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रूपगर्विता

इसमें कोई शक नहीं था कि वह रूपवती थी और वह भी ‘मुग्धा’ नहीं ‘गर्विता’ |वह मेरे पड़ोस की आंटी के पाँच बेटियों में सबसे छोटी थी |वह पैदा ही मोम की गुड़िया -सी हुई थी |उसे जो भी देखता ,प्यार करता |मेरा तो स्कूल के अलावा सारा समय उसके साथ ही गुजरता |आंटी मज़ाक में कहतीं –बुढ़ापे के बच्चे सुंदर ही होते हैं |वैसे उससे बड़ी चार बहनें भी कम सुंदर नहीं थीं ,पर सुधा की बात कुछ और ही थी |बचपन से ही वह वह अपने रूप के प्रति सजग और सतर्क थी |तरह-तरह के मेकअप की जानकार भी |लेटेस्ट फैशन को देखते ही उसकी नकल कर लेती |तरह –तरह की केश सज्जा भी जानती थी |उन दिनों ब्यूटी पार्लर इक्के-दुक्के ही होते थे ,वह भी साधारण लोगों की पहुँच से बाहर |यही कारण था कि मुहल्ले और नात-रिश्तेदारों में दुल्हन को सजाने के लिए मिन्नत करके सुधा बुलाई जाती और सच ही वह दुल्हन को इस तरह तैयार करती कि सब देखते रह जाते |दुल्हन ही क्यों मुहल्ले की सारी लड़कियां विशेष अवसरों के लिए उससे ही टिप्स लेतीं |मैं भी उनमें से एक थी |मैं सजने-संवरने के मामले में पूरी लददड़ थी,इसलिए हमेशा उसकी डांट खानी पड़ती थी |एक तो मैं वैसे भी रूप-रंग में सामान्य थी ,ऊपर से न तो ड्रेसिंग सेंस ,न मेकअप का शऊर |यही कारण था कि किसी उत्सव में जाने के लिए उसकी चिरौरी करके तैयार होती |वह खुद जिस तरह भी तैयार होती ,वही लेटेस्ट फैशन हो जाता |पर वह पढ़ाई-लिखाई के मामले में जीरो थी और मैं अव्वल |पर वह इससे लज्जित नहीं होती |बड़े ही अभिमान से कहती –‘कौन पढ़ी-लिखी मेरे सामने टिक सकती है ?क्या तुम ?तुमसे ज्यादा शिक्षित तो मैं ही दिखती हूँ |तुम्हारे अध्यापक और सहपाठी मुझे देखते हैं,तो देखते रह जाते हैं |’बात सही थी ,पर उसका यह बड़बोलापन मुझे अच्छा नहीं लगता था |फिर भी मैं उसे कुछ नहीं कहती थी |मुझे उससे लगाव था ,जिसे वह डर समझती थी |सबसे कहती कि मैं उससे डरती हूँ |मैं मन ही मन हँसती कि भला उससे डरूँगी क्यों ?

एक बार वह अपनी बड़ी बहन के ससुराल गयी और उसके देवर सुरेश से दिल लगा बैठी |दोनों ही समवयस्क और एक ही डील-डौल के थे |दोनों एक-दूसरे से विवाह करना चाहते थे ,पर बहन ने इसकी इजाजत नहीं दी |एक तो उसका ससुराल गाँव में था ,दूसरे घर की माली हालत बहुत खराब थी |देवर अभी दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था |वह जान रही थी कि उसकी फैशनेबुल बहन उसके घर ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगी |वैसे भी किशोर वय का प्रेम मात्र एक उबाल होता है,जो स्थायी नहीं होता |

