Avsaan ki bela me - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

अवसान की बेला में - भाग ४

२६. चेहरे पर चेहरा

रामसिंह नाम का एक व्यक्ति था, वह पेशे से डाक्टर था। वह बहुत से लोगों को नौकरी पर रखे था। उसने यह प्रचारित किया था कि वह जनता के हित में एक सर्वसुविधा युक्त आधुनिक तकनीक से सम्पन्न अस्पताल बनाना चाहता है। वह हमेशा मंहगी कारों पर चला करता था। उसके पास घर पर मरीजों का तांता लगा रहता था। कुछ तो उससे अपना इलाज कराने के लिये दूर-दूर के दूसरे नगरों से भी आते थै। वह बीमारों के इलाज के बदले उनसे एक भी पैसा नहीं लेता था। गरीबों की मदद करने के लिये वह हमेशा तत्पर रहा करता था। उन्हें वह दवाएं भी बिना पैसो के दिया करता था। उसकी शानो-शौकत व रहन-सहन देखकर लोग उसे बहुत अमीर, परोपकारी और ईमानदार मानते थे।

लोग उसे अस्पताल के लिये दिल खोलकर दान दिया करते थे। बहुत से लोगों ने अपना कीमती सामान और धन उसके पास सुरक्षित रख दिया था। वह उनके धन पर उन्हें ब्याज भी देता था। उनका ब्याज हमेशा उन्हें समय से पहले प्राप्त हो जाया करता था। एक दिन अचानक वह नगर से गायब हो गया। किसी को भी पता नहीं था कि वह कहाँ चला गया। लोग आश्चर्य चकित थे। कुछ दिन तक तो लोगों ने उसकी प्रतीक्षा की किन्तु फिर जब उनका धैर्य समाप्त होने लगा तो सबके सामने स्थिति स्पष्ट होने लगी। वह बहुत सा धन अपने साथ ले गया था। वह सारा धन जो लोगों ने उसके पास अमानत के तौर पर या व्यापार के लिये रखा था वह सब लेकर चंपत हो गया था।

लोगों ने जब उसकी शिकायत पुलिस में की तो पुलिस ने उसकी खोजबीन प्रारम्भ की और तब जाकर पता चला कि उसके पास उसका स्वयं का कुछ भी नहीं था। जो कुछ भी था सब किराये का था जिसका किराया तक उसने नहीं दिया था। उसकी डिग्री जो वह अपने बैठक खाने में टांगे था वह फर्जी थी। लोगों के पास अब सिवाय हाथ मलने और पछताने के कोई चारा नहीं बचा था। हमें किसी की चमक-दमक देखकर उससे प्रभावित नहीं हो जाना चाहिए। हमें अपने विवेक को जागृत करके रहना चाहिए वरना हम भी ऐसे जालसाजों एवं धोखेबाजों के शिकार हो सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति की जीवन-शैली और कार्य करने की पद्धति सामान्य से भिन्न हो तो हमें हमेशा उससे सावधान रहना चाहिए। यह निश्चित समझिये कि वह कोई न कोई ऐसा कार्य करेगा जो समाज के लिये हितकारी नहीं होगा।

पाँच वर्ष बाद की एक शाम-मैले कुचेले कपडे पहने भीगता हुआ एक व्यक्ति मंदिर की सीढी पर बैठा हुआ था। मंदिर में आरती हो रही थी, पुजारी जी आरती के उपरान्त सीढियों से नीचे उतर रहे थे कि उन्होंने उस व्यक्ति को देखा और ठिठक कर रूक गये। वो उसको पहचानने का प्रयत्न करने लगे। तभी वह हाथ जोडकर उनके करीब आया और बोला हाँ मैं वही हूँ जो आज से पाँच वर्ष पूर्व यहाँ के लोगो को बेवकूफ बनाकर चम्पत हो गया था। मुझे मेरी करनी का फल मिल गया। देखिये आज मेरी कितनी दयनीय हालत है। पुजारी जी ने फिर पूछा ये कैसे हो गया। वह बोला मैंने यहाँ से जाकर उन रूपयों से एक उद्योग खोला था। मुझे उसमें घाटा होता चला गया। वह बंद हो गया और मेरी जमा पूँजी समाप्त हो गयी। मेरी पत्नी और मेरा एकमात्र बच्चा टीबी की बीमारी में परलोक सिधार गये। मैं अकेला रह गया और आज दो वक्त की रोटी के लिये भी मोहताज हूँ। यह दुर्दशा मेरे गलत कार्यों के कारण हुई है। जीवन में कभी किसी को धोखा देकर उसका धन नही हडपना चाहिये। किसी के विश्वास को तोडना जीवन में सबसे बडा पाप होता है। मुझे इंसान तो क्या भगवान भी माफ नही करेंगे।

