रिमझिम गिरे सावन - 2 Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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रिमझिम गिरे सावन - 2

भाग (२)

और बाबा उस नवयुवक को घर के भीतर ले आएं, फिर उसका ओवरकोट उतरवा कर बोले....
     बाबूसाहब!, ये रही अँगीठी, आप हाथ पैर सेंक लीजिए, फिर बोले...
  झुम्पा! जरा कटोरे में गरम दाल तो ले आ, बाबूसाहब का गला सिंक जाएगा, ठण्ड लग रही होगी।।
  तब घरों में बिजली नहीं हुआ करती थी जैसे कि अभी मेरे खेत में नहीं है, लेकिन नीचे तो अब बिजली आ गई है, ऊपर पहाडों पर नहीं आई है, तब उस जमाने में दिए और लालटेन का सहारा लेना पड़ता था, लालटेन की रोशनी में मैने उसका चेहरा देखा, गोरा रंग, गुलाबी होंठ, तीखी नाक, घने काले बाल, लम्बाई भी अच्छी खासी थी, उसने भी मेरी ओर देखा और मैं दाल का कटोरा उसके हाथ में थमाकर रसोई में चली गई, तब बाबा बोले...
    बाबू साहब! इस स्टूल पर बैठकर गरमागरम दाल पी लो, अच्छा लगेगा।।
तब वो बोला....
   चाचा जी! मेरा नाम जतिन्दर है, मै फौज में हूँ, आप भी मुझे जतिन्दर बुला सकते हैं।।
  अच्छा! तो फौज़ी हो, बहुत खुशी हुई जानकर, बाबा बोले।।
  जी! अपने दोस्तों के साथ घूमने आया था, वे जाने कहाँ चले गए और फिर मैं रास्ता भटक गया, ऊपर से बारिश होने लगी, आपके यहाँ रोशनी देखी तो चला आया, पास के ही सरकारी गेस्ट हाउस में ठहरा हूँ, आपका बहुत बहुत शुक्रिया, जो आप लोगों ने मुझ अन्जान को रातभर के लिए अपने घर में पनाह दी, जतिन्दर बोला।।
   शुक्रिया किस बात का बेटा! इन्सान ही तो इन्सान के काम आता है, बाबा बोले।।
  आप बहुत ही दरियादिल हैं, जतिन्दर बोला।।
  मैं बरामदे में गरम पानी रख देता हूँ, आप हाथ मुँह धो लीजिए, फिर साथ में बैठकर खाना खाते हैं, बाबा बोले।।
  अरे, परेशान मत हों, खाना-वाना रहने दीजिए, दाल से काम चल गया है, जतिन्दर बोला।।
अब जो भी हमारे पास रूखा-सूखा है उसे खाकर रात गुजार लीजिए, आप भूखे सोएगे तो मुझे नींद नहीं आएगी, बाबा बोले।।
   ये कैसी बातें करते हैं आप! ठीक है इतनी जिद़ कर रहे हैं तो खाना भी खा लेता हूँ, चलिए हाथ पैर धो लेता हूँ, जतिन्दर बोला।।
  फिर जतिन्दर  हाथ पैर धोकर बाबा के साथ खाना खाने बैठ गया, उसे खाना बहुत पसंद आया, शायद उसने पहली बार पहाड़ी खाना खाया था और फिर बाबा ने उसे बगल वाली कोठरी में चारपाई पर सोने को कहा और वो दिनभर का थका था इसलिए जल्दी सो गया।।
     सुबह हुई, सभी जाग चुके थे और बाहर बारिश भी बंद हो चुकी थी, सूरज की किरणों ने सारे संसार में अपनी लालिमा बिखेरनी शुरू कर दी थी लेकिन जतिन्दर अभी तक सो रहा था, तब तक चाय भी बन चुकी थी और बाबा ने झुम्पा से कहा कि...
  जा !  झुम्पा! जतिन्दर को चाय दे आ।।
झुम्पा बोलीं....