सुधा की शादी रमेश से नहीं हो पाई ,इसके लिए वह आजीवन बहन को माफ नहीं कर पाई |घर लौटी तो घर के आस-पास लड़के मंडलाने लगे |पढ़ना-लिखना उसे था नहीं ,इसलिए उसके माता-पिता ने उसके लिए लड़का देखना शुरू किया |शीघ्र ही मध्यवर्ग का एक परिवार मिल गया ,जो सुधा के रूप पर लट्टू हो गया और बिना किसी विशेष दान-दहेज के शादी तय हो गयी |उन दिनों लड़कियों को लड़के से मिलवाना जरूरी नहीं था |फोटो आया था,जिसे सुधा पसंद कर चुकी थी |पर जब जयमाला के समय उसने लड़के को सामने से देखा तो उदास हो गयी |चेहरा तो फोटो वाला ही था ,पर वह हीरों की तरह स्मार्ट नहीं था |

सुधा को बहन की तरह माता-पिता से भी शिकायत हो गयी |उसके अनुसार सबने मिलकर उसे डूबो दिया था |हालांकि उसे मायके से अच्छी स्थिति वाला ससुराल मिला था और सभी उससे प्यार भी करते थे |पति तो हमेशा उसका मुंह जोहता रहता था ,पर सुधा ने उसे कभी प्यार नहीं किया |पति शादी के बाद भी उसे पढ़ाने को तैयार था ,पर दसवीं में दो बार फेल होने के बाद वह न पढ़ने की जिद पर अड़ गयी |

सुधा जब पच्चीस की हुई उसकी दो बेटियाँ हो चुकी थीं और क्रमश:आठ और पाँच साल की थीं |वह भी पूरी गृहस्थिन हो चुकी थी |वह रूप सँवारने की दिशा में भी कार्य कर रही थी |इसी कारण ससुराल की सारी युवा स्त्रियाँ उसकी दीवानी थीं |उसने अपनी बड़ी बेटी को बचपन से ही घर के कामों में लगा दिया |अपनी कुंठा वह उसी पर निकालती |बेचारी बच्ची जब घर का सारा काम करके और नाश्ता बनाकर स्कूल चली जाती ,तब सुधा सोकर उठती |सुधा को अपने पति से इस बात की भी चिढ़ थी कि वे अपने बड़े भाई और उसके परिवार से भी उसी तरह जुड़े थे ,जितना अपने परिवार से |सास भी इस मामले में उसके साथ पक्षपात करती थी |वे रहतीं सुधा के पास थीं पर गातीं उसकी जिठानी की थीं |सास की मृत्यु पर उसे बिलकुल दुख नहीं हुआ बल्कि उसने आजादी का अनुभव किया |

समय का परिंदा पंख लगाकर उड़ता रहा |बड़ी बेटी अब सत्रह पार कर रही थी और छोटी उससे भी ज्यादा युवा दिखने लगी थी |पढ़ाई-लिखाई में दोनों ही अच्छी थीं पर दोनों बेटियों का स्वभाव बिलकुल ही अलग था |छोटी सुधा की कार्बन कापी थी |रूप –रंग में ही नहीं ,गुण-ढंग में भी |उसने भी छोटी उम्र से ही आशिक़ी शुरू कर दी थी |घर का कोई काम भी नहीं करती थी |बिलकुल राजकुमारियों की तरह रहती |सुधा का उस पर अतिरिक्त स्नेह भी था ,जबकि बड़ी को बचपन से ही दबा दिया गया था |वह रूप-रंग में पिता पर गयी थी ,पर बड़ी ही सुशील,शांत और शरीफ लड़की थी |बड़ी ने ज्यों ही बी॰ए॰ किया सुधा ने उसकी शादी तय कर दी |बेटी जब विदा होने लगी ,तब सुधा को उसकी उपयोगिता का आभास हुआ |वह बहुत रोई...पछताई ,पर बेटी तो पराई हो ही चुकी थी |उसके जाते ही घर का सारा कार्यभार सुधा पर आ गया |छोटी बेटी से उसे कोई सहयोग नहीं मिलता था |साथ ही हमेशा चिंता बनी रहती थी कि वह कोई गलत कदम न उठा ले |छोटी बेटी से वह डरती भी थी क्योंकि वह उसका सारा राज जानती थी |

