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ईश्‍वर लीला विज्ञान - 4 - अनन्‍तराम गुप्‍त

ईश्‍वर लीला विज्ञान 4

अनन्‍तराम गुप्‍त

कवि ईश्‍वर की अनूठी कारीगरी पर मुग्‍ध हैं, और आकाश, अग्नि, पवन, जल एवं पृथ्‍वी के पांच पुराने तत्‍वों का वर्णन आज के वैज्ञानिक सिद्धान्‍तों के साथ गुम्फित करते हुये प्रस्‍तुत करता है। साथ ही उसने पदार्थों के गुणों तथा वनस्पिति और प्राणी विज्ञान का प्रारंभिक परिचय अंग्रेजी नामों के साथ यत्‍न पूर्वक जुटाया है।

दिनांक-01-09-2021

सम्‍पादक

रामगोपाल भावुक

पृथ्‍वी

पृथ्‍वी गुण वरणन करूं, ईश्‍वर लीला मद्ध।

सुनिये गुनिये चित्‍त दे, स्‍वयं होय यह सिद्ध।। 47।।

अब पृथ्‍वी वरणन सुन लीजै, वैज्ञानिक कहं तहां चित दीजै।

नव ग्रह मध हैं या की गणना, सूरज के चहुं ओरी भ्रमना ।।

दिना तीन सौ पैंसठ माही, चक्‍कर एक लगाय सदाहीं।

ताही को हम वर्ष पुकारें, ऐसा है हम सब मत धारें।।

बिन आधार यह भ्रमें सदाई, आकरषण बल सूरज पाई।

दैनिक गति हूं विज्ञ बतावे भांति जलेवी आगे जावे।।

निज चक्‍कर चौबीसहि घंटे, पूरा करती बनी सु अंडे।

सूर्य सामने जो धर आवै, तहां सु दिन पुन रात कहावै।।

इस कारण सब देश में, दिन ना एक संग होय।

ऐसेहि रात विधान है, कहुं दिन रातहि जाये।। 48।।

ताको वैज्ञानिक कहं ऐसे, रही आग की गोला जैसे।

समय पाय शीतल भई धरती, जैसे होते अग्नि सु जलती।।

नीचे धरती अवहूं ताती, खोदत खान सवै अनुभावी।

कहुं कहुं ज्‍वाला मुखी सु फूटें, लावा निकले बात न झूटें।।

सो लावा पत्‍थर बन जाई, आग्‍नेय तिहि किस्‍म बताई।

नदी पहाड़न से चल आवै, पत्‍थर रगड़ रेत बन जावै।।

सो समुद्र के निकट सदाई, बिलम रहत बजरी बहुताई।।

समय पाय चट्टान बन, निकसे सोई रेत।

चढी़ मकानन पै सोई, अबहुं दिखाई देत।।49।।

घोंघा सीपी दाव तें, चूना बन बन जाय।

सोई चूना दाव तें, संग मरमर कहलाय।। 50।।

काली पीली लाल सफेद, मिट्टी के जानो बहु भेद।

सोई सब ताप दाव के कारन, धारे भूमि भेद हजारन।।

यह अनुभव ईंटन के भट्टा, देखो जाय बुद्धि के पट्ठा।।

खनिज पदारथ को संग भेद, अनुभव करौ न पावौ खेद।।

लोहा सोना तांबा चांदी, सबही बनो भूमि परसादी।

पहले ये माटी सी दीसें, पीछे शुद्ध होय युक्ती से।।

माटी घोल याहि तुम देखो, तीनो वस्‍तु तुम ता मध पेखो।

कछु रेत कछु चिकनी मिट्टी, सड़ी गली कछु वस्‍तु इकट्ठी।।

ये तीनो मिल मिट्टी रचना, होती रहती प्राकृत घटना।।

खेती योग्‍य भूमि कहि तीनी, रेतिल दुमट मटियार सु चीनी।।

रेतिल में रेती अधिक, मटियारी में मांटि।

दुमट दोउ जहं सम रहें, यह चतुरन की छांटि।।51।।

पृथ्‍वी की गति ऐसी भाई, पश्चिम से पुरव दिस जाई।

सूर्य उदय पूर्व नित तातें, पच्छिम डूबन की कहं बातें।।

पृथ्‍वी झुकी रहे नित इतनी, साढ़े छियासठ अंस है जितनी।

ताते ऋतु परिवर्तन होई, कहुं गर्मी कहुं सर्दी सोई।।

कहुं रातें कहुं दिन बढ़ जावें, या को भेद सु बिरले पावे।

इक्किस मार्च बाइस सितम्‍बर, दिन अरू रात समान रह भू पर।।

