कोई तो था Ranjana Jaiswal द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कोई तो था


मेरे कस्बे के मुहल्ले को पार करते ही एक रेलवे लाइन बिछी है |हम लोग उस लाइन को पारकर दूसरी तरफ उतर जाते हैं।वहाँ से कस्बे का बाजार नजदीक पड़ता है,उस तरफ ही दो सरकारी अस्पताल हैं।एक मर्दाना दूसरा जनाना |अस्पताल से बहुत सारी दवाइयाँ व विटामिन्स की गोलियां मुफ्त में मिल जाती हैं ,इसलिए बचपन में बीमार होने पर हमें माँ वहीं ले जाती । उसी शार्ट-कट यानी रेलवे लाइन को पार करके |रेलवे लाइन की दोनों तरफ पगडंडियाँ थीं ,जिससे चलकर हम अपने कॉलेज जल्दी पहुँच जाते थे |पगडंडियों के दोनों तरफ ढलान थी और ढलान से थोड़ी दूर पर खेत फैले हुए थे |जिसमें अक्सर पत्ता-गोभी की फसल लगी रहती |आस-पास के लोग ढलान पर उतरकर शौच भी कर लेते थे |
लाइन के एक तरफ वाले खेतों के बाद तो मुहल्ला शुरू हो जाता था,पर दूसरी ओर एक बहुत बड़ा बागीचा था जिसमें कई प्रकार के फल-फूल वाले पेड़ थे |बागीचे के बाहर एक तरफ एक बड़ा पुराना सेमल का पेड़ था ,जिसे भुतहा माना जाता था |बागीचे में
आम,लीची,जामुन ,फालसे,शहतूत ,बड़हड़ ,कटहल,करौंदे आदि के बड़े ही फलदायी पेड़ थे,जो फलों से लदे रहते । बागीचे के बाहर एक गेट भी लगा था ताकि छुट्टा पशु उसमें न जा सकें |बागीचे में दिन-भर एक पहलवान टाइप का माली रहता था ।उसने उसी में एक झोपड़ी डाल ली थी और उसमें एक खाट पर सोता रहता था|उसके डर के मारे बच्चे बागीचे में नहीं घुस पाते थे |मैं जब भी कॉलेज जाती या लौटती ,हसरत से बागीचे के फलों को देखती और मन मसोस कर रह जाती |पर सेमल के पेड़ को देखकर ही झुरझुरी आ जाती कि उस पर भूत रहते हैं |वह पेड़ अजीब मनहूस -सा दिखता था |कभी लौटते वक्त बारह [दिन के] बज जाते तो सेमल की ओर देखती भी नहीं हनुमान चालीसा पढ़ती तेजी से भागती हुई -सी उस जगह को पार कर जाती |बारह बजे का भूत-प्रेतों से घनिष्ठ रिश्ता माना जाता है,इसलिए मैं बहुत डरती थी |सभी कहते थे की उस सेमल पर बहुत सारे भूत-प्रेत रहते हैं ,बागीचे में भी भूतों का बसेरा है ,इसलिए रात को माली भी वहाँ नहीं रहता |माना जाता है कि दिन के बारह बजे और शाम के धुंधलके में भूत ज्यादा सक्रिय रहते हैं,रात को तो खैर रहते ही हैं |एक बात और थी कि जितना ही हनुमान चालीसा पढ़ो ,उतना ही डर लगता है इसलिए कालेज आते-जाते हालत खराब रहती थी |सेमल की ओर देखती तो पेड़ हिलता दिखता ,पर मजबूरी थी कि वही रास्ता छोटा और सहज था ।वरना पूरा कस्बा लांघकर कॉलेज पहुंचना पड़ता |पैदल भी इतनी दूर नहीं जा सकते थे ,रिक्शे से जाना पड़ता |घर की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि रोज-रोज रिक्शे के लिए पैसे मिलें |वैसे भी घर में आठ बच्चे स्कूल-कॉलेज जाने वाले थे |यहाँ कॉलेज का मतलब इंटर कॉलेज था,जिसमें छठी से बारहवीं तक पढ़ाई होती थी |
उस रेलवे लाइन पर ट्रेन नहीं रूकती थी ,पर वहाँ से गुजरते वक्त थोड़ी धीमी जरूर हो जाती थी |कस्बे के लौंडे-लफाड़ी शेख़ी में चैन खींचकर वहीं से चढ़-उतर जाते ,जो किसी हद तक बहुत खतरनाक था |