सास की मृत्यु के तत्काल बाद ही सुधा के जीवन में उसके बचपन के एक दोस्त गौरव का प्रवेश हो चुका था |गौरव इस समय कपड़े का बहुत बड़ा व्यापारी बन चुका था और सुधा के ससुराल में ही उसका तीन मंज़िला शो रूम भी था |

कब और कैसे उनकी दोस्ती अंतरंगता में बदली ,पता ही नहीं चला |गौरव देखने –सुनने में भी फिल्मी हीरो माफिक था |बड़ी गाड़ी से चलता था और बेदर्दी से पैसे खर्च करता था |सुधा यही तो चाहती थी |बचपन से ही अभाव सहते-सहते वह जीवन से ऊब चुकी थी |अब उसके जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हो गया |वह गौरव के साथ बड़े -बड़े होटलों में जाने लगी |वैसे तो उसके भीतर आया बदलाव सुखद था |वह नवौढ़ा- सी सुंदरता व यौवन प्राप्त कर चुकी थी |उसकी वेश-भूषा,रख-रखाव किसी सेलिब्रेटी की तरह हो गया था |उसकी बेटियाँ अब एक-से एक फैशनेबुल व महंगे कपड़े पहनने लगी थीं |गौरव भी उसका दीवाना था [हालांकि उसकी अपनी बीबी और बच्चे भी थे और वह उनका भी ख्याल रखता था |]पर सुधा में एक कमी थी कि अपनी इस खुशी को छिपा नहीं पा रही थी |वह अपने भाई-भतीजों और रिश्तेदारों को महंगे उपहार देने लगी थी और अपने घर आए रिशतेदारों के साथ गौरव के शोरूम जाने लगी थी |शोरूम में गौरव और वह जिस तरह मिलते या बातें करते ,उससे कोई भी उनके बीच के रिश्ते को जान सकता था ,पर सुधा को इसकी परवाह नहीं थी |वह भूल चुकी थी कि वह शादीशुदा और दो बच्चियों की माँ है और उसका पति एक छोटा सा व्यापारी है ,जो उसे एक सामान्य जीवन ही दे सकता है |वह एकाएक इतनी अमीर कैसे हो गयी ,इस बात को सब समझते थे ,भले ही लालच व संकोच वश उससे कुछ नहीं कहते थे |वह गौरव के प्रेम में सब कुछ भूल बैठी थी |

जब पहली बार उसने मुझसे बताया कि मुझे गौरव से प्यार है और वह भी मुझे उतना ही प्यार करता है तो मैं चौक पड़ी ‘...प्रेम...!क्या एक विवाहित स्त्री का दूसरे विवाहित पुरूष से अंतरंग रिश्ता प्रेम की संज्ञा पा सकता है ?हमारे यहाँ तो पारिवारिक ,सामाजिक,धार्मिक,नैतिक ही नहीं कानूनी दृष्टि से भी यह अक्षम्य अपराध है |सुधा एक तो ऐसे अवैध प्रेम में आकंठ निमग्न थी,ऊपर से इसे छिपा भी नहीं पा रही थी | हालांकि वह अपने मुंह से किसी को कुछ बताती नहीं थी ,पर उसके चेहरे की भाव-भंगिमा ,उसकी देह-भाषा सारे रहस्य से पर्दा उठा दे रही थी |

मुझे आश्चर्य था कि उसका पति सुधा के बदलाव की नोटिस क्यों नहीं ले पा रहा है? क्या वह जानकर भी किसी कारण मजबूर है ?या घर के तनाव को सुधा छिपा ले जा रही है |

