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बोलता आईना - 1

बोलता आईना 1

(काव्य संकलन)

समर्पण-

जिन्होंने अपने जीवन को,

समय के आईने के समक्ष,

खड़ाकर,उससे कुछ सीखने-

समझने की कोशिश की,

उन्हीं के कर कमलों में-सादर।

वेदराम प्रजापति

मनमस्त

मो.9981284867

दो शब्द-

आज के जीवन की परिधि में जिन्होंने अपने आप को संयत और सक्षम बनाने का प्रयास किया है,उन्हीं चिंतनों की धरोहर महा पुरुषों की ओर यह काव्य संकलन-बोलता आईना-बड़ी आतुर कुलबुलाहट के साथ,उनके चिंतन आँगन में आने को मचल रहा है।इसके बचपने जीवन को आपसे अवश्य आशीर्वाद मिलेगा,इन्हीं अशाओं के साथ-सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गुप्ता पुरा डबरा

ग्वालियर(म.प्र.)

सामने आईए------ॽ

होगे समुहाँ खड़े,जितनी ही बारगी,

नई बाते लिये-बोलता आईना।

दृष्टि के साज से,सुनते हो कभीॽ

जिंदगी की कहानी खोलता आईना।।

बात कोरी नहीं,गहन चिंतन लिये,

चिंतनों के झरोखों से देखों जरा।

साथी कई इक बनै,आपकी राह के,

बात गहरी मगर,मनमस्त सोचो जरा।।

आप सुनते नहीं,दोष है कौन काॽ

कौन कहताॽनहीं बोलता आईना।

सामने तो मेरे,जरा आओ कभी,

सारी खोटी-खरी,बोलता आईना।।

मुझसे डरते रहे,आजतक यूँ लगा,

काँपते जो कदम,कभी थम पाऐगेॽ

भूल में हो जिगर,बात कहता सही,

मुझसे बाते करो,सभी कुछ पाऐगे।।

जिनने मेरी सुनी,संभले है सभी,

राहो को बदल,चलते ही भए।

कोहनूरी भया जिंदगी का सफर,

वे लौटे नहीं,कोहनूरी भऐ।।

ऐसीं बाते अनेको लिखीं है यहाँ,

सामने आइए,साफ हो जाऐगी।

पढ़ सकते अगर,उसकी पढ़लो लिपि,

बोलता जो-सुनो,समझ में आऐगी।।

1.खुलकर हँसना------।

सच्चा जीवन जो चाहो,मेरे साथियों,

अपना जीवन सुहाना बना जाइऐ।

हास-सागर में,डूबे जो,गहरी तली,

जीवन-मोती-खजाना,तहाँ पाइए।।

केवल मुस्कान,जीवन की राहें नहीं,

खुलकर हँसना-भी आना तुम्हें चाहिए।।

हँसना-आसान होता,कभी-भी नहीं,

यूँ तो हँसते मिले हैं,अनेकों जने।

कोई नयनों हँसे,कोई सैनों हँसे,

कुछ तो,मुँह तक,हँसी के निशाने बने।

कुछ तो,औरों को खुश करने केवल हंसे,

इनमें हँसने के,सही गुण,नहीं पाइए।।

कहना आसान है,बात हँसने की यूँ,

कहने,करने में अन्तर,हँमेशां मिला।

गीत,पुस्तक लिखीं,गीत गाए कई,

फिर भी अन्दर दिखी,अन्दरुनी गिला।

फेर हँसने की बातें हैं,किसके लिए,

खुद को,उस पर ही चलना,चलन चाहिए।।

नहीं अन्दर हँसे,हँसते ऊपर दिखे,

दिल से दिल भी मिला,फिर भी दूरी रही।

ऐसा हँसना,या मुस्काना-कितना भला,

जिसमें इतनी बड़ी-सी,मजबूरी रही।

अजी खुलकर हँसो,चाहे कुछ क्षण हँसो,

दूर रहते भी,दूरी नहीं पाइऐ।।

हँसना जीवन में होता,कभी-क्षण-घड़ी,

उस क्षण-दुनियाँ की दुनियाँ तो होती नहीं।

सभी इन्द्रिन की,सरगम की,सरगम मिटै,

जिसके अनुभव की,भाषा-भी,होती नहीं।

लुप्त होती,सभी वासना कीं डगर,

मुक्त-जीवन की ज्योति,तहाँ पाइऐ।।

खुशियाँ,मुस्कान में सिर्फ,कैसे कहैं,

ज्यादाँ-मुस्कान में,व्यंग्य गहरा मिला।

जिसके कारण,कई महाभारत हुए,

रोक पाए नहीं,पनपी गहरी गिला।

ऐसे मुस्काते चेहरे को, गहरा पढ़ो,

उसके भावों के भावों को,पढ़ जाइए।।

