विशाल छाया - 8 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

विशाल छाया - 8

(8)

लान से हाल तक और हाल से पोर्टिको तक भरी रहेने वाली भीड़ काई के समान फट गई थी लोग एक एक करके भागे जा रहे थे। इस भाग दौड़ में अभी तक सरला को रेखा नहीं दिखाई पड़ी थी और अब कासिम भी लापता हो गया था! हां सरला ने यह अवश्य महसूस किआ था कि रोबी पर इस घटना का वह प्रभाव नहीं है जो स्वाभाविक तौर पर होना चाहिए था। उसकी बौखलाहट बिलकुल बनावटी मालूम हो रही थी, वह बार बार हाल से पोर्टिको तक का चक्कर लगा रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी की प्रतीक्षा कर रही हो। 

सरला भी रोबी के साथ ही साथ लगी रही, क्योंकि विनोद ने उसे तथा रेखा को रोबी पर द्रष्टि रखने के लिए यहाँ भेजा था। 

अब हाल में केवल वही लोग रह गए थे जिनका संबंध या तो होटल के कर्मचारिओं से था फिर उन्हों ने होटल में रहने के लिए कमरे ले रखे थे। 

अचानक रोबी एक मेज पर बैठ गई, उसने वेटर को संकेत किआ और जब वह समीप आया तो उसने ड्राईजिन की एक बोतल का आर्डर दिया, बोतल आते ही उसने उसे गिलास में ढालने का भी कष्ट नहीं उठाया और बोतल ही मुंह से लगा लिया। 

और फिर एक ही सांस में तीन चौथाई बोतल खली करके बोतल मेज पर रख दिया और मुंह पोंछती हुई उठ कर पोर्टिको की ओर चली। उसके चलने का भाव ऐसा था जैसे किसी ने बुलाया हो और वह उसके बुलाने पर जा रही हो। 

सरला भी उसके पीछे लग गई। 

रोबी पोर्टिको से निकल कर लान की ओर बढ़ी। वहाँ एक लम्बी सी काले रंग की सीडान खाड़ी थी। अगली सीट से एक आदमी ने सर निकाल कर झाँका और रोबी तेजी से उसी ओर बढ़ी। जब वह कार के निकट पहुँची तो दरवाजा खुला और वह अगली ही सीट पर बैठ गई। सरला ने दिल ही दिल में कार के नंबर नोट कर लिए। 

उसे अब अपना यहाँ रुकना बेकार ही लग रहा था, मगर वह इसका इंतजार कर रही थी कि कार चली जाए तो वह आगे बढ़े, लेकिन कार अपने स्थान पर खाड़ी रही। 

और फिर अचानक सरला को ऐसा लगा जैसे उसकी साँस रुक रही हो, किसीने पीछे से एक हाथ उसके मुख पर इस ड्रामाई ढंग से रख दिया था कि वह चीख भी न सकी और दुसरे हाथ से ऐसा घूंसा जमाया था कि सरला की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था उसे बस ऐसा ही महसूस हुआ जैसे वह हवा में तैर रही हो। 

और जब उसे होश आया तो उसे पता चला कि वह उसी कार में सफ़र कर रही है जिस में रोबी बैठी थी क्योंकिइस समय भी कार में रोबी मौजूद थी। रोबी के मुख में कपड़ा ठूंस दिया गया थाऔर उसके दोनों हाथ खींच कर पीठ पर बांध दिये गये थे। सरला ने निगाहें घुमा कर देखा, और फिर उसे चौकना पड़ा। क्योंकि कार मेंरेखा भी थी। 

कार के अंदर मंद सा प्रकाश था, मगर मोटे शीशों पर इतने गाढ़े पर्दे पड़े हुए थे कि बाहर की कोई वस्तु नहीं दिखाई दे रही थी। 

कार ड्राइव करनेवाले का चेहरा सामने वाले शीशे में भी नहीं दिखाई दे रहा था। मगर सरला समज गई थी कि यह वही आदमी हो सकता है, जिसको उसने होटल के सामने कार से सर निकाल कर झांकते हुए देखा था। 

कार तेजी से दौड़ती रही और फिर एक जगह रुक गई। 

ड्राइवर ने तीनों की आंखों पर पट्टीयां बाँधी और दरवाजा खोल कर बारी बारी तीनों को गोद में उठा कर ले गया। सबसे अन्त में सरला का नंबर आया था। सरला को यह भी मानना पड़ा किगोद में उठा कर ले जाने वाला आदमी असभ्य नहीं है। 

थोड़ी ही देर बाद उनके नेत्रों से पट्टियां खोल दी गई। सरला ने देखा कि वह एक कमरे में है। 

रेखा और रोबी भी साथ में है। रेखा के हाथ खुले हुए है और मुंह में कपड़ा भी नहीं ठूंसा हुआ है। एक नकाब पोश कमरे में खड़ा था और अपने दोनों हाथों से रिवाल्वर उछाल उछाल कर लोक रहा था। 

