रिमझिम गिरे सावन - 3 - अन्तिम भाग Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रिमझिम गिरे सावन - 3 - अन्तिम भाग

(अन्तिम भाग)

जब झुम्पा घर आई तो उसके बाबा ने उससे पूछा.....
    क्या जतिन्दर तुझे पसंद करता है?
झुम्पा पलकें झुकाए और गरदन नीचे करके खड़ी हो गई लेकिन बोली कुछ नहीं...
  तब बाबा ने फिर से तेज आवाज़ में पूछा....
  जवाब दे...झुम्पा! वो तुझे पसंद करता है या नहीं....
  हाँ! बाबा! और कहता है कि मुझसे शादी करेगा, झुम्पा डरते हुए बोली...
  उसने कहा और तूने उसकी बातों पर यकीन कर लिया...., बाबा बोले।।
  बाबा! वो एक अच्छा इंसान है, झुम्पा बोली।।
   बेटा! कोई भी परदेशी अच्छा नहीं होता, ये यहाँ पहाड़ो पर आते हैं और यहाँ की भोली-भाली लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फाँसकर, अपना फायदा उठाते हैं और यहाँ से भाग जाते हैं, बाबा बोले।।
लेकिन वो ऐसा नहीं है, वो मुझे प्यार करता है, झुम्पा बोली।।
  ये प्यार नहीं बेटा! ये धोखा है, जैसा कि एक परदेशी ने मेरी बहन के साथ किया था और जब उसे पता चला कि वो माँ बनने वाली है तो उसे छोड़़कर भाग गया, बदनामी के डर से मेरी बड़ी बहन ने ज़हर खा लिया था, इन्हीं हाथों से मैने उसकी चिता को आग दी थी, बाबा बोले।।
   लेकिन बाबा ! वो मुझे धोखा नहीं देगा, झुम्पा बोली।।
  तू समझ क्यों नहीं रही है मेरी बच्ची? बाबा बोले।।
लेकिन क्या करूँ बाबा? मैं भी उसे चाहने लगी हूँ, दिल की सुनूँ या दिमाग़ की, झुम्पा बोली।।
  तू अपने बाप की भी नहीं सुनेगी, माँ बोली।।
मैं क्या करूँ माँ? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, झुम्पा बोली।।
  तभी माँ, बाबा से बोली....
   कोई अच्छा सा लड़का देखकर जल्द ही इसके हाथ पीले कर दो, तब सुधरेगी ये।।
  माँ ! मैं किसी और से हरगिज़ शादी नहीं करूँगीं, झुम्पा बोली।।
क्या बोली तू? बाप के खिलाफ जाएगी, ये तेरी छोटी बहनें क्या सीखेंगीं?माँ चीखी।।
   माँ! ये सब मत करो, तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, झुम्पा रोते गिड़गिड़ाते हुए बोली।।
  बाबा को झुम्पा पर दया आ गई और वें बोलें...
ठीक है तो तू कल ही जतिन्दर को यहाँ बुला, मैं उससे बात करता हूँ, तुझे एक मौका देता हूँ।।
  ये सुनकर झुम्पा अपने आँसू पोछते हुए बोली....
  बाबा! मुझ पर यकीन कीजिए, मैं कभी भी कोई ऐसा काम नहीं करूँगीं जिससे आपका सिर शर्म से झुक जाएं...
  इसलिए ही तो मौका दे रहा हूँ, बाबा बोले।।
  तुम पागल हो गए हो क्या? ये कैसीं बातें कर रहे हो, माँ बोली।।
    एक बार इसकी भी बात सुन लेने दे, बाबा बोले।।
  जो मन में आए सो करो, मैं कुछ नहीं जानती और इतना कहकर माँ अपने काम में लग गई।।
     उस रात झुम्पा को नीद नहीं आई और वो सुबह होने का इन्तजार करने लगी, रात के तीसरे पहर जाकर उसकी आँख लगी थी इसलिए सुबह भी जल्दी हो गई और दोपहर होते होते जतिन्दर उसके घर में उसके बाबा के सामने था।।
    तो तुम झुम्पा से शादी करना चाहते हो, बाबा बोले।।
  जी! हाँ!, जतिन्दर बोला।।
उसे धोखा तो नहीं दोगे, बाबा ने पूछा।।
  जी! कभी नहीं, जतिन्दर बोला।।
  तो कल ही उससे सगाई करोगें, पूरे समाज के सामने, बाबा ने पूछा।।
   सगाई क्या ? मैं तो शादी करने को भी तैयार हूँ, जतिन्दर बोला।।
   और तुम्हारे परिवार वाले राजी होगें इस रिश्ते के लिए, बाबा ने पूछा।।
  जी! परिवार के नाम पर  केवल मेरे पापा हैं, माँ बचपन में ही चल बसीं थीं, पापा ने ही मुझे पालपोस कर बड़ा  किया है, मैने पापा को पहले ही सब कुछ बता दिया है चिट्ठी लिखकर, जतिन्दर बोला।।
तो कल तुम दोनों की सगाई है, बाबा बोले।।
   और जतिन्दर ने बाबा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और धन्यवाद प्रकट करते हुए बोला....
