kaise kaise dushchakr books and stories free download online pdf in Hindi

कैसे कैसे दुष्चक्र

मालती देवी इतना तो जानती थीं कि स्त्री के लिए किसी न किसी मर्द का संरक्षण जरूरी होता है ,पर इस संरक्षण की इतनी बड़ी कीमत देनी पड़ती है ,यह वे नहीं जानती थीं |पति की मृत्यु के बाद जब देवर ने उन्हें बच्चों समेत सड़क पर ला खड़ा किया था |उस समय उनके पति के एक घनिष्ठ मित्र ने उन्हें सहारा दिया था ,पर उन्हें इस सहारे की कीमत के रूप में अपना सब- कुछ कुर्बान करना पड़ा था ,वह भी उम्र -भर के लिए |तब बच्चे छोटे थे इसलिए सब कुछ ठीक चलता रहा पर अब उनकी बड़ी बेटी पूनम अट्ठारह की हो चुकी है| सुमन पंद्रह की और किरण बारह की है |उन्हें उनकी सुरक्षा की चिंता है और विवाह की भी |सभी कालेज में पढ़ रही हैं और अब सब- कुछ समझने लगी हैं |अंकल माँ के कमरे में क्यों पड़े रहते हैं ,उन्हें इसका अनुमान है |उन्हें अच्छा तो नहीं लगता, पर उन्हें माँ की मजबूरी भी पता है |बाहर जब कोई उनसे अंकल के बारे में पूछता है ,वे झल्ला जाती हैं और पूछने वाले की शामत आ जाती है |पूनम ज्यादा तेज-तर्रार है |उसे अंकल बिलकुल पसंद नहीं हैं ,क्योंकि वे बकायदा माँ के कमरे में बैठ कर शराब पीते हैं |सुमन और किरण को अंकल से उतनी परेशानी नहीं हैं |वे उनके आने पर खुश होती हैं क्योंकि उनकी हर फरमाइश अंकल पूरी कर देते हैं |आज की पीढ़ी की जरूरतें पूरी होती रहें, तो वह बड़ों की बड़ी से बड़ी गलती को भी नजरअंदाज कर देती है |नैतिक पतन यूं ही तो नहीं चरम पर है पर पूनम अपनी बहनों से अलग है |उसमें स्वाभिमान की मात्रा कुछ ज्यादा है |अंकल के आने पर वह या तो अपने कमरे में बंद हो जाती है या फिर पास-पड़ोस में जा बैठती है |अंकल में एक बात तो अच्छी है कि वे मालती देवी की बेटियों को अपनी बेटियों की तरह ही मानते हैं, पर बाहर के कुछ लोगों को डर है कि कहीं किसी दिन नशे की खुमारी में वे लड़कियों को अपना शिकार न बना लें |इन्हीं कुछ लोगों में एक वकील साहब भी हैं |वकील साहब बड़े ही सुदर्शन और प्रतिभाशील हैं |उम्र तीस-पैंतीस से कम नहीं ,पर रख-रखाव से पच्चीस से अधिक के नहीं लगते |उनके मुक़ाबले उनकी पत्नी बहुत ही साधारण और उम्रदराज लगती हैं पर पति-पत्नी के बीच गजब का सामंजस्य है |दो बच्चे हैं |लड़की आठ साल की व लड़का पाँच साल का है |वकील साहब की साहित्य में भी रूचि लेते हैं |बात-बात पर शेर कहते हैं |लच्छेदार बातें करके किसी भी युवती को अपना मित्र बनाने में माहिर हैं |उनके इस शौक में उनकी पत्नी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं |पहले वे खुद किसी युवती की मित्र बनती हैं फिर उसे वकील साहब की दोस्त बना देती हैं |किसी स्त्री का ऐसा भी चरित्र हो सकता है, यह रमा ने पहली बार जाना था |पूनम उसके साथ एम-ए० कर रही थी |बहुत ही समझदार लड़की थी |फिर भी वकिलाइन[वकील साहब की पत्नी होने के कारण लोग उन्हें वकिलाइन कहते थे ] के प्रयास से वह वकील साहब की दोस्त बन गयी थी |वकील साहब पूनम के घर की कमजोरियों से वाकिफ थे और उसे अपने ढंग से समझाते रहते थे |अब जब भी अंकल पूनम के घर आते ,वह वकील साहब के घर चली आती और देर-देर तक वहीं पड़ी रहती |वकील साहब के घर के दरवाजे उसके लिए हर वक्त खुले रहते |वकील साहब ही नहीं ,उनकी पत्नी और बच्चे भी दिल खोलकर उसका स्वागत करते |इतना अपनत्व पाकर पूनम को उनका घर अपना लगने लगा |अब उसको अपना घर अच्छा ही नहीं लगता था |