कहते हैं कि एक बार एक मारवाड़ी के दो लड़के सेमर के ठीक सामने वाली पगडण्डी पर उतरने की कोशिश में रेल की पटरियों के बीच चले गए और कट गए |और वे भी भूत बनकर सेमल के पेड़ पर रहते हैं |बागीचा भी उन्हीं के कब्जे में रहता है |इसका पता एक घटना से चला था |कस्बे में पूजा-पाठ का काम करने वाले एक लंगड़ा पंडित थे |एक पैर खराब था,इसलिए लाठी के सहारे चलते थे |मेरे मुहल्ले में भी पूज़ा-पाठ,विवाह,यज्ञ सभी कुछ वही सम्पन्न कराते थे |विवाह सम्पन्न कराने में रात हो ही जाती है |एक बार वे एक विवाह सम्पन्न कराकर लौट रहे थे |रात के बारह बज रहे थे |वे भूत-प्रेतों से डरते नहीं थे,उनके झोले में हनुमान चालीसा और गायत्री मंत्र हमेशा मौजूद रहते ,जिससे भूत-प्रेत भी डरते है |वे निडर होकर चले जा रहे थे कि दो लड़के उनके सामने आ गए |उन्होंने पंडित जी को प्रणाम किया और उनकी लाठी पकड़कर बोले-गुरू जी हमारे घर चलिए |वे उन्हें बागीचे की तरफ लेकर चले |पंडित जी की हालत खराब हो गयी ,पर उन्होंने संयम नहीं खोया और झोले में हाथ डालकर गायत्री मंत्र पढ़ने लगे ।तब लड़कों ने कहा –जाइए छोड़ रहे हैं ,पर रात-बिरात इधर से मत जाया करिए वरना ...|पंडित जी का धैर्य तब तक छूट गया था |वे बागीचे में ही बेहोश होकर गिर पड़े थे |सुबह जब माली आया तो उसने शोर मचाया |मुहल्ले वाले जुटे पंडित जी को होश में लाया गया तो उन्होंने सारी बात बताई कि उनकी जान उन्होंने इसलिए बख्श दी थी कि उन्होंने उन्हें पढ़ाया था |

दूसरी घटना उन दिनों की है जब मैं एक स्कूल में पढ़ाती थी और रेलवे के एक सरकारी बंगले में किराए पर रहती थी।उस बंगले में बंगले के अधिकारी का परिवार भी रहता था।दो छोटे बच्चे और पति -पत्नी ही थे।उन्होंने मुझे एक कमरा और एक किचन दिया था, बाकी में वे खुद रहते थे।वह बंगला शहर की भीड़ -भाड़ से अलग-थलग था।बंगले के पीछे थोड़ी दूर पर सड़क थी।सड़क के बाद झाड़-झंखाड़ फिर छोटा -सा लकड़ी का गेट था ।वह सिर्फ जानवरों से बचने के लिए था। गेट को कोई भी आसानी से खोलकर भीतर प्रवेश कर सकता था।गेट के भीतर आम,सहजन ,अमरूद ,लीची के कई पेड़ थे।यूं कहें कि बंगले के चारदीवारी में चारों तरफ पेड़ थे।बंगले के सामने लोहे का अर्धचंद्राकार गेट था,जिसे खोलना आसान था।गेट के भीतर काफी खाली जमीन थी।उस जमीन में कई तरह की सब्जियां व फूल लगे हुए थे।उसके बाद मजबूत दरवाज़ा था।आगे- पीछे के अलावा दाहिने -बायीं तरफ काफी जगह थी, जिनमें पेड़ लगे हुए थे।उसके बाद एक और मजबूत दरवाजा फिर आंगन।कहने का मतलब बंगला पेड़- पौधों से घिरा हुआ था।बंगले की एक और विशेषता थी कि उसके हर कमरे से बाहर एक खिड़की थी ,जिस पर बाहर की तरफ से ग्रीन कलर का शीशा चढ़ा हुआ था।भीतर से जाली फिर लकड़ी का दरवाजा।भीतर से ही दरवाजा खुल सकता था।कमरे से आवाज बाहर नहीं जा सकती थी ,न बाहर की आवाज़ भीतर आ सकती था।दरवाजा बंद कर लेने के बाद बंगला पूरी तरह सुरक्षित हो जाता था।उस दिन स्कूल में एक घटना घट गई।मैं कक्षा में पढ़ाकर स्टॉफ रूम में आई, तो देखा वहाँ किसी बात पर पर गरमा-गरम चर्चा हो रही है।ध्यान से सुनने लगी तो पता चला कि छठवीं कक्षा की एक लड़की पर कोई देवी आई हैं।