ईश्‍वर लीला विज्ञान - 3 - अनन्‍तराम गुप्‍त ramgopal bhavuk द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

ईश्‍वर लीला विज्ञान - 3 - अनन्‍तराम गुप्‍त

ईश्‍वर लीला विज्ञान 3

अनन्‍तराम गुप्‍त

कवि ईश्‍वर की अनूठी कारीगरी पर मुग्‍ध हैं, और आकाश, अग्नि, पवन, जल एवं पृथ्‍वी के पांच पुराने तत्‍वों का वर्णन आज के वैज्ञानिक सिद्धान्‍तों के साथ गुम्फित करते हुये प्रस्‍तुत करता है। साथ ही उसने पदार्थों के गुणों तथा वनस्पिति और प्राणी विज्ञान का प्रारंभिक परिचय अंग्रेजी नामों के साथ यत्‍न पूर्वक जुटाया है।

दिनांक-01-09-2021

सम्‍पादक

रामगोपाल भावुक

जल की भाप जो वायू समावै, गर्मी ठंडक को अनुभावै।

सर्दी में यह खेल दिखावै, कुहरा ओस आदि वन जावै।।

इसकी माप करन के कारन, गीला सूखा यंत्र निरधारन।

जल आद्रता वायु बतलावै, ताहीं सों मौसम बन जावे।।

एक और गुण वायू माहीं, ताको विज्ञ जन दाव कहाहीं।

भर गिलास जल कागज लेवे, कागज औधे तापे दैवे।।

उलटो तब गिलास कर देई, जल नहिं गिरे दाव कहं तेई।

यहै दाव चहुं ओर रहावै, घट बढ़ तन कउ होन न पावै।।

तासौं हम पानी पियत, हवा पंप हू देय।

जल हि तेल के पंप रच, सब जग काम जु लेय।।32।।

डिबिया खोलन मध्‍य में, जो ताकत लग जाय।

दाव हवा का जानिये, औ रहु देयं बताय।।33।।

निकट समुद्र सघन रह वायू, दाव प्रभाव अधिक तिहि ठाऊ।

ज्‍यों ज्‍यों धरती ऊपर आवै, दाव वेग कम तौ ही जावै।।

बैरो मीटर नापन यंत्रा, दाव बतावै गुन के मंत्रा।

सेंटी मीटर छियत्‍तर जानों, समुद्र निकट दाव परमानों।।

इक सेंटी मीटर प्रति वर्गा, किलाग्राम इक भारहिं अर्गा।।

पन्‍द्रह सहस किलो का भारा, एक मनुष्‍य के तनहिं संभारा।

पै इनकी प्रतीत नहिं होवै, जैसे मछली जलहिं विलौवे।

सूर्य ऊष्‍मा के ही कारन, घट बढ़ दाव वायु करै धारन।।

भगी फिरै इत उत जभी, चलत दिखाई देत।

मौसम गर्मी में अधिक, वायु झकोरा लेत।।34।।

सांस लेत जो वायू निकसै, दूषित होय जाय तिहिं परसैं।

सड़ी गली वस्‍तुन के कारन, मील धुआं जब होत प्रसारण।।

गंदी वायु तबै हो जावै, या कों जगत वनस्‍पति खावै।

दिन मध पौधे याकों खावें, शुद्ध वायु पत्‍तन निकसावें।।

तासौं पवन शुद्ध हो जावै, सूरज किरणें कछू मिटावै।

वायु दाव अधिकौ करै कामा, यहं की वहा घुमावै ठामा।।

गैसों के विसरण से बहु तक, यज्ञ सुगंधित द्रव है धोतक।

शुद्ध वायु नीचे तल रहई, दूषित वायु सो ऊंचे उठई।।

तासौं पक्‍के ग्रहन मध, खिरकी रोशनदान।

आन जान हित वायु के, होते हैं निरमान ।।35।।

ग्राम नगर के बाहरै, शुद्ध वायु अनुमान।

इन अन्‍दर कहु कारने, दूषित होय सुजान।। 36।।

जल

जल संबंधी प्रकरण यहै, ईश्‍वर लीला मांह।

सज्‍जन सुनिये ध्‍यान धर, अद्भुत गुण दरसांह।। 37।।

जल महिमा सब जाने भाई, हम कछु अद्भुत नहीं बताई।

धरती पर जल तीन चौथाई, जहं तहं भरौ समुद्रहिं पाई।।

या बिन जीवन दुर्लभ जानो, अपने मनहिं विज्ञ अनुमानों।

खारो मीठो द्वै विधि होई, ताकी परख सुनो तुम सोई।।

साबुन फेन जासु जल आवै, सोई मीठी जल कह लावै।