हॉस, उपहास,अट्टहॉस,बहुते हँसे,

जिसके हश्रों को जाना-सभी ने यहाँ।

जिंदगी के सफर में,सून्य ही तो मिला,

उसमें खुशियों को पाया है,किसने कहाँ।

हँसना मनमस्त जीवन है,हँसते रहो,

उनके हँसने का पाथेय,अपनाइए।।

2.नव-वर्ष आया-------

फिर सभी ने,रोज की ही भाँति,बोई गीत गाया।

लोग कहते यौं रहे,नव वर्ष(इक्कीस) आया।।

कोई अन्तर नहीं मिला,सूरज जो निकला।

राग चिड़ियों ने वही,पेड़ो पर गाया।।

गाय,बछड़ा,दूध की दोहनि वही थी,

ग्वाल शिर फैंटा बंधा वही,क्षीण काया।।

तापता बूढ़ा,कृषक वही धूप ओढे,

श्रमिक चलता दौड़,कहाँ विश्राम पाया।।

गोबर पाथती रनियाँ,पन्नी बीनते बालक,

मौरि-लड़की की धरैं,अनबोलि माया।।

आँसमा की ओर जाता,धुँआ बोहि चिमनियों का,

जल रहे श्रम-रक्त की दुर्गन्ध-काया।।

मान लेते। कुछ जनों की,रात रोशन भई होगी,

करवटें,सब रात बदलत,रात ने जीवन विताया।।

तुम भलाँ देते रहो,नव-बर्ष की शुभ-कामनाएँ,

मनमस्त तो रोटी-फफूँदी,रोज की ही भाँति,पाया।।

3.बहुरुपिए आने लगे--------

आज कल,बहुरुपिए आने लगे हैं।

कई तरह के गीत,वे गाने लगे हैं।।

अनगिनत तो दाढ़ियो बाले यहाँ हैं।

रंग-ढंगो को,बदलने बाले यहाँ हैं।

भोर में त्रिपुण्ड-मस्तक,देखना तो-

शाम को,बोतल थमाऐ वे,वहाँ है।

गीत,मनमोहक बना,गाने लगे हैं।।1।।

रोज बैठे मिल रहे,ताल की,उस पार पर।

तोड़ते रातों में ताले,हक जमाते माल पर।

पहन कर,जींसे-जाकेटें,पुलिस की पोशाक भी-

लूटते धौरे-दोपेहर,रौव दें,निज चाल पर।

को करै जुर्रत,बड़ो के,मुँह लगे है।।2।।

नाम को बदला,निजी पहिचान मैंटी।

हाथियों से है,मगर बन जाते चैंटी।

क्या कहैं,इनके कई उपनाम,कहिए-

कई दुकानें खुल गई,अनमोल-मेंटी।

वे-सुरों के साज,अपनाने लगे हैं।।3।।

सँभलकर रखना कदम हैं,आज के इस दौर में।

डूब जाओगे लला,इस सुनहरे,भौंर में।

सब तरफ हैं,फौजें उनकीं,परिचमों के साथ में-

होश में मनमस्त रहना,अनसुने इस शोर में।

पहिचान के भी,यहाँ अनजाने लगे हैं।।4।।

4.विदाई-------

अवसर ये,विदाई का,हम सबका आना है।

गमगीन नहीं होना,आना तो,जाना है।।

जीवन की किताबों के,कई पन्ने पलट डाले।

पहिचान हरुपों की,आई भी नहीं,पाले।

कुछ तो थे सुनहरे से,कुछ में तो,घसीटन थी-

कुछ तो भी लगे सच से कुछ में,ये फसाना हैं।।1।।

देखें जो तमाशे को,वो भी तो, तमाशे हैं।

सोचा न कभी मन में,क्यों कर,वे तमाशे है।

थोड़े से,संभल जाते,मिट जाता तमाशा-ये-

आजाओ-अभी पथ पर,चलना न बहाना है।।2।।

पढ़ते ही रहे केवल,औरों की कहानी को।

खुद में ही समझ बंदे,अपनी ही कहानी को।

बैठे थे,हकीकत ले,सपनों सा ये जीवन है-

आया औ गया क्षण में,सपनों का खजाना हैं।।3।।

सब कुछ तो समझता है,आश्चर्य तो यही होता।

तूँ तो वही,प्यारे,काहे को रहा रोता।

दुनियाँ की फिजाओं में,तेरी क्या हकीकत है-

जीवन का,ये मेला है,निश्चित न ठिकाना हैं।।4।।

क्या देखे खड़ा अब-भी,चलती है यौं ही दुनियाँ।

दुनियाँ का तमाशा है,जलती है,यौं ही दुनियाँ।

शमशान रखों यादों,शमशान कहानी-भी-

जीवन के वितानों में,बुने ताना-बाना है।।5।।

पंचभूतों का ये पिंजरा,पंचभूत मिटते सारे।

खुद में ही अमर तूँ है,मरता है कहाँ प्यारे.