पूनम को पता ही नहीं चला कि कब वह वकील साहब के प्रेम में पड़ गयी |इस प्रेम में वकिलाइन के इस स्लोगन का बड़ा हाथ था कि उन्हें अपने पति का प्रेम शेयर करने में कोई परेशानी नहीं |वे वकील साहब के साथ पूनम को अकेला छोड़कर कहीं भी चली जातीं |घर में रहती भीं तो दोनों को एकांत में समय बिताने का पूरा मौका देतीं |वकील साहब जिनका नाम शेखर था ,पूरे घाघ थे |वे धीरे-धीरे पूनम को अपनी गिरफ्त में ले रहे थे |इस काम में उन्हें कोई नैतिक बाधा नहीं थी |उनका विचार था कि ऐसी –वैसी माँ की बेटी का हश्र ऐसा-वैसा ही होता है |उन्हें पूरा विश्वास था कि लड़कियों को उनके तथाकथित अंकल एक दिन शिकार बनाएँगे ही इसलिए वे उनका प्रथम भोग लगाने को आतुर थे पर वे यह भी जानते थे कि पूनम बहुत ही नैतिक लड़की है |वह गलत चीज को कभी स्वीकार नहीं करेगी ,इसलिए उसे प्रेम के नाम पर हासिल करना चाहते थे |पूनम को देखते ही उनकी आँखें और जुबान ही नहीं ,पूरी देह बोलने लगती |वे देवदास के अवतार बन जाते |पूनम पर इन सब का प्रभाव पड़ने लगा था |शेखर पूनम की देह को जगा रहे थे |अवसर देखकर कभी उसके हाथ सहला देते ,कभी पाँव |उस स्पर्श में ऐसा कुछ होता था कि पूनम की पूरी देह झनझना जाती |एक अजीब- सा सुख उसे मिलता था ,इसलिए उनके स्पर्श करने पर वह उनसे नाराज नहीं होती थी |शेखर को इस बात से शह मिल रही थी |एक दिन जब पूनम उनके ड्राइगरूम में सोफ़े पर बैठी थी |वे चुपके से उसके पीछे आए और पूनम के चेहरे को पीछे की ओर झुकाकर उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया और उसे ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगे |हर चुसकारी पूनम की देह में बिजली दौड़ाती रही |वह तड़प उठी |कई मिनटों के बाद शेखर ने उसे छोड़ा | यह चुंबन पूनम के लिए बिलकुल नया अनुभव था |उसकी चेतना शून्य हो गयी थी |गलत-सही ,पाप-पुण्य की बात वह नहीं सोच पा रही थी |बिना कुछ बोले वह घर चली गयी और अपने कमरे में बंद होकर देर तक फूट-फूटकर रोती रही |उसने सोच लिया कि अब वह शेखर के घर नहीं जाएगी |पर कहते हैं न देह का नशा अफीम से ज्यादा सिर पर चढ़ता है |पूनम अब और ज्यादा शेखर के घर जाने लगी |कुछ दिनों चुंबनों का सिलसिला चला ,फिर वे आलिंगन बद्ध होने लगे |पूनम को यहाँ तक कुछ भी बुरा नहीं लगता था |इसे वह दोस्ती की प्रगाढ़ता ही समझ रही थी |
पर शेखर को यहीं तक नहीं रूकना था ,पर वे पूनम पर एकदम से आक्रमण भी नहीं करना चाहते थे |उन्हें डर था कि इससे बात बिगड़ सकती है |बात खुलने पर वे खतरे में पड़ जाएंगे ,इसलिए वे पूनम को उसकी सहमति से हासिल करना चाहते थे |ताकि वह अपनी तरफ से शिकायत करने लायक न रहे |
एक दिन शेखर ने पूनम की तरफ दूसरा कदम बढ़ाया |उसको आलिंगन करते समय उसकी देह में खिले बिजली के फूलों पर आक्रमण कर दिया |उन्हें पूरी तरह अपने वश में कर लिया |बिजली के फूल कभी उनके हाथों में छटपटाते ,कभी होंठों में |पूनम को लगा वह मर जाएगी |उसका पूरा शरीर उत्तेजना से काँप रहा था |देह के इस रहस्य से वह सर्वथा अपरिचित थी |उसे एक ऐसा सुख मिल रहा था ,जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकी थी |शेखर बार-बार फूलों से खेल रहे थे और वह हर बार अपने नाखूनों से शेखर की जाँघ को लहूलुहान कर रही थी |शेखर समझ गए कि कली यौन का आस्वाद लेने को विकल है ,पर वे आगे नहीं बढ़े |उस दिन पूनम का मन घर जाने को नहीं हुआ |अब पूनम पूरी तरह शेखर के प्रेम-पाश में बंध चुकी थी |वह उनके लिए किसी भी हद तक जाने और कुछ भी करने को तैयार थी पर शेखर को जैसे कोई जल्दी नहीं थी |अब वे उसे तड़पा रहे थे |कई-कई दिन उससे नहीं मिलते |