एक बार जब मैं सुधा से मिलने उसके घर गयी तो वह मुझे गौरव के शोरूम में ले गयी |मैंने देखा ,वहाँ के सारे नौकर सुधा को देखते ही आपस में इशारेवाजी करने लगे |मतलब साफ था कि वे अपने मालिक के साथ सुधा के रिश्ते की बात जानते थे ,मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा |सुधा ने अपने भाई-भतीजों के लिए कपड़े पसंद किए और जाते वक्त पैकेट उसके हाथ में था |मैंने सोचा कि उसके भाई व मैके ,ससुराल के सारे रिश्तेदार उसकी आर्थिक स्थिति से वाकिफ हैं,फिर क्या वे कभी यह नहीं सोचते कि वह इतना कुछ कैसे और कहाँ से लाती है ?क्या जब वे यह जानेंगे तो भी उसे उतना ही सम्मान देंगे,जितना आज दे रहे हैं |उपहार ही जिन रिश्तों का आधार है,वह कितने दिन टिकेगा ?सुधा इतनी खुली हुई है कि ज्यादा दिन सब कुछ छिपा नहीं रह पाएगा |मुझे तो यह भी लगता कि जानते सब हैं ,पर एक पर्दा है बीच में,जिसे कोई नहीं उठाना चाहता|सुधा से सबको फायदा मिल रहा है इसलिए सब चुप हैं |पर कब तक ?कभी न कभी कोई आगे बढ़ेगा फिर....|मुझे बार-बार बाल्मीकी की कहानी याद आती थी |

बाल्मीकी लूटमार और हत्याएं करके धन से अपने कुनबे को भर रहे थे |सप्तऋषियों ने उनसे कहा-जाओ अपने कुनबे वालों से पूछो कि वे तुम्हारे पाप में भी भागीदारी करेंगे ?कुनबे वालों ने साफ इंकार कर दिया –तुम्हारे पाप में हम क्यों भागीदार होंगे ?बाल्मीकी की आँखें खुल गईं कि जिनकी परवरिश के लिए पाप कर्म कर रहा हूँ वे ही मेरे साथ नहीं हैं |उन्होंने सब त्यागकर रामभक्ति अपना ली |

देहात में भी एक कहावत है –‘जेकरे खातिर चोरी कइनी उहे कहे चोरवा‘|सुधा को इस स्थिति का सामना न करना पड़े |

मेरा डर सच निकला |एक दिन यही हुआ |भेद खुलते ही एक-एक कर सभी उसकी बुराई करके अलग हो गए |पीठ पीछे उसे चरित्रहीन भी कहने लगे |वह आहत हो गयी | उधर छोटी बेटी उसके हाथ से निकल रही थी |जरूरत से ज्यादा आजादी और सुविधाओं ने उसे ओवर मार्डन बना दिया था |सुधा उसके लिए चिंतित रहा करती|घर में उसे अकेले छोड़ना भी मुश्किल था |वह अपने ब्वायफ्रेंड को घर बुला लेती |ऐसे में गौरव ही से उसे उम्मीद थी ,पर एक दिन उसने भी उसे गलत कह दिया| कारण सुधा का अन्य पुरूषों से भी हँसना-बोलना था |वह उसके चरित्र पर शक करने लगा था |वैसे भी ऐसे रिश्तों में विश्वास कम ही रहता है |एक दिन इसी बात पर दोनों में झगड़ा हो गया तो उसने कह दिया कि तुम तो वेश्या से भी गयी-गुजरी हो |पैसे के लिए सब कुछ करती हो |सुधा को सदमा सा लगा |उसने जिसके लिए इहलोक और परलोक दोनों बिगाड़ा ,वही उस पर विश्वास नहीं करता |उसने गुस्से में उसके दिए उपहार और जेवर लौटा दिए और उससे सारे संबंध तोड़ लिए |वैसे भी वह उससे पक चुकी थी |इधर वह मनमानी भी करने लगा था |जब -तब उसे बुला भेजता|कभी होटल में ,कभी अपनी गाड़ी में ही उससे संबंध बना लेता |सुधा डरती कि कोई देख न ले पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था |आखिरकार वह पुरूष था ,जिसके लिए पर स्त्री प्रसंग गौरव का विषय होता है |सुधा नहीं आती तो कहता कि ‘क्या कहीं और अपनी इच्छापूर्ति कर रही हो ?’वह भूल गया था कि सुधा का अपना घर-परिवार है ,पति है जवान बेटियाँ हैं और शहर भी इतना छोटा है कि बात फैलते देर नहीं लगती |वह अपनी तरफ से सब कुछ बचाने की कोशिश करती रही ,पर जिस तरह गंदगी नहीं छिपाई जा सकती उसी तरह अवैध रिश्ता भी नहीं छिपता |पूरे शहर के लोग उसके बारे में बातें करने लगे |पति के कानों तक बात गयी तो उसने सुधा को वेश्या तक कह डाला |उधर उसके भाई-भतीजे और रिश्तेदार भी उसके खिलाफ खड़े हो गए |सुधा अकेली पड़ गई|मुझे उसपर दया आती कि इसने अपने रूप के गर्व में खुद को क्या बना लिया है ?पर जब उसके बड़े भाई ने उसे बुरा कहा तो मुझसे नहीं रहा गया-‘जब वह आपके और आपके परिवार के लिए कीमती उपहार लाती थी तब आपको ख्याल क्यों नहीं आता था कि वह कहाँ से लाती है ?उसकी आर्थिक स्थिति तो आप जानते थे |’भाई शर्मिंदा हो गए |