अचानक उसने तीनों को सम्बोघित करके कहा। 

“लड़कियाँ! आज से तुम लोग एक नये जीवन का श्री गणेश करने जा रही हो। अगर तुम लोगों ने मेरी आज्ञा मानी तो संसार तुम्हारे चरणों में होगा, वर्ना इस प्रकार सिसका सिसका कर मारी जाओगी कि मौत भी थर्रा उठेगी। ”

“तुम हो कौन ?” रेखा ने भर्राए हुए स्वर में पूछा। 

“तुमको इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए” नकाबपोश ने कहा”मैं जा रहा हूं मिस गिबन ! तुम मिस रोबी और सरला के हाथ खोल देना। मैं मिस सरला की ओर से सावधान रहने की प्रार्थना करूँगा, वह इसलिए कि यह कर्नल विनोद के साथ रह चुकी है, इसलिए संभव है कि यह तुम लोगों को बहकाए और बहकाने में आ जाने का फल मौत ही होगा। ”

बात समाप्त करके नकाब पोश कमरे से बाहर निकला और फिर बाहर ताला बंद होने की आवाज सुनाई पड़ी। 

रेखा ने उन दोनों के हाथ खोल दिए। 

***

हमीद कि समज में नहीं आ रहा था कि क्या करे। 

शशि उस पर लदी हुई लम्बी साँसें ले रही थी। अगर वह बेहोश हो गई होती तो शायद हमीद को इतनी मुश्किलों का सामना न करना होता, मगर वह बेहोश नहीं हुई थी और अपने हाथ पाँव फेंक रही थी इसलिए हमीद को उसे संभालना पड़ रहा था। दुसरे पानी का बहाव इतना तेज था कि हमीद के लिए उस पेड़ की डाल पकड़ना असंभव ही जान पड़ रहा था। 

अचानक एक बड़ा सा पत्थर पहाड़ी से लुढ़कता हुआ नीचे की ओर चला। खडखडाहट की आवाज सुन कर हमीद ने ऊपर की ओर देखा फिर बौखला उठौथा। मौत सर पर चली आ रही थी और उससे बचाने का कोई रास्ता नहीं था, मगर इसे हमीद का सौभाग्य ही कहना चाहिए किलुढ़क कर आने वाला पत्थर रास्ते में एक दुसरे पत्थर से टकरा गया और इसका परिणाम यह हुआ की जहां उसे पहले गिरना चाहिए था, वहां से वह लगभग बीस गज दाहिनी ओर गिरा। उसके गिरने से पानी में इतने जोर का भंवर पैदा हो गया कि हमीद अपने को संभल न सका और शशि को लिए हुए दो चार गोते खा गया। फिर उसने अपने को संभाला, मगर अब वह पानी में हाथ पाँव चलाने योग्य नहीं रह गया था इतनी देर तक हाथ चलते चलते वह थक कर चूर हो गया था। 

अचानक उसके मस्तिष्क में एक विचार उत्पन्न हुआ। वह उसी ओर बढ़ा जहां पत्थर गिरा था। वहां पहुंच कर उसने दुबकी लगाई, और उसका हाथ उसी पत्थर पर पड़ गया जो अभी अभी पानी में गिरा था। हमीद उस पर पाँव रख कर खड़ा हो गया। अब उसके गले तक का भाग पानी के ऊपर था। उसने जल्दी से शशि के सर को भी पानी के ऊपर किया और झल्ला कर बोला। 

“अरे बाबा! अब तो मुझे छोड़ दो?”

कोई उत्तर नहीं मिला। 

“नीचे पत्थर है उस पर पाँव जमा कर खाड़ी हो जाओ। |

इस बार भी उत्तर नहीं मिला। 

“अच्छी बात है—” हमीद चीख पड़ा”अगर में बच गया तो वसीयत कर दूंगा कि अगर मेरे खानदान में किसी औरत का नाम लिया तो उसे इसी प्रकार नदी में डूब मरना होगा। ”

इस बार भी उत्तर नहीं मिला। 

हमीद ने चोंक कर शशि की ओर देखा। वह बेहोश हो चुकी थी। हमीद खड़ा खड़ा अपने भाग्य को धिक्कारने लगा। उधर पानी का बहाव इतना तेज था कि हमीद को अपने पैर जमाए रखना मुश्किल मालूम हो रहा था। मगर वह पूरे साहस से काम लेकर पैर जमाए रखने की चेष्टा कर रहा था, क्यूंकि वह जानता था कि अगर अब पाँव उझाद गए तो उसकी मृत्यु निश्चित होगी। 

कुछ क्षण तक इसी प्रकार खड़ा रहने के बाद उसने बाँई बगल में शशि को दबाया और अल्लाह का नाम ले कर किनारे की ओर बढ़ा। केवल दाहिने हाथ से वह पानी को चीरता किनारे की ओर बढ़ा। धैर्य और साहस ने उसे किनारे तक पहुंचा ही दिया। मगर किनारे की धरती पर पहुंचते ही वह अपनी चेतना गवां बैठा। 