एक महीने पहले लड़की अन्य बच्चों के साथ पढ़ रही थी कि देवी आ गईं।लड़की अपना सिर गोल-गोल घुमाने लगी।सारे बच्चे डर गए।अध्यापिका भागी हुई प्रिंसिपल के पास गई।प्रिंसिपल दौड़ी हुई आईं।लड़की वैसे ही सिर झटकती रही।प्रिंसिपल ने लड़की के पैरेंट्स को बुलाकर लड़की को उनके हवाले किया।एक हफ़्ते लड़की नहीं आई ।पता चला डॉक्टर उसका इलाज कर रहे हैं।जब लड़की वापस आई तो बिल्कुल ठीक थी।कुछ दिन ठीक -ठाक बीता कि आज फिर देवी आ गयी हैं ।लड़की प्रिंसिपल आफिस के बाहर सोफे पर बैठी है।थोड़ी देर पहले प्रिंसिपल ने उसकी आरती उतारी है।वह उस पर सवार शक्ति को देवी मान चुकी हैं ।कक्षा से बाहर लड़की को इसलिए लाया गया कि छठवीं के बच्चे बहुत छोटे थे और लड़की की हरकतों को देखकर डर के मारे रोने लगे थे।मुझे बड़ी उत्सुकता हुई कि आखिर माज़रा क्या है?गाँव में भूत-प्रेत,चुड़ैल,डाकिनी के किस्से बहुत ही आम थे।बचपन में इन किस्सों को सुनकर मैं बहुत डरती थी। ।
खैर वह बचपन की बात थी ।अब मैं युवा हूँ ।शहर में रहती हूँ और भूत प्रेतों से डरती भी नहीं ,आखिर उच्चतर शिक्षा जो प्राप्त कर चुकी हूं।वैसे भी शिक्षिका हूँ और बच्चों को अंधविश्वास से दूर रखना मेरा काम है। जब मैंने उस देवी वाली लड़की के बारे में सुना तो उत्सुकता -वश उसको देखने के लिए छटपटा उठी।पर यह उतना आसान नहीं था,प्रिंसिपल का ऑफिस स्टॉफ-रूम से थोड़ी दूरी पर था और वहाँ अकारण नहीं जाया जा सकता था।मैंने जुगत निकाली ।एक किताब लेकर कुछ पूछने के बहाने प्रिंसिपल ऑफिस में आई।कनखियों से लड़की को बैठे हुए देख लिया था।प्रिंसिपल मेरे मजाकिया स्वभाव से परिचित थी। मुझे देखते ही बोली--ख़बरदार कोई हरक़त नहीं,देवी- देवता का मामला है।कुछ हो- हुआ गया तो मैं जिम्मेदार नहीं होऊंगी।सीधे स्टॉफरूम जाओ।---नहीं ...नहीं मैडम ,मैं कुछ नहीं करूँगी, जा रही हूँ ।कॉपी करेक्शन बाकी है।पर बाहर आते ही मैं लड़की के पास ठिठक गयी।प्रिंसिपल को वहाँ तक देखने के लिए बाहर निकलना पड़ता,इसलिए उनके द्वारा देख लिए जाने की आशंका नहीं थी।मैंने लड़की को ध्यान से देखा।लगभग दस साल की उम्र थी,शरीर से भरी -पूरी थी।स्कूल यूनिफार्म उस पर खूब फब रहा था। उसके बाल काफी लंबे व घने होंगे ,इसलिए उसकी दो चोटियां दुहरी करके बांधने के बाद भी कांधे से नीचे तक लटक रही थीं।वह अपना सिर घुमा रही थी। गोल -गोल सिर घुमाने से उसकी चोटियों से फट- फट की आवाज़ आ रही थी।एकाएक उसका सिर घुमाना और फट -फट की आवाज और तेज हो गयी।इतनी छोटी बच्ची सामान्य दशा में इस तरह की हरकत नहीं कर सकती थी।मैं तो एक बार भी वैसा कर लूं तो चक्कर आ जाए ।एकाएक मेरे भीतर की भक्तिन जाग उठी।बचपन में मैं बहुत पूजा -पाठ करती थी।हनुमान जी की बड़ी भक्त थी।दीवाली के दिन अर्ध रात्रि को मैंने हनुमान जी का एक मंत्र सिद्ध किया था।उस मंत्र को एकांत में सिद्ध करते समय मैं कितना डरी थी,उसकी कथा बाद में बताऊंगी।खैर मंत्र सिद्ध हो गया था।मंत्र का भाव था कि उससे किसी भी तरह के भूत -प्रेत ही नहीं ,अस्त्र- शस्त्र के वार और सारे संकट खत्म हो जाते थे।गांव में कई बार मैंने टोने-टोटके से बीमार बच्चों को उस मंत्र से ठीक किया था।