मुझे सुधा से सहानुभूति थी क्योंकि मैं जान गयी थी कि प्रेम की अतृप्ति में उसने यह कदम उठाया है |रूप के गर्व में उसने सोचा कि भाग्य को नकार कर मनचाहा पुरूष पा सकती है |मुझे गौरव पर भी गुस्सा आता जिसने सुधा को गुमराह किया था |सुधा के संबंध तोड़ लेने पर वह बावला हो उठा और उससे माफी मांगने लगा |वह नहीं पिघली तो मुझे फोन करके गिड़गिड़ाने लगा कि सुधा को समझाइए|मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ उसके बिना नहीं जी सकता |पर मैंने उसे डांट दिया –‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई उसे वेश्या कहने की |तुम्हारे साथ गिर गयी तो क्या सबके साथ गिरती रहती है ?वह बोल्ड है सबसे हँसती-बोलती है तो गलत हो गयी |इतनी टुच्ची सोच है तुम्हारी |अब भूल जाओ उसे ...वह माफ नहीं करने वाली तुम्हें |’कहते हुए मैंने फोन काट दिया और उसका फोन नंबर भी ब्लाक कर दिया ताकि फिर मुझे फोन न कर सके |

उस समय तक मुझे विश्वास था कि सुधा गलत स्त्री नहीं है |बस अपने रूप गर्व में पुरूषों को आकर्षित करती है |वैसे भी इसमें उसका कोई दोष नहीं था |वह जहां जाती ,जवान लड़के और पुरूष उसके इर्द -गिर्द मंडराने लगते|चाहें वो भतीजे हों या भांजे |रिश्ते में बेटे लगते हों या दामाद |सभी उसे पसंद करते ,वह भी सबसे मित्रवत व्यवहार करती |वह गर्व से कहती –‘मेरे सौंदर्य के जादू से कोई बच नहीं सकता |’उसका इतना बोल्ड होना मुझे अच्छा नहीं लगता |मैं उसे समझाती कि रिश्तों में मर्यादा का ध्यान रखना जरूरी है’ ,तो वह चिढ़कर कहती –‘आपकी कहानियों की नायिका तो बड़ी बोल्ड होती हैं पर आप अपने जीवन में पिछड़ी हुई हैं |’अब मैं उससे क्या बताती कि बोल्डनेस विचारों में होनी चाहिए सिर्फ फैशन में नहीं | कभी-कभी मुझे लगता कि जिस सुधा को मैं जानती हूँ उससे इतर सुधा भी उसके भीतर है ,जो प्रेम की प्यासी एक आत्मा है |