  मै कैसे कहूँ कि मुझे कितनी खुशी हो रही है? आपने मेरी इच्छा का मान रखकर बहुत बड़ा एहसान किया है, आपकी अमानत को मैं हमेशा सम्भाल कर रखूँगा, मैं वचन देता हूँ।।
  जतिन्दर की बात सुनकर बाबा उसे गले से लगाकर बोले....
    मुझे तुमसे यही आशा है, तुम पर पूरा यकीन है, मैं कल ही तुम दोनों की सगाई करवा देता हूँ, फिर तुम अपने पापा को यहाँ ले जाओ, तब तुम दोनों की शादी कर देंगे।।
     उनकी सब बातें झुम्पा भी  छुपकर सुन रही थी तभी बाबा ने चिल्लाकर कहा....
  और जो हमारी बातें छुपकर सुन रहा है, वो भी खुश है कि नहीं....
तब झुम्पा मन ही मन मुस्कुरा दी...

झुम्पा छुपकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी तो बाबा बोले.....
  भाई ! अगर शादी करनी है तो जोड़े के साथ आकर आशीर्वाद लेना होगा, नहीं तो मुझे ये शादी टालनी होगी...
  ये सुनकर झुम्पा बाहर आ गई और अपने बाबा के गले लग गई, फिर झुम्पा और जतिन्दर दोनों ने ही बाबा से आशीर्वाद लिया।।
  झुम्पा और जतिन्दर बहुत खुश थे, उनका सपना जो पूरा होने जा रहा था, दोनों ही अपने भविष्य के सपने बुनने लगे थे, दूसरे दिन झुम्पा के बाबा ने अपने पास-पड़ोस को न्यौता दे डाला कि शाम को झुम्पा की सगाई है जतिन्दर के साथ।।
   पास-पड़ोस वालों ने झुम्पा के बाबा से कहा कि किसी परदेशी पर इतना विश्वास मत करो, मत सौपों अपनी फूल सी बेटी उसके हाथों में, क्या पता वो धोखेबाज निकला तो, लेकिन झुम्पा के बाबा उन सभी की बात नहीं माने और शाम को झुम्पा और जतिन्दर की सगाई की रस्में शुरू हो गई, झुम्पा पहाड़ी वेषभूषा में तैयार होकर जब जतिन्दर के सामने आई तो जतिन्दर के तो जैसे होश ही उड़ गए।।
     जतिन्दर को भी झुम्पा के बाबा ने पुरूषो वाली वेषभूषा उपहारस्वरूप भेट की थी और बोले थी कि शाम को सगाई में यही पहनना तो जतिन्दर भी पहाड़ी वेषभूषा में था, दोनों की सगाई हो गई, लेकिन झुम्पा के सभी पास-पड़ोस ने उसे सगाई की दिल से बधाई नहीं दी क्योंकि उन सब को अभी जतिन्दर पर भरोसा नहीं था।।
   लेकिन झुम्पा ने इस बात पर गौर किया और उदास हो बैठी, तब जतिन्दर ने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा, तब झुम्पा बोली....