रमा को लग रहा था कि पूनम आजकल अनमनी –सी रहती है ,पर पूछने पर कारण नहीं बताती |रमा का आना-जाना उसके घर था पर उसकी सुमन से ज्यादा पटती थी |सुमन ने ही उसे बताया कि पूनम आजकल वकील साहब के घर बहुत ज्यादा जाती है ,किसी की बात नहीं मानती |सुमन को वकील साहब बिलकुल अच्छे नहीं लगते थे |उनकी दोहरी बातें उसे नहीं भाती थी ,पर जाने क्यों पूनम पर उनका जादू चढ़ा रहता है |उनकी जरा –सी भी शिकायत वह नहीं सुन पाती |रमा को भी वकील साहब कुछ ठीक नहीं लगते थे ,पर वह यह भी नहीं जानती थी कि पूनम से उनके रिश्ते किस हद तक हैं ?वह तो यह अनुमान भी नहीं लगा पाई थी कि वे इस तरह भी गिर सकते हैं |शादी-शुदा व बाल -बच्चों वाले होकर भी वे एक कन्या को नष्ट कर सकते हैं ।फिर भी वह इस तरह के सम्बन्धों के दूसरे उदाहरणों से पूनम को समझाया करती |
रमा की बातों का असर पूनम पर हो रहा था |उसे यह लगने लगा था कि शेखर के पास अपना घर-परिवार ,पत्नी-बच्चे ,नात -रिश्तेदार ,पद -प्रतिष्ठा सब है |वे उसे कभी अपना नहीं सकते |दुनिया की नजर में उनका रिश्ता गलत है ,अवैध है पर वह क्या करे ?उनसे दूर रहना भी उसके लिए मुश्किल है |किस दुष्चक्र में फंस गयी है वह ?जिस तरह के रिश्ते को वह खुद हेय दृष्टि से देखती है ,अनजाने में उसी तरह का रिश्ता वह बना बैठी है |अंकल और माँ को वह इसीलिए तो नफरत से देखती है कि उनके बीच का रिश्ता अवैध है पर माँ तो मजबूर थी |अपने बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए उस बंधन में पड़ी ,पर वह तो स्वेच्छा से इस बंधन में पड़ी है |उसकी तो कोई मजबूरी नहीं |अब उसे लगता कि शेखर ने जान-बूझकर उसकी भावनाओं को हवा दी |उसकी देह की युवा कामनाओं को जगाया |उसकी उम्र भी तो ऐसी है कि मन हमेशा रंगीन सपने देखता है |जब रोमांटिक गीत ,उपन्यास ,कहानियाँ और फिल्में अच्छी लगती हैं |शेखर का रूप-रंग ,रोमांटिक बातें ,शेरो-शायरी ,उसकी हर चीज की प्रशंसा ने उसका दिल जीत लिया ,तो उसकी क्या गलती है ?वह नासमझ थी ,पर वे तो समझदार थे |उसे वकिलाइन पर भी गुस्सा आता –कैसी औरत है ,जो यह कहती है कि उसे पति का प्यार बांटने में परहेज नहीं |पति को दूसरी स्त्री के साथ अकेला छोड़ देती है |वह तो कभी ऐसा नहीं कर पाती |उसे तो अब शेखर का पत्नी से प्यार जताना भी नहीं भाता |शेखर अक्सर उससे प्यार जताते-जताते जाने किस आवेग में भर कर पत्नी के कमरे में चले जाते हैं और कुछ देर के लिए दरवाजा बंद हो जाता है |दरवाजा खुलने पर दोनों खुश-खुश बाहर आते हैं |जितनी देर शेखर पत्नी के कमरे में बंद रहते हैं ,उतनी देर पूनम अंगारों पर लोटती रहती है |शिकायत करने पर शेखर उसे समझा देते –पत्नी है उसकी इच्छा का आदर करना भी मेरा कर्तव्य है |वह मेरे लिए इतना करती है ,तो मैं उसे छोड़ भी तो नहीं सकता |
पूनम उलझ गयी है |उसका दिल- दिमाग बंट गया है |दिमाग कहता है शेखर उसे इस्तेमाल कर रहे हैं ,इसलिए उनसे दूर रहो |दिल को उनके सान्निध्य के लिए सब कुछ मंजूर है |वह शेखर के आफिस से लौटने से पहले ही उनके घर जाने के लिए सजने-सँवरने लगती है और दिमाग की आवाज को दबा देती है |