साबुन फेन न जा मध देई, खारो जान लेव जल तेई।।

खारौ जल द्वै भंति कहावै, मृदु कठोर विज्ञान बतावै।

मृदु उवलन से मीठा होई, साबुन झाग देय पुन सोई।।

जो कठोर खारौ कहो, सोड़ा देय मिलाय।

परम्‍यूटिट के मिलन से, मीठीही बन जाय।।38।।

हाइड्रोजन ऑक्‍सीजन मिलके, पानी बनत गैस द्वै हिलकें।

द्वै अरू इक अनुपात बखाना, आयतन का यही विधाना।।

भार रूप में इक आठ मानो, ऐसो है अनुपात बखानो।।

वोल्‍टा मीटर परख बतावै, करके देख बहुत सुख पावै।।

पानी तीन रूप धर रहई, पानी बर्फ भाप सब कहई।

तीन भांति जल गंदा होवै, कूड़ा माटी जन्‍तु समोवै।।

छान निथार उबाले पानी, शुद्ध करन की विधि प्रमानी।

आसवान विधि है सब से सुन्‍दर, जो प्रयुक्‍त इंजेक्‍शन अन्‍दर।।

डिग्री शून्‍यहिं जल जमें, उबलै सो पर जाय।

चार जु डिग्री भार में, सब से अधिक कहाय।।39।।

डिग्री चार अधिक कम होई, आयतन बढ़ौ जानिये सोई।

बर्फ ताहिसे जल तैरावै, उबल ऊफन जल बाहर आवै।।

उष्‍मा अरू विद्युत की धारा, पानी शुद्ध न करैं प्रसारा।।

ऊंचौ जल नीचे को आवै, तासों विद्युत पुरूष बनावै।।

जल की भाप सों इंजन चालै, काम बहुत से परूष निकाले।

खारे जल से नमक बनावै, जो खाने के कामै आवै।।

जल से बर्फ बने अब भाई, बिकै बजारन जो बहुताई।

जल से गैस होय निरमाना, जाको जाने चतुर महाना।।

जल सूरज की किरण से, भाप बने उड़ जाय।

जो बादल बन समय से पानी को बरसांय।।40।।

होती भाप वायु ते हलकी, इससे ऊपर ही को चलती।

ऊपर वायु दाव कम तापा, तासों अधिक रहे तहं भापा।।

जब अतिसय ठंडी हो जावै, वायु भार सहन नहिं पावै।

तब बूंदे बन पानी बरसै, निरख निरख सब कौ मन हरषै।।

जाड़े की ऋतु में यह भापा, ऊंची चढ़ै न सूरज तापा।

रात मध्‍य सोई ठंडक पाई, ओस रूप धरती आजाई।।

और अधिक ठंडक जब होई, कोहरा बन छा जाये सोई।।

धरती ताप शून्‍य कम होवै, ओस तबहि पाला बन जावे।।

बादल जल अति शीत सें, जब ही ठंडौ होय।

ओले को तब रूप धर, बरस पड़त है सोय।।41।।

जल घनत्‍व की रीति सों, रहता सदा समान।

प्रति घन सेंटी मीटरहिं, एक ग्राम अनुमान।।42।।

वस्‍तु कोई जब जल में डूवै, घटै भार कछु जल ऊपर होवै।

वस्‍तु का जितना आकारा, तितना ही जल करै प्रसारा।।

जितनो जल होवे विस्‍तारा, वस्‍तु आयतन कहौ पुकारा।

इतनी ही कमी भार में आवै, डूबो घट कूपहिं दरसावै।।

भार कमी उत्‍प्‍लावन कारन, जल उछाल कोउ कर निरधारन।

वस्‍तु हो जब जल से हल्‍की, तैर तबहिं पानि की पलकी।।

वस्‍तु हो जब जल से हल्‍की, तैर तबहिं पानि की पलकी।।

वस्‍तु जितने जलहिं हटावै, तितनों उत्‍प्‍लावन बलहि कहावै।

वस्‍तु भार उत्‍प्‍लावन कौ बल, दोउ सम होय वस्‍तु तैरे भल।।

अधिक भार ते डूब है, कम ते जल उतराय।

रहें संतुलित जबहिं दोउ, डूबत हू रह जाय।।43।।

जल मध कील जु डूबई, तस्‍सल रह उतराय।

कारन ताको आयतन, विज्ञ कहें समझाय।। 44।।

दाव करै चहुं ओर ते, जल की है यह रीति।

गहराई तल पै अधिक, ऐसी याकी नीति ।।45।।

ताते जल के मध्‍य में, चलत रहत अब पोत।

बढ़त आयतन वस्‍तु कौ, हरई तबहीं होत।। 46।।