई थी ...क्या हो गया है उसे ?कौन-सा मंत्र फूँक दिया है उसने?उसकी सारी विवेकशीलता ...सारा संयम ...सारा आत्मविश्वास कहाँ खो गया है ?क्यों खिंचती जा रही है वह उसकी तरफ ?क्यों भूल जा रही है उन बातों को ,जो उसने अपने भविष्य के लिए निश्चित कर रखी थी |शेखर की प्रेम भरी बातें ...किताबों के हर पन्ने पर लिखी मिलती हैं,क्या करे वह ?क्या चाहिए उसे ?
पर एक दिन उसे पता चला कि शेखर विवाहित है |उस दिन वह रात-भर रोती रही |शेखर के प्रति उसका आकर्षण फिर भी कम नहीं हुआ |वह सोचने लगी कि क्या यही वेश्या का संस्कार है ?एक विवाहित व्यक्ति के प्रति आकर्षित होना !पर पहले उसे कहाँ पता था ...पर अब तो पता चल गया है अब तो उसे मन से निकाल दे ...नहीं निकाल सकती न ,यही तो वेश्या का लक्षण है किसी और के पति को चाहना ,उसे फाँसना |नहीं ..नहीं मैं उसे प्यार करती हूँ |प्यार हूँह प्यार-व्यार कुछ नहीं होता ।बस रूप-यौवन और देह का आकर्षण है उसे और तुम्हें धन-दौलत और सुख-सुविधा का ...!नहीं ..नहीं ये गलत है ..मैं सच ही उससे सच्चों मोहब्बत करने लगी हूँ |
-तो भी क्या समाज के सामने जिस रिश्ते को स्वीकार न कर सको ,चोरों की तरह छिपकर मिलना हो ,ऐसा रिश्ता तो एक वैश्या-पुत्री ही निभा सकती है ...हाँ...हाँ वेश्या-पुत्री ...!
नहीं –अपने ही मन की आवाज पर चेतना अपने कान बंद कर लेती है|नहीं,वह ऐसा नहीं करेगी ...भूला देगी शेखर को ...भर लेगी अपने जीवन में फिर से नीरसता ...खत्म कर लेगी खुद को ...पर अपने और शेखर के रिश्ते को कोई गलीज नाम नहीं देगी ...वह शेखर की रखैल नहीं कहलाएगी ...एक स्त्री की खुशी में हिस्सा नहीं बंटाएगी|
कितनी अभागिन है वह ,चाहा भी तो ऐसे व्यक्ति को ,जिसके साथ दो कदम चल भी न सके ...जिसे किसी के सामने अपना कह भी न सके |उसने एक दर्द सदा के लिए अपने हिस्से ले लिया है |उफ,कैसे सह सकेगी वह सब-कुछ ...पहले ही जीवन में क्या कम गम थे ,जो यह नया गम सीने से लगा लिया |रात-दिन आँसू बहते हैं ...चैन नहीं मिलता ...शेखर भी तो नहीं समझ पाता उसका दर्द ...वो तो नाराज हो रहा है ,न मिलने के कारण ...कैसे समझाए उसे वह ...उसकी बात टाली भी नहीं जाती |कमजोर पड़ जाती है वह उसके आगे |ये प्रेम इंसान को इतना कमजोर क्यों बना देता है ?
ममता परेशान थी ...क्या हो गया है चेतना को ?क्यों दिन पर दिन घुलती जा रही है ?कहीं किसी से दिल तो नहीं लगा बैठी है ?पूछने पर टाल जाती है ...विवाह के लिए भी राजी नहीं है |कैसे काटेगी अपना जीवन ?आज अवश्य उससे खुलकर बात करेगी वह ...पर न जाने सुबह से ही कहाँ चली गयी है |
तभी चेतना आती है |
ममता- चेतना बेटी ,सुनो...जरा मेरे पास आकर बैठो ...तुमसे कुछ बात करनी है |
चेतना-क्या बात है माँ,कुछ परेशान लग रही हो ?
ममता –हाँ बेटी,तुम्हारे संबंध में ही चिंता है |
चेतना आँखें झुका लेती है –किस संबंध में माँ ?