मंत्र-मुग्ध सर्पिणी की तरह पूनम का खुद पर वश नहीं रह गया था |अब वह शेखर को पूरी तरह पा लेना चाहती थी |जीवन के इस रूप को भी वह देख लेना चाहती थी |शेखर का अब तक किया प्रेम उसे अच्छा लगा था |वह सोचने लगी थी कि मिलन का रंग तो और गहरा और प्यारा होगा |वह रात -भर जागती और उस सुख की कल्पना में विभोर रहती पर शेखर वह अवसर आने ही नहीं दे रहे थे |
एक दिन पूनम ने सोचा कि जब वकिलाइन उससे इतनी खुली हुई हैं ,तो क्यों न वह अपने प्रेम-सम्बन्ध का खुलासा कर दे |वे जानती तो हैं ही ,फिर भी ..|शायद तब वे उनके मिलन का स्थायी प्रबंध कर दें |पर जब उसने उन्हें सब कुछ बताया, तो उनका चेहरा उतर गया |पता नहीं वे बन रही थीं कि सच ही उन दोनों के बीच की इतनी नजदीकी की खबर से उन्हें धक्का लगा था |दूसरे दिन जब वह शेखर के घर गई ,तो घर का माहौल थोड़ा तनावपूर्ण लगा |उसे देखते ही वकिलाइन ढेर- सारे कपड़े लेकर उनको धोने के बहाने बाथरूम में घुस गईं |शेखर उसे अपने बेडरूम में ले आए और बिस्तर पर लिटा दिया |वे उसे चूमने लगे थे पर उनके चुंबन में वह पहले वाली आग न थी |उसे अच्छा नहीं लगा तो उसने उन्हें खुद से अलगाना चाहा ,पर उनकी पकड़ मजबूत थी |वे उसके कपड़े उतारने लगे |वह तनाव में थी कि अगर उनकी पत्नी आ गयी तो क्या सोचेंगी ?फिर उसने मधुर मिलन का जो सपना सँजोया था, वह इतना मशीनी और तात्कालिक नहीं था पर शेखर मानने को तैयार नहीं थे |वह इस डर से नहीं बोल पा रही थी कि उनकी पत्नी सुन लेगी |फिर भी खुद को बचाने की पूरी कोशिश कर रही थी |जब सफलता नहीं मिली तो उसने खुद को ढीला छोड़ दिया और आँखें बंद कर इस क्रिया का आनंद लेने की कोशिश करने लगी |पर ये क्या उसे तो कोई आनंदानुभूति ही नहीं हो रही है |शेखर मात्र दो मिनट उसकी देह पर चढ़े रहे ,फिर उतर गए और उसे बाथरूम में जाकर खुद को अच्छी तरह साफ कर कपड़े पहन लेने का आदेश दिया |उसने सदमे की हालत में अपने कपड़े उठाए और बाथरूम में घुस गयी |लौटी तो शेखर ड्राइंगरूम में बैठे थे |वह उनके सामने जा बैठी | वे थोड़ी नाराजगी से बोले-पत्नी को सारी बातें बताने की क्या जरूरत थी ?जब तीनों सब कुछ समझ रहे हैं |वे इतनी देर से बाथरूम में हैं ,क्या यह अकारण है ?सब जानती-समझती हैं | खैर अभी जो हमारे बीच हुआ, उसे भी कभी न बता देना |अब तुम घर जाओ |
वह आत्मग्लानि से भरी कुछ देर वहीं खड़ी रही ,फिर नौ-नौ मन के हो रहे कदमों को घसीटती अपने घर आई और अपने कमरे में बंद हो गयी |
अब उसे समझ में आया कि उसके साथ क्या हो गया है ?पर वह किसी को बता भी तो नहीं सकती थी |सब कहेंगे तुम ही तो उनके घर जाकर पड़ी रहती थी ,इतनी भी नासमझ नहीं हो |
उधर उसकी देह भी जागी हुई थी |शेखर ने उसकी देह को जगा तो दिया था ,पर तृप्त नहीं किया था|वह तड़प रही थी |अब वह क्या करे ?शेखर का चेहरा आज कितना अनजाना –अनपहचाना लग रहा था |वकिलाइन ने तो आज उससे बात भी न की थी |क्या अब वह पहले की तरह बार-बार उनके घर जा सकेगी ?शेखर के पास तो एक भरपूर नारी देह है ,पर वह इस जागी देह का क्या करेगी ?यह किस मोड पर लाकर खड़ा दिया उसे शेखर ने ?जीवन के ऐसे ही मोड़ लड़की को गलत रास्ते पर ले जाते हैं ,पर वह खुद को संभालेगी |