२७. समाधान

रागिनी एक संभ्रांत परिवार की पढी लिखी, सुंदर एवं सुशील लडकी थी। उसका विवाह एक कुलीन परिवार के लडके राजीव के साथ संपन्न हुआ था। उसके माता पिता आश्वस्त थे कि उनकी बेटी उस परिवार में सुखी रहेगी परंतु उसके विवाह के कुछ माह बाद ही उसे दहेज के लिये प्रताड़ित किया जाने लगा और उसकी यह पीडा प्रतिदिन उस पर हो रहे अन्याय एवं अत्याचार से बढती जा रही थी। उसका पति भी प्रतिदिन नशे का सेवन कर उसके साथ दुव्र्यवहार करने लगा था जिससे वह बहुत दुखी थी। एक दिन तो हद ही हो गई जब उसके पति ने उस पर हाथ उठा दिया। उसके पडोसी भी उसके प्रति सहानुभूति रखते हुये उसे सलाह देते थे कि वह यह बात अपने माता पिता को बताये एवं पुलिस की मदद भी प्राप्त करे परंतु रागिनी समझती थी कि इससे कुछ समय के लिये राहत तो मिल सकती है परंतु यह स्थायी समाधान नही है।

जब उस पर अत्याचार की पराकाष्ठा होने लगी तो उसने गंभीरतापूर्वक चिंतन मनन करके एक कठोर निर्णय ले लिया जो कि सामान्यतया भारतीय नारी के लिये चुनौतीपूर्ण था उसका पति प्रतिदिन की आदत के अनुसार शाम को नशा करके घर आया और रागिनी को ऊँची आवाज में डाँटता हुआ उस पर हाथ उठाने लगा तभी रागिनी ने उसका हाथ अपने हाथ से जोरो से पकड लिया और जब उसने दूसरा हाथ उठाने का प्रयास किया तो रागिनी ने अपनी पूरी शक्ति और ताकत से उसके इस प्रहार को रोककर उसे जमीन पर पटक दिया। वह साक्षात रणचंडी का अवतार बन गयी थी। वह समाज को यह बताना चाहती थी कि नारी अबला नही सबला है और वह अत्याचार का प्रतिरोध भी कर सकती है। अब उसने पास ही में पडे एक डंडे से राजीव पर प्रहार कर दिया। राजीव डंडे की चोट से एवं अपनी पत्नी के इस रौद्र रूप को देखकर दूसरे कमरे की ओर भाग गया। यह एक सत्य है कि नशा करने वाले व्यक्ति का शरीर अंदर से खोखला हो जाता है वह ऊँची आवाज में बात तो कर सकता है परंतु उसमें लडने की शक्ति खत्म हो जाती है। राजीव की बहन उसे बचाने हेतु बीच में आयी परंतु वह भी डंडे खाकर वापस भाग गयी।

यह घटना देखकर मुहल्ले वाले राजीव के घर के सामने इकट्ठे होने लगे और महिलाओं का तो मानो पूरा समर्थन रागिनी के साथ था, रागिनी एक स्वाभिमानी महिला थी जिसने अपने माता पिता के पास ना जाकर एक मकान उसी मोहल्ले में किराए पर ले लिया। वह स्वावलंबी बनना चाहती थी, वह पाककला में बहुत निपुण थी उसने इसका उपयोग करते हुये अपनी स्वयं की टिफिन सेवा प्रारंभ कर दी। शुरू शुरू में तो उसे काफी संघर्ष एवं चुनौतियों का सामना करना पडा परंतु धीरे धीरे सफलता मिलती गयी। आज वह एक बडी दुकान की मालिक है जिसमें सौ से भी अधिक महिलाएँ कार्य कर रही हैं। उसकी प्रगति देखकर राजीव और उसका परिवार मन ही मन शर्मिंदा होने लगा और अपनी हरकतों के कारण पूरे मुहल्ले में सिर उठाने के लायक भी नही रहा। हमें जीवन में संकट से कभी घबराना नही चाहिये। जीवन में कभी भी चिंता करने से समस्याएँ नही सुलझती है समाधान पर ध्यान केंद्रित कर इस दिशा में कर्म करना चाहिए।