इक्किस जून उत्‍तरी भू पर, गर्मी बढ़ै दिवस हो वृहत्‍तर।।

मार्च बाद उत्‍तर दिस माहहीं, गर्मी बढ़ अरू दिन बढ़ जाहीं।।

बाइस सितम्‍बर दक्षिण भागा, गर्मी अधिक होय दिन जागा।

या विपरीत शीत ऋतु रहई, ऐसी गति सूरज से बनई।।

कहुं तिरछी सूधी पड़े, इह सूरज की धूप।

तासौं ऋतु छै हू बनी, मय संधी के श्रूप।।52।।

सूर्य उत्‍तरी दक्षिणी, जोतिर विद बतलांय।।

तातें गणना एक सी, समझ परै मन मांय।। 53।।

पदार्थ गुण

कहूं पदारथ गुण सबै, ईश्‍वर लीला मांह।

ताको सुन गुन मन धरहु, परख करत दरसांह।। 54।।

जगत पदारथ सुनो कहानी, जिनसे विविध वस्‍तु निरमानी।

तिनके है द्वै वर्ग कहाये, इक ऊर्जा इक द्रव्‍य बताये।।

ऊर्जा मध्‍य भार नहिं होवै, नहीं स्‍थानहिं घेरत जोवै।।

पर ये बड़े काम की आवै, रूप बदल कर जीव जिवावैं।।

प्रकाश ऊष्‍मा ध्‍वनि अरू बिजली, जगत माझ रह जहं तहं बिचली।

विद्युत ध्‍वनि, ध्‍वनि विद्युत होई, ताको दृश्‍य रेडियो जोई।।

विद्युत ऊष्‍म प्रकाश बनावे, ताही ते बिजली जल जावै।

मानव तन भोजन के द्वारा, बनती यह जीवन अधारा।।

लकड़ी जल अग्नि बने, अग्नि ऊष्‍मा देय।

ताते हम सब वस्‍तु को, रूपान्‍तर कर लेय।। 55।।

सभी पदार्थन में भरौ, ऊर्जा कौ यह श्रुप।

अणु विघटन से हवै प्रगट, अतिहि अपार अनूप।। 56।।

प्रकृति मांझ सूरज बड़ दाता, सब जीवन के काम चलाता।

कहं तक इसी करौं बड़ाई, जगत मध्‍य महिमा रह छाई।।

बिजली मोटर रेल जहाजा, टेलीफोन रेडियो बाजा।

अणु बम और परमाणु भट्टी, राकिट आदि शक्ति यह जट्टी।।

याने सब अचरज कर डारे, ग्राम वासि चक्‍कर में पारे।

स्थित ऊर्जा एक कहावै, घड़ी खिलौने आदि चलावै।।

गतिज ऊर्जा दूजी होई, साईकिल मध्‍य विलोको सोई।

यांत्रिक ऊर्जा एक कहावै, बिजली पंखे आदि चलावै।।

रासायनिक ऊर्जा इक, जीवन के मध होय।

भोजन पच शक्ति बनै, कहत ताप सब कोय।। 57।।

ऊर्जा से शक्ति बनै, शक्ति कारज होय।

कारज में बल लगत है, यह जाने सब कोय।। 58।।

द्वितीय पदारथ द्रव्‍य कहावै, भांति भांति की वस्‍तु बनावै।

धातु काष्‍ठ मिट्टी जलवाऊ, कहं तक कहकर इने गिनाऊ।।

तीन भांति तिनके आकारा, ठोस गैस द्रव सवहिं निहारा।

ठोस वही जो पकड़न आवै, द्रव सोई पकड़त दिखरावै।।

गैस वही जो वायु उड़ावै, हम सब देखत ही रह जावै।

पानी एक पदारथ ऐसा, तीन रूप में रहता वैसा।।

ठोस बर्फ द्रव पानि कहावै, गैस भाप बन ही कहलावै।

लक्षण तीन पदारथ होवें, तिनसे परख तिनहिं को जोवें।।

भार होय घेंरे जगह, अरू आकार हि होय।

ये गुण जा मध देखिये, कहौं पदारथ सोये।। 59।।

ज्ञानेन्द्रिय द्वारा परख, करते सब ही लोग।

रूप रंग ठंडा गरम, गंध सुगंध प्रयोग।।60।।

परिवर्तन पदार्थ का होई, भौतिक और रसायन दोई।

भौतिक मध पुन आगे आवै, जैसे जल शक्‍कर घुल जावै।।

आंच देय शककर बन जाई, ज्‍यों त्‍यों कर पुन ताही पाई।

कहि रसायनिक औरहि रीती, वस्‍तु न आवै पुन कर तीती।।

जैसे लकड़ी राख बनाबै, राख न पुन लकड़ी हो पावै।।