-आजकल तुम्हें हो क्या गया है?...तुम्हारा चेहरा मुरझा गया है ...मेरी कसम सच बताना ....कहीं तुम्हारी जिंदगी में कोई.....|
चेतना एक लंबी सांस लेती है—हाँ माँ ,एक विवाहित पुरूष मेरे जीवन में आ गया है ....|
ममता का मुंह खुला रह गया ।फिर तेज स्वर में बोली-तो तुम्हें विवाहित पुरूष ही मिला था ...क्या दुनिया के सारे अविवाहित पुरूष मर गए हैं ....|
माँ,मुझे पहले यह मालूम न था ,फिर मेरे दिल को जिस चीज की चाह थी ...वह उसके सिवा किसी में न दिखा ...फिर अनजाने ही मैं उससे बंध गयी माँ ....|
--कितनी दूर चली हो उसके साथ ..!
..बस कुछ ही कदम ....मन तक ही !
--उसकी पत्नी कैसी है ?
वह कहता है उसके मनोरूप नहीं ...|
ममता के स्वर में अचानक दृढ़ता आ गयी—तो मेरी सलाह सुनो ...दो ही रास्ते हैं या तो उससे विवाह कर लो या फिर उसे भूल जाओ |
मगर माँ,उसकी पत्नी....!
--अगर वह तुम्हें चाहता है तो अपनी पत्नी को त्याग दे|
नहीं माँ...नहीं ...एक स्त्री से उसका पति मैं नहीं छीन सकती ...यह वेश्या करती है ...मैं ...मैं ऐसा नहीं करूंगी माँ ...दुनिया क्या कहेगी ...यही न कि मेरे जन्म के संस्कार न छूट सके ...|
--तो क्या तुम उसकी रखैल बनकर रहना चाहती हो ?
माँ ऐसा क्यों कहती हो ?क्या तुम नहीं जानती कि इस शब्द से मुझे कितनी नफरत है |
--तो फिर ...एक ही रास्ता बचता है कि तुम उसे भूल जाओ |
हाँ माँ,यही ठीक होगा ...मुझे यही करना होगा |
--कर पाओगी ऐसा ?
कोशिश करूंगी माँ |
ममता ने उसे सीने से लगा लिया।प्यार से उसका सिर सहलाते हुए बोली –एक बात बताऊँ बेटा ...कोई भी वेश्या की बेटी से प्यार नहीं करता ...सिर्फ उससे मन बहलाना चाहता है ...भले ही वह कितने भी शब्द-जाल रचे ...कितनी भी भाव-भागिमाएँ बनाए ...कितने ही आदर्शों की बात करे ...तन को पाने के लिए मन की बात करते हैं मर्द ....तुम शेखर से इतना प्यार करती हो न ,वह भी करता है तो एक परीक्षा लेकर देखो |आज उससे मिलो और उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखो या फिर उसे अपने घर ले चलने को कहो ...उसकी कलाई खुल जाएगी ...वह जानता है कि तुम कौन हो ,इसीलिए तुमसे प्रेम- निवेदन का साहस कर सका है ...किसी भले घर की बहू-बेटी के सामने वह ऐसा प्रस्ताव रख ही नहीं सकता ...मैं सच कह रही हूँ ...तुम एक बार आज़माकर देख लो ...तभी तुम उसे भूला पाओगी |
चेतना ने हामी में सिर हिला दिया और मुंह-हाथ धोने चली गयी |उसने सोच लिया कि वह आज ही शेखर से मिलेगी |
चेतना कई दिन से बीमार है |सच ने उसे तोड़ दिया है। माँ की बात ही सच निकली थी |उस दिन जब उसने उसे मिलने के लिए बुलाया तो शेखर ने बहाना बना दिया कि वह आज व्यस्त है पर संयोग से माल में पत्नी के साथ ख़रीदारी करते हुए टकरा गया |उसने उसे अनदेखा कर दिया जबकि उसकी पत्नी ने कई बार उसकी तरफ मुड़कर देखा था और शेखर से उसके रूप के संबंध में कुछ कहा भी था |दोनों को देखकर जरा-सा भी नहीं लग रहा था कि दोनों में मधुर रिश्ते नहीं हैं |
दूसरे दिन वह खुद उससे मिलने आया और सफाई देने लगा कि अपने कर्तव्य का पालन तो करना ही पड़ता है |
--क्या तुम कल मुझे पहचान नहीं सकते थे! अपनी पत्नी से मिलवा नहीं सकते थे कि मैं तुम्हारी दोस्त हूँ !जब पत्नी से नहीं मिला सके तो अपने घर क्यों ले जाओगे ..!.हाँ मैं कोई शरीफ खानदान की लड़की तो हूँ नहीं !बात खुले तो भद्द हो जाए ...उस दिन भी मैंने देखा था कि अपने दोस्तों के सामने मुझे अनदेखा कर दिया था तुमने ...|
--तो क्या अपने सम्बन्धों को सिनेमा का पोस्टर बनाना जरूरी है ?
