विशाल छाया - 14 - अंतिम भाग Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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विशाल छाया - 14 - अंतिम भाग

(14)

“हां, मगर जब उस शेर की कोठी पर पहुंचोगे, तो वह शेर पुलिस वालों के साथ यहाँ रहेगा। तुम रीबी और लिली को लेकर चल देना। यहाँ तो कुछ नहीं है?”

“नहीं, मगर यहाँ से गोदाम का पता चलाया जा सकता है। ”

“तुम जाओ! बाहर कार खडी है। यहाँ मैं संभाल लूँगा। ”

“अपनी कार से जाऊं ?” बालचन ने पूछा । 

“पागल हो गये हो क्या! नगर की सारी पुलिस जाग रही है। पहचान लिये गये तो बचाना कठिन हो जायेगा । ”

“अच्छा ....” बालचन ने कहा और अपने दो साथियों को लेकर कार तक आया और उसमें बैठ कर विनोद की कोठी की ओर चल पड़ा। 

उसके जाते ही नारेन ने कोठी के सारे बल्ब बुझा दिये। हीर अपने शरीर पर के सारे कपडे उतार कर एक कोने में रख दिया और उन में आग लगा दी। पता नहीं वहाँ दीवारों और फर्शों पर कौन सा पेन्ट था कि देखते ही देखते आग भड़क उठी। 

नारेन भाग कर बाहर आया। कब उसके शरीर पर चिथड़े झूल रहे थे और वह फुट पाठ पर भीख मांगने वाला एक पंगुल मालूम हो रहा था। उसके शरीर के श्वेत दाग साफ़ दिखाई दे रहे थे। 

कोठी से थोड़ी दूर पहुंच कर वह फुटपाथ पर लेट गया और नेत्र बंद कर के धीरे धीरे कराहने लगा—और कब विनोद की कार उसी फुटपाथ के समीप से गुजरी तो उसने कनखियों से कार की ओर देखा, मुस्कुराया और फिर करवट बदल ली। 

*****

विनोद लिली को अपनी कोठी पर ले जाने के बजाय चिथम रोड ही के एक मकान पर ले गया। कर से उतर कर उसने द्वार खटखटाया और एक आदमी बाहर निकाला। उसने विनोद को देखते ही कहा—

“आप !”

“हां –कार नें एक वस्तु है उसे अपने पास अमानत रखो और एट फाइव से कहना कि वह सवेरे तक मेरी प्रतीक्षा करे ?”

“अच्छा?” उस आदमी ने कहा और विनोद के साथ कार तक आया विनोद ने उसे संकेत किया, उसने लिली के कंधे पर लाद कर कार से निकाला और मकान की ओर मुड़ गया। 

जब वह मकान के अंदर चला गया तो उसने कार को बालचन की कोठी कि ओर मोड़ दिया—मगर जब वह वहाँ पहुंचा तो कोठी जल रही थी और नौकर लान पर खड़े चीख रहे थे। 

“क्या साहब अंदर ही रह गये ?” विनोद ने नौकरों से पूछा। 

“पता नहीं सरकार! मगर मैंने थोड़ी देर पहले एक कार की धडधडाहट सुनी थी –” नौकर ने कहा। 

“अच्छा ! तुम किसी कोठी से फायर स्टशन को टेलीफोन द्वारा सूचना दे दो ताकि आग बुझाने वाले आ जायें !”

और फिर विनोद कार पर बैठ कर तेजी के साथ अपनी किती की ओर चल दिया। 

और जब वह कोठी के समीप पहुंचा तो उसे कोठी के फाटक पर कुछ लोग खड़े हुये दिखाई दिये और उनसे थोड़ी ही दूर पर बीच सड़क पर एक कार जल रही थी, जिसके शोले अब भी रह रह कर तेज हो जाते थे। कार के अंदर से तीन लाशें किसी प्रकार खींचखांच कर बाहर निकाली जा चुकी थीं, जिनके चेहरे झुलसे थे, मगर विनोद उन्हें देखते ही पहचान गया। वह बालचन और उसके दो साथियों की लाशें थीं। 

वहाँ खड़े लोगों ने बताया कि बीस मिनट पहले एक ज़ोरदार धमाका हुआ था और जब वह बाहर निकले तो उन्हों ने सड़क पर यह कार जलती हुई देखी। जब शोले कुछ कम हुए तो उनमें से कुछ आदमियों ने साहस करके उसके अंदर से तीनों लाशें बाहर निकालीं। विनोद जल्दी से कोठी के अंदर आया औए उस कमरे में गया यहाँ रोबी कैद थी मगर रोबी अब ज़िंदा नहीं थी,उसका शरीर अकडा हुआ था और उसकी गर्दन में एक कपड़ा बंधा था। ऐसा लगता था जैसे रोबी ने आत्महत्या की हो। सामने एक कागज़ का टुकड़ा रखा हुआ था। विनोद ने उसे उठा लिया, उस पर लिखा था---”कर्नल विनोद! तुम मेरे क़त्ल के इलज़ाम से अपनी गर्दन न बचा सकोगे। ”