  जतिन्दर! मुझे लगता है पास-पड़ोस का कोई भी इन्सान इस रिश्ते से खुश नहीं है।।
अरे, अभी है कुछ दिनों के बाद सब ठीक हो जाएगा तुम खाँमखाँ में डर रही हो, आज के दिन भी तुमने ऐसी सूरत बना रखी है, मुझे ये देखकर अच्छा नहीं लग रहा, जतिन्दर बोला।।
   वो इन सबका व्यवहार देखकर मन थोड़ा घबरा गया, झुम्पा बोली।।
छोड़ो इन सबको, इतना मत सोचो, आज हमारी जिन्दगी का बहुत ही खूबसूरत दिन है, आज हम एकदूसरे से इस रिश्ते में बंध गए हैं वो भी तुम्हारे घरवालों की मरजी से तो इस बात का जश्न मनाओ ना कि चेहरे पर ऐसे उदासी लाओ, मेरी दुल्हन ऐसे उदास होगी तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा, जतिन्दर बोला।।
  अच्छा! ठीक है जी! अब उदास ना हूँगी, मैं अब हमेशा खुश रहूँगी, तुम जो आ गए हो मेरी जिन्दगी में, झुम्पा बोली।।
मैं बस यही चाहता हूँ कि तुम हमेशा ऐसे ही खुश रहो, मैं इस दुनिया में रहूँ या ना रहूँ, वादा करो कि तुम्हारे चेहरे की मुस्कुराहट यूँ ही बनी रहेगी, जतिन्दर बोला।।
  आज दिन तो मरने की बातें ना करो, नहीं तो मैं तुमसे रूठ जाऊँगी और कभी बात ना करूँगी, मरे तुम्हारे दुश्मन, झुम्पा बोली।।
  अच्छा जी!तो आप हमसे इतना इश्क करतीं हैं, जतिन्दर ने आशिकी भरे अन्दाज में पूछा।।
  जी! हाँ!अपनी जान से भी ज्यादा, झुम्पा बोली।।
  बस ! मैं यही चाहता हूँ कि तुम हमेशा खुश रहो और ऐसे ही मुझे प्यार करती रहो, जतिन्दर बोला।।
   तुम सच में बहुत अच्छे हो, तुम्हारे जैसा जीवनसाथी पाकर अब किसी भी चीज की कामना नहीं रह गई है, झुम्पा बोली।।
   और मुझे भी अब कुछ नहीं चाहिए सिवाय दो बच्चों के, पहले लड़की फिर लड़का, मैं, तुम, हमारे दो बच्चे और मेरे बाबूजी जब सब एक साथ रहेंगे तो कितना मजा आएगा, जतिन्दर बोला।
   धत्त..! ये कैसी बातें करते हो? झुम्पा बोली।।
तो और कैसीं बातें करूँ? हम दोनों की शादी होने वाली है, जतिन्दर बोला।।
शादी के लिए अभी समय है, जब हो जाएगी तब ऐसी बातें करना, झुम्पा बोली।।
  हाँ! मैं तुमसे ये बताना तो भूल ही गया, अब मेरी छुट्टियांँ खतम होने वालीं हैं, दो महीने की छुट्टी मिली थी तो मैं फौरन यहाँ तुम्हारे पास चला आया, अपने बाबूजी के पास  एक भी दिन नहीं रूका, अब डेढ़ महीने से तो तुम्हारे पास ही हूँ, अब कुछ दिन बाबू जी के पास भी रह लूँ, 
       इसीलिए परसों की रेलगाड़ी से मैं वापस जा रहा हूँ और वहाँ से वापस फौज में चला जाऊँगा, अब अगली छुट्टी छः महीने बाद मिलेगी, तब बाबूजी को लेकर यहाँ आऊँगा और तुम्हें दुल्हन बनाकर अपने साथ ले जाऊँगा, जतिन्दर बोला।।
   तुम वापस जा रहे हो, इतना कहते ही झुम्पा की आँखें भर आई।।
  जाना तो पड़ेगा, मजबूरी जो है नौकरी भी तो करनी है, नहीं तो अपने होने वाले बच्चों को क्या खिलाऊँगा?तुम चिन्ता मत करो मैं वहाँ से तुम्हें हर हफ्ते चिट्ठी लिखूँगा और तुम भी प्यार भरेँ शब्दों में जवाब देना, जतिन्दर बोला।।
लेकिन मुझे लिखना पढ़ना नहीं आता, हमारे इस पहाड़ी गाँव में एक भी स्कूल नहीं तो कैसे पढ़ती भला? झुम्पा बोली।।
ओहो....अनपढ़ बीवी से पाला पड़ गया, ना जाने अब सारी  जिन्दगी कैसे कटेगी?जतिन्दर मज़ाक करते हुए बोला।।
  जाओ मैं तुमसे नहीं बोलती और इतना कहकर झुम्पा ने मुँह फुला लिया।।
  रूठती है पगली! जतिन्दर बोला।।
तो तुमने मुझे अनपढ़ क्यो बोला? झुम्पा ने पूछा।।
अरे! मैं तो मज़ाक कर रहा था, जतिन्दर बोला।।
  मुझे ऐसा मज़ाक पसंद नहीं, झुम्पा बोली।।
  अरे! बाबा! माफ कर दो, आइन्दा से ऐसा मज़ाक नहीं करूँगा, जतिन्दर बोला।।
ठीक है माफ़ किया, झुम्पा बोली।।
  और इसी तरह उन दोनों के बीच बातें चलतीं रहीं.....