--तो क्या जीवन –भर हम यूं ही चोरी-छिपे मिलते रहेंगे ?
-मजबूरी है ...और तुम्हें यह क्या पागलपन सवार हो गया है ...पहले तो इस तरह की बात नहीं करती थी तुम ...|
--तुम मुझसे प्यार करते हो न !
बिलकुल ,इसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं |
--तो मुझसे विवाह कर लो ....मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ ...तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ ...इज्जत से ..सम्मान से ..प्यार से ...|चेतना ने शेखर का हाथ पकड़कर कहा |
शेखर ने धीरे से उससे अपना हाथ छुड़ा लिया |
-हो क्या गया है तुम्हें?किसने तुम्हें भड़काया है ?क्या तुम्हारी माँ ने ,उनसे तो कोई अच्छी उम्मीद की नहीं जा सकती |दूसरों का घर तोड़कर अपना घर भरना ही तो उनका पेशा रहा है और अब वे तुम्हें भी वही संस्कार दे रही हैं ...|
चेतना शेखर का मुंह ताकती रह गयी |उसकी देवी –जैसी माँ के लिए यह कैसी अनर्गल बातें किए जा रहा है |
शेखर को शायद अपनी भूल का अहसास हुआ |उसने बात बदल दी |बड़े प्यार से कहने लगा-तुम्हें क्या लगता है कि मैं अपनी पत्नी से कम प्यार तुम्हें करता हूँ |तुम तो मेरे मन की रानी हो ...जब हमारे मन मिल चुके हैं तो ढ़ोल पीटने की क्या जरूरत है?
चेतना को मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा था पर वह शेखर को पूरी तरह जान लेना चाहती थी इसलिए सामान्य थी |
--लेकिन मेरा जीवन कैसे चलेगा ?
उसकी चिंता तुम क्यों करती हो ?रूपए-पैसे ,शरीर जिस तरह से चाहो मेरा इस्तेमाल कर सकती हो ...आखिर तुम्हें और क्या चाहिए ...सुरक्षा...संरक्षण ..प्यार सब तो मैं देने को तैयार हूँ |
--मुझे एक अपना घर ,सामाजिक और कानूनी प्रतिष्ठा तथा पत्नीत्व का गौरव भी चाहिए |
-क्या सम्मान प्यार से बढ़कर है?
--हाँ,शेखर, हाँ,स्त्री के लिए सम्मान का बहुत महत्व है |मुझ –जैसी स्त्री के लिए तो और भी ,क्योंकि हमसे प्यार का दम भरने वाले तो बहुत मिलते हैं ,पर सम्मानित जीवन देने वाला नहीं |मुझे सम्मान चाहिए शेखर सम्मान!
-तुम जो चाहती हो वह तुम्हें कोई नहीं देगा |मैं दे सकता था पर मेरे साथ मेरा परिवार,खानदान और पूरा समाज है |किसी एक के लिए सबको नहीं छोड़ा जा सकता चेतना |फिर मेरी पत्नी सुंदर,सुशिक्षित और अच्छे कुल ही है ।मुझसे प्यार भी बहुत करती है पतिव्रता है |किस दोध के कारण उसे छोड़ दूँ?परिवार...समाज और कानून क्या मेरी इस गलती को माफ करेगा?कदापि नहीं ,मेरा सम्मान मेरी पत्नी के साथ ही हो सकता है |मैं तुमसे प्यार कर सकता हूँ ...ताउम्र निभा सकता हूँ ...पर समाज के सामने नहीं क्योंकि मेरी अपनी सीमाएं हैं प्रतिष्ठा है ...|
-तो मेरे साथ प्रेम के नाटक की आवश्यकता क्या थी ?