विनोद ने वह पुर्जा अपनी जेब में रखा था, और रोबी की लाश को दोनों हाथों पर उठा कर बाहर निकला, जलती हुई कार के आसपास कोई नहीं रहा था। शायद कर्नल के आ जाने से सब अपने अपने घर चले गये थे। नौकर तो उसके साथ ही कोठी में आ गये थे । 

विनोद ने जलती हुई कार में रोबी की लाश फेंक दी। 

****

दुसरे दिन सवेरा होते ही नगर में चारों ओर यह समाचार फैल गया कि स्मगलरों की टोली पकड़ ली गई, जिसका सरदार बालचन था और विनोद ने कई मन नाजायज सोना बरामद किया है। नागरिकों को बस इतनी ही कहानी मालूम हो सकी, और वह इसी पर तर्क वितर्क कर रहे थे। 

उधर विनोद डी.आई.जी. से कह रहा था—

“मुझे दुख है कि नारेन को मैं गिरफ़्तार न कर सका, वह बच कर निकल गया। ”

“लड़कियों का मामला क्या है?”

नारेन लड़कियों से ऐसे काम लेता था जिसे हम और आप सोच भी नहीं सकते ! लड़कियाँ बड़े लोगों से मिलकर अपनी इजजत का सौदा करती थी और जो आमदनी करती थी वह नारेन को देतीं थीं। वह सरकारी आदमियों को फांसकर उनसे सरकारी भेद मालूम करके नारेन तक पहुंचाती थीं--=और इसीलिये मैं यह सोच रहा हूं कि हमारे देश के विरुद्ध कोई बहुत बड़ा षड़यंत्र रचा जा रहा है, अगर नारेन हाथ लग गया होता तो चिंता की कोई बात नहीं थी,मगर वह बच गया है, इसलिये मैं कुछ नहीं कह सकता कि कब क्या हो जाये। ”

“और परछाईयां ?”

“लिली ने केवल इतना ही बताया है कि परछाईयां उन लोगों के लिये एक प्रकार की धमकी होती थीं, जो नारेन की टोली में आ जाने के बाद उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते थे। ”

“परछाई और धमकी!” डी.आई.जी. ने कहा—”मैं अभी ख़ुद ही इस बारे में कुछ नहीं जानता, वैसे रमेश के समज में तो कुछ नहीं आ रहा है। मगर वह पागल क्यों हो जाते थे?”

“साथ जो हुआ था उसके आधार पर मैंने यही सोचा है कि वह परछाइयों ही के द्वारा धमकी देता था। रमेश मेरे ही संकेत पर नारेन की टोली में सम्मिलित हुआ था। जिसके सर पर टिन के टुकडे बांध कर सर से केवल आधे इंच के फासले पर लगातार हथोड़े बरसाये गये और जब तक हथौड़े बरसते रहे, रमेश के सामने वह परछाइंयां नाचती रही। शायद यह सब नारेन इसलिये करता था कि किसी में उससे विरोध करने का साहस न उत्पन्न हो सके । ”

“मेरी समझ में अब भी नहीं आया । ” डी. आई. जी. ने कहा”मेरा विचार है कि परछाइयों के पीछे और कुछ भी रहस्य है । ”

“आप ठीक कहते है । इसका सही रहस्य तो उसी समय मालूम होगा जब नारेन गिरफ़्तार होगा । ”

“हमीद के लिये तुमने क्या सोचा है ?”

“लिली ने केवल इतना ही बताया है कि नारेन ने उसे रोजिक के आजाद इलाके की ओर भेज दिया है । अब मुझे वहाँ जाना ही पड़ेगा । ”

“जो उचित समझा करो । ” डी. आई. जी. ने कहा । 

विनोद ने आज्ञा मांगी और अपनी कोठी की ओर चल पड़ा । 

जब वह कोठी पर आया तो यहाँ रमेश, सरला और रेखा उसकी प्रतीक्षा कर रही थीं । विनोद ने रेखा और सरला की ओर देखते हुये कहा । 

“इस सफलता का सेहरा तुम लोगों के सर है । ”

“उन शरीफ लोगों का क्या बना जो ट्रेनिंग सेंटर में नकाबें डाले पकडे गये थे ?” रमेश ने पूछा । 

