केशव रघु के साथ चल तो पड़ा मगर उसका मन नहीं था कि वह आज कुछ खाए। जिस खाने को वो हमेशा दूर से देखता रहता था। उसी खाने को आज देखने का मन भी नहीं था। जब दोनों खाना खाने बैठे, तब मास्टरजी ने रघु को पंक्ति के दूसरी तरफ़ बैठने को कहा। वह समझ चुका था कि मास्टरजी क्या कहना चाह रहे हैं। मगर उसने साफ़ मना कर दिया। मास्टरजी ने भी मुँह बिचका लिया। क्या कह सकते थे, आख़िर वह भी उस ज़िले के गाँव के रुतबेदार व्यक्ति का बेटा है। उसके पिता ने भी कुछ क्लॉस में पंखे लगवा कर दिए हैं। इसलिए मुँह बंद कर एक तरफ हों गए। सभी बच्चों को खाना दिया जा रहा था। कढ़ी, चावल, आलू-गोभी की सब्ज़ी और ख़ीर देख बच्चे खुश हों रहे थे । मूलचंद को टेंडर मिल गया था। उसे वहीं खाने के पास खड़ा देख दोनों दोस्त समझ गए। रघु ने देखा कि खीर और कढ़ी उसे नहीं मिली और केशव की थाली लबाबब भरी हुई हैं। उसने केशव को देखा, वह कुछ नहीं खा रहा था। क्या हुआ? खाता क्यों नहीं? रघु ने उससे पूछा। मेरा मन नहीं हैं, तू खा ले। केशव ने अनमने मन से ज़वाब दिया। देख ले ! अगर मैंने खा लिया तो तू कुछ नहीं खा पायेगा। रघु ने उसको छेड़ते हुए कहा। केशव ने उसकी तरफ़ थाली सरकाते हुए कहा, तेरी मर्ज़ी, तू खा लें। और खुद उठकर चल दिया। रघु ने बिना संकोच किए उसकी थाली से खीर और कढ़ी खाने शुरू कर दिए। वही मनोहर भी पेट-भरकर खा रहा था।
स्कूल से लौटते वक़्त दोनों भाई रमिया काकी के घर गए। रमिया काकी ने प्याज़ और रोटी खिलानी चाही तो मनोहर ने पेट भरा कहकर मना कर दिया मगर केशव ने खा ली। रात को उसे चुप-चुप देख हरिहर ने बात करने के लहज़े से पूछा, क्यों केशव आज स्कूल में क्या किया रे? पढ़ाई की और क्या किया। यह कहकर वह अपना स्कूल का गृहकार्य करने में जुट गया। मनोहर ने उसे बताया कि आज उन्हें भी स्कूल में दिया जाने वाला भोजन मिला। इस बात पर हरिहर ने खुश होकर कहा, देखा सब दिन एक से नहीं रहते, कभी-कभी हमारे बिना कुछ करे ही सब कुछ बदल जाता हैं। भगवान सब देखता हैं। उसने लाल कमीज़ केशव को पकड़ाई और कहा, तेरे सालाना जलसे के लिए मैं लाल कमीज़ ले आया हूँ। अच्छी हैं न? केशव ने हाँ में सिर हिला दिया और सोने के लिए अपनी चारपाई पर चढ़ गया। हरिहर ने भी उसका मन पढ़ते हुए उसे ज्यादा नहीं पूछा। और बत्ती बुझा दीं। जब रात के ढाई बजे थे और चारों तरफ़ सन्नाटा था। तभी अचानक मनोहर इतनी ज़ोर से चिल्लाया कि दोनों उठ गए। बापू , बापू बाआआअ पू दर्द हों रहा हैं। मनोहर को इस तरह कराहते देख उसे पानी दिया तभी उसे उल्टी हुई और वो बेहोश हों गया।
हरिहर के जैसे होश ही उड़ गए। उसने मनोहर को गोद में उठाया और केशव को रमिया काकी के पास छोड़ अपने ठेले में मनोहर को लादकर ज़िले के अस्पताल की तरफ़ भागा और उसे इस तरफ़ जाते देख रास्ते के कुत्ते भी उठ खड़े हुए। कई बतियाँ जल गई। गाँव के कई जानकार भी हरिहर के पीछे हों लिए। वह दौड़ता-भागता हुआ, जब अस्पताल पहुँचा तो उसने देखा कि वहाँ पहले ही भीड़ हैं। गॉंव का चुनमुन कूड़ेवाला और मुनिया का पिता राम बिस्वास भी अपने बेटे श्रीधर को लेकर वहाँ पहुँचा हुआ हैं। और भी कई जाने-पहचाने चेहरे वहाँ पहुँचे हुए थे । सबके बच्चे बिलख रहे थे और एक दो बेहोश थे । अस्पताल में डॉक्टर भी कम थे । जैसे -तैसे सब बच्चों को देख दवा देने का काम चल रहा था। मनोहर को भी देखा गया। हरिहर का बुरा हाल था। वह बस रो नहीं रहा था। मगर अपने बेसुध बेटे को देख उसकी हालत भी बहुत ख़राब थीं। डॉक्टर हैरान थे कि ये बच्चे बीमार कैसे हों गए ? टेस्ट किये जा रहे थे । अस्पताल में एक दो डॉक्टर बाहर से भी आए। टेस्ट के अनुसार इनके खानपान की वजह से इनकी हालत ऐसी हों गई हैं। बड़े डॉक्टर ने हरिहर से पूछा, उसने बताया रात को सिर्फ पानी पीकर सो गया था। कह रहा था, आज पेट भरा हुआ हैं। बस जो कुछ खाया था, स्कूल से ही खाकर आया था। डॉक्टर ने कहा, 'एक्सट्रीम फ़ूड पोइज़िन्ग' का केस हैं, मगर हरिहर को समझ नहीं आया। तो डॉक्टर ने बताया कि अत्यधिक विषैले भोजन के कारण ऐसी हालत हों गई हैं।
मनोहर को दवा दी गई। उसकी हालत अभी नाजुक बानी हुई थी। तभी अस्पताल से चीखे आनी शुरू हों गयी थीं। दो बच्चे सदा के लिए दुनिया छोड़कर जा चुके थे । हरिहर ने मनोहर का बाजू कसकर पकड़ लिया। मगर कुछ घंटे बाद उसने महसूस किया कि उसका हाथ उसे ठंडा क्यों लग रहा हैं। उसने नाक के पास भी अपनी ऊँगली रखी, मगर उसे कुछ महसूस नहीं हुआ। तभी वहाँ नर्स आई, उसने भागकर डॉक्टर को बुलाया। उसने हरिहर को एक तरफ किया। वह बस यही बोल रहा था, मेरा बच्चा .च च च च ........ डॉक्टर ने मनोहर को अच्छे से देखा और हरिहर के कंधे पर हाथ रखकर बोला, इसे घर ले जाओ, अब कोई उम्मीद नहीं हैं। हरिहर भरे गले से बोला, डॉक्टर उम्मीद नहीं है का मतबल हैं? मेरा बच्चा बिलकुल ठीक हैं। आप दोबारा जाँचिए। हरिहर अब गुस्से में था। मगर डॉक्टर उसकी हालत देख नरमी से बोले, देखो भाई, तुम्हारा बच्चा अब ज़िंदा नहीं हैं। इसलिए इसे घर ले जाओ। कहकर वहाँ से चले गए और हरिहर धम्म से नीचे गिर गया।