२८. भिखारी की सीख

एक भिखारी ने, एक अमीर व्यक्ति से भीख माँगते हुए कुछ देने का अनुरोध किया। उस अमीर व्यक्ति ने कहा कि तुम तो अच्छे खासे, हट्टे कट्टे नौजवान हो, मेहनत करके धन क्यों नही कमाते ? यह भीख माँगने की आदत का त्याग करो और अपनी मेहनत की कमाई से जीवन यापन करो। वह भिखारी बोला कि वह दिनभर मेहनत मजदूरी करता है परंतु उसे मात्र दो सौ रूपये ही प्राप्त होते है। वह शाम को दो तीन घंटे भीख माँगकर उससे कही ज्यादा रकम प्राप्त कर लेता है इसलिये उसने भीख माँगना अपना व्यवसाय बना लिया है।

आप बुरा ना माने तो एक बात कहूँ, अमीर व्यक्ति बोला हाँ कहो। भिखारी ने कहा कि आप भी प्रतिदिन सुबह प्रभु से प्रार्थना करते समय मन ही मन यह माँगते है कि आज का दिन अच्छा व्यतीत हो और कामकाज में अच्छी कमाई हो। यदि इसे गंभीरता से सोचे तो आप दोनो हाथ जोडकर भगवान से भीख ही माँग रहे होते है। मैं दोनो हाथ फैलाकर भगवान के नाम पर आपको निमित्त मानते हुए धन प्राप्ति की आशा करता हूँ, आप कुछ दे देंगें तो प्रभु से आपकी खुशी की दुआ माँगते हुए चला जाऊँगा।

उस अमीर व्यक्ति ने सोचा कि इसे भीख में कुछ ज्यादा धन दे दिया जाए तो यह खुश होकर मेरे लिए ज्यादा दुआ माँगेगा। यह सोचकर उन्होने उसे पाँच सौ रूपये दे दिये। वह भिखारी मुस्कुराता हुआ यह कहकर कि काश आपने बिना किसी लालच के भिक्षा दी होती तो दुआएँ आपके लिए बहुत प्रभावी होती। किसी आशा एवं अपेक्षा में दिए गए किसी भी प्रकार के दान से पुण्य प्राप्ति की अपेक्षा नही रखनी चाहिए। यह कहता हुआ वह आगे बढ़ गया।

२९. जीवन दर्शन

मैं और मेरा मित्र सतीश अवस्थी आपस में चर्चा कर रहे थे। हमारी चर्चा का विषय था हमारा जीवन क्रम कैसा हो? हम दोंनों इस बात पर एकमत थे कि मानव प्रभु की सर्वश्रेष्ठ कृति है और हमें अपने तन और मन को तपोवन का रुप देकर जनहित में समर्पित करने हेतु तत्पर रहना चाहिए। हमें औरों की पीड़ा को कम करने का भरसक प्रयास करना चाहिए। हमें माता-पिता और गुरूओं का आषीर्वाद लेकर जीवन की राहों में आगे बढ़ना चाहिए। मनसा वाचा कर्मणा, सत्यमेव जयते, सत्यम् शिवम् सुन्दरम आदि का जीवन में समन्वय हो तभी हमारा जीवन सार्थक होगा और हम समृद्धि सुख व वैभव प्राप्त करके धर्म पूर्वक कर्म कर सकेंगे।

एक दिन सतीश सुबह-सुबह ही सूर्योदय के पूर्व मेरे निवास पर आ गया और बोला- चलो नर्मदा मैया के दर्शन करके आते हैं। मैं सहमति देते हुए उसके साथ चल दिया लगभग आधे घण्टे में हमलोग नर्मदा तट पर पहुँच गये। हमने रवाना होने के पहले ही अपने पण्डा जी को सूचना दे दी थी हम कुछ ही देर में उनके पास पहुँच रहे हैं। वे वहां पर हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे।

चरण स्पर्श पण्डित जी!

