रीगम बाला - 12 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रीगम बाला - 12

(12)

हमीद कुछ कहने ही जा रहा था वह फिर बोल पड़ी ।

“तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं.....फिर तुम इस होटल के खर्च कैसे पूरा करोगे ?”

“मेरा चीफ मुझसे इतना बेखबर तो नहीं....।” हमीद मुस्कुरा पड़ा ।

“क्या तुम ख़ुद चीफ से मिले थे ?”

“नहीं...!”

“क्या तुम उन तमाम लोगों को पहचानते हो जो उसके लिये काम कर रहे है !”

“नहीं...।”

“तब फिर तुम धोखा भी खां सकते हो ।”

“वह किस प्रकार !” हमीद ने चौंक कर पूछा ।

“क्या वह आदमी तुम्हारा जाना पहचाना था जो तुम्हें चट्टान की ओट में ले गया था !”

“नहीं ।”

“फिर तुमने उस पर विश्वास कैसे कर लिया !”

“एक दुसरे को पहचानने के लिये हमारे पास कुछ निशानियाँ है ।”

“दूसरे भी उन निशानियों से परिचित हो सकते है – क्या तुम्हें जीरो लेंड की निशानियों का पता नहीं है !”

“जानता हूँ ।”

“तो क्या यह नहीं हो सकता कि मेरे साथियों ने उन्हीं तुम्हारी निशानियों की आड़ मे ही कोई नया जाल बिछाया हो !”

“जहन्नुम में जाये ।” हमीद झल्ला कर बोला “मैं अपने दिमाग को उलझाना नहीं चाहता और तुम भू ऐसा हु करो....वर्ना ।”

“वर्ना क्या होगा ?”

“कुछ भी नहीं ।” हमीद न जाने क्यों ढीला पड़ गया ।

“नहीं....धमकी दो कि मुझे छोड़कर चले जाओगे ।” रीमा ने कहा “मगर कान खोल कर सुन लो...अगर तुमने ऐसा किया तो मैं आत्म हत्या के लूंगी...मगर ढके छिपे नहीं....किसी उच्च अधिकारी को एक पत्र लिख जाऊँगी – अपनी मौत का जिम्मेदार तुम्हें ठहरा उंगी.....समझे !”

हमीद दोनों हाथों से सर थाम कर बैठ गया । वह शत प्रतिशत गंभीर लग रही थी । ऐसी विपत्ति से तो आज तक पाला नहीं पड़ा था – फिर वह उठता हुआ बोला ।

“मैं समझ गया कि तुम क्या कहना चाहती हो ?”

“क्या समझे ?”

“यही कि जिन लोगों ने तुम्हें हिप्नोटाइज किया था वह मेरे चीफ के आदमी नहीं थे, बल्कि तुम्हारी ही संस्था से संबंध रखते थे ।”

“हाँ....मैं यही कहना चाहती थी ।” रीमा ने कहा “मुझे तो होश ही नहीं था । तुम्हारे बयान से अंदाजा होता है कि उन्होंने तुम्हें यह विश्वास दिलाने की कोशिश की होगी कि वह तुम्हारे चीफ के आदमी है और उन्होंने मुझे ट्रान्स में लाकर मेरी सच्चाई मालूम कर ली है – कहीं मैं तुम्हें धोखा तो नहीं दे रही ।”

“हाँ – मेरा यहीं ख़याल है ।”

“मैं केवल यह चाहती हूँ कि तुम इस पर विश्वास न करो – यह विचार दिल से निकाल दो कि वह तुम्हारे चीफ के आदमी थे । जिस कुये में मैंने हेली काप्टर उतारा था.....वहाँ तक तुम्हारे चीफ का पहुँचना बिलकुल असंभव था ।”

हमीद सचमुच सोच में पड़ गया । कासिम की जीप रुकवाने वाले ने अपने आपको ब्लैक फ़ोर्स का आदमी प्रकट करके न केवल हमीद को एक बड़ी रक़म दी थी – बल्कि गुफा मैं होने वाली घटना का ध्येय भी बताया था । ध्येय यही था कि रीमा को हिप्नोटाइज करके उसकी असलियत मालूम की जाये – उसके इस बयान को परखा जाये कि वह संस्था से कट कर उसने आ मिली है.....कितना सच है । वह सोचता रहा, फिर बोला ।

