वक्त सबसे अच्छा मित्र Anand M Mishra द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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वक्त सबसे अच्छा मित्र

वक्त सब सिखा देता है। वक्त की मार जीवन में प्रायः हर किसी को लगती है। चाहे वे श्रीराम, श्रीकृष्ण, तुलसीदास, कालीदास या कोई और हों। जब वक्त की मार पडती है तो बड़े-बड़े धराशायी हो जाते हैं। विश्व विजेता रावण, बाहुबली बाली भी वक्त के हाथों जमीन पर धूल चाटने लगा। दानवीर बलि को छोटे वामन के सामने झुकना पड़ा। हरिश्चन्द्र को श्मशान घाट पर नौकरी करनी पड़ी। पांडवों को राज्यविहीन तथा द्रौपदी को दासी बनना पड़ा। भरी सभा में अपमानित हुई। सीता माता को कांटो भरी राह पर चलना पड़ा तथा दुष्ट रावण द्वारा अपहृत हुई। श्रीकृष्ण को जरासंध के भय से ‘रणछोड़’ बनना पड़ा। शकुंतला पति वियोग में परेशान हुई। भीष्म की प्रतिज्ञा कौरव कुल के नाश का कारण बनी। अर्जुन को अपना पुरुषत्व खोना पड़ा। महाराणा प्रताप को घास की रोटियाँ खानी पड़ी। लक्ष्मीबाई ने अपने प्राण गंवाए। इतिहास अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है। कुल मिलाकर वक्त हमारा दोस्त है। वक्त कभी अभिलाषा है। कभी यह एक भ्रम है। वक्त सभी के लिए निश्चित है लेकिन किसे, कितना वक्त मिला है यह अनिश्चित है। सुख उपभोग के लिए भी उपयुक्त वक्त का होना आवश्यक है। किसी के पास इतना वक्त नहीं होता है कि वह जो चाहे करता रहे। वक्त को अपने श्रम से हम सुविधानुसार नहीं मोड़ सकते। उसके लिए वक्त का अनुकूल होना आवश्यक है। लेकिन यदि वक्त साथ नहीं दे तो फिर ईश्वर ही मालिक। वक्त अनुकूल रहने से तो यह मित्र से बढ़कर है। बुरे दिनों से वक्त से उम्मीद करना भी व्यर्थ है। वैसे बुरे दिनों में तो छाया भी साथ छोड़ देती है। अपने साये से भी भय लगता है। बचपन के बिताए वक्त तथा आज के वक्त को यदि देखता हूँ तो काफी अंतर मिलता है। पहले सुविधाओं का नितांत अभाव था लेकिन लोग प्रसन्न थे। आज सुविधाओं की कमी नहीं है। मगर ख़ुशी खोजे नही मिल रही है। वास्तव में वक्त जल्दी बीत जाता है। यह बात स्वामी विवेकानंद तथा आदिगुरू शंकराचार्य जी ने जल्दी जान लिया होगा। इसीलिए कम वक्त में ही उन महान विभूतियों ने बड़े-बड़े काम कर दिए। उन्हें निश्चित रूप से पता होगा कि ईश्वर से वक्त की कमी का रोना बेकार है। अतः बिना वक्त बर्बाद किए वे अपने ध्येय में लग गए। बहुत लोग काम करने के बाद कहते हैं कि वे थक गए। वास्तव में वक्त ‘थकने’ के लिए नहीं है। अनवरत कार्य में लगे रहना ही वक्त को अच्छा लगता है। वक्त को शिकायत सुनना पसंद नहीं है। अतः वक्त मित्र होने के साथ-साथ बाधा भी है। वक्त के साथ यदि मनुष्य का दूसरा कोई मित्र है तो वह धैर्य है। हर हाल में धैर्य को बनाए रखना आवश्यक है। इसे हम रामायण तथा महाभारत काल में अवतारी पुरुष श्रीराम तथा श्रीकृष्ण से सीख सकते हैं। बाधाओं को पार करने के लिए इन दोनों ने धैर्य का ही सहारा लिया है। यदि श्रीराम धैर्य नहीं दिखाते तो वे रामराज्य की स्थापना नहीं कर सकते थे। क्रोध को उचित जगह पर ही दिखाया। क्रोध को दोनों ने एक तरह से जीत लिया था। उन्हें पता था कि अकारण क्रोध करने से कुछ हासिल होनेवाला नहीं है। उलटे नुकसान होने की संभावना अधिक हो जाती है।