मिड डे मील - 15 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिड डे मील - 15

पंचायत के पंच ने बोलना शुरू किया। हम सबको बहुते दुःख है कि तेरे साथ अच्छा नहीं हुआ। मगर कल जो लोग आकर खुले में धमका कर गए और फिर तेरा मकान जल गया। यह कोई अच्छा संकेत नहीं हैं, समझे। कल को वे लोग गॉंव के दूसरे लोगन को नुकसान पहुँचा सकत हैं। फिर तेरा एक बच्चा केशव हैं, उसका सोचा होता।" उसका सोचा हैं और सब बच्चों का सोचा हैं, अगर आज मैं कुछ नहीं बोला और जाने कितने मनु मरेंगे। और जो मरे उनका हिसाब नहीं। ये लोग अपनी मनमानी करते रहेंगे। रसोई तो देवी अन्नपूर्णा का वरदान हैं, मगर यह उसी देवी के वरदान को कलंकित करने पर लगे हैं, इन्होंने हमें कभी इंसान समझा हैं। नहर का पानी हम पूछकर पीते हैं। माता के मंदिर में हम नहीं जा सकते। कुछ पेड़ों पर हम नहीं चढ़ सकते। रास्ते अलग हैं, कुएँ अलग हैं, इनके घर को साफ़ करते हैं, समाज की गंदगी साफ़ करते हैं और ये हमें ही गंदगी समझते हैं, हमारा नहीं खाएंगे, मगर हमसे झूठन साफ़ करवा लेंगे। शहरों में लोग पढ़ गए अपने हक़ समझ गए। मगर गॉंव और ज़िलों में वो लहर क्यों नहीं आ सकती। हमारे बच्चे का दाखिला नहीं होता। कानून हैं, मगर सुनता कोई नहीं। सब बहरे हों गए हैं। हमारे वख्त सब अंधे बहरे हों जाते हैं। हमारी बहू -बेटियों के मान-इज़्ज़त कई बार इनकी जूती के नीच रौंद दी जाती हैं। और हम दबे कुचले लोग कुछ नहीं कर पाते। जब खाना देते थे ही नहीं थे, हमारे बच्चों को। तो उस दिन क्यों दिया ? है कोई जवाब इन बातों का ? आज अगर यह बाप चुप रह गया न, तो हमारे बच्चों का हम पर से भरोसा ही उठ जायेगा। सबने हरिहर की बातें ध्यान से सुनी।
तभी लोहिया चाचा बोले, हरि सौ बात सच कह रहा हैं। मने उसकी बातें गलत न लगे। तभी एक पंच ने कहा, तूने जो खाना खिलाने का ज़िम्मा लिया हैं, पुलिस, कोर्ट उसका पैसा कहाँ से आयेंगा? सोचा है, कभी ? सब हो जायेंगा, जो ईश्वर यहाँ तक लाया है, वह आगे भी ले जायेंगा। हरिहर ने जवाब दिया। तभी राम बिस्वास बोल पड़ा, मारे पास कुछ रुपए हैं हरिहर, मारी ओर से मदद, मैं अपनी बच्ची के लिए कुछ नहीं कर सका, मगर तू हमेशा से ही हिम्मत वाला हैं। कम से कम तू अपने मरे हुए बच्चे के साथ न्याय कर। भावना को समझ उसने रुपए रख लिए। तभी पंचो ने फैसला सुनाया, जो कोई हरिहर को सहयोग करना चाहता है करे, अपनी ख़ुशी से करे। बाद में नुकसान हो तो उसके लिए कोनो ज़िम्मेदार नहीं।