येही तो रवानी है,दर्दों की कहानी है-

अब कौन-कहाँ किसका,मनमस्त क्या जाना है।।6।।

5.बीते दिवस------

क्या सोचते, बीत गए दिन,फेर कभी नहिं आऐगे।

जभी पुराने बस्ते खोले,तो सारे दिख जाऐगे।।

लाड़-प्यार,गोदी की किलकन,माँ की प्यारी लोरी भी।

धूल भरे,आँगन-गिर-उठना,घर की बतियाँ मोरी भी।

उँगली पकड़े सीखा चलना,मान मनौति अठखेली-

बचपन का उन्मुक्त वो जीवन,दही-मक्खन की चोरी भी।

जीवन-पन्ने,जब-जब पलटे,सभी सामने आऐगे।।1।।

युवा दिनों की,वो अँगड़ायी,युग बंसत की मनमस्ती।

मन चाहत,नहीं सुनें और की,सबदिन घूमत,सब बस्ती।

लगत न मन पढ़ने में विल्कुल,लुका-छिपी की रंग रेली-

नए-नए सपनों में सजते,बार-बार ऐती मस्ती।

वो मस्ती औ सपन रंगीले,जीवन भर तरसाऐगे।।2।।

जीवन की आपा-थापी में,समय न जाना,कब बीता।

लकड़ी,तेल,नून की तिड़कम,पढ़त रहे जीवन गीता।

भौर हुआ-कब-संझा आयी,यादों में खोआ जीवन-

रुप नैनसी के झूलों पर,झूला-यौवन को पीता।

नहीं जाना था चौथे पन में,क्या करके,खा पाऐगे।।3।।

जुरी गाँठ ना खोटी कौंड़ी,अब टटोलते हैं कौने।

नहीं संभलता,अस्ति-पंजर,हाथ हो गए हैं बौने।

कोई साथी,साथ नहीं हैं,थामे हाथ न कोई भी-

अपने सभी पराए हो रहे,जो लगते पहले नौने।

स्वाध्याय मनमस्त करो अब,सुख से दिन कट जाऐगे।।4।।

6.प्यारी भाषा-हिन्दी

हिन्दी को अपनाइऐ,हिन्दी जग पहिचान।

हिन्दी से ही बना है,प्यारा हिन्दुस्तान।।

चंद उदाहरण देकर केवल,तुमरा भरम मिटाते।

हिन्दी-अंग्रेजी में अन्तर,आज तुम्हें दरसाते।।

शब्द पिताजी,जीको भाता,ज्यौं स्नेही मंदिर।

माता जी,ममत्व की मूरति,सकल भुवन के अन्दर।।

पापा-डेडी-फादर सुनकर,कान खड़े हो जाते।

मम्मी-मोम-मदर की वाणी,ममी शब्द से नाते।।

भव्य-भावना से भक्ति है,बाबा-दादा-ताऊ।

दादी सबकुछ देने बाली,भाषा है मन भाऊ।।

ग्राण्ड मदर,फादर कहना बस,केवल फर्ज निभाना।

भाव-भावना से ओझिल सब,कहीं अपनत्व न पाना।।

चाचा-चरणामृत-सा पावन,है अपनत्व प्रदानी।

चाची-चिंता हरण-मणीवत्,सर्व सुखों की खानी।।


अंकल-लगता है डंकल-सा,खटक हृदय को जाता।

आँटी में अपनत्व कहाँ है,बाँटी खटकन-नाता।।

