हरिहर शालिनी का इंतज़ार कर रहा था, कहीं बहनजी, किसी मुसीबत में न फँस गयी हों। वहाँ नहर का पानी शांत था। तभी उसमें हलचल हुई। और शालिनी बाहर निकली। खुद को किनारे के पास लाकर सांस लेने लगी। गीले सूट से मुँह पोंछ आसमान की तरफ देखा। फिर घड़ी की तरफ देख, गिरे स्कूटर की तरफ बढ़ने लगी। यह समाज हमेशा यही सोचता है कि औरत हमेशा डूब ही जाती हैं। तैरना तो उसने तभी सीख लिया था, जब उसके पति ने उसे नदी में फेंका था। उसे पता था, हर बार उसे बचाने के लिए कोई किनारे पर खड़ा नहीं होगा। वो स्कूटर स्टार्ट कर हरिहर के पास पहुँची। हरिहर जल्दी करो। स्कूटर पर बैठ हरिहर उसे पूछा उसको देर क्यों हुई और उसके कपड़े कैसे गीले हुए ? उसने कहा, इस मामले में नामचीन नेता भी शामिल हैं, उनके ही गुंडों का काम हैं। भीखू के गॉंव रसोली पहुँच चुके थे। भीखू के घर का पता पूछ, जैसे ही उसकी झोपड़ी में घुसे। भीखू नहीं दिखा। लगता है, उन लोगो ने उसे कहीं और भेज दिया हैं। अब क्या करे ! बहनजी।" तभी उन्हें करहाने की आवाज सुनाई दी, जो झोपड़ी के पीछे से आ रही थीं। जाकर देखा, भीखू घायल पड़ा था। उसके पेट पर धारधार वार हुए थे । आखिरी साँसे गिन रहा था। भीखू हमें सच बता, यह मिड डे मील का सच क्या हैं? कौन लोग हैं ? जाते-जाते सच बोलो ताकि ऊपरवाले को मुँह दिखा सको। मरी-सी आवाज में उसने बोलना शुरू किया। मूलचंद, मास्टर, बड़े सर और विधायक गिरधारी लाल कहकर भीखू ने दम तोड़ दिया।
शालिनी और हरिहर मरे भीखू को देख रहे थे । शालिनी सोच रही थीं, अगर पुलिस को यह बता भी दूँ, तब भी कोई फ़ायदा नहीं। भीखू ज़िंदा होता, शायद उसे गवाह बना दिया जाता। मगर अब क्या हों सकता था। हम अब भी वही है हरिहर। उसने निराश होकर कहा। बहनजी, क्यों न भीखू की झोपड़ी में देखते हैं, क्या पता कुछ मिल जाए। भीखू की झोपड़ी में कुछ कागज़ मिले, जिन पर खाने की सामग्री लिखी थीं। घटिया से भी घटिया सामान मँगवाया जाता था। उसके मूल्य बहुत ज्यादा दिखाए जाते थे । सारे कागज़ बटोर दोनों वहाँ से चले गए।
केशव को रघु का ख्याल आ रही था। वह रमिया काकी से झूठ बोल, रघु के घर के पास पहुँच गया था। मगर वह अंदर कैसे जाए? तभी उसे याद आया कि वह पहले भी अंदर जा चुका हैं। यह शहतूत का पेड़ उसे घर के अंदर पहुंचा सकता हैं। बस, किसी तरह वह आसपास की नज़रों से बचकर पेड़ पर चढ़ छत पर आ गया। संभलकर वह छत से नीचे की और जा रहा था। वह रघु के कमरे में गया, मगर वहाँ कोई नहीं दिखा। वह फिर चुपचाप धीरे-धीरे रसोई की तरफ बड़ा। वहाँ दो लोग ज़मीन पर बैठे बात कर रहे थे । "बेचारा! रघु बिटुवा सगी माँ गँवा बैठा। अब सौतेली आएँगी तो उसका जीना ही हराम कर देंगी। पहले उसे ठीक होकर घर आने दो, क्यों ऐसी मनहूस बातें निकालती हो। देख लेना, बड़े साहब ब्याह नहीं करेंगे, वह भी अपने बच्चे को बहुत चाहत हैं। देखा नहीं, इलाज करवाने शहर के बड़े अस्पताल ले गए हैं। अरे! रेहन दे, ऐ मर्द जात नहीं रह सकती। औरत के बिना। सब होगा ब्याह। तभी केशव दोनों के सामने आ गया। दोनों उसको देख हैरानी से उठ खड़ी हो गई। ऐ ! छोरे तू अंदर कैसा आया रे! कोई चोरी ता नहीं की। माई, मैं रघु का दोस्त हूँ। मुझे बताओ, वह कहाँ हैं ? हाथ जोड़कर केशव नीचे बैठ गया। दोनों को उस पर दया आ गयी। हमें नहीं मालूम, बस इतना पता हैं कोई बड़ा अस्पताल हैं, अब जा यहाँ से। किसी ने देख लिया तो तुझे धर देंगे।