(तब ऐसा ही लगता था)।इधर काफी समय से मैंने उस मंत्र का प्रयोग नहीं किया था।मैंने सोचा इस लड़की पर मंत्र आजमाते हैं।मैंने आगे बढ़कर उस लड़की का माथा पकड़ लिया।लड़की का सिर घुमाना रूक गया।मैं मंत्र पढ़ने लगी।अभी मंत्र पूरा भी नहीं हुआ था कि लड़की ने अपना झुका हुआ सिर उठाया और मेरी तरफ आग्नेय नजरों से देखा।उफ़, वे आँखें,इतनी बड़ी ...इतनी लाल कि मेरे हाथ कांपने लगे।एकाएक वह लड़की बोली--छोड़ !छोड़ .....!छोड़ती है कि नहीं।मैं डर के मारे मंत्र भूल गयी और उसका माथा छोड़ दिया।तब तक प्रिंसिपल आ गयी थीं ।वे गुस्सा दिखा रही थीं।मैं वहां से भाग खड़ी हुई।प्रिंसिपल ने आरती -बंदन कर किसी तरह देवी को शांत किया,फिर बच्ची के पिता आकर उसे घर ले गए।जब मैं बंगले पहुँची तो डरी हुई थी ।पता नहीं लड़की पर क्या था!देवी तो नहीं ही थीं।हो सकता है कोई बुरी आत्मा हो।रात को मैंने जल्दी खाना खा लिया और सोने के लिए चली गयी।सुबह की बातें सोचते हुए जाने कब नींद लग गयी।आधी रात को किसी खटके से मेरी नींद खुल गयी।मैंने सुनने की कोशिश की तो लगा कि मेरे बेडरूम वाली खिड़की को कोई खटखटा रहा है।आवाज़ स्पष्ट थी।मैंने भीतर से ही पूछा--'कौन! कौन!'आवाज़ आनी बंद हो गयी।मैंने भरम समझकर फिर सोने की कोशिश की, तो फिर आवाज आने लगी अबकी तेज ..तेज।कुछ अजीब -सी गुर्राहट की आवाज़ भी आ रही थी।फिर ऐसे लगने लगा कि कोई नाखून से शीशे को खुरच रहा है।मेरे होश उड़ गए ।मैंने अपने कमरे का दरवाजा खोला ।मेरे कमरे के बाद उन लोगों का ड्राइंगरूम था उसके बाद उनका बेडरूम।मैंने उनका दरवाजा खटखटाया।वे लोग निकले तो मैंने सारी बात बताई।वे लोग मेरे कमरे में आए।कोई आवाज़ नहीं थी।वे लोग मेरा मज़ाक उड़ाने लगे।मैंने कहा मैं इस रूम में नहीं सोऊंगी ,तो उन लोगों ने कहा कि ड्राइंगरूम के सोफे पर सो जाइए।मैंने वैसा ही किया।वे लोग अपने कमरे में चले गए।मैंने पहले ही बताया है कि बंगले के भीतर की आवाज बाहर नहीं जाती थी।मैंने अभी आंखें बंद ही की थी कि ड्राइंगरूम की खिड़की से उसी तरह की आवाज आने लगी।दरवाजा भी जोर -जोर से खटखटाया जा रहा था।यानी बाहर जो भी था उसे पता चल गया था कि मैं ड्राइंगरूम में हूँ ।इस खटखटाहट को दोनों पति -पत्नी ने भी सुना था।वे लोग फिर बाहर निकले।पति ने कहा-आप पत्नी -बच्चों के साथ मेरे रूम में सो जाइए। मैं ड्राइंगरूम में सोता हूँ।अब मैं उनके रूम में आ गयी।किसी तरह मैं वहाँ लेटी।कुछ देर बाद ही उनके बेडरूम वाली खिड़की खटखटाई जाने लगी।अब तो सबकी नींद उड़ गई।सभी दम साधे चुपचाप पड़े रहे।पति महोदय भी सिक -सिलाई और डरपोक थे। दरवाजा खोलकर बाहर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।जागते हुए बाकी रात बीती।सुबह जब आस- पास के बंगलों के लोगों के जाग जाने का इत्मीनान हो गया तब दरवाजा खोला गया।काफी धूप निकल आई थी।हम लोग घूम -घूमकर बाहर की खिड़कियों को देखने लगे।खिड़कियां एक-दूसरे से काफी दूरी पर थीं।मैं अपने कमरे की खिड़की के पास पहुंची तो यह देखकर दहल गयी कि शीशे के ग्रीन कलर को नाखूनों से खुरचा गया था ।मुझे विश्वास हो गया कि कोई तो था,पर कौन आज तक नहीं जान पाई!