ऑफ़िस - ऑफ़िस - 1 R.KapOOr द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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ऑफ़िस - ऑफ़िस - 1

सूचना - ये एक काल्पनिक कहानी है और इसका जीवित यां मृत किसी व्यक्ति से कोई लेनादेना नहीं है। अगर ऐसा हुआ है तो ये महज़ एक संयोग है। इस कहानी को केवल पाठकों के मनोरंजन हेतु लिखा गया है।

ऑफ़िस - ऑफ़िस
भाग - 1

ऑफ़िस के बाहर लगे बोर्ड को पढ़ कर मुझे ख़ुशी हुई, लिखा था
"हिंदी राष्ट्र को जोड़ती है, कृपया अपना काम हिंदी में करें"

बोर्ड को पढ़ कर मेरे चेहरे पर प्रसन्नता थी, क्योंकि मुझे भी अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिये अपनी अर्ज़ी भी मैं हिंदी में ही लिख कर लाया था।

अंदर जा कर केबिन के बाहर बैठे चपरासी से साहब के बारे में पूछा तो वो बोला "साहब अभी चाय पी रहे हैं, थोड़ी देर इंतज़ार करो"

मैं वहीं चपरासी के पास बैठ गया, और चपरासी से ही बतियाने लगा। चपरासी ने भी कुछ देर में अपनत्व दिखाते हुए पान की गिलौरी अपनी जेब से निकाल कर मेरी तरफ़ बढ़ा दी।

मैंने उसकी तरफ़ देखा और मुस्कुरा कर मना कर दिया।
चपरासी ने उस पान की पुड़िया को वापस अपनी जेब में रखते हुए कहा "अच्छा ही हुआ जो तुमने मना कर दिया, वरना अगर साहब तुम्हें बुला लेते तो तुम्हें थूक देना पड़ता, क्योंकि साहब बड़े सख्त हैं, उनके सामने मुंह में कुछ ठूंस कर जाना मना है"

मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा उसे देख कर...

मैं चुप रहा, बड़ी देर इंतज़ार करने के बाद भी जब साहब की घँटी नहीं बजी तो मैंने चपरासी की तरफ़ देखते हुए पूछा "क्या साहब बहुत बड़ा कप चाय का पीते हैं ?"
मेरे भोले से सवाल और मासूम चेहरे को देख कर वो ज़ोर से हंस दिया, उसके हंसने से उसके मुंह से कुछ छींटे उड़ कर मुझ पर आ गये, घिन्नता से मैंने रुमाल निकाल कर अपना मुंह साफ़ किया और उससे थोड़ी दूरी बना ली ।
"लगता है सरकारी ऑफ़िस में पहली बार आये हो ?
"हां भाई सच कहते हो"
"जब साहब चाय पी लेंगे तो घँटी बजाएंगे" उसने पान से लाल हुए अपने दांतों को दिखाते हुए कहा ।
तभी साहब की केबिन का दरवाज़ा खुला और एक लड़की हंसती हुई बाहर निकली और अपने टेबल पर जा कर बैठ गयी। चपरासी बोला "लगता है साहब ने चाय पी ली"
चपरासी खड़ा हो गया और मुझे बोला "तैयार हो जाओ अभी साहब की घँटी बजेगी"

मैंने अपनी कमीज़ के बटन चैक किये और बालों में हाथ घुमा कर खड़ा हो गया।
तभी घँटी बजी, चपरासी दरवाज़ा खोल कर खड़ा हुआ और मुझे बोला "आ जाओ"

कैबिन के अंदर दाखिल हुआ तो एक अजीब सी गंध मेरी नाक से टकराई, मगर उसे सहन करना ही मजबूरी थी। मैंने देखा सामने टेबल के पीछे एक मोटा सा आदमी कुर्सी में अपने आप को फँसाये हुए बैठा था। शायद जब वो कुर्सी से खड़ा होता होगा तो कुर्सी भी साथ ही उठ खड़ी होती होगी।
मैं मन ही मन सोचने लगा ये बढ़िया तरीका है कुर्सी से चिपके रहने का याँ कुर्सी को खुद से चिपकाये रखने का।
मैं उनके टेबल के सामने पड़ी कुर्सी तक पहुंच गया। उसने गर्दन उठा कर मेरी तरफ़ देखा तो मुझे महसूस हो रहा था कि इतनी भारी भरकम गर्दन को उसने कितने जतन से ऊपर उठाई होगी ।

क्रमशः .........
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