केशव रमिया काकी के घर रह रहा हैं। मगर हरिहर जले हुए लैंप की रोशनी में अपने मकान की लीपा पुताई कर रहा था। केशव की किताबें , बस्ते और वर्दी जल गए थे । कल उसे नई किताबें दिला ही देंगा। तभी उसे एक आहट सुनाई दीं। लैंप की रौशनी में उसने मुड़कर पीछे देखा, सामने चादर में ढके संकोच के साथ रमा खड़ी हुई हैं। हरिहर उसे देख हैरान रह गया। रमा? रात में ? घर में सब ठीक है न? हाँ, सब ठीक है। उसने अपने हाथ की मुठ्ठी खोली देखा कि कुछ सोने सी तार सा धागा था। यह हमार मंगलसूत्र हैं, जो कोनो काम का नहीं हैं, जे आप रख लो। मारी तरफ से मदद। मना न करना। रमा ने विनती की। इसे मैं नहीं ले सकता। तुमरा और तुमरे बच्चो का एहसान जे मने पर हैं, उसके सामने यह कछु नाही। रमा की आँखों में आँसू आ गए। क्या कुछ समझा नहीं ? रमा ने उस दिन की घटना को विस्तार से बता दिया। सुनते ही हरिहर ने गुस्से में अपनी मुट्ठी भींच ली। अगर आपने दरवाज़े पर उस दिन दस्तक न दी होती तो मैं फंदे पर झूल गयी होती। रमा कभी जे बात न सोचना। तुहार ज़िंदगी इतनी सस्ती नहीं है कि कोई कुत्ता काटने पर आये तो ख़त्म कर दो। यह मंगलसूत्र ले लो। थोड़ा बोझ कम होगा हमार। हमार बस चलता तो अपनी जान देके तुम्हारे मनु को ईस्वर से लाते। हरिहर ने मंगलसूत्र ले लिया। और रमा के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
सुबह हरिहर ने केशव को स्कूल छोड़ दिया। कोई पूछे तो कह देना कि एक-दो दिन में वर्दी खरीद लेंगे। हरिहर ने प्यार से केशव का माथा चूमा और उसे स्कूल के अंदर भेजा। कुछ मास्टर उसे चिढ़कर कर देख रहे थे , मगर कुछ को उससे हमदर्दी हों रही थीं। मगर कोई क्या कर सकता था। सबको पता था कि सच देखना जितना दुष्कर हैं, उसी सच को बोलने का परिणाम और भी भयंकर हैं। आधी छुट्टी में उसने रघु को पूरे स्कूल में ढूँढा। मगर वह कहीं नहीं दिखा, उसे उस दिन की बात याद आई। उसका मन बेचैन हों उठा। अब सिर्फ रघु ही उसका भाई सबकुछ था। मगर वह नज़र क्यों नहीं आ रहा। उसने उसके दोस्तों से पूछा। मगर किसी को कुछ नहीं पता था। स्कूल ख़त्म होते ही हरिहर उसे लेने आया और उसने रघु के बारे में बताया।वह ठीक होगा। हो सकता है, छुट्टी पर हों। कल आ जायेंगा। जैसे ही स्कूल पार कर अपने गॉंव की सड़क पर आये तो सामने बिरजू खड़ा था, अपने दोस्तों के साथ। उसके हाथ में लाठी थीं। केशव अपने बापू के पीछे छिप गया। हरिहर ने उसे गोद में उठा लिया और एक तरफ़ चलने लगा। तभी बिरजू ने उसे धक्का दिया और वह गिरते-गिरते बचा। केशव को उसने अलग खड़ा कर दिया। तभी उसके साथियो ने लाठी बरसानी शुरू की। हरिहर को मार खाता देख केशव आस-पास से रेत उठा लाया और उसने एक की आँखों में रेत फैंकी तो वे लोग केशव को मारने दौड़े। अपने बच्चे को बचाने के लिए उसने एक की लाठी छीन, सबको पीटना शुरू किया। सब भाग गए। हरिहर ने बिरजू को पकड़ लिया, उसने लाठी को छोड़ उसे हाथ से पीटना शुरू किया। क्यों बे! सबको अपने बाप की जागीर समझा हुआ है का ? जब चाहे किसी पर भी हाथ आजमा लेंगा। यह मुनिया के लिए, यह रमा को हाथ लगाने के लिए, कहते हुए वह मारता रहा। अगर केशव उसे न रोकता तो वह आज उसकी जान ले लेता। अगर अब कभी हमार तरफ मुँह कर देखा तो तेरी ज़िंदगी का आख़िरी दिन होगा।