सदा सुखी रहें जजमान। आज अचानक यहां कैसे आना हो गया।

कुछ नहीं। ऐसे ही नर्मदा जी के दर्शन करने आ गये। सोचा आपसे भी मुलाकात हो जाएगी। पण्डित जी आज आप हमें किसी ऐसे स्थान पर ले चलिये जहां बिल्कुल हल्लागुल्ला न हो। केवल शान्ति और एकान्त हो। सिर्फ हम हों और नर्मदा मैया हों।

पूजा-पाठ और स्नानध्यान का सामान साथ में रख लें?

नहीं! हमलोग सिर्फ नर्मदा मैया के दर्शन करने का संकल्प लेकर आए हैं।

उत्तर सुनकर पण्डित जी हमें लेकर आगे-आगे चल दिये। वे हमें एक ऐसे घाट पर ले गये जहां पूर्ण एकान्त था और हम तीनों के अलावा वहां कोई नहीं था।

नर्मदा का विहंगम दृश्य हमारे सामने था। सूर्योदय होने ही वाला था। आकाश में ललामी छायी हुई थी। पक्षी अपने घोंसलों को छोड़कर आकाष में उड़ाने भर रहे थे। क्षितिज से भगवान भुवन भास्कर झांकने लगे थे। उनका दिव्य आलोक दसों दिशाओं को प्रकाशित कर रहा था। हम अपने अंदर एक अलौकिक आनन्द एवं ऊर्जा का संचार अनुभव कर रहे थे। हमें जीवन में एक नये दिन के प्रारम्भ की अनुभूति हो रही थी। हमारी दृष्टि दाहिनी ओर गई वहां के दृश्य को देखकर हम रोमांचित हो गए। हम जहां खड़े थे वह एक श्मशान था। पिछले दिनों वहां कोई शवदाह हुआ था। चिता की आग ठण्डी पड़ चुकी थी। राख के साथ ही मरने वाले की जली हुई अस्थियां अपनी सद्गति की प्रतीक्षा कर रही थीं। सतीष भी इस दृश्य को देख चुका था। वह आकाश की ओर देखकर कह रहा था-प्रभु! मृतात्मा को शान्ति प्रदान करना।

मेरे मन में कल्पनाओं की लहरें उठ रहीं थीं। मन कह रहा था- अथक प्रयास के बावजूद भी उसके घरवाले व रिश्तेदार विवश और लाचार हो गए होंगे और उस व्यक्ति की सांसें समाप्त हो गई होगीं। सांसों के चुकने के बाद तो औपचारिकताएं ही रह जाती हैं। जो यहां आकर पूरी होती हैं। हम अपने विचारों में खोये हुए थे कि वहां कुछ दूर पर हमें एक संत शान्त मुद्रा में बैठे दिखलाई दिये। हम न जाने किस आकर्षण में उनकी ओर खिचे चले गये। उनके पास पहुँचकर हमने उनका अभिवादन किया और उनके सम्मुख बैठ गये। उन्हें हमारे आने का आभास हो गया था। वे आंखें खोलकर हमारी ही ओर निर्विकार भाव से देख रहे थे। उनकी आंखें जैसे हमसे पूछ रही थीं- कहिये कैसे आना हुआ? महाराज यह दुनियां इतने रंगों से भरी हुई है। जीवन में इतना सुख, इतना आनन्द है। आप यह सब छोड़कर इस वीराने में क्या खोज रहे हैं।

वे बोले- यह एक जटिल विषय है। संसार एक नदी है, जीवन है नाव, भाग्य है नाविक, हमारे कर्म हैं पतवार, तरंग व लहर हैं सुख व तूफान, भंवर है दुख, पाल है भक्ति जो नदी के बहाव व हवा की दिशा में जीवन को आगे ले जाती है। नाव की गति को नियन्त्रित करके बहाव और गन्तव्य की दिशा में समन्वय स्थापित करके जीवन की सद्गति व दुगर्ति भाग्य, भक्ति, धर्म एवं कर्म के द्वारा निर्धारित होती है। यही हमारे जीवन की नियति है। इतना कहकर वे नर्मदा से जल लाने के लिये घाट से नीचे की ओर उतर गये। हम समझ गये कि वे सन्यासी हमसे आगे बात नहीं करना चाहते थे। हम भी उठकर वापिस जाने के लिये आगे बढ़ गये। शमशान से बाहर भी नहीं आ पाये थे कि श्मशान से लगकर पड़ी जमीन पर कुछ परिवार झोपड़े बनाकर रहते दिखलाई दिये।