वह फिर सोचती -उसकी देह क्यों नहीं तृप्त हुई ? क्यों उसे सहवास का पता ही नहीं चला ?दो मिनट में कोई क्योंकर संतुष्ट हो सकता है ? क्या शेखर पूर्ण पुरूष नहीं है या फिर शेखर को कोई तनाव था ?तनाव हो सकता है, क्योंकि उसकी पत्नी घर में ही थी |फिर जरूरत क्या थी इस जल्दबाज़ी की ?क्या वह पूर्णाहुति करके इस रिश्ते को खत्म करना चाहता था या फिर पत्नी ने प्रतिरोध करना शुरू कर दिया था |
कुछ तो गलत था जो पूनम नहीं समझ पा रही थी |वह रात भर सोचती रही ,रोती रही |कभी लगता उसके साथ रेप हुआ है |उसका धर्म भ्रष्ट कर दिया गया |उसका कौमार्य लूट लिया गया |उसका शोषण किया गया |कभी सोचती वह शेखर से कैसे मिलेगी ?अगर एक बार भी शेखर उसकी कामनाओं को तृप्त कर दे ,तो वह खुद को संभाल लेगी |भावनाओं के द्वंद्व में रात -भर जागने के कारण सुबह तक उसे नर्वस ब्रेक डाउन हो गया | उसकी हालत देखकर घर वाले परेशान हो गए |कारण वह बताती नहीं थी |सिर्फ उसके आँसू बहते रहते |भूख-प्यास मर गयी |रमा उसे देखने आई तो दंग रह गयी |अट्ठारह वर्ष की हँसती-खेलती लड़की को अचानक कौन -सा रोग लग गया ?यह तो वह जान गयी कि उसके साथ कुछ बुरा हुआ है पर क्या?यह पता लगाना मुश्किल था |उसने आंटी से कहा कि किसी मनोचिकित्सक को दिखा देते हैं |परीक्षाएँ करीब हैं ,इस मन:स्थिति में वह परीक्षा कैसे देगी ?सुमन और रमा उसे लेकर एक डॉक्टर के पास गईं |डॉक्टर ने उन्हें बाहर रोक दिया और पूनम को लेकर अपने परीक्षण कक्ष में चले गए |
पूनम बड़ी- सी मेज पर लेटी हुई थी |उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे |वह कुछ भी नहीं बता रही थी |डॉक्टर आनंद समझ गए कि लड़की आत्मग्लानि और अपराध-बोध से ग्रस्त है |उन्होंने उसे बड़ी मुश्किल से अपने विश्वास में लिया ताकि वह उन्हें अपना मन दिखा सके |सब -कुछ जानकार डॉक्टर आनंद सकते में आ गए |एक मासूम लड़की को पहले मनोवैज्ञानिक तरीके से वशीभूत किया गया |फिर उससे इस तरह दुराचार किया गया था कि वह खुद को ही अपराधी मान रही थी |उन्होंने पूनम को समझाया कि शेखर उससे प्रेम नहीं करते| उन्होंने उसकी स्थिति का लाभ उठाया है बस |खैर अब जो हुआ सो हुआ ,उसे भूलने की कोशिश करो और किसी भी हालत में शेखर से न मिलो |मैं कुछ दवाई देता हूँ उस दवा से तुम्हें नींद भी आएगी और तुम अच्छा भी महसूस करोगी |
सुमन और रमा को इतना तो पता चल ही गया था कि पूनम की इस हालत के लिए कहीं न कहीं शेखर जिम्मेदार हैं ,पर जब तक पूनम खुद कुछ न बताए ,वे इस विषय पर बात करके उसे और परेशान नहीं करना चाहती थीं |
दवा के असर से पूनम सोने लगी |उसकी सेहत भी सुधर रही थी |पर एक नयी बात भी हुई कि वह शेखर के बारे में और भी सकारात्मक सोचने लगी थी |उसे लगने लगा था कि उनके बीच जो हुआ ,वह गलत नहीं था |शेखर ने उसे न केवल प्यार किया था ,बल्कि अपने घर के मंदिर में उससे शादी भी की थी |उसके बाद ही तो उसे छूने लगे थे |फिर वह गिल्टी क्यों महसूस कर रही है ?वे उसे प्रारम्भ से ही अपनी पत्नी के रूप में देखते रहे थे |पूनम को याद है जब शुरू-शुरू में वह उनके घर जाती ,तो वे उसका बड़ा सम्मान करते थे |घर में कोई भी पूजा-पाठ होता |वे एक तरफ पत्नी को, तो दूसरी तरफ उसको बैठने को कहते |हालांकि वह नहीं बैठती थी कि लोग क्या कहेंगे ?इस बात पर उन्होंने कह दिया -जब उन्हें लोगों की परवाह नहीं ,तो उसे क्यों होती है?वे उसे अपनी पत्नी मानते हैं |उनकी बात को वह हँसकर टाल गयी थी ,पर उनकी यह बात उसके मन को गुदगुदाती रहती थी |अक्सर वह सोचने लगी थी –काश शेखर उसके पति होते !