शेखर भावुक स्वर में कहने लगा-इसलिए कि तुममें वह सब कुछ है ...जो मैं अपनी प्रेमिका या पत्नी में चाहता था |तुम मेरी जीवन-भर की तलाश हो ...तुमसे ही मैं सम्पूर्ण होता हूँ ...मैं तुम्हें हर सुख दूँगा चेतना...मैं सचमुच तुम्हें प्यार करता हूँ ...ऐसा नहीं कि मुझे लड़कियों की कमी है ।बाजार में हर उम्र की एक-से बढ़कर एक लड़कियां सहज उपलब्ध हैं |समाज में भी ऐसी लड़कियों की कमी नहीं ,जो पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं |दौलत से प्यार भी खरीदा जा सकता है पर मैं तुम्हें सचमुच बहुत चाहता हूँ ...तुम्हारे दर्द को महसूस करता हूँ ...पर मजबूर हूँ |तुम भी मूर्खता मत करो ।सिर्फ मेरी बनकर रहो ...जीवन में जो कुछ मिल रहा है ,उसे ठुकराना ठीक नहीं ...क्या इतना कम है कि तुम्हें मेरा प्यार मिल रहा है |आओ मेरे पास आओ |
कहकर शेखर ने अपनी बाहें फैला दीं |चेतना को लगा कि वे बाहें नहीं दो विषधर सर्प हैं ,वह पीछे हट गयी |
-अच्छा ...तो आप मुझसे प्रेम करके मुझपर अहसान कर रहे हैं ,क्यों ?
ओफोह ,तुम हर बात को उल्टा क्यों समझ लेती हो ...|खैर छोड़ो ,क्या किसी आर्थिक समस्या के कारण ये झल्लाहट है ,यह लो ब्लैंक चेक है,जितना चाहिए भर लेना |ले लो ...कहो तो किसी दूसरी जगह शिफ्ट करा दूँ यहाँ कुछ लोग जानने-पहचानने लगे हैं |
--वहाँ भी तो आप चोरों की तरह समाज से छिपकर ही आएंगे |सीधे-सीधे कह क्यों नहीं देते कि तुम्हें रखैल बनाकर रखना चाहता हूँ |रखैलें रखना भी तो अमीरों की शान होती है |
शेखर झल्ला गया-तो क्या चाहती हो कि तुम्हारे कारण समाज से मुंह मोड़ लूँ ।तुमसे शादी करके कानूनी अपराधी बन जाऊँ |तुम बोलते हुए बिलकुल अच्छी नहीं लगती |पहले जब तुम चुप रहकर मासूमियत से ताकती रहती थी, तो कितनी अच्छी लगती थी |आज पता नहीं क्या हो गया है तुम्हें ,जानता हूँ इसके पीछे किसका हाथ है |नये घर में उन्हें साथ नहीं रहने दूँगा |यहीं पुराने घर में पड़ी रहें |
-प्लीज शेखर बाबू,अपनी माँ के खिलाफ मैं बिलकुल नहीं सुन सकती |और जहां तक कुछ करने की बात हैआपको कुछ करने की जरूरत नहीं ...आपने मुझे अच्छा सबक दिया ...मैं अपनी औकात भूल गयी थी ...जिसके पैरों के नीचे जमीन न हो और वह आकाश छूना चाहे तो मुंह के बल गिरेगा ही |आप जाइए शेखर ,हमें अपने हाल पर छोड़ दीजिए |मैं तो समझी थी कि आपमें समाज से टकराने का साहस होगा ,पर आप भी वही निकले ।मुझे आपसे किसी तरह की मदद नहीं चाहिए |किसी स्त्री के हक में हिस्सा लेना मुझे पसंद नहीं ।उधार के सिंदूर से मांग भरकर सुहागन नहीं बना जा सकता |आपका प्रेम एक स्वांग था ...आप जाइए ...|शेखर रूआसे स्वर में –चेतना मुझे गलत मत समझो ...।
-जाइए शेखर बाबू,लोग देख रहे हैं ,आपकी प्रतिष्ठा चली जाएगी |मेरा क्या मैं तो हूँ ही वेश्या की पुत्री |