वे साधन विहीन लोग अपने सिर को छुपाने के लिये कच्ची झोपड़ी बनाकर रह रहे थे। उनका जीवन स्तर हमारी कल्पना के विपरीत था। उन्हें न ही शुद्ध पानी उपलब्ध था और न ही शौच आदि नित्यकर्म के लिये कोई व्यवस्था थी। उनके जीवन की वास्तविकता हमारी नजरों के सामने थी। उसे देखकर सतीश बोला- अत्यधिक गरीबी व अमीरी दोनों ही दुख का कारण होते हैं। जीवन में गरीबी अभावों को जन्म देती है और अपराधीकरण एवं असामाजिक गतिविधियों की जन्मदाता बनती है। इसी प्रकार अत्यधिक धन भी अमीरी का अहंकार पैदा करता है और दुव्र्यसनों एवं कुरीतियों में लिप्त कर देता है। यह मदिरा, व्यभिचार, जुआ-सट्टा आदि दुव्र्यसनों में लिप्त कराकर हमारा नैतिक पतन करता है।

हमारे यहां इसीलिये कहा जाता है कि- साईं इतना दीजिये जा में कुटुम समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय। हमें पर उपकार एवं जनसेवा में ही जीवन जीना चाहिए ताकि इस संसार से निर्गमन होने पर लोगों के दिलों में हमारी छाप बनी रहे। धन से हमारी आवश्यकताएं पूरी हो तथा उसका सदुपयोग हो। यह देखना हमारा नैतिक दायित्व है धन न तो व्यर्थ नष्ट हो और न ही उसका दुरूपयोग हो । मैंने सतीश से कहा कि आज हमें जीवन दर्शन हो गए हैं। हमारे सामने सूर्योदय का दृश्य है जो सुख का प्रतीक है। एक दिशा में गरीबी दिख रही है दूसरी दिशा में जीवन का अन्त हम देख रहे हैं। हमारे पीछे खड़ी हुई हमारी यह मर्सडीज कार हमारे वैभव का आभास दे रही है। यही जीवन की वास्तविकता एवं यथार्थ है। आओ अब हम वापिस चलें।

३०. जीवटता

राजीव को बचपन से ही हाकी खेलने का बहुत शौक था। वह बड़ा होने पर इसका इतना अच्छा खिलाड़ी हो गया था कि उसका प्रादेशिक स्तर पर चयन हो गया। वह जब मैदान में हाकी खेलता था तो ऐसा प्रतीत होता था जैसे गेंद उसके कहने पर चल रही हो। उसके टीम में रहने से ही उस टीम के विजेता होने के आसार बढ़ जाते थे। एक बार मैदान में मैच खेलने के दौरान दूसरे खिलाड़ी की गलती से पैर फँस जाने से राजीव गिर गया और उसकी पैर की हड्डी टूट गयी जिस कारण उसे तीन माह प्लास्टर बंधा होने के कारण वह हाकी खेलने से वंचित रहा। चिकित्सकों ने उसके वापस हाकी खेलने पर संशय जाहिर किया था। उसने ठीक होने के उपरांत छः माह तक व्यायाम एवं मालिश के द्वारा अपने पैरों को मजबूत कर लिया और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण वापिस धीरे धीरे हाकी खेल कर एक दिन पुनः पुराने मुकाम पर पहुच गया।

एक दिन वह मैच खेलकर अपने घर जा रहा था तभी दुर्भाग्यवश एक ट्रक ने उसे टक्कर मारकर गंभीर रूप से घायल कर दिया। उसका छः माह तक इलाज चला और डाक्टरों ने उसे अब हाकी खेलने से मना कर दिया। वह कहता था कि हाकी मेरा जीवन है और मैं वापिस एक दिन खेलकर बताऊँगा। वह अस्पताल से छूटने के बाद एक से डेढ़ साल तक धीरे धीरे खेलने का अभ्यास करता रहा और एक दिन वापस मैच में भाग लेने के योग्य हो गया। सभी लोग उसके हाकी के प्रति प्रेम एवं समर्पण की तारीफ करते थे।

