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मिड डे मील - 3

भीमा ने हरिहर के कँधे पर हाथ रखा और कहा, भाभी से माफ़ी माँग लियो। बच्चे तुझे देख रहे होंगे । जा घर जा । हरिहर ने एक नज़र नहर पर डाली । और अपने घर की तरफ़ चल दिया । रास्ते से रमिया काकी के यहाँ से बच्चों को लेकर अपने घर पहुँचा । घर के नाम पर ईटों से बना एक कमरा, रसोई और स्नानघर हैं । केशव की माँ भागो हमेशा कहती थीं, बच्चे पढ़-लिखकर हमारी गरीबी मिटा देंगे । उसने सोच लिया है, कल ही बच्चो का दाख़िला अपनी तरफ़ के स्कूल में करवा देता हूँ । मेरे बच्चे लायक है, वे ज़रूर कुछ न कुछ कर लेंगे । सुबह होते ही उसने बच्चों को तैयार किया और स्कूल जाकर दाखिला करवा दिया । मनोहर बड़ा था, वह समझ चुका था कि बड़े स्कूल में बात नहीं बनी है। मगर केशव को कौन समझाए वह ज़िद कर रहा था कि उसी स्कूल में जाएगा वरना नहीं जाएगा ।

जब मनोहर अगले दिन स्कूल जाने के लिए तैयार खड़ा था । तब केशव ने मना कर दिया और गुस्से में हरिहर ने उसके मुँह पर दो चाटे जड़ दिए। कहने लगा, केशव वही जाना पड़ेगा, वरना अनपढ़ रह जायेंगा। तेरे बाप के पास पैसा नहीं है कि तुझे कोई दुकान खोले दे। फ़िर मेरी तरह ठेला लगाता रहियो। कहकर वह केशव को खींचते हुए ले गया । केशव रोते-रोते कहने लगा, नहीं बापू , उस स्कूल जाना हैं । मगर हरिहर बहरा हों चुका था । उसने बच्चों को स्कूल के गेट के अंदर छोड़ पीछे मुड़कर नहीं देखा । वह वहाँ से भाग जाना चाहता था ।

मनोहर ने केशव के आँसू साफ़ किये और उसे उसकी क्लॉस में छोड़ अपनी क्लॉस में चला गया । केशव अपनी क्लॉस में बैठा सोच रहा था, यहाँ ठीक से बैठने के लिए बेंच नहीं हैं । छोटा टीवी भी नहीं हैं । खेलने के लिए अच्छी गेंद नहीं हैं और तो और यहाँ खाना भी नहीं बँट रहा हैं । मुझे नहीं रहना यहाँ । वह आधी छुट्टी में चुपचाप स्कूल से बाहर निकल गया और मनोहर जब उसके पास पहुँचा, तब केशव उसे नहीं मिला । उसने पूरा स्कूल ख़ोज लिया, पूरी बस्ती देखने क बाद दौड़ता हुआ हरिहर के पास पहुँचा और उसे सारी बात बताई। हरिहर पागलों की तरह हर आते-जाते से केशव के बारे में पूछ रहा था। जब किसी ने बताया कि उसने केशव को बस्ती से बाहर जाते हुए देखा है । तब वह भागता हुआ बस्ती से बाहर जाती सड़क पर आ गया और लगातार 'केशव केशव' चिल्लाया जा रहा था सड़क खत्म होते ही 'ज़िला उच्च विद्यालय' के बाहर केशव खड़ा बच्चों को खाना खाते देख रहा था। हरिहर ने उसे उठाते हुए गले लगा लिया । अरे ! तू यहाँ क्या कर रहा हैं? तेरे बापू की हालत देख क्या हों गयी थीं।"बापू देखो! आज आलू -पूरी बँट रही हैं । उसने स्कूल में बँटते खाने की तरफ़ इशारा किया।

चल, मैं तुझे समोसे खिलाता हूँ , मेरे लाल तूने कुछ नहीं खाया होंगा। हरिहर केशव को गोद में घर ले जाने लगा। मुझे नहीं खाने समोसे । मुझे इसी स्कूल जाना हैं और तुम्हारे समोसे बहुत खा लिए बापू । जबसे माँ गई है, समोसे अब ज्यादा खाते हैं। केशव हरिहर की गोदी से उतर भागता हुआ बोला । हरिहर भी उसके पीछे भाग रहा हैं । मगर केशव उसकी पहुँच से दूर पीपल के पेड़ पर चढ़कर बैठ गया । ठीक है, अब तेरा बापू पकवान नहीं खिला सकता। रमिया काकी कुछ खिला देंगी, नीचे आजा । जब मेरा मन करेंगा, तब आ जाऊँगा। केशव ने मुँह फेरते हुए कहा। हरिहर केशव को मनोहर के हवाले छोड़ अपने समोसे के ठेले पर आ गया। वह बहुत थक चुका हैं । उसने सोचा, एक बार राम बिस्वास से बात करके देखता हूँ, क्या पता कोई रास्ता निकल जाए ।

राम बिस्वास की पत्नी बताती है, वह कुएँ की खुदाई करने गया हैं । वह वहाँ पहुँचकर राम बिस्वास को सारी बात बताता हैं और उसे पूछता है, : राम मुझे भी बता तूने इतने पैसे कैसे दिए। अगर किसी से उधार लिया है तो बता, मैं भी उधार ले धीरे-धीरे चुका दूँगा।" सुनते ही राम बिस्वास फूट-फूट कर रोने लग गया । और जब उसे बताता है कि उसने कैसे दाखिले के पैसे दिए है, हरिहर धक्का खा गिरने लगता है और पत्थर से उसका पैर टकरा जाता हैं। आख़िर राम बिस्वास ने ऐसा क्या कह दिया था ।

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