फिर इसी तरह दो दिन और बीत गए, अपने घर जाते समय जतिन्दर सभी से मिलने आया और ये कहा कि छः महीने बाद वो फिर से अगली छुट्टी पर अपने बाबूजी के साथ लौटेगा और झुम्पा के साथ शादी करके उसे अपने साथ ले जाएगा, झुम्पा ने रोते हुए उसे विदा किया, 
        जतिन्दर भी बहुत उदास था झुम्पा से जुदा होते हुए और वो जाते हुए अपने घर का पता और पिता जी का नाम एक कागज में लिखकर झुम्पा के पास छोड़ गया, झुम्पा ने उस कागज को सम्भालकर अपने पास रख लिया.....
     जतिन्दर के जाने के बाद झुम्पा बहुत उदास रहने लगी जैसे कि पहली बार जब जतिन्दर गया था, बिल्कुल उसी तरह, उसकी उदासी देखकर उसकी माँ और बाबा भी उदास हो जाते और अपनी बेटी की उदासी दूर करने की कोशिश करते लेकिन झुम्पा उनके सामने खुश रहने का नाटक करती और अकेले में जाकर खूब रोती।।
    ऐसे ही दो महीने बीत गए और झुम्पा दिन गिनगिनकर जतिन्दर का इन्तजार करने लगी, इसी तरह दो महीने और बीत गए, चार महीने बीतने के बाद अब केवल दो महीने ही रह गए थे जतिन्दर के आने में लेकिन अब झुम्पा से ये दो महीने भी काटे नहीं हो रहे थे, वो बेसब्री से उसका इन्तज़ार करने लगी।।
     लेकिन तभी उसके बाबा के मन में ये बात आई कि इतने दिन हो गए जतिन्दर को गए हुए उसने अभी तक कोई ख़त नहीं लिखा था, आखिर जतिन्दर झुम्पा को धोखा तो नहीं दे गया, कहीं पास-पड़ोस की बातें सच ना हो जाए, अब दिन रात झुम्पा के बाबा को ये चिन्ता सताने लगी।।
    इसी तरह दो महीने और बीत गए, कुल मिलाकर अब पूरे पूरे छः महीने बीत गए थे लेकिन ना जतिन्दर आया और ना ही जतिन्दर का कोई ख़त, इधर झुम्पा परेशान और उधर झुम्पा के बाबा पास-पड़ोसियों की बातों से परेशान हो उठे, जो कोई भी मिलता तो यही पूछता कि कब है बेटी की शादी, लोगों की बातें सुनकर झुम्पा के बाबा का धीरज टूटने लगा था।।
    झुम्पा भी परेशान थी लेकिन ये सोचकर संतोष कर रही थी कि शायद छुट्टी ना मिली हो लेकिन क्या जतिन्दर को एक खत लिखने का भी समय नहीं मिला कि वो बता देता कि कब आएगा?
        ऐसे ही आठ महीने बीते, फिर दस महीने बीते, पूरा एक साल होने को आया लेकिन जतिन्दर ना लौटा, अब सबने मान लिया था कि जतिन्दर नहीं लौटेगा उसने झुम्पा को धोखा दिया है, पास पड़ोस वालों ने तो झुम्पा के बाबा का जीना ही मुहाल कर दिया था जतिन्दर के बारें में पूछ पूछ करके।।
        सबकी बातें सुनकर लेकिन अभी झुम्पा का विश्वास नहीं हारा था उसे अब भी अपने जतिन्दर पर पूरा भरोसा था, उसे लग रहा था कि जरुर कोई ना कोई बात है, जो जतिन्दर नहीं लौटा और उसने उसके घर जाने का मन बना लिया, उसकी बात सुनकर उसके बाबा बोले...
  पागल हो गई है क्या? वहाँ परदेश मे अकेली कैसे जाएंगी? कहाँ ढ़ूढ़ेगी उसे?
  बाबा! मैं सब कर लूँगी, बस मुझे एक बार उसके घर जाने की इजाजत दे दो, उसका पता ठिकाना है मेरे पास, मैं उसे ढ़ूढ़ ही लूँगी, झुम्पा बोली।।
  सयानी लड़की को कैसे परदेश भेज दूँ?बाबा बोले।।
   बाबा! बस एक बार जाने दीजिए, मुझे पता करने दीजिए, मुझे मालूम है कि वो धोखेबाज नहीं हो सकता, मुझे उसके प्यार पर पूरा यकीन है, झुम्पा रोई गिड़गिड़ाई।।
  झुम्पा की दशा देखकर बाबा पिघल गए और बोले....
