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सेक्स का सेंसेक्स


इटली के महान फ़िल्मकार फेलीनी की एक चर्चित फिल्म का दृश्य कुछ इस प्रकार है--शहर का पुरातनपंथी मेयर इस बात से परेशान है कि उसके घर के सामने एक पोस्टर लगा दिया गया है,जिसमें एक भव्य सेक्सी औरत लेटी हुई है ।उस मेयर की नींद हराम हो जाती है।वह औरत मेयर के सपनों में अपनी विशालता एवं अपनी भव्यता से इस तरह खड़ी हो जाती है कि वह बौना हो जाता है ।इसी तरह की एक घटना आस्ट्रिया के प्रसिद्ध चित्रकार ईगोन शील से संबन्धित है ।शील पर एक फिल्म भी बनी थी ।फिल्म के एक दृश्य में सेक्स के पाखंड का खुलासा इस प्रकार है कि जिस न्यायाधीश को शील पर अश्लीलता के मुकदमें का फैसला आने वाली सुबह देना है,वह रात को अपने ड्राअर में छिपाए शील के अश्लील रेखांकनों का पूरा मजा ले रहा है।उसकी पत्नी चुपचाप पति के इस पाखंड को देख रही है ।
ऐसे न्यायाधीश व मेयर पश्चिमी देशों में अब नहीं मिलते,पर भारत व मुस्लिम देशों में इनकी संख्या पर्याप्त है ।अफगानिस्तान की फिल्म 'ओसामा' का एक दृश्य देखिए-एक लड़की अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए लड़के के वेश में काम करती है क्योंकि वहाँ के बंद समाज में लड़की को काम करने की मनाही है ।एक दिन लड़की पकड़ी जाती है और एक बूढ़ा अपने घर में कैदकर सम्पूर्ण वासना -भाव से उसे देखता है।
यूं तो आज सेक्स का सेंसेक्स पूरी दुनिया में हाई है,पर यह स्थिति सभी समाजों में हमेशा एक -सी नहीं रही है ।इसको लेकर तमाम पाखंड भी है ।यूं कहें कि सेक्स और सामाजिक पाखंड का संबंध सबसे प्राचीन है ।कहने को तो शहरी क्षेत्र के अंग्रेजी पढ़े-लिखे आधुनिक और पश्चिम के लोगों को सेक्स में पिछड़ा नहीं माना जाता,पर यह भी एक मिथक ही है।कई बार एक विदेशी लड़की भारत की किसी गाँव की लड़की से ज्यादा पिछड़ी होती है ,क्योंकि गाँव की लड़की अपने भीतर की सहज मूल प्रवृति से आधुनिक ज्ञानी बन जाती है,भले ही उसने सेक्स- शिक्षा नहीं पाई हो ।
जहां तक सेक्स-मुक्ति का प्रश्न है,पश्चिमी समाज ने बमुश्किल तीन दशक पूर्व ही स्वतन्त्रता पाई है ,जबकि चीन,भारत तथा अनेक मुस्लिम देशों में यह स्वतन्त्रता या खुलापन आज से ज्यादा प्राचीन काल में था।भारत का 'कामसूत्र' ,चीन का 'मिडनाइट स्कालर्स' और अरब देश का 'परफ्यूम्ड गार्डेन' इसके बेहतर उदाहरण हैं ।यह आश्चर्य की बात है कि आज इन्हीं देशों में सेक्स को लेकर अनेक बंधन हैं ।यहाँ तक कि वालीवुड की कोई फिल्म भी खजुराहो की नकल नहीं कर सकती है।सेक्स संबंधी चीजें आधुनिक समय की देन नहीं है।नेपल्स के पोपोरी की खुदाइयों में इस तरह की सामग्रियाँ मिली हैं ।रोमन साम्राज्य में तो अश्लील कला-साहित्य पोर्नोग्राफ़ी और सीक्रेट म्यूजियम भी थे।हाँ,वहाँ स्त्रियाँ बिलकुल नहीं जा सकती थीं ।वहाँ जाने की इजाजत सिर्फ कुछ खास लोगों को ही थी ।पर आज स्थिति बदल चुकी है ।अब न केवल स्त्रियाँ गुप्त -संग्रहालयों में जाने लगी हैं ,बल्कि उन पर खुली राय देने लगी हैं ।सेक्स और इरॉटिक के क्षेत्र में इस आजादी के पीछे स्त्री -आंदोलनों की बड़ी भूमिका है ।स्त्री मुक्ति -आंदोलनों ने स्त्री की इच्छा को(जिसमें सेक्स संबंधी इच्छाएँ भी शामिल थीं।)महत्व देने की मुहिम चलाई थी ।तब यह स्वाभाविक ही था कि सेक्स संबंधी अवधारणाएँ बदलें और वे बदलीं भी ,क्योंकि स्त्री की इच्छा का दखल सेक्स- सम्बन्धों में हो जाए ।