भइया शब्द प्यार बरसाता,हृद परिचम फहराता।

ब्रादर कहने में सच मानो,वह आनंद न आता।।

भाभी में है भव्य-भावना,अन्दर की परिभाषा।

आण्टी कहने में कर्कश ध्वनि,नहीं प्रेम की भाषा।।

बहिना शब्द ममत्व जगाता,वंदन और अभिनंदन।

सिस्टर शब्द नहीं निष्ठा का,बनाबटी-सा बंधन।।

आत्मज-आत्मजा-नेह भरा है,आत्मा की अभिव्यक्ति।

सन,डॉटर,डामस से लगते,नहीं-कहीं अनुरक्ति।।

बेटी-बिटिया-लली लाडमय,मन को मन से भाते।

बेटा-बेटू-लाल-नेह संग,जीवन-जीवन नाते।।

साथी-मित्र-दोस्त-हमराही,जीवन दर्शन नाता।

फ्रेण्ड शब्द,फायर-फाशिष्टी,फार-फारकर जाता।।

इसी लिए,अपनी धरती पर,आओ प्रेम बरसाओ।

अंग्रेजी से,शूक्ष्म नाता,हिन्दी को अपनाओ।।

हिन्दी-स्वर,शब्दों की सरगम,नाँदो की महारानी।

इससे परे,विदेशी भाषा,अंग्रेजों की भाषा मानी।।

भाषाऐं सब पढ़ो,मगर हिन्दी से प्यार घनेरा।

जननी-जन्म भूमि-सी प्यारी,हिन्दी पर,मन चेरा।।

नव श्रंगारी,नवरस धारी,षटरस को,रस देती।

भूषण,आभूषण बन हिन्दी,सबका मन हर लेती।।

7.भारत-भामिनी----

भुंसारे-उठकर करत,झारि,बुहारी-काम।

देन कलेवा जाय नित,अपने पीतम राम।।

टेरत-खेतन मैंढ से,हाथ इशारा देत

भूँखे हुई हौ-बलमजू,आओ कलेवा हेतू।।

मैढ़ खड़ी भामिनि लखी,बैलन खोले जोत।

ठवन चाल,पति आवते,मगन भामिनी होत।।

छइयाँ बैठ बबूल की,करत कलेवा राम।

पल्लू का पंखा झलत,बैठ बगल में बाम।।

रस में रस घोरत अमित,मन भावनि बतियान।

कबै कलेवा कर गए,जान न पाए राम।।

बैठ बबूरी डारि पै,मन में सोचत काम।

हाय रती,कहाँ खो गई,मोरौ लेत न नाम।।

न्यौछाबर भए रति-पती,ढरत नयन से नीर।

उन बूँदों से भरि गए गहरे सागर क्षीर।।

दृश्य मनोरम देखकर,राधा-कृष्ण बतियात।

धन्य-धन्य हैं सब कृषक,भामिनि से बतियात।।

मोरौ मन यूँ करत है,अपनऊँ बनौ किसान।

मन भावन इस अवनि के,बन जाँए पहिचान।।

सच्चा है आनंद यहाँ,नही मधुवन के बीच।

हल से,सब कुछ हल करै,कृषक-कृषि को सींच।।

नहीं समुझे हम अब तलक,हमसे बड़े किसान।

जीवन हंस-हंस जी रहे,अन्नदाता,सच मान।।

राधे।हमने खो दिए,जीवन के दिन चार।

जान न पाए आज तक,सच मानो,गए हार।।

कर्मशील जो,रात दिन,श्रेष्ठ कर्म को मान।