इन परिवर्तन महिमा भारी, वस्‍तु बनावत बहु गुणकारी।।

लुहार सुनार और हलवाई, भौतिक परिवर्तन करै भाई।

परिवर्तन जु रसायनिक होई, ताकी महिमा अदभुत जोई।।

तिनकी शाखा सात है, सुनहु लगाकर ध्‍यान।

ताको अब वरनन करू, अपनी मति अनुमान ।।61।।

प्रथम अकर्बनिक सात विभागा, तिनके तिनके नाम सुनत सुख लागा।

धातु अधातु लवण अरू अम्‍बल, भस्‍म खनिज उपधातु कहें भल।।

द्वितिय कार्बनिक बारह शाखा, तिनके नाम कहौं अब भाखा।।

वस्‍तु प्रसाधन, कागज, कपड़ा, रंग, प्‍लास्टिक, चीनी शकरा।।

एल्‍कोहल, पैट्रोल, औषधी, खाद्य, पेंट्स, कोलतार द्वादसी।

तृतीय औद्योगिक वैश्‍लेषिक, दस भागों में भयो प्रवेशिक।।

खाद्य पदारथ कृषि रसायन, भवन खाद पालिस निरमायन।

विस्‍फोटक सामान लड़़ाई, मिश्र धातु अरू जल विलगाई।।

गुण आत्‍मक भारात्‍मक जानो, येद्वै विश्‍लेषण परमानों।

जीव रसायन चौथी कहिये, षट विभाग पुन ताके लहिये।।

विटामिन प्रोटिन अरू, अमिनो अम्‍ल हि जान।

हार मोन अरू विकर पुन, कोश शर्करा मान।। 62।।

पांचई भौतिक ही कहलावै, पांच भाग ताके दरसावै।

चुम्‍बक बिज्‍जु प्रकाश रसायन, कोलाइडी ऊष्‍मा कर गायन।।

छठई अंतरिक्ष संबंधी, सांतई है परमाणु विखंडी।

इतौ रसायन को परिवारा विचरे, जिन नैनन से नाहिं निहारा।

बने पदारथ अणु संयोगा, दीखत सूक्षम यंत्र उपयोगा।

इह मध सब विशेषता राजें, जोई पदारथ वस्‍तु विराजें।।

अणु से लघु परमाणु विचारे, जिन नैनन से नाहिं निहारे।

प्रीति रसायन इन मध होई, क्रिया करत रसायन सोई।।

बनत पदारथ रीति यह, यह चतुरन की खोज।

जिनहिं विभाजित है किये, सुनत जु उपजत चोज।।63।।

इलैक्‍ट्रान प्रोटान अरू, न्‍यूट्रान संयोग।

बनते हैं परमाणु ये, कहं वैज्ञानिक लोग।।64।।

स्‍वर्ण वर्क बन इन संयोगा, जल घट गीला तिन उपयोगा।

शक्‍कर पानी रहत विलाई, पै मिठास कण है इन भाई।।

रंग घोल पानी मध देखो, तब अणु की गति निजमन पेखो।

ठोस पदारथ अणु घन होवें, ताते विरल सुद्रव मध जोवें।।

अधिक विरल गैसहिं के माही, आकरषण बल बंधे सदाहीं।

इलैक्‍ट्रान प्रोटोन कहावैं, इनको यों कह के समझावें।।

मध प्रोट्रान न्‍यूट्रान रहावैं, इलैक्‍टान चहुं दिस इन धावैं।

सब तत्‍वों के मध्‍य सम, इलैक्‍ट्रान प्रोटान।

भिन्‍न भिन्‍न संख्‍या रहे, विज्ञ करें अनुमान।। 65।।

विद्युत कैसो खेल इन, धन ऋण आत्‍मक होय।

इनकी गति अति सूक्ष्‍म है, वैज्ञानिक ही जोय।।66।।

तत्‍व ताहि वैज्ञानिक मानें, नहिं दूजे परमाणु समाने।

दूजे मिल यौगिक कहलाई, बने पदारथ या विधि भाई।।

अब तक तत्‍व एक सौ पांचा, वैज्ञानिक की आये जांचा।

यौगिक की संख्‍या अति भारी, जिनकी गणना नहिं निरधारी।।

आगिल काज समझ मन मा‍हीं, वैज्ञानिक संकेत बनाहीं।।

सूत्र रूप पुन उनको बरनो, जिनसे मिल इक अणु कौ बननो।।

तत्‍व संयोजकता पुन बरनी, हाइड्रोजन संग क्रिया करनी।

उत्‍प्रेरक इनके बतलाये, जिनसे काज शीघ्र बन जाये।।

तत्‍व और यौगिकहि के, कुछ बरना संकेत।

तिनको सुनिये चित्‍त दे, रसायन काम जु देत।। 67।।

