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ईश्‍वर लीला विज्ञान - 2 - अनन्‍तराम गुप्‍त

ईश्‍वर लीला विज्ञान 2

अनन्‍तराम गुप्‍त

कवि ईश्‍वर की अनूठी कारीगरी पर मुग्‍ध हैं, और आकाश, अग्नि, पवन, जल एवं पृथ्‍वी के पांच पुराने तत्‍वों का वर्णन आज के वैज्ञानिक सिद्धान्‍तों के साथ गुम्फित करते हुये प्रस्‍तुत करता है। साथ ही उसने पदार्थों के गुणों तथा वनस्पिति और प्राणी विज्ञान का प्रारंभिक परिचय अंग्रेजी नामों के साथ यत्‍न पूर्वक जुटाया है।

दिनांक-01-09-2021

सम्‍पादक

रामगोपाल भावुक

उष्‍मा विद्युत एकहिं जानो, किरिया तासु जटिल पहिचानो।

घरषण से जो विद्युत बनई, बालक खेलत तासौं रहई।।

धन ऋण आत्‍मक कण हट जावे, वस्‍तु अकरषण चित में लावैं।

कंघी रगड़ बाल से लेवें, कागज चिपक जाय यह भेंवे।।

तांबा जस्‍ता गंधक अम्‍बल, बनत सैल जो टोर्च हि मध जल।

पावर हाउस बड़े विस्‍तारा, जासौं प्रगटें विद्युत धारा।।

सो विद्युत बहु कामें आवैं, करै प्रकाश मशीन चलावै।

बादल हू में विद्युत प्रगटै, ताहि देख स‍ब ही जग डरपै।।

विद्युत व्‍यापक सब जगह, कहत सयानें लोग।

वैज्ञानिक प्रगटाय कें, करत रहें उपयोग।।16।।

प्रकाश ऊष्‍मा विद्युत स‍बही, कहत ऊर्जा ये सब अहही।

नाहिं भार स्‍थान न घेरें, काज बनावत सब जग हेरे।।

एक रूप दूजे बन जाई, विद्युत यह बतलावै भाई।

करै प्रकाश ऊष्‍मा देवै, यंत्र चलावै नर सुख लेवै।।

कहौं कहां तक याहि बड़ाई, सब जग देख देख चकराई।

ताकौ केन्‍द्र सूर्य इक जानो, सत्‍य सत्‍य भाई तुम मानो।।

रथ घोरे ऋषि जो तुम बरनन है, रूपक जो बनायो चतुरन।

रथ कह समय विभाजन कीनो, संवत्‍सर से ताको चीनों।।

घोरे सात वार दिन जानों ऋषि किरणावलि तैंसे मानों।

लोका लोक पहाड़, उदय अस्‍त पृथ्‍वी गति भाई।।

बात सही देवत्‍व से, बरनी आरज लोग।

अब वैज्ञानिक दृष्टि से, होता है उपयोग।।17।।

छिति जल पावक वायु को, दीने देव वनाय।

कथा रची सुन्‍दर सुखद, बरने गुण समुदाय।।18।।

नौ ग्रह बरनो कथा घनेरी, देत रहत सूरज को फेरी।

तिनके नाम बुद्ध शुक्र पृथ्‍वी, मंगल, बृहस्‍पति शनी जोत‍षी।।

यूरेनस हिं नेपच्‍यून, प्‍लूटो इंगलिस नामहि मन में जूटो।

राहु केतु नहिं बरनन कीनों, नाम पलट या विधि कर दीनों।।

निज प्रकाश तिनमें कछु नाहीं, सूर्य प्रकाशित रहें सदाहीं।

आकरषण बल सूरज केरे, दिन प्रति देत रहत है फेरे।।

उपग्रह इनके और कहावैं, ते इनको चक्‍कर दै ध्‍यावैं।

औरों तारे अगनित रहहीं, इन मिल सौर मंडल सब कहही।।

जिन जानों बरनन करौं, गाथा अपरम्‍पार।

ज्‍योतिष अरू विज्ञान की, क्रिया लख साकार।।19।।

कोटि तीन अरू साठहिं लाखा, सूरज बुध कर अन्‍तर भाखा।

द्वै सहस्‍त्र सात सौ मीला, बरनौं व्‍यास बुद्ध ग्रह लीला।।