जहां तक भारत की बात है,आधुनिक काल में जब पश्चिमी स्त्रियॉं के लिए सम्पूर्ण प्रत्यक्षीकरण के दरवाजे खुले,उनके भीतर की स्वाभाविक इच्छाएँ भी जागीं और एशियाड के बाद रंगीन टेलीविज़न और वी- सी -आर संस्कृति पनपने लगी ,तो समाज में भी जाने-अनजाने सेक्स की अवधारणा बदली ।इसे वीडियो का 'नीला जहर' भी कहा गया।पहले नीली फिल्में सिर्फ पुरूष कुछ खास जगहों पर जाकर देखते थे और घर आकर स्त्रियों में तमाम भरम फैलाते थे ,पर आज मध्यम -वर्गीय स्त्रियाँ भी ऐसी फिल्में अपने घरों में देखती हैं और अपना मानक खुद बनाती हैं ।ऐसा नहीं कि इन स्त्रियॉं को इसके अलावा कोई काम नहीं ,वे अन्य क्षेत्रों में पुरुषों के समकक्ष ही कार्य कर रही हैं ।हाँ,यह बदलाव जरूर हुआ है कि सेक्स पर पुरुष का एकपक्षीय राज कम या कमजोर हुआ है।इसका श्रेय कल[मशीन]युग को जाता है ।टेलीविज़न ,फिल्मों,अखबारों,पत्रिकाओं में सेक्स के क्षेत्र में बदलाव नजर आने लगा है ।कॉस्मोपॉलिटन नामक पत्रिका में लगभग पोर्नोग्राफ़ी ही छपती है ,जिसके कारण फेमिना जैसी पत्रिकाओं को भी सेक्स पर खूब छापना पड़ता है ।इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कॉस्मोपॉलिटन पत्रिका ने स्त्रियॉं में सेक्स -सुख के बारे में नयी आजादी पैदा की है |आधुनिक यंत्र -विधि ,आधुनिक- शिक्षा व विश्व-ग्राम संस्कृति ने आज के मनुष्य को ज्यादा आधुनिक व वैज्ञानिक बनाया है –जिसमें स्त्री भी शामिल है,पर तस्वीर का दूसरा पहलू भी है |सेक्स के क्षेत्र में जागरूक वे स्त्रियाँ हैं,जो अंग्रेज़ी पढ़ी-लिखी हैं तथा सेक्स की मनोवैज्ञानिक ,आधुनिक जानकारियों वाली पुस्तकें पढ़ती हैं |चूंकि ये पुस्तकें अंग्रेज़ी में ही उपलब्ध हैं ,इसलिए यह ज्ञान एक विशेष वर्ग तक ही सीमित है |सामान्य लोग तो गलत व खराब जानकारियों वाली सेक्स –पुस्तकें ही पढ़ते हैं ,क्योंकि हिन्दी में ऐसी ही सड़क -छाप कोक -शास्त्रों की बहुतायत है ,जिसे हिन्दी के प्रकाशक सस्ते मूल्य पर लिखवाकर खुद मालामाल हो जाते हैं |अंग्रेजी के बोल्ड,विवादास्पद,इरॉटिक पुस्तक- प्रकाशक भी हिन्दी में मनोवैज्ञानिक ,आधुनिक व वैज्ञानिक जानकारियों वाली सेक्स संबंधी पुस्तकें छापने के पक्षधर नहीं |उनका कहना है कि अंग्रेज़ी में ही ये जानकारियाँ ठीक हैं ,क्योंकि एक खास वर्ग तक सीमित हैं,हिन्दी में ऐसी पुस्तकें पढ़कर सबसे पहले हमारे घर की बहू-बेटियाँ बिगड़ेंगी |इसी सोच की वजह से हिन्दी में एक भी महत्वपूर्ण सेक्स- गाइड नहीं है और अधिकांश लोग सेक्स संबंधी गलत जानकारियां रखते हैं ,जिसके कारण उनकी स्त्री -संबंधी सोच नहीं बदलती|यहाँ तक कि वे सेक्स -शिक्षा का भी विरोध करते हैं | दिल्ली सरकार ने जब छठी कक्षा से सेक्स -शिक्षा लागू करने की बात की थी,तो कई संगठनों ने हो-हल्ला मचाया था|उनके अनुसार यह शिक्षा बच्चों को बिगाड़ेगी और उन्हें खुली छूट मिल जाएगी |यह एक बुराई है,पर वे भूल रहे हैं कि समाज में तथाकथित बुराइयाँ पहले से ही मौजूद हैं|इन्टरनेट पर पोर्नोग्राफ़ी का बोलबाला है |जापान के रेप वीडियो गेम बच्चों को रेप करने के नए –नए तरीके निकालने की प्रेरणा दे रहे हैं ,जो जितने नए और ज्यादा आइडियाज़ देता है,उसे उतने ही अधिक नम्बर मिलते हैं |सोचा जा सकता है कि इस तरह के खेलों से बच्चों को क्या प्रेरणा मिलती है| एस -एम- एस संस्कृति के जोक्स ,काल सेंटर्स,टेलीविज़न,पत्रिकाएँ,अखबार सभी तो सेक्स परोस रहे हैं |कहाँ –कहाँ बच्चों को बचाएँगे ?