“मैंने उन्हें डी. आई. जी. के हवाले कर दिया है । वह जैसा उचित समझें वैसा करेंगे । बड़े लोगों का मामला है इसलिये मैं दखल देना नहीं चाहता । ”

“यह आप कह रहे है ?” रमेश ने आश्चर्य से पूछा । 

“हाँ, और यह इसलिये कह रहा हूँ कि अभी तक मेरे सामने अंधेरा ही है, उसकी गिरफ़्तारी के अतिरिक्त अभी और हुआ ही क्या है । अभी तो तमान बातें गुप्त है और वह उसी समय सामने आएँगी जब नारेन गिरफ़्तार होगा । दुसरे हमीद का भी मामला तो सामने है । हो सकता है कि यहाँ की मेरी सख्ती उसके लिये घातक सिध्ध हो । प्रकट है कि वह तमाम बड़े लोग नारेन के साथी है और नारेन अभी गिरफ़्तार नहीं हुआ है और हमीद उसी की कैद में है । अगर मैं उन शरीफ लोगों के पीछे पड़ता हूँ तो यह भी हो सकता है कि नारेन झल्ला कर हमीद को क़त्ल कर दे । इसलिये इस समय मैं खुल कर कुछ नहीं करना चाहता । मगर रमेश ! यह नारेन ने भी गजब का चालाक आदमी है । वह जो सोचता है वह ठीक ही होता है । रोबी ने तो मुझे चकरा ही दिया था, मगर संयोग की बात है कि उस समय सूझ गई और मैंने उसकी लाश जला दी, वर्ना उसकी लाश मेरे लिये सैकड़ों उलझनें पैदा कर देती । ”

इतने में टेलीफोन की घंटी बज उठी । विनोद ने रिसीवर उठा लिया । 

“हेलो......विनोद ?” दूसरी ओर से पूछा गया । 

“यस ! विनोद स्पीकिंग । ” विनोद ने कहा । 

“यस, तुम विनोद ही हो । ” दूसरी ओर से आवाज आई । ”कर्नल ! मुझे इस बात का दुख है कि हमीद का अभी तक कोई पता नहीं  चल सका । मैंने उसे रजेक भेजा था, मगर वह मार्ग में ही शशि को लेकर कहीं ग़ायब हो गया । ”

“तुम चिंता न करो नारेन । ” विनोद ने कहा”हमीद तुम्हारे वश का रोग नहीं है । वह जहां भी होगा चैन की बंशी बजाता होगा । ”

“मुझे जल्दी है इसलिये मैं तुमसे अधिक देर तक बातें न कर सकूंगा । वालचन की कार में मैंने केवल इस लिये बम रख दिया था कि कहीं तुम उसे गिरफ़्तार न कर सको । क्योंकि वह कमजोर दिल का आदमी था । मगर तुम उसे उसे गिरफ्तार कर के धमकाते तो वह सब उगल देता । रोबी ने बहुत ही बुध्धिमानी की थी । अगर तुमने उसकी लाश न जला डाली होती तो तुम उसके क़त्ल के जुर्म में अवश्य फँस जाते । मैं रक्त की सौगंध खा कर कहता हूँ कि मुझे तुमसे इसी बुध्धिमानी की आशा थी और इसी बुध्धिमानी के कारण मैं तुम्हें क्षमा कर रहा हूँ । रोबी के मरने का मुझे बहुत दुख है । आशा है कि तुम लिली को छोड़ दोगें । ”

“जिस दिन तुम आत्महत्या कर लोगे उसी दिन लिली स्वतंत्र कर दी जायेगी । मेरा वचन है । ”

“आत्महत्या !” नारेन ने अट्टहास के साथ कहा”तुम बहुत अभिमानी हो कर्नल ! इसलिये मैं भी बचन देता हूँ कि जिस दिन तुम केवल मुझे पहचान लोगे, उसी दिन और उसी समय मैं आत्महत्या कर लूँगा । ”

“घबराओ नहीं, वह दिन शीघ्र ही आना वाला है । ” विनोद ने भी अट्टहास किया । 

“हम शीघ्र मिलेंगे कर्नल ! अगर खोपड़ी में बुध्धि है तो मुझे पहचान लेना मैं आत्महत्या कर लूँगा । ”

फिर नारेन ने संबंध काट दिया । विनोद ने रमेश की ओर देखा और देख कर कहा”हमें आज ही रवाना हो जाना है । तुम भी मेरे साथ चलोगे । ”

और फिर वह लेबोरेटरी की ओर चला गया । 

नोट – आगे की कहानी”मौत की गुदगुदी” में पढिये । 

|| समाप्त ||