“अगर तुम कहती हो तो मान लेता हूँ....मगर इसका ध्येय उन्होंने एक बड़ी रक़म मेरे हवाले कर दी है । हम दोनों काफ़ी दिनों तक यहां लार्ड और लेडी के समान जीवन व्यतीत कर सकते है । एडल्फी यहाँ का सबसे बड़ा होटल है ।”

“मैं नहीं जानती...मगर ठहरो....क्यों नहीं जानती ।” वह मौन होकर कुछ सोचने लगी और हमीद ध्यानपूर्वक उसे देखने लगा । थोड़ी देर बाद बोली “अगर तुम्हारे चीफ को इस नये षड्यंत्र का पता चल जाये तो क्या होगा ?”

“किस षड्यंत्र की बात कर रही हो ?”

“क्या तुम ऊँघ रहे हो ।” रीमा बोली “मैं यह कह रही थी कि अगर तुम्हारे चीफ को यह मालूम हो जाये कि वह लोग उसके आवरण में तुम्हारे निकट आने की कोशिश कर रहे है तो वह क्या करेगा ?”

“खुदा जाने.....उसके बारे में कोई बात पूरे यकीन के साथ नहीं कही जा सकती.....हो सकता है कि उसे मेरी शादी की फ़िक्र हो जाये....या वह ख़ुद स्विटजरलैंड चला जाये ।”

“गंभीरता धारण करो कैप्टन ।”

“मैं गंभीर हूँ ।”

“क्या वह तुम से निकट रह कर उन लोगों के इस नये षड्यंत्र को समझने की कोशिश नहीं करेगा ?”

“रीमा डियर.....यकीन करो कि उसके बारे में कुछ भी यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता, वह बहुत ही अनोखा और अजीब आदमी है, कभी कभी वह बहुत ही खास बातों को इस प्रकार उड़ा देता है जैसे नाक पर मख्खी उड़ाई जाती है और कभी कभी यह भी देखा गया है कि बहुत ही साधारण सी बात उसके लिये अत्यंत महत्वपूर्ण बन गई है ।”

“कुछ भी हो...मै यह कहना चाहती हूँ कि सावधान रहो ।”

“सावधान रहने का तरीका भी बता दो ।”

“किसी पर विश्वास न करो ?”

“तुम पर भी नहीं ?”

“हाँ....मुझ पर भी विश्वास न करो...हो सकता है कि वह मेरी प्रवृत्ति भी बदल देने की चेष्टा करें – साइन्सी प्रगति में वह सारे संसार को पीछे छोड़ गये है ! चाँद पर जाकर कंकर पत्थर बटोर लाने से भी आगे है....उनके साधन असीमित है ।”

“कहीं इस मध्य उन्होंने तुम्हारी ब्रेन वाशिंग कर ही न डाली हो ।” हमीद उसकी आंखों में देखता हुआ मुस्कुराया ।

“अभी तक तो तुम्हारे विरुध्ध मैंने कुछ नहीं सोचा, मगर आगे के लिये सावधान रहना चाहती हूँ । तुम्हें हर प्रकार से मेरी निगरानी करनी चाहिये ! मुझे कभी अकेला न छोडो – वर्ना हो सकता है कि इस बार उनका वार खाली न जाये ।”

“अर्थात मैं चौबीस घंटे इसी प्रकार कमरें में बंद रहूँ ?”

“मैं यह तो नहीं कहती....बाहर जाओ तो मुझे भी साथ रखो ।”

“और तुम्हारी बीबियों जैसी बातें सुनता रहूँ – है ना ?”