परंपरावादी अपनी पुरानी सोच के कारण 'सेक्स' शब्द को ही गंदा समझते हैं ,जबकि आज सेक्स का अर्थ और संदर्भ बदल गया है |'सेक्सी लुक' का महत्व है सेक्सी कहलाना सबको भा रहा है ।क्रिकेट में भी 'सेक्सी शॉट' का प्रयोग हो रहा है |सेक्स आज गंदगी का नहीं आधुनिक सुंदरता का पर्याय है ,फिर भी सेक्स के पाखंड का अंत नहीं |सेक्स को लेकर आए दिन बखेड़ा मचाया जाता है |जिन साहित्यकारों या चित्रकारों ने जरा -सा भी खुलेपन का परिचय देते हैं, उनपर अश्लीलता का आरोप लगा दिया जाता है ।तसलीमा नसरीन व एम एफ हुसेन इसके उदाहरण हैं |
आज सेक्स की दुनिया में स्त्री ने जो छोटी-सी पहचान हासिल की है ,उसे भी परंपरावादी पतन का नाम देते हैं |कैमरे फोन के दुरूपयोग,बाजार में पोनोग्राफी की बढ़ती हुई मांग की वजह वे स्त्री की सेक्स- स्वतन्त्रता को ठहराते हैं |सेक्स अपने आप में गलत नहीं है |यह कुदरत का दिया अनुपम वरदान है |किसी भी धर्म में सेक्स को गलत नहीं माना गया क्योंकि यह सृजन का आधार है |जिस संबंध से एक शिशु जन्म लेता है,वह पाप हो ही नहीं सकता |अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक है,पर मनुष्य ने किसी भी चीज को स्वाभाविक रहने कहाँ दिया है ?उसने सेक्स जैसी सुंदर भावना को विकृति बना दिया है |सेक्स यदि विकृति होता तो आदिकाल से अब तक मनुष्य को बंधे नहीं रहता |सेक्स स्वतंत्र होता है |वह बंधन नहीं मानता पर इतना स्वच्छन्द भी नहीं होता कि सारी मानवता को ताक पर रख दे |वह हिंसक पशु भी नहीं होता |उसमें कोमलता,उदारता व प्रेम समाहित होता है|वह अपने साथी को कष्ट पहुँचकर नहीं ,उसके सहयोग से सुख प्राप्त करता है |सेक्स -शिक्षा इसलिए जरूरी है कि सेक्स के मनोवैज्ञानिक पहलू को समझा जा सके ,वरना सेक्स का सेंसेक्स कभी भी इतना गिर जाएगा कि स्त्री पुरूष का स्वाभविक प्रेम खत्म हो जाए |
हर देश सेक्स अपराधों को रोकने के लिए तमाम कठोर कानून बनाता है ,फिर भी सेक्स अपराध बढ़ते जा रहे हैं |सिर्फ अमेरिका में अरबों डालर की पॉर्न इंडस्ट्री है,जिसकी नजर भारत पर है|यह इंडस्ट्री इंडियन पॉर्न ब्रांड खड़ी कर चुकी है इस काम में मदद विदेशों में बसे भारतीय कर रहे हैं |इनके एजेंट भारत में अपना जाल फैलाए हुए हैं ताकि भारत की लड़कियों की पॉर्न फिल्में उन्हें सप्लाई कर सकें |क्या यह जाल बिना धन के बिछाया जा सकता है?और भारत के किस वर्ग और किस पृष्ठभूमि की लड़की इस जाल में फँसती है ?क्या व्यर्थ के पाखण्डों को छोडकर इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए ?


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