और फिर जब उसकी चेतना लौटी तो उसके शरीर पर सुरज की रोशनी पड़ रही थी और कानों में पक्षियों के चहचहाने की आवाज़े आ रही थी। 

उसने उठने की कोशिश की मागे उससे उठा नहीं गया। तमाम शरीर फोड़े के समान दर्द कर रहा था। उसे रात की बीती घटनाएं याद आने लगी और कब शशि की याद आई तो उसने लेटे ही लेटे इधर उधर देखा। शशि उसकी बाइं पर पड़ी हुई थी। उसके नेत्र बंद थे और वह गहरी गहरी साँसे ले रही थी। उसके सुनहरे बाल उसके चेहरे पर इधर उधर चिपके हुए थे। 

हमीद साहस कर के उठा। उसके कपडे फट गये थे और शरीर पर बहुत सी खरोंचे लग गई थीं। कपडे अभी तक गिले थे। उसने एक बार मुड़ कर फिर शशि की ओर देखा और साथ ही अपनी विपत्ति भी भूल गया। उसे शशि की चिंता हो उठी। उसने जल्दी से शशि को उलट कर पेट के बल लिटाया और पेट से पानी निकालने की कोअहिश करने लगा। कुछ देर के बाद शशि ने आंखें खोल दी और फिर वह हडबडा कर उठ गई। 

“मैं कहाँ हु?” उसने बौखला कर पूछा। 

“जहन्नुम में “ हमीद ने चिढ कर कहा। 

शशि उसे भयभीत नज़रों से देखने लगी। 

“अच्छा बेबी ! खुदा हाफिज” हमीद ने उठते हुए कहा” मैं इसी इंतज़ार में था कितुम होश में आ जाओ!”

“मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी “शशि लडखडाती हुई उठी। 

“नहीं बाबा !” हमीद चनचना कर बोला”मैं कूबड़ की थैली कहाँ लटकाए लटकाए फिरूंगा। ”

“मैं कूबड़ की थैली हूं?” शशि ने बुरा मन कर कहा। 

“अरे नहीं ! तुम तो शहद की नागिन हो ...देखने में सुंदर लेकिन्विशैली मगर मैं तुम्हें अपने साथ नहीं ले जाऊंगा। तुम यहीं रहो। अभी तुम्हारा स्टीमर वापस आयेगा और तुम्हें ले जाएगा। ”

“अब वह वापस नहीं आएगा । ” वह गिदगिड़ा कर बोली। 

“कहां गया है ?”

“कराकरम की घाटियों में । हम तुम्हारे देश में है । ”

हमीद ने पहले तो आंखें फाड़ फाड़ कर चारों ओर देखा । फिर अचानक उसने शशि की गर्दन दबोच दी और प्यार भरे स्वर में बोला । 

“गला दबा दूं ?”

“अग.....गें....गें । ” शशि के मुख से आवाज नहीं निकल रही थी । 

हमीद ने उसकी गर्दन छोड़ दी । 

“जंगली !” शशि अपना गला सहलाती हुई बोली”क्या औरतों के साथ यही व्यहार किया जाता है ?”

“नहीं जाने मन ! उनकी खीर पकाई जाती है । ” हमीद ने विषैले स्वर में कहा । 

न जाने क्यों शशि के नेत्रों में आँसू भर आये । 

“वह स्टीमर कहाँ है ?” हमीद ने फिर वही प्रश्न पूछा । 

“कह तो दिया कि कारकरम की घाटी में । ”

“घाटी में कौन सा स्थान !”

“घाटी में एक छोटा सा गाँव है राजेक, उसी जगह !”

“यहां मुझे अपने साथ क्यों ला रही थी ?”

“बास की यही आज्ञा था । ”

“तुम्हारा बॉस !” हमीद ने कहा । फिर चौंक कर बोला”कौन ? वही सूखी टांगो वाला उल्लू ?”

“उसे उल्लू मत कहो । उसका नाम नारेन है । सारा संसार उससे कांपता है । ”

“अरे बाप रे । ” हमीद ने नकली भय देखाया”अब मैं भी कांपना आरंभ कर देता हूँ । ”

शशि मुस्कुरा पड़ी, फिर बोली । 

“तुम्हें डर नहीं लगता ?”

“बहुत लगता है ! एक बार मैं पहाड़ की चट्टान पर सवेरे के वक्त सो रहा था कि अचानक मेरी आंख खुल गई । मैंने देखा कि एक काला कौवा मेर ऊपर मंडरा रहा है । मैंने डर कर भागने की कोशिश की मगर उस कौवे ने मुझे अपनी भुजाओं में कस लिया । ”

“कौवे को भुजाये कहां होती है ?” शशि ने हँस कर उसकी बात काट दी ।