दिना अठासी परिकरमा के, देत देत कबहूं नहिं थाके।

छियासठ कोटि अरू सत्‍तर लाखा, शुक्र सूर्य का अन्‍तर भाखा।।

सहस्‍त्र सात सौ मीला, बरनौ व्‍यास बुद्ध ग्रह लीला।।

दिना अठासी परिकरमा के, देत देत कबहूं नहिं थाके।

छियासठ कोटि अरू सत्‍तर लाखा, शुक्र सूर्य का अन्‍तर भाखा।।

सहस सात आठ सौ मीला, बरनौ व्‍यास शुक्र ग्रह लीला।

परिकरमा दो सौ पच्चिस दिन, करत रहत सूरज की प्रतिदिन।।

नौ करोड़ अरू तीसक लाखा, पृथ्‍वी सूरज अन्‍तर भाखा।

सहस आठ मील कहौ व्‍यासा, दिन तीन सौ पैंसठ भाषा।

उपग्रह इसका चन्‍द्रमा, देता चक्‍कर नित।

अट्ठाइस दिन हैं कहें, घट बढ़ दीखे मित्‍त।।20।।

दो लाख अड़तीसक सहस, आठक सौ चालीस।

धरती सों दूरी कही, मीलन मध्‍य रिषीस।।21।।

स्‍वयं प्रकाशित है यह नाहीं, सूर्य प्रकाश परवर्त सदाहीं।

सूर्य चन्‍द्रमा पृथ्‍वी की गति, दिखती इस मध वृद्धि अरू छति।।

सूर्य चन्‍द्रमा बिच जब धरती, चन्‍द्र ग्रहण का कारण बनती।

धरती सूर्य बीच शशि आवै, सूर्य ग्रहण कारण बन जावे।।

पूनो मावस है तिथि निश्‍चय, ऐसी है कछु गति‍विधि स्थित।

जोतिरविद पहले ही भाषे, लगा गुनित पत्रा मध राखें।।

पृथ्‍वी निकट सदा यह रहही, ता आकरषण ज्‍वार समुद्र ही।

पूरनमासी अधिकौ आवै, कारन सूर्य चन्‍द्र सम आवै।।

ईश्‍वर लीला भजन, समझी आरज लोग।

अचरज में डारत सदा, एसो कछु संयोग।।22।।

चौदह कोटि लाख दस मीला, मंगल सूरज अंतर लीला।

चार सहस्‍त्र तीन सौ कहिये, मंगल ग्रह कर व्‍यास सु लहिये।।

छै सौ सत्‍तासी दिन चक्‍कर, सूरज के देने में तत्‍पर।

दो उपग्रह याही के बरनै, भ्रमत रहें कक्षा में अपने।।

तीस लाख अड़तालीस कोटा, सूरज बृहस्‍पति अंतर जोटा।

सहस बहात्‍तर मील सु व्‍यासा, उन्तिस बर्षहिं क्रम इक भाषा।

नौ उपग्रह इसके संग माहीं, भ्रमत रहत नित नित्‍य सदाहीं।।

इनके फल ज्‍योतिष कहें, नहिं वैज्ञानिक लोग।

ताही सों बरने नहीं, जाने प्रभु संयोग।। 23।।

अरब एक अठहत्‍तर कोटी, लाख बीस यूरेनस सोटी।

पैंतिस सहस मील कर व्‍यासा, वर्ष चौरासी चक्‍कर भाषा ।।

उपग्रह पांच संग निज लीये, नाम नवीन सु इंगलिश दीये।

दोई अरब कोटि उन्‍यासी, तीस लाख मिल दूरी भाषी।।

बत्तिस सहस मील कर व्‍यासा, नेपच्‍यून ग्रहा कर भाषी।

वर्ष एक सौ पैंसठ माहीं, चक्‍कर एक लगाया सदाहीं।।

दो उपग्रह याके संग रहहीं, ऐसा वैज्ञज्ञनिक अनुभव हीं।

तीन अरब अरू छप्‍पन कोटी, सत्‍तर लाख सूर्य से जोटी।।

चार सहस्‍त्र मील कर व्‍यासा, प्‍लूटो ग्रह कर है अनियासा।

वर्ष कहे दो सौ अड़तालीस, एक सूर्य चक्‍कर के खालिस।।

ध्रुव तारा उत्‍तर दिशा, अविचल दिखैं सदांह।

सप्‍त ऋषि चक्‍कर करें, निरख भक्‍त हरषांह।।24।।

रह धरती के केन्‍द्र में, विज्ञानिक बतलांह।

