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दिमाग ठीक है। वो मुझसे बारह साल छोटी हैं । उससे काहे ! व्याह करो? हरिहर ने समोसे तलते हुए कहा। का हो गया, तेरी नई चाची भी पंद्रह साल छोटी हैं। मर्द कभी बड़ा और बूढ़ा नहीं होत। तभी यह बूढ़ा मर्द यहाँ बैठ समोसे खा रहा हैं और नयी चाची किसी और को घर में समोसे परोस रही हैं। यह बात हरिहर ने ऐसे चटखारे लेकर कही कि आसपास के लोग हँसने लगे और लोहिया चाचा समोसा वही छोड़ बड़बड़ाते हुए वहाँ से चले गए । ऐ ! तने ठीक नहीं किया हरिहर। मैं तने देख लूँगा। तभी मनोहर भागता हुआ आया और कहने लगा कि बापू आओ देखो ! केशव पूरी बस्ती में क्या करता फ़िर रहा है । उसने ठेला बंद किया और जाकर देखा, केशव अपनी वर्दी पहने पूरी बस्ती में घूम रहा हैं। हरिहर ने उसे गोद में उठाया उसे कहने लगा कि इस तरह यह वर्दी ख़राब हों जाएँगी। चल ! उतार मैं धोबी से ठीक से धुलवा कर लाता हूँ वह इस्त्री भी कर देंगा ।
जब केशव की यूनिफार्म लेकर वह धोबी घाट पर पहुँचा, उसने देखा सफ़ेद साड़ी में लिपटी रमा कपड़े धो रही हैं । उसका साड़ी का पल्लू उसके सिर से हट गया हैं और उसे इस बात का होश भी नहीं रहा और वह बड़े ही तल्लीन होकर कपडे धोए जा रही हैं । कम उम्र में इतना उदास चेहरा देखकर कलेजा मुँह को आ जाता हैं। तभी उसकी नज़रे हरिहर पर गई। वह सकपका पर अपना सफ़ेद घूँघट निकाल वहीं खड़ी हों गई ।
केशव ने अपनी स्कूल की वर्दी ख़राब कर दी, तनिक धोकर इस्त्री करके दे दों । उसका दाखिला ज़िले के बड़े स्कूल में हो गया हैं । आज वर्दी मिली और उसने गन्दी कर दी, दोनों बच्चे खुश बहुत हैं। " हरिहर लगातार बोले जा रहा था, मगर रमा ने कोई ज़वाब नहीं दिया। और चुपचाप उसकी वर्दी धोती रही। हरिहर ने देखा, कपड़ें धोने का झाग थोड़ा सा उसके मुँह पर लग गया उसे साफ़ करने के लिए जैसे ही उसने हाथ लगाया, झाग उसके चेहरे पर भी फैल गया। उसने साड़ी के पल्लू से पूरा चेहरा पोंछा और वह उसके साँवले सलोने चेहरे को देखने लगा । यह कोई उम्र होती है ,ऐसे मासूम चेहरे पर दुःख की बदली छाने की । खैर! दुःख भी कहाँ उम्र देखकर आता हैं। यही सोचते हुए उसके सामने भागो का चेहरा घूमने लगा । आप साम को बापू से आकर ले लेना । अभी इस्री गर्म होंगी, वखत लगेगा।" रमा ने बड़े ही धीरे से कहा । "जी ! ठीक है, ले लूँगा अब चलता हूँ। रमा अपने घूँघट की ओट से उसे देख रही थीं । आज कितने समय बाद उससे किसी ने अपनी बात बताई है। वरना घर में अब वह केवल एक सामान की तरह है, जो ज्यादा चल न सकने पर वापिस आ गया हैं। और घर के लोग उसे कोने में रखकर भूल गए हैं।
शाम को उसकी बहन चंदा खुद ही हरिहर के बेटे मनोहर को वर्दी पकड़ा गई । मनोहर उसे बापू को देते हुए बोला, लो बापू, आ गई केशव की वर्दी चमक के। अब सुबह ही इसे स्कूल जाने के लिए वर्दी दीजियेगा। चलो, अब सो जाओ! कल सवेरे जल्दी उठना हैं । उसने दोनों बच्चों को सुला दिया और अपनी भागो को याद करते हुए खुद भी गहरी नींद में सो गया । सुबह की पहली किरण के साथ सभी एक नई उम्मीद के साथ जगे। और हरिहर ने दोनों बच्चों को तैयार किया । जैसे ही डिब्बा उनके बस्ते में डाला, केशव ने मना कर दिया। बापू वहाँ खाना मिलता हैं, मैंने देखा था। मैं वही खाना खाऊँगा। केशव ने डिब्बा वही छोड़ दिया और मनोहर ने भी लेने से मना कर दिया।
अच्छा केशू, मनु खूब मन लगाकर कर पढ़ना और मास्टर की बात ध्यान से सुनना और खाना खा लेना। और मनु स्कूल ख़त्म होते ही भाई का हाथ पकड़कर दरवाज़े के पास खड़े रहना वो दयाल भैया आएंगे उन्हीं के साथ आ जाना। हरिहर ने समझाते हुए कहा। बापू तुम नहीं आओंगे? मनोहर ने पूछा । दयाल भैया सड़क का कूड़ा उठाने आते हैं न, तो वो तुम्हें लेते आएंगे। यह सुनते ही मनोहर और केशव हाथ हिला स्कूल के अंदर चले गए और हरिहर दो मिनट तक वही खड़ा रहा। तूने अपने बच्चो का दाखिला करवा ही लिया। मनीराम पान खाते हुए बोला। हाँ भाई, सब ऊपरवाले की कृपा हैं। देखते है, कब तक ऊपरवाला मेहरबान रहता हैं मनीराम मन ही मन बुदबुदाया ।