रीमा कुछ नहीं बोली । ठीक उसी समय किसी ने दरवाज़े पर थपकी दी ।

“कौन है ?” हमीद ने ऊँची आवाज में पूछा ।

“रूम सर्विस सर ।” उत्तर मिला ।

“क्या तुमने कोई ऑर्डर दिया था ?” हमीद ने रीमा से पूछा ।

“नहीं तो ।” रीमा ने कहा ।

“मैंने भी नहीं दिता था, तो फिर ।” हमीद ने कहा और उठकर दरवाज़े के पास आया, फिर ऊँची आवाज में पूछा “क्या बात है ?”

“फोन चेक करना है सर –आपकी काल आई थी। आपरेटर कनेक्ट करने में सफल न हो सका--” उत्तर मिला हमीद ने बायें हाथ से हैंडल घुमा कर दरवाज़ा खोला। दाहिना हाथ रिवाल्वर की मुठ पर था।

इलेक्ट्रिशियन अंदर दाखिल हुआ! उसके शरीर पर होटल ही की वर्दी थी, वह सीधा फोन ही की ओर बढ़ता चला गया। उसने यह भी देखने का कष्ट नहीं उठाया कि कमरे में और कितने आदमी है।

फोन के निकट पहुंच कर उसने थैले से औज़ार निकाले और काम आरंभ कर दिया । रीमा और हमीद दोनों ही चुपचाप उसे देखे जा रहे थे और दोनों एक ही बात सोचे जा रहे थे कि ...काल किस की हो सकती है?

फोन ठीक करके मैकेनिक ने आपरेटर से बात की, फिर हमीद की ओर मुड़ कर बोला।

“ठीक हो गया सर!”

उसके जाने के बाद हमीद उठ कर फोन के निकट आया।

“ओ हो --” उसकी मुख से निकल गया।

“क्या बात है ?” रीमा उठाती हुई बोली।

लेकिन उसके निकट पहुँचने से पहले ही ब्लैक फ़ोर्स का कार्ड हमीद की जेब में पहुंच गया था। उसने रीमा की ओर मुड़ कर बोला ।

“क्यों न आपरेटर से मालूम करूँ कि किस की काल थी ?”

“आवश्यक नहीं है कि ..” वह कुछ कहते कहते रुक गई।

हमीद ने होटल के एक्सचेंज से संबंध स्थापित कर के रूम नंबर इक्कीस की किसी कल के बारे में पूछा।

“जी हां ! काल थी --” दूसरी ओर से उत्तर मिला।

“कोई औरत थी ?”

“जी नहीं मर्द।”

“धन्यवाद --” हमीद ने रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।

“क्या औरतें भी तुम्हारे चीफ की पार्टी में हैं ?”

हमीद उत्तर नहीं दे पाया था कि फोन की घंटी बोल उठी।

“हेलो --” हमीद रिसीवर उठा कर बोला।

“हमीद साहब !” दूसरी ओर से किसी औरत की आवाज़ आई।

“हां आँ.” हमीद बोला।

“रूम नंबर ग्यारह में आ जाइए –प्लीज़ --” आवाज आई और साथी सम्बन्ध भी कट गया।

“कौन था?” रीमा ने पूछा।

“पता नहीं” हमीद ने रिसीवर रखते हुए कहा।

“क्या कह रहा था?”

“कुछ समझ में नहीं आता ।

“तुम्हारी समझ में नहीं आता तो मुझ पर और मेरी बुद्धि पर विश्वास करो।”

“अच्छी बात है –वह कोई औरत थी और उसने मुझे रूम नंबर ग्यारह में बुलाया है।”

“ओह !”

“अब अपनी बुद्धि का प्रयोग करो ..क्या करना चाहिए ?” हमीद ने पूछा।

“चलो!”

“चलो का मतलब तो यह हुआ कि तुम भी साथ चलोगी ?”