दिशा पलट तासौं नही, अविचल दिखैं सदांह।।25।।

कैसा सूर्य प्रभाव है, कैसा है स्‍थान।

सोचो मन में चतुरनर, ईश्‍वर केर विधान ।।26।।

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पवन

पवन प्रसंगहि अ‍ब कहौं, ईश्‍वर लीला मद्ध।

सुनहु सु सज्‍जन चित्‍त दै, होय ज्ञान की बृद्ध।।27।।

अचरज मय सब लीला भाई, काहु न अब तक जान न पाई।

इस धरती के चारों ओरी, पवन भरी ना जानो थोरी।।

दो सौ मील उँचाई मानो, याके आगे सूक्षम जानो।।

यहं त‍क जीव सांस ले पावेंहिं, आगे बढ़ कष्‍टहिं अनुभावें।।

वायुयान ते जे उड़ जावें, वायु ओक्‍सीजन ले धावें।

मंडल वायु कहत सब याकों, बरनत ताहिं कबहुं नहिं थाकों।।

बिना वायु नहिं जीवें प्रानी, महिमा ताकी अदभुत जानी।

पुन जलने में होय सहायक, पवन बिना नहिं अग्नि प्रचारक।।

दीप वार औधों धरो, बर्तन पोलो तासु।

अपन आप बुझ जायगो, समझो महिमा जासु।।28।।

यह सिद्धान्‍त काम सब लावैं, छिद्र लालटिन मध्‍य बनावें।

लकड़ी भट्टा मूंदें छेद, शीतल होय जाय या भेद।।

पवन मध्‍य दो गैसें रहहीं, ऑक्‍सीजन नाईट्रोजन कहहीं।

दोनों मिल इक कम सौं मात्रा, एक मध्‍य बहु करती यात्रा।।

हाईड्रोजन हीलियम नियान, कार्बन भाप धूल कण मान।

अत: वायु गैसों का मिश्रण, ऐसा कहते है वैज्ञानिक जन।।

कबहुंक घट बढ़ यह हो जाई, पर औसतन संतुलित पाई।

पांचय भाग ओष जन जानों, चार भाग अन्‍य पहिचानों।।

सांस मध्‍य सब जीव की, ये ही आवे काम।

जलने में मददहिं करै, उपयोगी अठयाम।।29।।

आधो बर्तन जल भर लेओ, जलत मोम बत्‍ती धर देओ।

बरतन कांच बन्‍द कर राखो, बत्‍ती बुझे जलहि तुम झांखो।।

पांचय हिस्‍सा जल चढ़ जावै, यह प्रमान ओषजन हि वतावै।

नाइट्रोजन नहिं जलन सहायक, पै प्रोटीन बनाने लायक।।

खाली बरतन इे तुम लेओ, जलत मोमबत्‍ती धर देओ।

ओक्‍सीजन जल वही बुझावै, चूना जल तब शीघ्र मिलावै।।

शेष नाइट्रोजन रह जावै, जलती काढ़ी तुरत बुझावै।

यह याको अनुभव बतालावै, नाइट्रोजन तबही समझावै।।

कार्बनडाइ ओक्‍साइड की, मात्रा ऐसे जान।

चूना जल में यह हवा, भरो पम्‍प से आन।।30।।

याकी परख यही तुम जानो, चूना जल दूधिया बनानो।

प्राणी सांस से बाहर आवै, यह वायु इहि विधि निरमावे।।

खतरनाक यह वायु जानो, अधिक न सेवो मेरी मानों।

धुंआ मध्‍य से ही प्रगटावै, सांस लेत में दम घुट जावै।।

पौधे रात मध्‍य यह त्‍यागें, दिन में ग्रहण करें सुख पावैं।।

वृक्ष तले रात नहिं सोवे, नहिं तो ओक्‍सीजन को खोवे।।

धूरा के कण वायु रहाहीं, छप्‍पर रन्‍ध्र प्रकाश दिखाहीं।।

जल की भाप उड़त जो दिन में मिलत जाय वह पवनहिं छिन में।।

धुंआ धूलजल भाप से, धुंध छाय आकाश।

धुंधलो ये कर देत है, सूरज को परकाश।।31।।

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