वह किसी छुट्टी का दिन था |आकाश में बादल छाए हुए थे |लगता था कि मूसलाधार बारिश होगी |फिर भी पूनम शेखर के घर जाने को तैयार होने लगी |माँ ने मना किया तो नहीं मानी |रास्ते में ही बूँदा-बाँदी शुरू हो गयी |शेखर के दरवाजे पर पहुँचते-पहुँचते वह सराबोर हो गयी |दरवाजा शेखर ने ही खोला |वह अंदर आई तो घर में सन्नाटा लगा |शेखर ने बताया कि कल शाम को ही पत्नी बच्चों के साथ मैके गयी है |पूनम ने सोचा कि उसका आना तो सुनिश्चित था ,फिर उन्होंने उसे आने से मना क्यों नहीं कर दिया ?क्या वे स्वयं उससे एकांत में मिलना चाहते थे |उसे सोचते देखकर शेखर ने उसे बाँहों में भर लिया और चूमने की कोशिश की तो वह किनारे खड़ी हो गयी |उसने कहा-यह पाप है |
उसके अंदर इतनी गहरी नैतिकता होगी ,इसका अनुमान शेखर नहीं लगा पाए थे|पर हार मानना उन्होंने भी नहीं सीखा था |भावुक स्वर में बोले-अपनी पत्नी के साथ यह पाप नहीं है |

‘मैं आपकी पत्नी नहीं हूँ |’

-पर मैं तो मानता हूँ |

‘मान लेने से कोई किसी की पत्नी नहीं हो जाती |’

-तो इधर आओ ... उन्होंने उसे बांह से पकड़ा और घर के उस कोने में ले गए ,जहां छोटा -सा एक मंदिर बना था |मंदिर में माँ दुर्गा की प्रतिमा थी |उन्होंने माँ के सामने थाल में रखे सिंदूर को उठाया और उसकी मांग भर दी |वह अवाक खड़ी रही तो बोले –मैं ईश्वर को साक्षी मानकर तुम्हें अपनी पत्नी स्वीकार करता हूँ |पूनम संज्ञा- शून्य थी उसने अपनी तरफ से कोई कसम नहीं ली |
उस दिन के बाद से ही शेखर उसे साधिकार छूने लगे थे और उसे भी उनका स्पर्श बुरा नहीं लगता था |
पूनम की भावनाएँ डॉक्टर के नसीहत पर भारी पड़ी और एक सप्ताह भी न बीता कि पूनम फिर से शेखर के दहलीज पर आ खड़ी हुई |पहले दरवाजा खुलने में देरी हुई ,फिर वकिलाइन के चेहरे पर नागावरी के भाव उभरे |इन सब पर ध्यान न देकर वह ड्राइंगरूम में आकर बैठ गयी | ड्राइंगरूम उसे कुछ बदला-बदला लगा |उसने गौर किया कि शेखर के जन्मदिन पर उसके द्वारा भेंट दी गयी फूलों की झाड़ गायब है |साथ ही वे चींजे भी नहीं है जो शेखर और उसकी सहमति से खरीदी गयी थीं और कुछ दिन पहले तक जिनका घर में खास स्थान निर्धारित था |बच्चे भी पहले की तरह उसके पास नहीं आए |उसके आने की खबर पाकर शेखर बाथरूम से तौलिया लपेटे ही निकल आए |पूनम ने देखा तौलिए में लिपटा शेखर का शरीर कितना क्षीण और छोटा है |पुरूषोचित सुडौलता का नामोनिशान नहीं |वह सोचने लगी- क्या इसी पुरूष के पीछे वह पागल है ?