वह रसोई से निकला ही था कि सामने रघु के पिता खड़े हुए थे। उन्होंने केशव को घूरकर देखा। वह थोड़ा सहम गया। उसे डर लगा, अब कही यह उसके बापू को न बता दें। मगर थोड़ी देर बाद उनके चेहरे के हावभाव बदल गए और उन्होंने पूछा, क्यों रघु से मिलने आये थे। उसने हाँ में सिर हिला दिया। फिर यहाँ क्यों खड़े हों, मेरे साथ चलो। इतना कहते ही वह चल पड़े और केशव उनके पीछे हो लिया। उसके चेहरे पर ख़ुशी के भाव थे। वह अब रघु से मिलेगा, उसे बतायेगा कि उसके साथ क्या हुआ? उसका भाई दुनिया छोड़कर चला गया और किसी ने उसका घर जला दिया। अब वह ही उसका भाई, उसका सबकुछ हैं।
गाड़ी सरपट दौड़ पड़ी थी। केशव गाड़ी से बाहर देख रहा था। तभी पीछे आते दूसरे मोड़ से शालिनी और हरिहर स्कूटर पर आ रहे थे । केशव को सफेद रंग की गाड़ी में बैठा देख, उसके मुँह से निकला, बहनजी यह मेरा केशव हैं। पता नहीं, इसे कहाँ ले जा रहे हैं? शालिनी ने अपना स्कूटर उस गाड़ी के पीछे लगा दिया। गाड़ी अस्पताल के पास रुक गयी। केशव और रघु के पिता कुछ सीढ़ियाँ चढ़, उस कमरे में पहुंच गए। मशीनों से घिरा पड़ा रघु पंखे की और देख रहा था। केशव को देखते ही जैसे उसके शरीर में जान आ गयी और उसने उठने की कोशिश की, मगर उठ न सका। पास खड़ी नर्स ने उसे संभलकर लिटा दिया। केशव तू ?उसने साथ में अपने बापू को देखा तो आँखों से उन्हें धन्यवाद दिया। रघु ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया। केशव भी उसका हाथ पकड़ वही बैठ गया। भाई, उस दिन जब तू स्कूल से निकल गया था न तब मेरी पानी की बोतल वही क्लास मैं रह गयी थीं। मैंने बड़े सर को अंग्रेजी के मास्टर और मूछों वाले आदमी से बात करते सुना था। उसे बोलने में फिर तकलीफ हुई। रघु बेटा, अभी मत बोलो। उसके पिता ने उसे टोका। मगर थोड़ा रुक वह बोलने लगा, भाई उस दिन कढ़ी और खीर दोनों ख़राब थे और वो कह रहे थे कि आज ज्यादा पैसे दिखाकर कम खर्च किये। खाना उन नीच लोगो को खिलाकर बर्बाद होने से भी बचा लिया। बड़े सर, तेरा और तेरे भाई का नाम ले रहे थे । तेरा भाई कहाँ हैं? ठीक तो हैं न ? वह तो मर गया रघु। यह कहकर केशव फूट-फूटकर रोने लगा। रघु की आँखों में आँसू आ गए। तब तक शालिनी और हरिहर अंदर आ चुके थे । शालिनी ने बिना देर करे, पुलिस को बुला लिया। रघु ने सब कुछ पुलिस को बता दिया।
रघु केशव का हाथ कसकर पकड़कर बोला, "भाई मुझे मेरी माँ की बहुत याद आ रही हैं। ऐसे लगता हैं, माँ बुला रही हैं। तभी उसकी मशीन आवाज़ करने लगी। नर्स ने डॉक्टर को बुलाया और सबको बाहर भेज दिया। मगर रघु ने केशव का हाथ नहीं छोड़ा। भाई तू ठीक हो जायेगा। मुझे तेरे साथ कंचे खेलने हैं। उसकी साँसे ऊपर चढ़ने लगी। उससे बोला नहीं जा रहा था। डॉक्टर ने जैसे ही उसकी धड़कन देखी, जो थम चुकी थीं। रघु भी हमेशा के लिए दुनिया छोड़ जा चुका था।