गौरव उसके जीवन से निकल गया,तो कुछ दिन वह शांत रहकर सबका पुन:विश्वास जीतती रही |एक दिन सब ठीक हो गया |नहीं भी हुआ हो तो लगने लगा |सभी उससे फिर से आ जुड़े,पर अब सुधा सावधान थी|उसके जीवन में और भी पुरूष आते-जाते रहे ,पर उनके बारे में वह किसी को भी नहीं बताती थी ,मुझे भी नहीं |पर कभी-कभी मुझे लगता कि वह गौरव को अभी तक भूला नहीं पाई है और उसके लिए तड़पती है |उसकी कमी को पूरा करने के लिए ही वह एक के बाद एक पुरूषों को जीवन में लाती है,पर गौरव के खाली किए गए जगह को कोई नहीं भर पाता है |मुझे लगा कि स्त्री एक बार अपने चरित्र से गिर जाए तो उसके गिरने की सीमा नहीं रहती |

इसी बीच छोटी बेटी के लिए उसने दूसरे बड़े शहर में रिश्ता ढूँढा और दहेज के बल पर उसकी धूमधाम से शादी कर दी |पैसा हर कमी को छिपा देता है |

अब वह बिलकुल अकेली हो गयी थी |पति अपने पुराने हिसाब से ही चल रहा था |पर रोमांचक जिंदगी चाहने वाली सुधा ज्यादा दिन शुष्क और नीरस जिंदगी नहीं जी सकती थी |उसने अपने –आप को बदलना शुरू कर दिया |सबसे पहले तो स्लीम हुई ,फिर किशोर लड़की की तरह के कपड़े पहनने लगी और अपनी छोटी बेटी का हर स्टाइल अपना लिया |

कुछ दिन पहले जब मैं उससे मिलने गयी तो उसे देखकर चौंक गयी |उसमें पहले की सुधा सा कुछ नहीं बचा था |ना पहले की तरह सिर पर लंबे ,घने केश थे|,न स्वस्थ ,सुंदर शरीर पर नाभिदर्शना साड़ी, डिजायनदार ब्लाउज और लेटेस्ट फैशन के जेवर थे |रंगे हुए छोटे बालों व टी शर्ट ब्लेजर में वह पीछे से कोई किशोरी जान पड़ी पर जब मुड़ी तो मैं शाक्ड हो गयी |उसके पूरे चेहरे पर झाइयाँ आ गयी थीं |उसका सारा सौंदर्य ही जैसे किसी ने निचोड़ लिया था |मैंने कहा-क्या कर लिया है तुमने खुद को ...?तो हँसकर बोली –कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा |तेजी से वजन घटाने के कारण ऐसा हो गया है |

थोड़ी देर बाद जब उसने मेकअप से चेहरे को सुंदर बना लिया,तब मैं उसके चेहरे की तरफ देख पाई |मैंने सोचा कि अब उसके जीवन में कोई पुरूष नहीं है शायद इसीलिए इसने खुद को ऐसा कर लिया है पर मैं गलत थी |थोड़ी देर बाद जब पच्चीस साल के एक लड़के ने घर में प्रवेश किया ,तो सब कुछ समझ में आ गया |सुधा अब उस लड़के के अनुरूप बनने की कोशिश में अपने साथ अन्याय कर रही है |वह भूल गयी है कि उम्र की खाई पाटना किसी रूप गर्विता के लिए भी संभव नहीं है |मैं सोचने लगी कि क्या सुधा रूपगर्विता से रूपजीवी बन गयी है ?या वह किसी मानसिक ब्याधि की शिकार हो गयी है ?

आखिर मोम की गुड़िया -सी सुधा किस आंच में पिघल-पिघलकर अपनी सुंदर आकृति खो बैठी है ?


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