-कैसे आना हुआ ?शेखर ने घबराए स्वर में पूछा |
‘तो अब उसको अपने आने का कारण बतलाना होगा’ –उसने सोचा |
-दरअसल हम लोगों को कहीं जाना है |फिर आना तो बातें होंगी |
स्पष्ट संकेत था कि पूनम यहाँ से जाए |वह उठकर चल दी |अपने घर पहुंचते ही उसे बुखार हो आया |फिर वही डिप्रेशन ...वही द्वंद्व ...एक-दूसरे को काटते विचार | कभी खुद को ठगा महसूस करती, कभी लगता कि वह शेखर को गलत समझ रही है |वह समझ नहीं पा रही थी कि शेखर से उसे प्रेम है या नफरत|कभी लगता उसे शारीरिक सुख ही मिल गया होता ,तो शायद वह शेखर के बदले रूप को भूल जाती |पर उसे अपना सब कुछ खोने बाद भी कुछ न पा सकने की कसक साल रही है |वह शेखर को यूं ही नहीं छोड़ सकती है |कभी वह खुद पर नाराज होती |क्यों वह पागलों की तरह शेखर के घर दौड़ लगाती थी ?क्यों नहीं समझी कि बाल-बच्चेदार आदमी किसी लड़की से प्यार नहीं कर सकता ?क्या उसे भी देह की भूख थी ?शायद हाँ ,तभी तो शेखर के दो मिनट के मशीनी संसर्ग ने उसे तड़पा कर रख दिया है |वह तृप्ति के लिए बेचैन है |शेखर क्यों नहीं समझते यह बात ?उनके पास तो एक स्त्री मौजूद है ,पर उसके पास तो कोई पुरूष नहीं |कभी सोचती शेखर प्रेम में क्यों असफल रहे ?क्या उनमें कोई शारीरिक अक्षमता है ? उनसे फिर संसर्ग हो तो पता चले |पर वे तो जैसे उससे दूर भाग रहे हैं |क्या करे वह ?कहीं वे उसमें ही तो कोई कमी नहीं पा गए ?आखिर क्यों उसकी युवा देह का आकर्षण भी उन्हें नहीं बांध पा रहा है ?कहीं वे उसके भावनात्मक उबाल से तो भयभीत नहीं है |कहीं अपने परिवार को खो देने या समाज की रूसवाई का डर तो उन्हें नहीं रोक रहा | कोई कारण तो जरूर होगा | वे उसे बता देते तो वह उनका सहयोग ही करती ,पर वे तो पलायन कर रहे हैं |उनके इस पलायन ने ही उसे बीमार किया है |
एक दिन इसी डिप्रेशन में वह उठी और शेखर के घर जा पहुंची |गर्मी की तपती दुपहरिया थी |हवा तक जैसे किसी शीतल छाया में सो रही थी |दरवाजा शेखर ही ने खोला और उसे देखते ही बोले –बावली हो गयी हो ,इस दुपहरिया में |अच्छा आ ही गयी हो ,तो अंदर आओ सब सो रहे हैं |शेखर के बेडरूम में जमीन पर ही गद्दा पड़ा हुआ था |सभी आड़े-तिरछे लेटे सो रहे थे |वकिलाइन ने एक बार आँखें खोलकर उसे देखा फिर करवट बदल कर सो गईं |शेखर भी लेट गए और उसे भी लेट जाने का इशारा किया |वह बच्चों के पास लेट गयी |शेखर ने एक चादर अपनी देह पर डाल ली थी |चादर के भीतर उन्होंने उसका हाथ पकड़ा और अपने पुरूष अंग पर रख लिया |उसने हाथ खींचना चाहा तो उसके हाथ को कसकर जकड़ लिया और तभी छोड़ा ,जब संतुष्ट हो लिए |उसका हाथ गंदा हो गया था |उसे बड़ी वितृष्णा हो रही थी |सोचने लगी –यह आदमी कितना स्वार्थी है |अपना सुख साध लेता है पर दूसरे के सुख की उसे परवाह तक नहीं है |यह उसे इस्तेमाल कर रहा है |शायद यह इसके लायक ही नहीं है |किसी स्त्री को संतुष्ट करना इसके बूते की बात नहीं ,तभी तो उससे भागा फिर रहा है |पता नहीं पत्नी को कैसे खुश रखता होगा ?हो सकता है पत्नी अपनी जरूरत कहीं और पूरी करती हो ,तभी तो इसके लिए क्षणिक सुख का साधन जुटाती फिरती है |इधर एक और लड़की इनके घर ज्यादा दिखने लगी है |