केशव ज़ोर से चिल्लाया रघु ! उसके पिता, हरिहर, पुलिस सब अंदर आ गए। डॉक्टर ने उसके पिता से कहा, मैंने आपको पहले ही कहा था कि आपके बेटे के पास कम समय हैं, वो तो जैसे अपने इस दोस्त का इंतज़ार कर रहा था। रघु के पिता ने ज़ोर- ज़ोर से रोना शुरू कर दिया। हरिहर की आँखों में आँसू आ गए। शालिनी ने भी भीगी पलकों से कहा, यह बच्चा तो हमारा अधूरा काम पूरा कर चला गया। हरिहर ने काँपते हाथ रघु के पिता के कंधे पर रखे और उन्होंने आज जात-पात का भेद न करते हुए हरिहर को गले लगा लिया। मुझे सब पता था कि वो मूलचंद का सच क्या हैं? फिर भी मैंने उसे मिड डे मील के टेंडर भरने में मदद की। कभी यह नहीं सोचा था कि यह गाज मेरे अपने बच्चे पर गिर जाएँगी। आज मैं तुम्हारे साथ हूँ, हरिहर। तुम चिंता मत करो, हमारे बच्चों को न्याय मिलकर रहेगा।"
पुलिस ने सबको पकड़ लिया। और सामने आया एक भयानक सच: "हमेशा से ही निम्न स्तर का सामान मँगवाया जाता था, दूध में पानी डालते थे। और घटिया से घटिया चावल , दाल का प्रयोग होता था। उस दिन तो दूध फटा और ख़राब था और कढ़ी में मकड़ियाँ गिर गयी थीं, पता होने पर भी किसी ने कुछ नहीं कहा। बल्कि मोतीलाल के कहने पर वो ख़राब खाना केशव जैसे बच्चो को खिलाया गया। घूस लेकर टेंडर पास करा जाता था। मूलचंद ने पहले भी तमिलनाडु और कई अन्य राज्य में यही काण्ड किया था।रघु के बयान को कोर्ट में दर्ज़ किया गया। दो साल बाद कोर्ट का फ़ैसला आया। मूलचंद , विधायक गिरधारी लाल, मोतीलाल, सभी की गिरफ्तारी हुई। रघु के पिता ने भी पूरा साथ दिया। सबको दस साल की सजा हुई। सभी बच्चो के माता-पिता को सरकार ने मुआवजा दिया। कोर्ट के फ़ैसले के अनुसार मिड डे मील देने से पहले स्कूल के प्रिंसिपल खाने को खायेंगे। सारी जाँच पड़ताल की जिम्मेदारी जिलाअधिकारी की होंगी। किसी प्रकार की लापरवाही होने पर प्रिंसिपल, खाद्य अधिकारी, उस ज़िले के विधायक सबको जवाब देना होगा। और बिना किसी भेदभाव के स्कूल में शुद्ध और पौष्टिक खाना बटेंगा। टेंडर में भी कोई जात-पात को लेकर या पैसे को लेकर कोई हेरा-फेरी नहीं होंगी। इस फैसले के आने से सबके चेहरों पर ख़ुशी थीं।
आज रघु को टेंडर मिल तो गया, मगर अब भी कुछ अभिभावकों के विरोध के कारण रघु ने खुद ही अपना नाम पीछे ले लिया। क्योंकि उसे पता था कि हर बदलाव को समाज केवल अपने हिसाब से स्वीकार करता हैं। वो अच्छा खाना बना सकता हैं, मगर अच्छी और नवीन सोच तो सबको खुद ही बनानी होगी। उसने स्कूल के पास ही अपना ढाबा खोल लिया हैं। जहाँ सब आना चाहते हैं तो सबका स्वागत हैं। खाना बनाने में रमा भी उसकी मदद करती हैं। उसने रमा का हाथ उसके बापू से माँग लिया हैं। केशव स्कूल जा रहा हैं। उसे स्कूल के मैदान में रघु कंचे खेलता दिखता हैं। जब वह मिड डे मील खाने बैठता हैं तो मनोहर खाना खाता हुआ दिखता हैं। स्कूल की आखिरी कक्षा हैं और केशव ध्यान से सुन रहा है, मास्टर जी कह रहे है कि महाभारत के युद्ध में पांडवों की तरफ से अभिमन्यु और घटोत्कच भी वीरगति को प्राप्त हुए थे।