ऑफ़िस - ऑफ़िस - 3 R.KapOOr द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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ऑफ़िस - ऑफ़िस - 3

मोबाईल पर हाथ रख कर धीमी आवाज़ में मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा
"कैसी लगी रिंगटोन ?" मैं कुछ जवाब देता उससे पहले ही वो फ़िर बोला "मुझे इतनी अच्छी लगती है ना, तभी पूरी रिंगटोन बजने पर ही मैं फ़ोन उठाता हूं" उसने अजीब सी हंसी चेहरे पर लाते हुए कहा ।
मैं बेचारा क्या करता मुस्कुरा कर उंगली और अंगूठे को जोड़ ॐ वाली मुद्रा बना कर इशारे में ही कह दिया बहुत अच्छी है ।
मगर दिल में सोच रहा था ये किससे पाला पड़ गया ।

"अबे साले तू ?" वो सामने से आवाज़ सुनते ही अपनी भौहें चढ़ा कर इतनी ज़ोर से चिल्लाया कि मैं सामने बैठा कुर्सी से उछल पड़ा, शायद थोड़ा और उछलता तो मैं ही गिर पड़ता कुर्सी से....
"क्या आदमी है ?" मैं मन ही मन उसे देख कर बुदबुदाया..."अभी मेरे ही हाथ पैर तुड़वा देता"
"अबे कहां था इतने सालों से ? और अचानक कैसे याद आ गयी ?"
सामने से उसके कुछ कहने पर फिर ज़ोर से ठहाका लगा कर हंस पड़ा, मगर अब मैं पहले से ही थोड़ा सतर्क हो गया था, मैंने अपने पांव ज़मीन पर कस कर टिकाये थे और कुर्सी के हत्थे को कस के पकड़ रखा था।
"और बता यार बड़ी खुशी हुई, तूने फ़ोन किया "
वो बातें कर रहा था और मैं घोंचू की तरह उसके सामने बैठा था...
कुर्सी के हत्थे को मज़बूती से पकड़े हुए......

करीब आधा घंटा वो फ़ोन पर बातें करता रहा, और हर 5 मिनट बाद कहता "और सुना" वो कुछ सुनाता और ये खी खी खी खी करता रहा। मैं सामने बैठा बस उसे देखता रहा, बीच बीच में वो भी मुझे देख कर हंस लेता था।

"हां तो तुम कहां थे ?" अपनी बात को ख़तम करने के बाद उसने मुझसे पूछा।
"सर यहीं तो था" मैंने बड़े भोले अंदाज़ में कहा।
"अरे नहीं यार मेरा मतलब तुम क्या कह रहे थे ?" वो अब सीधा मुझे यार कह कर सम्बोधित करने लगा था।
"सर वो अर्ज़ी"
"अरे हां, याद आया, कहां है वो अर्ज़ी ?
"सर आपके हाथ के नीचे दबी पड़ी है" मैंने उसको इशारे से बताया।
"ओह्ह, यार ये क्या है ? हिंदी में अर्ज़ी लिख कर लाये हो इसे पढ़ेगा कौन ?"
मैं चौंका और बोला "क्या मतलब ?"
"अरे ऐसी अर्ज़ीयों का डिस्कसन बड़े साहब के साथ मीटिंग्स में होता है, वहां हिंदी में लिखी अर्ज़ी कौन पढ़ेगा " वो अर्ज़ी को मेरी तरफ़ सरकाता हुआ बोला।
"सर बाहर बोर्ड पर लिखा है कि "हिंदी में काम...."
लेकिन मेरी बात पूरी होने से पहले ही वो बोल पड़ा "अरे मेरे गोलुमोलू"
मैं चौंका जब उसने मुझे गोलुमोलू कहा ।
"तुमने कभी किसी दीवार पर लिखा देखा है कि "यहां पेशाब करना मना है ?"
मैं समझा नहीं वो क्या कहना चाहता था "जी देखा है"
"तो क्या लोग वहां पेशाब करना बंद कर देते हैं ? एकाध बार तो मैंने भी किया था"

ये वो आईटम थी जिसे बेचने के लिये रखा जाये तो अपनी तारीफ़ ये खुद ही कर दे ।

"तुम एक काम करो...." शब्द अभी उसके मुंह में ही थे कि फ़िर मोबाईल की घँटी बजी "आजा शाम होने आयी...."
"अरे यार एक मिनट मेरी पत्नी का फ़ोन है"
मैं सोचने लगा मेरी तो फ़िर लग गयी....

क्रमशः.....
RKapOOr