हरिहर अपने घाव पर हल्दी लगा रहा था। तभी शालिनी आ गई और हरिहर की हालत देख पूछने लगी, "छोड़ो न बहनजी, अब ओखली में सिर दे दिया है तो इन सबसे क्या डरना।" शालिनी ने बताया, "अच्छी खबर नहीं है, हरिहर। थानेदार कुछ करने से रहा। डॉक्टर, स्कूल का कर्मचारी, कोई कुछ बताने को तैयार नहीं हैं। मैंने सीधा अब राज्य के कमिश्नर को चिट्ठी लिख दी हैं। ताकि यह केस बंद न हों। एक छोटी सी उम्मीद नज़र आई हैं। मुझे किसी तरह मूलचंद के रसोइये का पता चल गया हैं। जिसे मूलचंद ने गायब कर दिया था। तुम मेरे साथ चलो, अगर तुम उसे बात की गंभीरता बताओगे तो शायद वह सच बोल पड़े। कब चलना हैं? हरिहर ने पूछा।
सुबह तड़के ही शालिनी अपने साथ ज़रूरी सामान ले घर से निकल पड़ी। उसने अपने सहयोगी राजेश को उतर प्रदेश के कमिश्नर से बात करने के लिए भेज दिया था। बाकी और सहयोगी भी कोई सुराग ढूँढने में लगे थे , मगर सबसे बड़ा ज़ोखिम का काम शालिनी कर रही थी। मूलचंद का रसोइया भीखू उसे कुछ बतायेंगा या नहीं या फिर मूलचंद के आदमी उसे उस तक पहुंचने भी देंगे या नहीं, सब खतरों का उसे पता था। तमिलनाडु में जब वह ऐसे ही मिड डे वाली घटना के पीछे का सच पता लगाने में जुटी थीं, तब इसी मूलचंद ने उस पर हमला करवाया था। मगर वो बच गई। इस बार मूलचंद उसे नहीं छोड़ेगा। पर अब उसे डर लगना बंद हों गया है। उसे याद है, जब उसकी शादी के बाद ससुराल वालों ने उसे ज़िन्दा जलाने की कोशिश की थीं। वह किस तरह आधी रात ही घर से निकल भागी थीं। कैसे, उसने हिम्मत कर कोर्ट में गवाही देकर, सबको जेल पहुँचाया था। तब भी उसे कोर्ट जाने से रोकने के लिए उसके अपने ही पति ने जमुना में फेंक दिया था। वो तो कुछ स्थानीय लोगों ने उसे बचा लिया, वरना आज वो यहाँ नहीं होती। इसलिए मरने से डर नहीं लगता। डर तो पीछे हटने से लगता है। उसकी कमज़ोरी किसी की उम्मीद न तोड़ दें। यह सब सोच वह अपने स्कूटर पर सरपट दौड़े जा रही थीं। तभी उसने देखा उसके स्कूटर के पीछे चार लोग लग चुके है, जीप उसके इतने करीब आई और उसे धक्का दे दिया। वह स्कूटर समेत रास्ते में जा गिरी। गंडासा लेकर उसकी तरफ बढ़ते उन गुंडों को देख वह सरपट दौड़ी। गिरते-पड़ते वह भागती जा रही थीं। उसकी सांस उखड़ रही थीं। जब उसे लगा गंडासा उसकी गर्दन तक पहुँच गया हैं। तो उसने साथ बहती नहर में छलांग लगा दीं। वे लोग वही रुक गए। वे लोग दो-चार मिनट वहीं खड़े रहें। मर गई साली, कहकर नेताजी को बता देते हैं, हमारा काम अब ख़त्म।