    मैं ना जाती, आया बड़ा लाटसाब! अभी तक सो रहा है, देखो तो कितना दिन चढ़ आया।।
अरे! तू समझती क्योंं नहीं, शहर के लोग हैं, ऐसे ही रहते होगें, तू चाय दे आ तो जाग जाएगा, बाबा बोले।।
  बाबा की बात मानकर झुम्पा चाय देने गई, वहाँ जाकर बोली....
  सुनो! चाय पी लो।।
लेकिन जतिन्दर ने नहीं सुना और वो सोता रहा, तब झुम्पा ने धीरे से उसकी एक ऊँगली को गरम चाय के प्याले में डाल दिया, ऊँगली जलने से अचानक जतिन्दर की आँख खुली और वो सामने हँसती हुई झुम्पा को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया, इससे पहले उसने इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी, रात को तो वो एक ही झलक देख पाया था क्योंकि बहुत अँधेरा था, वो जब दाल का कटोरा देने आई थी।।
    उसके घुघराले भूरे बाल, नीली आँखें, गुलाबी होंठ और गुलाबी होठों के बीच से दिखते मोतियों जैसे दाँत, झुम्पा हँसती जा रही थी और वो उसे एकटक देखता रहा, जब झुम्पा को ध्यान आया कि वो तो इसे ही देख रहा है तो वो वहाँ से भाग गई।।
    और जतिन्दर उसे ऐसे भागते हुए देखकर हँस पड़ा फिर उसने कप उठाया और चाय पी फिर बाहर आकर सबका शुक्रिया अदा करते हुए जाने की इजाजत माँगी, फिर बाबा बोले....
    अब नाश्ता करके जाओ।।
जतिन्दर बोला....
मेरे दोस्त परेशान हो रहे होगे, सोच रहे होगे मेरे बारें में कि मैं कहाँ रह गया? सब मेरा गेस्ट हाउस में इन्तजार कर रहे होगें, अब जाने की इजाजत दीजिए, अभी तो मैं यहाँ हफ्ते भर के लिए हूँ, मिलने आता रहूँगा।
   ठीक है बेटा! अच्छा लगा तुमसे मिलकर, बाबा बोले।।
मुझे भी बहुत खुशी हुई आप लोगों से मिलकर और इतना कहकर जतिन्दर चला गया, झुम्पा उसे जाते हुए यूँ ही देखती रही, एक बार उसने मुड़कर देखा तो झुम्पा ने नजरें झुका लीं।।
     फिर एक दिन बाद जतिन्दर अपने दोस्त को लेकर झुम्पा के घर आया, तब उसके बाबा घर पर नहीं थे, तो उसने उसे घर के अन्दर आने को नहीं कहा, वो बस झुम्पा की एक झलक देखकर वापस चला गया, 
        फिर एक दिन वो झुम्पा के घर आया और उसने कहा कि वो वापस जा रहा है, उस दिन दोपहर का समय था, झुम्पा घर में अकेली थी, सभी लोंग खेतों में काम करने गए।।
    झुम्पा की तबियत ठीक नहीं थी, इसलिए वो घर में रूक गई थी, जब झुम्पा ने सुना कि वो वापस जा रहा है तो बस इतना पूछा कि फिर कब आओगे?
        जतिन्दर ने कहा....
जब दोबारा फौज़ से छुट्टी मिलेगी।।
  झुम्पा बोली....
ठीक है और जैसे ही दरवाजे बंद करने को हुई तो जतिन्दर ने कहा कि ....
  झुम्पा! मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ और तुम्हारी मर्जी जानने आया हूँ।।
झुम्पा बोली....