उसके सिर से दुर्भाग्य का साया अभी समाप्त नही हुआ था। एक दिन भूकंप आने के कारण उसकी चपेट में एक पाँच वर्षीय बच्ची की जान बचाने के लिये उसका हाथ बिल्डिंग से गिर रहे स्लेब के नीचे आ जाता है। चिकित्सकों को उसकी जान बचाने के लिये उसका हाथ काटना पड़ता है और वह अब हाकी खेलने से वंचित हो जाता है। वह इससे हतोत्साहित नही होता है और कहता है कि प्रभु हमें जिस हालत में रखे उस हालत में रहकर समझौता करना ही पड़ता है। अस्पताल से आने के बाद वह एक खेल सामग्री की दुकान खोल लेता है एवं खाली समय में बच्चों को सहायकों के माध्यम से हाकी का प्रशिक्षण देना शुरू कर देता है।

३१. एकता

श्रीमती विमलादेवी सुखानी (92 वर्ष) जो कि वर्तमान में इलाहाबाद की निवासी है। उनका चिंतन है कि जहाँ जीवन है वहाँ एक न एक दिन मृत्यु का होना एक शाश्वत सत्य है इसलिये मृत्यु को हमें सामान्य रूप से लेना चाहिए। हमें जीवन में इससे डरकर या घबराकर जीने से हम प्रतिदिन अपने लिए नई नई परेशानियों में उलझ जायेंगे। हमारा जीवन प्रभु की दी हुई अनमोल कृति है इसे भरपूर सुखमय बनाकर समरसता के साथ प्रेमपूर्ण तरीके से व्यतीत करना चाहिए। परिवार में सभी की बातों को समझकर एक दूसरे का सम्मान रखते हुए यदि चलेंगे तो हमें जीवन में संतुष्टि व तृप्ति मिलेगी। हमें कोई भी कार्य करने के पहले परोपकार, जनसेवा एवं धर्म को ध्यान में रखना चाहिए, ऐसा करने से हम समाज में एक मिसाल दे सकेंगें।

सेवा ही सबसे बडा धर्म होता है। वे इस उम्र में भी अपने गृहकार्यों को स्वयं करने हेतु तत्पर रहती है। उनका सोचना है कि इससे उनका स्वास्थ्य ठीक रहता है एवं मस्तिष्क चिंतनशील बना रहता है। जीवन में स्वस्थ्य रहना बहुत आवश्यक है और इसके लिए प्रतिदिन खानपान पर नियंत्रण, व्यायाम एवं योग पर हमारा ध्यान केंद्रित रहना चाहिए। वे आज भी संयुक्त परिवार की हिमायती है। उनका कहना है कि संयुक्त परिवार में जबाबदारियां बंट जाती है और जीवनशैली व्यवस्थित रहती है। आज संयुक्त परिवार की पंरपरा समाप्त होती जा रही है और इसमें विघटन होकर सभी अपनी स्वतंत्रता चाहते है इससे कई बार तो ऐसा होता है कि परिवार के सगे संबंधी भी आपस में कई महीनों तक मुलाकात न होने के कारण आपसी प्रेम, सद्भाव एवं एक दूसरे के प्रति आदर की भावना में कमी हो जाती है जो कि एक अच्छी बात नही है।

उनका पुनर्जन्म में कोई विश्वास नही है और दृढतापूर्वक कहना है कि हमें अपने कर्मों का फल इसी जीवन में चुकाना होता है। वे अपने परिजनों के व्यवहार से पूर्ण संतुष्ट है। वे उदारण स्वरूप बताती है कि कुछ माह पहले वे घर में सीढी से गिर पडी थी और उनकी कमर की हडडी टूट गई थी, उन्होंने अपने जीवन की आषा त्याग दी थी किंतु ईश्वर की कृपा से आपरेशन के बाद से स्वस्थ्य हो गई। उनके परिवार ने इस कठिन समय में जिस तरह उनकी सेवा की उससे उनकी आत्मा तृप्त हो गईं । वे अपना षेष जीवन प्रभु की भक्ति में समर्पित कर उत्साह पूर्वक जीना चाहती है।