कर्म योगी वे राधिका।अरु सच्चे भगवान।।

हरि हारे,हारे नहीं कृषक,अपनी भूमी जोत।

विश्व भरण-पोषण करैं,अन्नदाता वे होत।।

घर की आई याद जब,लौटी भामिनि मोर।

हर हारे मन नाँचता,घाँघरि-घूमन-कोर।।

8.नववर्ष------

आज की करते विदाई और कल का स्वागतम्।

आभार है गत वर्ष का,नव वर्ष का सुस्वागतम्।।

अगम हर्षोउल्लास,जीवन नाँद,जीवन दे गया।

ध्वनित लहरों से कलोलित,नाव-जीवन खे गया।

प्रकृति की मनुहार में,मन भावने भग,मान के-

पा अलौकिक रवि प्रभा से,चक्षु खुल गए ज्ञान के।

मधुर,मनभावन,मनोरम,रब सभी में आगतम्।।1।।

किस तरह आभार कर,तुमसे उऋण हो पांऐगे।

दे दिया इतना कि,जीवन में नही पा पाऐगे।

यह विदा बेला तुम्हारी,अगम-अनहद-छन्द है।

प्रकृति ने अश्रु बहाऐ,हरकली मुँह बन्द है।

हो गए योगी वियोगी,अर्द-निशि को पा गतम्।।2।।

नववर्ष की रवि रश्मि ने,हर द्वार पर दस्तक दई।

स्वर भंगिमा जागी नई अरु,भोर रंगीनी भई।

हर कृति ने,सुमन-मन से,मगन हो स्वागत किया।

ओस-मुक्ता हार पावन,अर्ध्य दे,मग मृदु किया।

अरुणशिखा ध्वनि तूर्य,खग कुल गान शंखो,आरितम्।।3।।

सोम शीतल,सा सुयश तब,स्वागतम है आइए।

हर कड़ी को जोड़ने का,समन्वय अपनाइए।

एक स्वर हो वीण वादन,नाँद-अनहद नाँद हो।

भुवन चौदह में समाहित,कोई-कहीं न बाद हो।

सब जहाँ मनमस्त हो कर,गान करती,स्वागतम्।।4।।

9.गजल-----

शब्द के भण्डार कूँची,रंग से भी,भर चुकी है।

भाव,भावों से भरे पर,यह कहानी क्यों रुकी है।।

इन फरिश्तों की हमें अब,है नहीं विल्कुल जरुरत।

आँसुओं से तर-व-तर हो,जबकि मैयत उठ चुकी है।।

जब नहीं भय का तकाजा,क्यों खडे,कुछ बोलिए।

यह जवानी,क्या जवानी,उनके चरणों में जो झुकी है।।

जिंदगी ने,प्यास के तालाब,क्या जीवन जिया।

अब नहीं खामोश,उठती हर हृदय में,धुक-धुकी है।।

कल सुबह का,सुबह देखो,रंग क्या लेकर निकलता।

गीत क्या आलापने को,डाल पर बैठी,पिकी है।।

आज का राही,न जाने,कौन से पथ पर चला है।

सोचता नहि,चल रहा है,राह उसकी बेतुकी है।।

पतबार विन,खेबा बना,नॉब भँबरों में फँसी।

जानता नहीं,होऐगा क्या।हँस रहा,वेतुक हँसी है।।

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