अलमूनियम ए.एल. कहावै, एन्‍टीमनी एस.बी. पावै।

आरसैनिक ए. एस. जतावै, बेरियम बी. ए. ही बन जावै।।

विसमथ कहिये बी अरू आई., बी. बोरान रही बतलाई।

ब्रोमिन सो बी आर कहावै, कैरिम सी डी को अपनावै।।

कैलासिन सी ए कहलावै, कारबन केवल सी जतलावै।

क्‍लोरीन सी आई बनावै, अरू क्रोमियम सी आर कहावै।।

कोवाल्‍टहि सी ओ कहगावै, कोपर सी यू ही अपनावै।

गोल्‍ड कहत है ए यू भाई, हाइड्रोजन एच दरसाई।।

आयोडीन से आई कहं, एम. कहें आयर्न।

लोडहि पी वी हैं कहें, टीन एस एन सर्न।। 68।।

मैगनेशियम एम जी अपनावैं, मैंगनीज एम एन हि भावैं।

मरकरी एच अरू जी प्रगटावै, निकल एन आई बन जावै।।

नाइट्रोजन को एन हि कहिये, ओ ओक्‍सीजन सेवत रहिये।

फासफोरस पी कहतई भाषे, पुटेनेशियम के को अभिलाषे।

रेडियम आर ए कहं सब लोग, सोडियम ही पी के संयोग।।

सिलवर ए जी से बन जाई, सलफर एस रहे दरसाई।

जिन्‍क सु जेड एन कहावै, स्‍ट्रान्सियम एस आर बतावै।।

इतै तत्‍व कर कहे संकेता, और न आये मेरे चेता।।

अब यौगिक वर्णन करूं, सुनो तिनहि संकेत।

वैज्ञानिक जन काम में, बड़ो योग ये देत।।69।।

पानी एच टू ओ बन जाई, अमोनियां एन एच थ्री कहाई।

सल्‍फयूरिक अम्‍ल कह ऐसे , एच टू एस ओ फोरहिं तैंसे।।

कारबन डाई ओक्‍साइड बखानी, सी ओ टू कहकर बुधिमानी।

एन ए अरू सी आई कहावै, सोडियम क्‍लोराइड बतलावै।।

कास्टिक सोडा ऐसे कहई, एन ए ओ एचहि चित धरई।

एच टू अरू सी ओ टू भाई, कहत कार्बनि‍क अम्‍बल गाई।।

एच ए टू अरू एस ओ थ्री, सोडियम सलफाइड मध्‍य धरी।

शोरा अम्‍ल कहत हैं ऐसे, एच ओ थ्री कहियत जैसें।।

तीन भांति यौगिक कहे, अम्‍ल लवण अरू छार।

विलग विलग तिनके गुणहि, विज्ञ करै निरधार।।70।।

अम्‍ल आहिं बहु भांति के, तिन वैज्ञानिक जान।

मेरी ताकत है नहीं तिनकौ कंरू बखान।।71।।

अम्‍ल स्‍वाद में खट्टे होई, नीले लिटमस लाल करोई।

अम्‍ल धातु संग क्रिया करके, हाईड्रोजन गैसहि है प्रगटे।।

बहुत काम मध ये हैं आवैं, औषधि खाद आदि निरमावैं।

छारक घोल स्‍वाद में तीखा, छूने पर चिकनाहट दीखा।।

लिटमस लाल करैं ये नीला, धातु संग हाईड्रोजन लीला।

साबुन लवण प्रसाधन चीजें, बनते सदा इनहिं के सीजे।

अम्‍ल छार से लवण बनाई, षट किसमें तिनकी दरसाईं ।।

छार अम्‍ल संयुक्ति नामा, होते इनके जोजिहि सामा।

भोजन औषधि आदि में, आते हैं ये काम।

कागज शक्‍कर आदि हू, सुने जात है नाम।। 72।।

कारवन के यौगिक अब बरनौ, द्व विभाग करके अनुसरनो।

रवेदार हीरा ग्रेफाइट, देते कारवन डाई ओक्‍साइड।।

इन्‍हें जलाते यह नि कहती, यासे इनकी होती पुष्‍टी।

खा हीन कोल कोक कहावै, चारकोल अरू कारवन आवें।।

यह यौगिक पौधे अरू प्रानी, सब के तन मध रहे समानी।

सेलूलोज स्‍टार्च कहावै, पौधन मध्‍य जो नित्‍य रहावै।।

वसा मध्‍य है इस कर वासा, अरू प्रोटीन करै परकासा।

कारवन योगिक शाख दस, कहं विज्ञानिक लोग।

वायु वनस्‍पति प्राणि सब, करते है उपयोग।। 73।।

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