“हां, तुम मुझे अकेली नहीं छोड़ सकते--।”

हमीद पाइप में तमाखू भरने लगा। रूम नंबर ग्यारह में सुमन नागरकर ठहरी हुई थी। कासिम ने हमीद को उसके बारे में सब कुछ बता देने के बाद यह भी कहा था कि—यार ! मुझे तो एसा लगता है कि वह कर्नल साहब पर आशिक हो गई है।

“तुम क्या सोचने लगे?” रीमा ने उसे टोका।

“आंय ..कुछ नहीं ! चलो ...” हमीद ने कहा और जैसे ही दरवाजा खोला, कोई उसे धक्का देता हुआ अंदर घुस आया ।

रीमा की कराट से घुटी घुटी सी चीख निकली थी और प्रथम इसके कि हमीद संभलता, आने वाले ने उन दोनों को रिवाल्वर से कवर करते हुए कहा।

“अपने हाथ ऊपर उठाओ और अबर अब किसी के मुंह से आवाज निकली तो फायर कर दूंगा।”

आने वाला कोई स्थानीय आदमी था मगर अंग्रेजी में बोल रहा था।

रीमा और हमीद ने हाथ उठा दिये । हमीद के चहरे पर झल्लाहट के लक्षण थे।

“तुम दोनों एक घंटा से पहले कमरे से बाहर नहीं निकालोगे --” आंव वाले ने कहा।

“क्या तुम अपनी इस असभ्यता का कारण बता सकोगे ?” हमीद गुर्राया।

“तुम सुमन नागरकर से नहीं मिल सकते।”

“तुम्हारा भ्रम है की तुम किसी काम से मुझे रोक दोगे ।”

“अच्छा तो फिर कुछ कर के देखो – रिवाल्वर में लगा हुआ साइलेन्सर तो तुम्हें दिखाई दे रहा होगा ।”

हमीद कुछ नहीं बोला ! वह अपरिचित को खूँखार नजरों से घूर रहा था । रीमा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया था । वह कभी उस अपरिचित की ओर देखती कभी हमीद की ओर देखने लगती ।

अचानक बात रूम का दरवाज़ा धीरे से खुला और एक आदमी दबे पांव बाहर निकला । अपरिचित की पीठ उसकी ओर थी रीमा कभी सामना नहीं पड़ा था, हमीद उसे देख चुका था मगर उसकी पोज़ीशन में कोई अंतर नहीं पड़ा था ।

फिर बाथ रूम से बरामद होने वाले ने अपरिचित पर छलांग लगा दी । उसके हाथ से रिवाल्वर निकल कर दूर जा पड़ा । हमीद ने रिवाल्वर उठाने के लिये छलांग लगाईं.....और रिवाल्वर उठा लाया ।

उधर उन दोनों में शक्ति संघर्ष आरंभ हो गया था । हमीद की समझ में नहीं आ रहा था कि अब उसे क्या करना चाहिये....प्रकट है कि बात रूम से बरामद होने वाला उसका कोई सहायक की रहा होगा और वह उस समय कमरे में दाखिल हुआ होगा जब वह रीमा के साथ डाइनिंग हाल में था ।

अचानक उस बाथ रूम वाले ने अपरिचित को फर्श पर गिरा दिया और रीमा झपट कर हमीद की निकट पहुँची और धीरे से बोली ।

“यह दूसरा कौन है ?”

मगर हमीद ने उसका उत्तर न देकर बाथ रूम वाले से कहा ।

“इसे दबाये रखो...मैं इसके हाथ बांध दूँ ।”

फिर हमीद ने रिवाल्वर मेज पर रखा और उसे बांधने के लिये अपनी टाई खोलने लगा ।

फिर जो कुछ भी हुआ वह इतनी तेजी से हुआ कि हमीद को संभालने का अवसर ही न मिल सका । वह टाई खोल रहा था कि अपरिचित न जाने किस प्रकार उसके बंधन से निकल कर दरवाज़े की ओर झपटा था और फुर्ती से हैन्डिल घुमा कर दरवाज़ा खोलता हुआ बाहर निकला चला गया था फिर बात रूम वाला भी उसके पीछे बाहर निकला था – वह उसका पीछा करने गया था ।

और अब हमीद तथा रीमा कमरे में खड़े एक दुसरे का मुंह देख रहे रहे ।

“यह सब क्या था ?” रीमा फंसी फंसी सी आवाज में बोली ।

“जहाँ तुम वहाँ मैं – भला मैं क्या बता सकता हूँ ।” हमीद ने कहा ।

“वह....वह....बाथ रूम में ।”