  तो ठीक है समान बाँध, मैं भी तेरे संग चलूँगा।।
   और दोनों बाप-बेटी, जतिन्दर के घर का पता-ठिकाना वाला कागज लेकर शहर की ओर चल पड़े, उनके पास जतिन्दर के घर का पता और उसके बाबू जी का नाम था इसलिए उन्हें जतिन्दर का घर ढ़ूढ़ने में परेशानी नहीं हुई और वें दोनों वहाँ पहुँचे....
      दरवाजा खटखटाया तो जतिन्दर के बाबू जी ने दरवाजा खोलकर पूछा...
जी! आप लोंग, कहिए किससे मिलना है?
जी ! मैं झुम्पा और ये मेरे बाबा, झुम्पा बोली।।
  झुम्पा का नाम सुनते ही जतिन्दर के बाबू जी बोले....
  हाँ...हाँ...! मैनें पहचान लिया, अन्दर आइए।।
  दोनों घर के भीतर पहुँचे तो वहाँ जतिन्दर की तस्वीर टँगी थी और उस पर फूलमाला चढ़ी थी, तस्वीर देखकर एक पल को झुम्पा हतप्रभ हो गई फिर रोने लगी...
तब झुम्पा के बाबा ने जतिन्दर के बाबूजी से पूछा....
  ये सब कब और कैसे हुआ?
तब जतिन्दर के बाबू जी बोले...
जब वो आपके यहाँ से लौट रहा था तभी उसकी रेलगाड़ी रास्ते में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, खबर मिलते ही मैं वहाँ पहुँचा, बहुत ढूढ़ने पर उसका मृत शरीर मुझे मिला, मैं आप लोगों को सूचित तो करना चाहता था लेकिन जो चिट्ठी मुझे जतिन्दर ने आपके गाँव से भेजी थी उसी पर पता ठिकाना था आपलोगों का और वो चिट्ठी मुझसे कहीं गुम हो गई, कहीं नहीं मिली, मुझे लगा था कि अब जतिन्दर तो आ ही रहा है इसलिए उस चिट्ठी को सुरक्षित रखने में मैने और लापरवाही कर दी।।
    ये सब सुनकर झुम्पा के बाबा का मन भी द्रवित हो आया उन्हें जतिन्दर की मौत का बहुत ही अफसोस था, वे बहुत ही दुखी हुए।।
   लेकिन आज झुम्पा का विश्वास जीत गया था, दोनों बाप बेटी घर वापस आ गए और झुम्पा ने ताउम्र शादी ना करने का फैसला लिया।।
  समाज वालों ने बहुत ताने मारे कि बड़ी बेटी ना ब्याहेगी तो दो छोटी बेटियों का क्या होगा? माँ ने भी बहुत जिद की झुम्पा की शादी के लिए लेकिन झुम्पा ना मानी तब बाबा ने कहा....
    झुम्पा शादी नहीं करेगी, उसे मैं उसके नाना नानी के यहाँ छोड़ आऊँगा, वैसे भी वें बिलकुल अकेले हैं, उन्हें सहारा मिल जाएगा और समाज का मुँह भी बंद हो जाएगा, 
   फिर मैं इस घर में अपने नाना नानी के साथ रहने लगी, मेरी बहनों की शादी में फिर कोई अड़चन नहीं आई, वे मुझसे मिलने भी आतीं हैं और भाई भी आता है, नाना नानी तो नहीं रहे इसलिए उनका घर और खेत मैं सम्भाल रही हूँ, फिर बाबा और माँ भी चले गए।
     मुझसे जतिन्दर ने एक बार कहा था कि मैं हमेशा खुश रहूँ, वो मेरी जिन्दगी में रहें या ना रहें, इसलिए मैं अपने आप को हमेशा खुश रखने की कोशिश करती हूँ, 
     इस तरह से झुम्पा ने उस रात मुझको और सुधीर को अपनी कहानी सुनाई, मैं झुम्पा की जिन्दादिली और हँसमुँख मिज़ाज देखकर दंग रह गया था, इस उम्र में भी उसके चेहरे पर कितना सूकून और सादगी थी, कितनी प्यारी और सबसे अलग दुनिया बसा रखी थी उसने और वो बरसात की रात मुझे कभी नहीं भूली, उस रात को याद करके मुझे एक ही गाना याद आता है रिमझिम गिरे सावन,  जिन्दगी भर झुम्पा केवल अपने प्यार के लिए ही जिई, जो प्यार इस दुनिया में ही नहीं था।।

समाप्त.....
सरोज वर्मा....