३२. मोह मुक्त

श्रीमती साकर बाई पालन 106 वर्ष का कहना है कि उन्हें कई बार महसूस होता है कि उनका जीवन सीमित है। उन्हें जीने की कोई इच्छा नही है। आज से पाँच वर्ष पूर्व अप्रैल 2012 में मेरा सौंवा जन्मदिवस बडी धूमधाम से मनाया गया था। कभी कभी पुरानी स्मृतियाँ बार बार दस्तक देती है और जीने की आशा की किरण फिर मन में जागृत हो जाती है। अभी कुछ माह पूर्व मुझे नगर के एक अस्पताल में स्वास्थ्य खराब होने के कारण भर्ती कराया गया था। मुझे लगा कि अब मृत्यु नजदीक आ गई है परंतु मन में किसी प्रकार का डर महसूस नही हुआ। मेरे परिवारजन सेवा को ही धर्म मानकर मेरी देखभाल करते रहते है। मैं मन ही मन इस उम्र में भजन करते हुए किसी भी व्यक्ति को कष्ट ना हो यही प्रभु से प्रार्थना करती रहती हूँ। अब जीने की तमन्ना न रहते हुए भी बस जिये जा रही हूँ। मैं सभी परिजनों का स्नेह पाकर अपने आप को धन्य मानती हूँ। मैंने सभी भौतिक सुविधायें त्याग दी हैं परंतु मोह से मुक्त होना बडा कठिन काम हैं जो मैं आज भी नही कर सकी हूँ। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि मेरे परिजन, समाज व सभी लोग जीवन में सुखी रहे, सफल होकर अपने जीवन को सार्थक बनाए।

३३. कर्तव्य

श्री ए के खोसला उम्र 85 वर्ष भारतीय रेल सेवा से सीडीएम (सीओ) के पद से सेवानिवृत्त हुये है। वे अपने जीवनकाल में अब तक बहुत संतुष्ट व प्रसन्न है। वे एक सादा जीवन और उच्च विचारों के हिमायती हैं और कहते हैं कि कभी भी किसी को भी ऐसी कोई बात नही करना चाहिए जो कि सामने वाले की आत्मा को दुख पहुँचाये। जीवन अब जीने की कोई इच्छा नही है परंतु मैं यह चाहता हूँ कि मेरा जीवन किसी के काम आकर उपयोगी हो सकें।

मुझे एक घटना आज भी याद है जिसे जब भी मैं सोचता हूँ तो मैं काँप जाता हूँ। यह बात 1947 की है जब मैं 11 वर्ष का था। भारत का विभाजन होकर पाकिस्तान बना था। उस दिन मैं अपने मकान के नीचे खडा हुआ था तभी मैंने देखा की लोग चिल्लाते हुए भाग रहे थे कि दंगा हो गया है और गोलियाँ चल रही है। मैंने सोचा कि देखे गोली कहाँ चल रही है ? मैं भागकर अपने मकान की दूसरी मंजिल पर चला गया। वहाँ से मैंने देखा की हमारे मकान से काफी दूर एक मुस्लिम परिवार की हवेली थी और उस की छत पर दो आदमी हाथ में बंदूक लिये गोली चला रहे थे और अचानक ही एक गोली मेरी तरफ आयी और मेरे बाजुओं को रगडते हुए आगे निकल गयीं। मेरा वह हाथ सुन्न पड गया। मेरा भाई मेरी चीख सुनकर आया और मुझे नीचे ले गया। शहर में कफ्र्यू लगा हुआ था और डाक्टर तक पहुँचना बहुत मुश्किल था। हमारे पडोसी को जब यह पता हुआ तो उन्होंने बताया कि एक भारतीय सेना के डाक्टर जो उनके मित्र है छुट्टी पर आये हुए हैं। उन डाक्टर ने मेरी तुरंत मरहम पट्टी करते हुए मुझे दवाईयाँ दे दी और मेरा इलाज संभव हो सका। आज भी यह घटना मेरे मानसपटल पर अंकित है। मृत्यु एक सत्य है। मैं तो समाज को एक ही बात कहना चाहता हूँ कि हमेशा सच बोलो किसी को दुख मत दो , समाज और अपने परिवार के लिये जो भी अच्छा कर सकते हो उसे करते रहो।