  तुमने ये सोच भी कैसे लिया? मैं ऐसा कोई भी गलत काम नहीं करूँगी जिससे मेरे बाबा का नाम खराब हो।।
   किसी को चाहना कोई गुनाह तो नहीं, जतिन्दर बोला।।
    लेकिन मेरे लिए ये गुनाह है, झुम्पा बोली।।
   लेकिन झुम्पा मैने तुम्हारी आँखों में देखा है कि तुम मुझे पसंद करती हो, जतिन्दर बोला।।
   नहीं! ये सब झूठ है, मैं तुम्हें नहीं चाहती, झुम्पा बोली।।
  तुम मानो या ना मानो लेकिन ये सच है, अपने दिल पर हाथ रखकर कहो कि तुम मुझे नहीं चाहती, जतिन्दर बोला।।
  हाँ! नहीं चाहती और अपनी ये मनहूस सूरत लेकर यहाँ से चले जाओ, झुम्पा बोली।।
  झुम्पा मैं जानता हूँ कि तुम मुझे चाहती हो लेकिन इनकार क्योंं कर रही हो? जतिन्दर बोला।।
  कहा ना जाओ यहाँ से और इतना कहकर झुम्पा ने जतिन्दर के मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया, जतिन्दर तब भी दरवाजे के बाहर से चिल्लाता रहा कि मुझे मालूम है झुम्पा तुम मुझे चाहती हो लेकिन तुम ये बात कहना नहीं चाहती।।
   लेकिन झुम्पा ने दरवाजा नहीं खोला और हारकर जतिन्दर वापस चला गया फिर उस दिन के बाद जतिन्दर उसके घर कभी नहीं आया.....
    झुम्पा भी जतिन्दर को चाहती थी लेकिन अपने बाबा की इज्जत को दागदार नहीं करना चाहती थी इसलिए उसने जतिन्दर से कुछ नहीं कहा।।
    ऐसे दिन बीते, हफ्ते बीते और महीने भी बीते, जब भी बारिश होती तो बारिश के साथ साथ झुम्पा की आँखें भी बरसने लगती, वो सचमुच उस परदेशी को चाहती थी लेकिन कह नहीं पाई थी।।
     उसके चेहरे कि रौनक चली गई थी, वो अब मुरझाई सी रहने लगी थी, उसका किसी काम में दिल ना लगता था, दिल का रोग जो लगा बैठी थी, पल पल विरह की आग में जल रही थी, इसी तरह साल बीता और फिर सावन लौटा लेकिन झुम्पा के चेहरे की रौनक ना लौटी, उसके चेहरे की रौनक तो जतिन्दर के साथ ही चली गई थी...
   तभी एक दिन दोपहर को उसके घर के दरवाजे पर दस्तक हुई....

घर पर सिवाय झुम्पा के कोई नहीं था, इसलिए दस्तक सुनकर झुम्पा ने दरवाजा खोला, देखा तो सामने जतिन्दर खड़ा था, जतिन्दर को देखकर उसकी आँखों से झरझर आँसू बहने लगे, जतिन्दर ने उसके आँसू पोछने चाहे तो वो फौरन उसके सीने से लगकर बोली.....
    कहाँ चले गए थे तुम, मुझे तड़पता हुआ छोड़कर, पता है तुम्हारे बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, मैं दिनभर रोती रहती थी, तुम उस दिन के बाद लौटे क्यों नहीं?
   इतना सबकुछ झुम्पा ने एक साँस में कह डाला....
  इसका मतलब है कि तुम भी मुझे चाहने लगी हो, जतिन्दर बोला।।
नहीं! मैं तुम्हें नहीं चाहती और इतना कहकर झुम्पा जतिन्दर से दूर हट गई और अपने आँसू पोछने लगी।।
  अगर नहीं चाहती तो फिर रोई क्योंं?जतिन्दर ने पूछा।।
  वो तो तुम इतने दिन नहीं आएं इसलिए परेशान हो गई थी, झुम्पा बोली।
  अब मान भी लो कि तुम मुझे चाहती हो, जतिन्दर बोला।।
नहीं मानूँगी! पहले ये बताओ तुम इतने थे कहाँ? झुम्पा ने पूछा।।
   मुझे दुश्मन मुल्क ने कैद़ कर लिया था, मेरे साथ और भी साथी थे, बड़ी मुश्किलों में उन्होंने हमें छोड़ा, जब हमारे मुल्क ने उस मुल्क के कुछ लोगों को छोड़ा, उसके बदलें में, जतिन्दर बोला।।
  मुझे यकीन नहीं होता, झुम्पा बोली।।
  यकीन नहीं होता तो ये देखो मेरी पीठ पर चोट के निशान, जतिन्दर ने अपनी शर्ट ऊपर करते हुए पीठ घुमाकर झुम्पा को निशान दिखाते हुए बोला।।
   निशान देखकर झुम्पा सिहर उठी और बोली....