'वह भी किससे बंधी है ?उसे मुक्त होना ही पड़ेगा ,वरना वह इस आदमी की रखैल बन कर रह जाएगी | रखैल भी कैसी, जिसे न यह संरक्षण देगा न देह-सुख और कुछ तो दूर की बात है |वह खुद पर नियंत्रण रखेगी |दुर्घटना समझकर सब कुछ भूल जाएगी |किसी गलती को जीवन भर दुहराना समझदारी तो नहीं |'
वह घर लौटी और फिर कभी शेखर के घर नहीं गयी |वह अपने डिप्रेशन से लड़ रही थी ,इसलिए चिड़चिड़ी हो गयी थी |इधर वह अपनी माँ से लड़ती और कहती –मेरा जल्द विवाह कर दो |वह न केवल शेखर से बल्कि अपने शहर को भी छोड़ जाना चाहती थी |यहाँ वह खुद को पराजित महसूस कर रही थी |उसका जैसे दम घुट रहा था |शेखर ने उसके साथ छल किया है |शायद इसलिए कि वह एक ऐसी माँ की बेटी है ,जिस पर किसी की रखैल होने का तमगा चिपका है |पर अंकल ने कितना कुछ माँ और उनके बच्चों के लिए किया है |अब उसके लिए लड़का भी ढूंढ रहे हैं |उनके कारण ही तो उसका परिवार बना हुआ है वरना जाने क्या हो जाता ?शेखर उनका एक अंश भी नहीं कर सकता |
यह संयोग ही था कि विधायक अंकल के प्रयास से दिल्ली में एक अधिकारी लड़का मिल गया|धूमधाम से शादी हुई |शेखर भी उसके विवाह में आमंत्रित थे |उसकी विदाई में सबसे ज्यादा शेखर ही रोते दिखे |उन्हें रोते देख एक पल के लिए पूनम के मन में विचार आया कि –कहीं सच ही उन्हें उससे लगाव तो नहीं था ,पर दूसरे ही क्षण उसने इस विचार को अपने दिमाग से झटक दिया |
पूनम डरी हुई थी |शेखर के साथ उसका संसर्ग कष्टकारी साबित हुआ था |वह सोच रही थी कि कहीं पति भी शेखर जैसा न निकले पर पति समझदार था |उसने उसे सुख से सराबोर कर दिया |पति से भरपूर प्यार पाते ही पूनम ने शेखर को क्षमा कर दिया |उसका आत्मविश्वास लौट आया |वह किसी फूल की मानिंद खिल उठी |एक वर्ष बाद जब वह ससुराल से लौटी ,तो शेखर उससे मिलने आए और एकांत पाकर उससे पहले की तरह प्रेम जताना चाहा ,तो वह बेरूखी से बोली –अब मेरी शादी हो चुकी है |
वे भावुक स्वर में बोले –यही तुम्हारा प्रेम था |तुम तो कहती थी कि आजीवन साथ निभाऊँगी |वह हँसी और उठकर वहाँ से चली गयी |शेखर आहत दृष्टि से उसे देखते रह गए |पूनम सोच रही थी –यह आदमी कितना शातिर है |अब भी उसे इस्तेमाल करना चाहता है |कहीं यह उसकी छोटी बहनों को न शिकार बना ले |घर में उसका आना-जाना तो है ही |माँ उस पर विश्वास भी बहुत करती है |नहीं.. वह ऐसा नहीं होने देगी |उसने अब तक अपनी बहनों को नहीं बताया था कि उसके डिप्रेशन की वजह शेखर थे |अब वह उन्हें सब -कुछ बता देगी |रात को जब सभी बहनें साथ लेटीं ,तो पूनम ने सारी कहानी बतानी शुरू की |उसे यह जानकार आश्चर्य हुआ कि बहनें सारी बात जानती थीं |सुमन ने भी शेखर से संबन्धित एक घटना उसे बताई |
पूनम की विदाई के तत्काल बाद ही वे उसके कमरे में आकर उससे प्रेम जताने लगे थे और उसका हाथ पकड़ लिया था |वे आवेश में काँप रहे थे |उन्हें पता नहीं था कि वह उनकी असलियत जानती है | उसने उन्हें डपट कर कहा –मेरा हाथ छोड़िए वरना चिल्लाऊँगी |आप मुझे पूनम की तरह भोली मत समझिएगा |
शेखर काँपने लगे और तुरंत वहाँ से चले गए |
पूनम को खुशी हुई कि उसकी बहनें उससे ज्यादा समझदार हैं और वे किसी दुष्चक्र में नहीं पड़ेगी|सही मायने में उन्होंने माँ के जीवन से सच्चा सबक लिया है |


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