३४. खुश रहें मस्त रहें

श्रीमती नमिता राठौर एक गृहिणी है जो कि अपने परिजनों के साथ सुखी जीवन जी रही थी कि तभी अक्टूबर 2015 में दुर्भाग्यवश वे ब्रेस्ट कैंसर की शिकार हो गई। इसके गहन उपचार के बाद वे अब स्वस्थ्य हैं। उनके अनुसार जीवन और मृत्यु की धारणा मेरे लिए भी वही है जो सामान्य व्यक्ति की होती है। मैं अपना जीवन आनंदमय एवं चिंतारहित जीना चाहती और अभी जी भी रही हूँ। मृत्यु के नाम से बहुत डर लगता है और अपनों से बिछुडने की कल्पना अधिक तकलीफ देती है। मेरे परिवार और समाज से जो संबल मिला उसके कारण जीवन आशामय है।

कैंसर होने के बाद पहली बार जब कीमो हुई तो बहुत कष्टदायक रही और उपचार में पूरे नौ माह लग गये। मैं सभी से कहूँगी कि यदि यह रोग हो भी जाए तो हिम्मत से उसका मुकाबला करें। खुश रहें व्यस्त रहें और मस्त रहें। मैं एक बात और कैंसर के मरीजों से कहना चाहती हूँ कि यह एक बहुत महँगा रोग है तो इसकी दवाईयाँ काफी महँगी आती हैं। भारतीय महिलाओं को अपने मासिक खर्च में से कुछ रकम हमेशा बचाकर अपने स्वास्थ्य के लिए रखते रहना चाहिए ताकि दुर्भाग्य से यदि कोई ऐसी बीमारी आ जाए तो हमें आर्थिक कठिनाईयों का सामना न करना पडे और समय पर समुचित इलाज की व्यवस्था हो सके।

३५. जीवन में इच्छाएँ सीमित हों

देश के ख्यातिप्राप्त जादूगर श्री एस.के. निगम उम्र 81 वर्ष अनेक बार इस संदर्भ में विश्वभ्रमण कर चुके है। वे अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए सक्रिय और समाज को समर्पित जीवन व्यतीत कर रहें है। उनका कहना है कि अपनी अनंत इच्छाओं और अपेक्षाओं के क्षितिज में भटकते हुए व्यक्ति के मन मस्तिष्क से सीमित जीवन का विचार विलोपित हो जाता है। हमारी इच्छाओं को सीमित करना दुनिया का सबसे बडा एवं कठिन कार्य है। हम दूसरों के लिये जितना जियेंगें परहित के लिये जितना समर्पित होंगें उतना ही हम अपने आप में जीवन का स्पंदन महसूस करेंगें। इसलिये मैं वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ सभी को अपने परिवार को सदस्य समझता हूँ। यह संक्षिप्त घटना आज भी याद है जो कि मनोरंजन से परिपूर्ण है।

सन् 1971 मे मैं एम.काम की परीक्षा दे रहा था। उस समय कुलपति जी ने नकल रोकने के लिए फ्लाइंग स्काट बनाया था। मेरे पास जब वे चैंकिंग के लिए आये तो उन्हें कुछ भी प्राप्त नही हुआ। उनमें से किसी ने कहा कि इनकी चैकिंग करना बेकार है। ये जादू से गायब कर देंगे। तभी उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि आपके पास में पर्चियाँ है क्या ? मैंने कहा आपने मेरी पूरी जाँच कर ली है, क्या आपको अपने पर विश्वास नही है ? उसके दूसरे साथी ने कहा हमें अपनी जाँच प्रणाली पर पूरा भरोसा है। आपके पास कुछ भी आपत्तिजनक नही है। मैंने एक मंत्र पढा और कुछ भावभंगिमा की और उनको कहा कि मेरी जेब की आप तलाशी लीजिए। ऐसा करने पर जब पर्चियों पर पर्चियाँ जेब से निकलने लगी तो वे सभी आश्चर्यचकित हो गए और बोले हम को भी यह जादू सिखा दीजिए। मैं मुस्कुरा कर बोला कि यहाँ नही परीक्षा केंद्र के बाहर उचित समय पर आपको सिखा दूँगा। वे वहाँ से विदा हो गए और मेरी पर्चियाँ सुरक्षित रह गयी।

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