  इतना कुछ सहा तुमने वहाँ।।
   जो दर्द तुमने दिया था उसके बदले मे ये दर्द तो कुछ भी नहीं था, तुमने मेरा दिल तोड़ दिया झुम्पा !और मैं तड़प कर रह गया था, मैं केवल इसलिए जिन्दा बचकर आ पाया कि मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता था कि तुम मुझे प्यार करती हो, जतिन्दर बोला।।
   फिर वही बात, झुम्पा बोली।।
हाँ, जब तक तुम इजहार नहीं कर लेती तब तक कहता रहूँगा यही बात, जतिन्दर बोला।।
  क्यों मजबूर करते हो? झुम्पा बोली।।
तो दिल की बात कह क्योंं नही देती?झुम्पा बोली।।
  कैसे कहूँ? झुम्पा बोली।।
जुबाँ से, जतिन्दर बोला।।
   मैं नहीं कह सकती, अगर बाबा को कुछ पता चला तो वें क्या सोचेंगे? मेरे बारें में, झुम्पा बोली।।
  तो जब मैं तुमसे शादी रचाऊँगा तो बताना ही पड़ेगा कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं, जतिन्दर बोला।।
  सच! तुम मुझसे शादी करोगें, झुम्पा चहकते हुए बोली।।
  इसलिए तो दोबारा लौटकर आया हूँ, शायद ईश्वर ने मुझे इसलिए जिन्दा रखा, जतिन्दर बोला।।
  तो तुम बाबा से बात करोगे हमारी शादी के लिए, झुम्पा बोली।।
   लेकिन क्या फायदा?जब तुम मुझसे प्यार ही नहीं करती तो शादी क्यों करोगी? जतिन्दर मुँह फेरते हुए बोला।।
   मैं तुमसे प्यार करती हूँ और तुमसे ही शादी करूँगीं, झुम्पा एक साँस में बोल गई।।
  सच! में प्यार करती हो, जतिन्दर बोला।।
  हाँ! सच में, झुम्पा शरमाते हुए बोली।।
  तो फिर दूर क्यों खड़ी हो? सीने से लग जाओ, जतिन्दर बोला।।
   और झुम्पा झट से जतिन्दर के सीने से लग गई....
   उस दिन के बाद दोनों के प्यार परवान चढ़ने लगा, जतिन्दर को फौज़ से दो महीने की छुट्टी मिली थी और वो पूरे डेढ़ महीने उसी पहाड़ पर रहा...
    झुम्पा और जतिन्दर अब कहीं ना कहीं रोज मिलते, कभी किसी पेड़ के तले तो कभी किसी पहाड़ पर, वो दोनों अब एक दूसरे से एक भी दिन मिले बिना रह ही नहीं पाते, उन्होंने अपने भविष्य को लेकर खुली आँखों  से ना जाने कितने सपने देख डाले थे।।
    वो कहते हैं ना कि इश्क़ और मुश्क छिपाए नहीं छिपते तो एक रोज उनको किसी ने एक पहाड़ी पर बाँहों में बाँहें डाले देख लिया और जाकर झुम्पा के बाबा को बता दिया।।
   झुम्पा के बाबा ने उसकी माँ को ये बात बताई तो माँ बोली.....
   मैने उस बारिश की रात को आगाह  किया था कि किसी परदेशी को घर में मत घुसाओ लो अब भुगतो....

क्रमशः....