मिड डे मील - 14 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिड डे मील - 14

तुम हो हरिहर? तुम्हें ही पैसे देने में देर हों गयी थीं। लो मूलचंद सेठ ने दिए हैं। उन्होंने नोटों की गड्डी पकड़ाते हुए कहा। किसलिए ? हरिहर ने रुपए नहीं पकड़े, वो तुम्हारा बेटा गुज़र गया था न, बस सेठ तुम्हारी मदद करना चाहते हैं। उन्होंने कंधे पर हाथ रखकर कहा। मगर ये रुपए मुझे नहीं चाहिए। और कौन है, यह मूलचंद सेठ? उसने ने कंधे से हाथ हटाते हुए पूछा। मेरा नाम हीरा हैं। और मैं उनका ख़ास आदमी हूँ और सेठ वही हैं, जो स्कूल वगैरह में खाना सप्लाई करते हैं। उन्हें दुःख है कि तुम्हारे साथ यह हादसा हुआ, इसलिए अफ़सोस कर रहे हैं। उसने सफाई देते हुए कहा। पैसे देकर कौन सा अफ़सोस किया जाता है। अगर मन के इतने साफ़ थे तो खुद आते अपने आदमी को नोटों की गड्डी के साथ क्यों भेजा। हरिहर ने कहा। हम बहुत देर से आराम की भाषा बोल रहे थे, मगर लगता हैं, तुम्हें वो भाषा समझ नहीं आएगी। तू सुन!, वो तेरी मैडम पुलिस स्टेशन में तेरी राह देख रही है न, उसके साथ मिलकर कोई कांड न करने की कीमत है यह। ये तो हमारी शराफत है कि अब तक मुँह मीठा कर बोल रहे हैं, वरना हाथ की भाषा से समझाना हमें भी आता हैं। हीरा ने मुठ्ठी दिखाते हुए कहा। ये नोट रख और खुश रह। हीरा ने नोट हरिहर के हाथ में पकड़ा दिए। और गमछे को गले में कसकर बाँधने लगा।
ओ ! सुन ! हरिहर ने हीरा के कंधे पर हाथ रख, कहना शुरू किया। हीरा उसकी तरफ़ देख रहा था। पहली बात, मैं गरीब ज़रूर हूँ, बेबस नहीं कि तेरे नोट देख, तेरे या तेरे सेठ के कदमों में गिर जाओ। पहले लगता था, शायद मेरे मनु की मौत कोई हादसा या मेरी ही करनी का फल हैं, मगर अब मने समझ में आ गया, मेरा मासूम मनु , तुम जैसे स्वार्थी और दीन लोगन का हक़ मारन वाले गंदे लोगों की करनी का सिकार हों गया। पता नहीं, कितने मनु खा गया हों गया, तेरा सेठ। उसको कह, इससे दो चार वकील रखे, जो उसे बचाएँगे। कोंकी मैं तेरे सेठ को जेल पहुंचाकर ही अपने मनु की तेरहवी करूँगा। और हाँ, पहले मैंने अपने बच्चान की ख़ातिर टेंडरवा नहीं भरा, मगर अब अपने मरे हुए बच्चे की कसम मिड डे मिलवा मैं ही बाटूँगा। कहकर हरिहर ने नोट हीरा की हथेली पर रख दिए। तुझे पता नहीं हैं, उनकी पहुँच कहाँ तक हैं? नेता लोगों के साथ उठना बैठना हैं, मारा जायेंगा। अगर तू अभी यहाँ से नहीं गया ता तने इसी जलते हुए ठेले में डाल दूँगा। चल भाग यहाँ से ! हीरा उस भड़कती आग को देख, थोड़ा सकपका गया और वहाँ से जाना ही उसने उचित समझा।
शालिनी ने अपना बैग उठाया और जाने को हुई और सामने हरिहर को देख उसके चेहरे की उदासी उम्मीद में बदल गई। उसने निडर होकर कहा। अब शिकायत दर्ज़ करो, स्कूल के ख़िलाफ़। थानेदार उन दोनों के होसले देख, चुपचाप लिखने बैठ गया। हरिहर ने मूलचंद की बात शालिनी को बताई। सब के सब मिले हुए हैं, वो मोतीलाल, स्कूल कमेटी और हों सकता हैं, इन्हें कोई राजनेता भी मदद कर रहा हों तो कोई बड़ी बात नहीं। हरिहर यहाँ तक आये हों तो पीछे मत हटना। यह सिर्फ शुरुआत हैं, अगर डरकर पीछे हटे तो यह अपराध और पनपेगा और कितने ही मासूम इसकी बलि चढ़ेंगे। अब कुछ भी हों जाए बहनजी, अपने मनु की मौत ऐसे नहीं बेगार करनी, वैसे भी अब खोने के लिए बचा क्या हैं? केशव हैं, जिसे जब पहले भगवान ने रख लिया तो आगे भी उसकी रक्षा वही करेंगा। शालिनी को विश्वास हों गया था कि अब इस रात का सवेरा होकर रहेंगा।
हरिहर जब गॉंव पहुँचा, उसके घर के पास भीड़ जमा थीं। उसने देखा भीमा और दो-तीन लोग पानी फ़ेंक रहे हैं। उसने पास आकर देखा तो पता चला कि उसका एक कमरे का मकान जल रहा हैं। वह भी भागता हुआ आया। पहले उसकी नज़रे केशव को ढूँढ रही, उसने देखा केशव भी अपने हाथों से पानी का डिब्बे उठाए, आग बुझा रहा हैं। उसने केशव को झट गोंद में उठा लिया। "बापू ! हमारा घर! "केशव को चूमते हुए उसने उसे एक तरफ़ खड़ा किया। और खुद भी पानी डालने लगा। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। सब जल गया था, सिर्फ कालिख बची थीं। तभी पंच राधेश्याम बोले, हरिहर कुछ लोग आकर तेरा मकान जला गए। ये कैसे लोगन से तने मुसीबत ले ली, कल पंचायत बैठेंगी, अब वही जवाब देना। हरिहर सुनता रहा और भीड़ उसके आसपास से हटने लगी।