घर आते ही चेतना बिस्तर पर गिरकर फफक पड़ी...जिसे देवता समझा ...वह भी मलिन –हृदय का निकला ...|उसकी जीवन-भर की तपस्या भी उसके माथे से वेश्या-पुत्री के दाग को न धो सकी |उससे प्रेम करना भी लोग अहसान समझते हैं ...उसे व्यर्थ ही अपने ऊपर गर्व था |
चेतना के मन में एक आग जल चुकी है |उसने फैसला कर लिया कि वह किसी पुरूष की दासी नहीं बनेगी ...न किसी से प्रेम करेगी न विवाह |क्या कसूर था उसका ?उसने कभी किसी को अपना हाथ तक छूने नहीं दिया ,इस पवित्रता की कोई कीमत नहीं ।उसके ऊंचे विचारों और आत्मिक सौंदर्य की तरफ किसी का ध्यान नहीं ...।तो न हो ध्यान ...न आँके यह समाज उसका मूल्य...अपना मूल्य वह खुद आंकेंगी |उसकी अस्मिता किसी की मुहताज नहीं बनेगी ...वह नहीं भागेगी किसी की ओर। और एक दिन ऐसा आएगा जब सब उसकी तरफ भागेंगे ।उसका सम्मान करेंगे |समाज की उपेक्षा से वह अपने पैरों में घूँघरू नहीं बांध लेगी न असफलता पाकर वह आत्मघात ही करेगी |वह इस तथाकथित सभ्य समाज से प्रेम और सम्मान की भिक्षा नहीं मांगेगी |वह सम्मान हासिल करेगी अपने आदर्शों से... अपने काम से ...|
और चेतना बिस्तर से उठकर लंबे समय से अस्त-व्यस्त हो रहे अपनी पुस्तकों की आलमारी सुव्यवस्थित करने लगी, ठीक अपने मन की तरह|
ममता क्या करे ?चेतना को कैसे इस कठिन व्रत से विरत करे ...इतना कठोर श्रम ...चेहरा सूखकर कैसा हो गया है ...बुरा हो शेखर का ...जिसने उसकी बेटी पर यूं जुल्म किया |
एक दिन उसने फिर चेतना से विवाह की बात छेड़ी तो चेतना ने गंभीर स्वर में कहा-लड़की के लिए विवाह ही एकमात्र विकल्प नहीं है माँ |देखो माँ ,मैं खूबसूरत हूँ ...मेरा विवाह सहजता से हो जाएगा यदि हम किसी दूसरे शहर चले जाएँ या अपना अतीत छिपा लें ।पर यह दूसरों के साथ धोखा होगा न कि उसे सच न बताया जाए | यदि किसी ने सच जानकर आदर्श के आवेग में विवाह कर भी लिया तो कुछ समय बाद वह मुझ पर संदेह करेगा ...मुझे किसी मैना की तरह पिंजरे में कैद कर देगा |किसी से मिलने-जुलने नहीं देगा |उसे मुझपर विश्वास नहीं होगा माँ |उसे हरदम यही महसूस होगा कि मेरे जन्म के संसकार नहीं छूट सकते |मेरी हर निर्दोष अदा में उसे स्वांग नजर आएगा माँ ...हाँ माँ हाँ,ऐसा ही होगा ...और यह अविश्वास मेरा हृदय नहीं सह पाएगा |अपने स्त्रीत्व का अपमान मैं नहीं सह पाऊँगी माँ |अपनी पवित्रता पर उठती अंगुली मैं नहीं सह सकती ...फिर हममें मतभेद और अंतत:अलगाव हो जाएगा मैं सीता नहीं हूँ मां कि धरती में समा जाऊंगी |
इसलिए मेरी विवाह का सपना मत देख माँ मत देख |
ममता को नाज है अपनी बेटी पर आज वह जिलाधिकारी है |समाज में उसकी इज्जत है प्रतिष्ठा है |उसको भी सम्मान मिलता है |कोई उनके अतीत के बारे में नहीं पूछता। सफलता और प्रसिद्धि पर पहुँच चुके लोगों से कोई उनके अतीत के बारे में नहीं पूछता |एक वेश्या की पुत्री ने आदर्श और पवित्रता के बलबूते ऊंचा उठकर दिखा दिया है कि आसमान सबके लिए है |