वैसे तो जाने कब से स्त्री-पुरूष के लिए यह दोहरी नीति चली आ रही है और समाज के रगों में यह इतना घुल गया है कि किसी को इसमे कुछ गलत नहीं लगता ,पर न्याय तो यही कहता कि यह विभेद मिटना चाहिए |स्त्री सदियों से इस न्याय के लिए लड़ रही है |पहले अंदर-अंदर ही घुटती थी,अब खुलकर चीखने लगी है |कोई यूँ ही तो नहीं चीखता है|असहनीय पीड़ा होती है,तभी चीखता है |पर समाज की दृष्टि में यह स्त्री की बगावत है| गरिमा और शालीनता के खिलाफ बगावत!उसने फतवा जारी कर दिया कि जो चीखती है,वह अच्छी स्त्री नहीं है |अच्छी स्त्री में धैर्य,त्याग और विनम्रता होती है |वह अपने पुरूष की खुशी के लिए जीती-मरती है | यदि उसके पुरूष को हजार स्त्रियाँ और चाहिए,तो अच्छी स्त्री को कोई एतराज नहीं होना चाहिए|आखिर वह पुरूष है,कोई स्त्री तो नहीं कि छूने मात्र से अपवित्र हो जाए|जो पुरूष यह कहते हैं कि यह पुराने जमाने की बात है,वे खुद को टटोलकर देखें कि क्या एकाधिक स्त्रियों की कामना से उनका मन उद्वेलित नहीं होता रहता?यह अलग बात है कि ना तो स्त्री इतनी आसानी से उपलब्ध है,ना ही सबके पास इतनी सामर्थ्य है |पर ज्यों ही स्थिति जरा भी अनुकूल हुई,वह हाथ-पाँव मारने से बाज नहीं आता|अपने लिए इतनी आजादी चाहने वाला पुरूष अपनी स्त्री को आज भी सती-सावित्री के रूप में देखना चाहता है|किसी की कारण से स्त्री के पैर फिसले नहीं कि उसके साथ क्या-क्या नहीं किया जाता ?शादी के बाद की बात तो छोड़ दें,यदि शादी से पूर्व भी स्त्री के किसी से भावनात्मक रिश्ते भी रहे हों,तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाता |यह सिर्फ इसी देश की बात नहीं है,दूसरे देशों में भी यह दोहरी नीति व्याप्त है |पिछले वर्ष इटली के ९९ वर्षीय बुजुर्ग एंटोनियो सी ने अपनी ९६ वर्षीया पत्नी रोसा सी से तलाक माँग लिया था | क्योंकि उसे पता चला था कि उसकी पत्नी का १९४० में किसी से प्रेम था |’द डेली टेलीग्राफ’की रिपोर्ट के अनुसार अपने गुप्त प्रेम-प्रसंग के दौरान महिला ने अपने प्रेमी को खत भी लिखे थे |वैवाहिक जीवन के आठ दशक से ज्यादा समय साथ गुजारने और पाँच बच्चों और दर्जन-भर नाती-पोती तथा एक प्रपोत्र के बावजूद ,बुजुर्ग पत्नी के इस विश्वासघात को भुला नहीं पाया |अब इसे क्या कहा जाए|सिद्ध तो यही हुआ कि स्त्री की यौन-शुचिता विदेशी पुरूषों के लिए भी उतनी ही मायने रखती है,जितनी इस देश के पुरूषों के लिए |पर पुरूष की यौन-शुचिता !क्यों उसके लिए अधिकाधिक स्त्रियों से रिश्ता गर्व का विषय है |’द डर्टी पिक्चर’का नायक सिल्क से पहली ही मुलाक़ात में गर्व से बताता है कि –‘वह अब तक ५०० से अधिक स्त्रियों से ट्यूनिंग कर चुका है|’ सभी यहाँ तक कि उसकी पत्नी भी उसके गलीज चरित्र को जानती है |पर क्या उसे कोई फर्क पड़ता है ?तब भी उसके नाम से फ़िल्में चलती हैं |सिल्क जैसी लड़कियाँ उससे ट्यूनिंग के लिए आतुर रहती हैं और पत्नी गर्व से उसकी संतान को गोद में लिए फिरती है |और सिल्क ...उसके भाई से संपर्क बनाते ही द्रोपदी यानी डर्टी हो जाती है |सिल्क के हारने का वह जश्न मनाता है और कहता है –‘ऐसी औरत का यही होता है|’ ऐसी औरत यानी डर्टी औरत |पर ऐसी औरत बनाता कौन है ?अजीब न्याय है ?औरत को डर्टी करने वाला पुरूष डर्टी नहीं कहलाता |ग्लैमर की दुनिया के चमकते सितारे अक्सर छल-प्रपंच और विश्वासघात के शिकार होते रहे हैं |दक्षिण की सेक्सी क्वीन ‘सिल्क-स्मिता’ही नहीं,धीर-गम्भीर,विचारशील ‘मीनाकुमारी’,चर्चित कोरियन सुपर मॉडल ‘किम डूऊल’,बिंदास ‘प्रवीन-बॉबी’यहाँ तक कि हॉलीवुड की खूबसूरत हीरोइन ‘मर्लिन-मुनरो’और अब जिया खान को भी ग्लेमर की दुनिया के जगमगाती रोशनी के पीछे के काले,घने अँधेरे ने लील लिया |उनकी अस्वाभाविक मृत्यु पर सारी दुनिया रोई,पर क्या दुनिया ने सोचा कि उन स्थितियों को बदला जाए,जिसके कारण अद्भुत सौंदर्य,प्रतिभा-सम्पन्न स्त्रियों का इतना दुखद अंत होता है|उपरोक्त सारी स्त्रियों का बस एक ही अपराध था कि उन्होंने सामान्य स्त्री ना होते हुए भी प्रेम की आकांक्षा की |जिस पुरूषवर्चस्ववादी समाज में यौन-शुचिता का इतना महत्व है,वहाँ उन्हें कैसे प्रेम मिलता ?जिन्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है,वे मर्लिन मुनरों के सुसाइड नोट को पढ़ लें –‘मैं उस बच्चे जैसी हूँ,जिसे कोई नहीं चाहता |’